राग मारवा का इतनी खूबसूरती से परिचय मिला कि उसका आलाप, रंगत और गंभीरतापूर्ण ,मनको छूने लेनेवाला भाव-स्वभाव भी सहजतासे समझ में आ गया !! इतनी बढिया नोटेशन के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई तथा शुभकामनाएं!!!
जाता है। शास्त्रीय संगीत में ताल की बड़ी अहम भूमिका होती है। संगीत में ताल देने के लिये तबले, मृदंग, ढोल और मँजीरे आदि का व्यवहार किया जाता है। प्राचीन भारतीय संगीत में मृदंग, घटम् इत्यादि का प्रयोग होता है। आधुनिक हिन्दुस्तानी संगीत में तबला सर्वाधिक लोकप्रिय है। तबले में ताल का प्रयोग्। भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रयुक्त कुछ तालें इस प्रकार हैं : दादरा, झपताल, त्रिताल, एकताल। तंत्री वाद्यों की एक शैली ताल के विशेष चलन पर आधारित है। मिश्रबानी में डेढ़ और ढ़ाई अंतराल पर लिए गए मिज़राब के बोल झप-ताल, आड़ा चार ताल और झूमरा का प्रयोग करते हैं। संगीत के संस्कृत ग्रंथों में ताल दो प्रकार के माने गए हैं-मार्ग और देशी। भरत मुनि के मत से मार्ग ६० हैं- चंचत्पुट, चाचपुट, षट्पितापुत्रक, उदघट्टक, संनिपात, कंकण, कोकिलारव,राजमहल के , राजकोलाहल, रंगविद्याधर, शचीप्रिय, पार्वतीलोचन, राजचूड़ामणि, जयश्री, वादकाकुल, कदर्प, नलकूबर, दर्पण, रतिलीन, मोक्षपति, श्रीरंग, सिंहविक्रम, दीपक, मल्लिकामोद, गजलील, चर्चरी, कुहक्क, विजयानंद, वीरविक्रम, टैंगिक, रंगाभरण, श्रीकीर्ति, वनमाली, चतुर्मुख, सिंहनंदन, नंदीश, चंद्रबिंब, द्वितीयक, जयमंगल, गंधर्व, मकरंद, त्रिभंगी, रतिताल, बसंत, जगझंप, गारुड़ि, कविशेखर, घोष, हरवल्लभ, भैरव, गतप्रत्यागत, मल्लताली, भैरव- मस्तक, सरस्वतीकंठाभरण, क्रीड़ा, निःसारु, मुक्तावली, रंग- राज, भरतानंद, आदितालक, संपर्केष्टक। इसी प्रकार १२० देशी ताल गिनाए गए हैं। इन तालों के नामों में भिन्न भिन्न ग्रंथों में विभिन्नता देखी जाती हैं। ताल में परिवर्तन / ताल माला : - ताल में परिवर्तन / ताल माला एक राग में हर पंक्ति में ताल परिवर्तन / वृद्धि करते हुये राग को गाया जाता है विषम से है तो विषम से तथा सम से है तो सम से। जैसे 10 मात्रा से राग के विभिन्न भाषा अर्थात शुरू, अगली पंक्ति 12 मात्रा , अन्य पंक्तियां भी बढ़ते क्रम से गायी जाती है। ताल माला आरोही आदेश में बढ़ती हैं। दोहरीकरण / ताल माला में राग का तीन गुना आरोही आदेश में वृद्धि की जाती है। जब एक गायक ताल माला में गायी जाने वाली राग की दोगुन करता है तो आरोही आदेशों (उदाहरणार्थ 18,20,22,24 ....) बढ़ते क्रम से ताल माला को गाया जाता है, ताल का बदलाव और अजीब के लिए इसी तरह की संख्या में वृद्धि की जाती है। इसका उल्लेख गुरमत ज्ञान समूह, राग रतन , ताल अंक , संगीत शास्त्र में भी दर्शाया गया है।
ni dha ni re ni dha ni re sa. waah. bahut achha samjhaya aapne. dhanyawad.
