शिव महिमा मंत्र : कर्पूर गौरम् करुणावतारम् । . Karpur Gouram Karunavataram

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  • เผยแพร่เมื่อ 10 ก.ย. 2024
  • शिव महिमा मंत्र : कर्पूर गौरम् करुणावतारम् संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम् । सदा वसन्तम् हृदयार्विन्दे भवम् भवानीसहितम् नमामि।। Shiv Mahima Mantra. Karpur Gouram Karunavatatam Sansar Saram bhujagendraharam
    Rudra abhishek mantra
    कर्पूर गौरम् करुणावतारं मंत्र अर्थ सहित
    शिव जी के शक्तिशाली मंत्र
    शिव जी के मंत्र बताए
    शिव जी के मंत्र जाप
    शिव जी के मंत्र बताओ
    शिव जी के बारे में जानकारी
    शंकर या महादेव सनातन शिव धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है।वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, भिलपती, भिलेश्वर,रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय , अय्यपा और गणेश हैं, तथा पुत्रियां अशोक सुंदरी , ज्योति और मनसा देवी हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए है। कैलाश में उनका वास है।
    शिव -शांति, विनाश, समय, योग, ध्यान, नृत्य, प्रलय और वैराग्य के देवता, सृष्टि के संहारक , जगत पिता , परब्रह्म
    अन्य नाम- नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, महेश्वर, पशुपतिनाथ, नटराज, भोलेनाथ, बैद्यनाथ, रुद्र , भैरव आदि
    संबंध -हिन्दू देवता, परब्रह्म, परमात्मा, परमेश्वर
    निवास स्थान- कैलाश पर्वत
    अस्त्र- त्रिशूल , पिनाक धनुष, परशु ,पशुपतास्त्र
    जीवनसाथी- पार्वती (सती का पुनर्जन्म) और सती
    भाई-बहन- सरस्वती (छोटी बहन)
    संतान- कार्तिकेय ,गणेश , अशोकसुन्दरी , अय्यपा, मनसा देवी और ज्योति
    सवारी- नन्दी
    शिव जी के प्रमुख मंत्र
    १. ॐ नमः शिवाय
    २.ॐ नमो: भगवते रूद्राय
    ३. शिव वैदिक मंत्र
    ॐ नम : शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च महेस्कराय च नमः शिवाय च नमः शिवतराय च।
    ४. महामृत्युंजय मंत्र
    ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
    उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
    5. रुद्र गायत्री मंत्र :- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्र: प्रचोदयात् ।।
    6. शिव पंचाक्षर स्तोत्र
    7. कर्पूर गौरम् करुणावतारं मंत्र अर्थ सहित
    यह मंत्र बोला गया था विष्णु भगवान द्वारा शिव पार्वती विवाह के समय । भगवान विष्णु ने विश्व को यह समझाने का प्रयास किया है कि वास्तव में जो जैसा दिखता है वैसा नहीं होता हमने सदैव भगवान शिव के बारे में सुना है कि शिव अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं और उनका रूप बहुत ही विकराल है परंतु यह मंत्र कर्पूर गौरम् करुणावतारं भगवान शिव के सौंदर्य व दिव्य स्वरूप का वर्णन करता है|
    आइए, हम इस पारंपरिक भारतीय मंत्र कर्पूर गौरम करुणावतारं पूरा मंत्र के बारे में बताते हैं जिसे आरती के बाद बोलने का विधान हैं। यह मंत्र विविधता और सात्विकता की भावना को स्थापित करता है, जिससे पूजन की धार्मिक और आध्यात्मिक महत्ता में वृद्धि होती है। यह मंत्र सजीवता और आत्मीयता का अनुभव कराता है और भक्तों को भगवान के दिव्य स्वरूप के प्रति आदर्श और समर्पण की भावना देता है।
    कर्पूर गौरम करुणावतारं पूरा मंत्र
    कर्पूर गौरम् करुणावतारम् संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम् ।
    सदा वसन्तम् हृदयार्विन्दे भवम् भवानी सहितम् नमामि।।
    कर्पूर गौरम् करुणावतारं मंत्र का अर्थ
    कर्पूरगौरं करुणावतारं - जो कपूर के समान गोरा और करुणा के अवतार हैं।
    संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् - जो सम्पूर्ण संसार का सार हैं और सर्पों के राजा वासुकी , उनके हार हैं।
    सदा बसन्तं हृदयार्विन्दे - जो हमेशा हृदय के अंतर में बसे हुए हैं।
    भवं भवानीसहितं नमामि - मैं उन्हें नमस्कार करता हूँ, जो भवानी के साथ हैं।
    अर्थात, हे शिव, आप कर्पूर के समान गौर वर्णवाले हैं, आप करुणा के अवतार हैं, आप संसार का सार हैं, और आप सर्प का हार धारण करने वाले हैं। हे शंकर, आप माता भवानी के साथ मेरे हृदय में सदा वास करें। हे शिव, हम आपको हमारा प्रणाम समर्पित करते हैं।
    आरती के बाद “कर्पूर गौरम करुणावतारं मंत्र का पाठ करने का कारण है कि यह श्लोक भगवान शिव की महिमा और उनके दिव्य स्वरूप का स्तुति करता है। इसमें शिव को “कर्पूरगौरं” कहा गया है, जो कपूर के समान गोरा हैं, और “करुणावतारं” हैं, जो करुणा के अवतार हैं। यह श्लोक शिव-पार्वती के विवाह के समय भगवान विष्णु द्वारा गाया गया था, जिससे उनका अद्भुत स्वरुप दर्शाया जाता है। इसके अलावा, यह श्लोक भगवान शिव की उच्च महिमा को स्मरण करने के लिए बोला जाता है, और उन्हें प्रसन्न करने के लिए आराधना की जाती है। इसके माध्यम से भक्त शिव की पूजा और आराधना करते हैं, और उनकी कृपा और आशीर्वाद की प्रार्थना करते हैं।
    ८. रुद्राष्टकम्
    नमामीशमीशान निर्वाणरूपं ।विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद स्वरूपम् ।।
    निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं ।चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्।।
    ALL ABOVE MANTRAS ARE RECITED 11,21,51 OR 108 TIMES IN YAGYA (यज्ञ) SHIVA POOJA AND RUDRA ABHISHEK TO GET BLESS FROM LORD SHIVA.
    ABOUT MANTRA
    LYRICS - पौराणिक ग्रंथ
    Singer: Pt. H. S. SHARMA
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