धन्य वाद सर्जी मैं धन्य हो गया जो मुझे आज राग मारवा का विस्तार से परिचय मीला
राग मारवा का इतनी खूबसूरती से परिचय मिला कि उसका आलाप, रंगत और गंभीरतापूर्ण ,मनको छूने लेनेवाला भाव-स्वभाव भी सहजतासे समझ में आ गया !! इतनी बढिया नोटेशन के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई तथा शुभकामनाएं!!!
Namaste guruji aap jo bhi gyan dete hai dilse dete hai.... Divine... Thanks a lot......
Thank you so much sar g
Wah sir
maza aagya raag sun kar.
जाता है। शास्त्रीय संगीत में ताल की बड़ी अहम भूमिका होती है। संगीत में ताल देने के लिये तबले, मृदंग, ढोल और मँजीरे आदि का व्यवहार किया जाता है। प्राचीन भारतीय संगीत में मृदंग, घटम् इत्यादि का प्रयोग होता है। आधुनिक हिन्दुस्तानी संगीत में तबला सर्वाधिक लोकप्रिय है।
तबले में ताल का प्रयोग्।
भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रयुक्त कुछ तालें इस प्रकार हैं : दादरा, झपताल, त्रिताल, एकताल। तंत्री वाद्यों की एक शैली ताल के विशेष चलन पर आधारित है। मिश्रबानी में डेढ़ और ढ़ाई अंतराल पर लिए गए मिज़राब के बोल झप-ताल, आड़ा चार ताल और झूमरा का प्रयोग करते हैं।
संगीत के संस्कृत ग्रंथों में ताल दो प्रकार के माने गए हैं-मार्ग और देशी। भरत मुनि के मत से मार्ग ६० हैं- चंचत्पुट, चाचपुट, षट्पितापुत्रक, उदघट्टक, संनिपात, कंकण, कोकिलारव,राजमहल के , राजकोलाहल, रंगविद्याधर, शचीप्रिय, पार्वतीलोचन, राजचूड़ामणि, जयश्री, वादकाकुल, कदर्प, नलकूबर, दर्पण, रतिलीन, मोक्षपति, श्रीरंग, सिंहविक्रम, दीपक, मल्लिकामोद, गजलील, चर्चरी, कुहक्क, विजयानंद, वीरविक्रम, टैंगिक, रंगाभरण, श्रीकीर्ति, वनमाली, चतुर्मुख, सिंहनंदन, नंदीश, चंद्रबिंब, द्वितीयक, जयमंगल, गंधर्व, मकरंद, त्रिभंगी, रतिताल, बसंत, जगझंप, गारुड़ि, कविशेखर, घोष, हरवल्लभ, भैरव, गतप्रत्यागत, मल्लताली, भैरव- मस्तक, सरस्वतीकंठाभरण, क्रीड़ा, निःसारु, मुक्तावली, रंग- राज, भरतानंद, आदितालक, संपर्केष्टक। इसी प्रकार १२० देशी ताल गिनाए गए हैं। इन तालों के नामों में भिन्न भिन्न ग्रंथों में विभिन्नता देखी जाती हैं।
ताल में परिवर्तन / ताल माला : - ताल में परिवर्तन / ताल माला एक राग में हर पंक्ति में ताल परिवर्तन / वृद्धि करते हुये राग को गाया जाता है विषम से है तो विषम से तथा सम से है तो सम से। जैसे 10 मात्रा से राग के विभिन्न भाषा अर्थात शुरू, अगली पंक्ति 12 मात्रा , अन्य पंक्तियां भी बढ़ते क्रम से गायी जाती है। ताल माला आरोही आदेश में बढ़ती हैं। दोहरीकरण / ताल माला में राग का तीन गुना आरोही आदेश में वृद्धि की जाती है। जब एक गायक ताल माला में गायी जाने वाली राग की दोगुन करता है तो आरोही आदेशों (उदाहरणार्थ 18,20,22,24 ....) बढ़ते क्रम से ताल माला को गाया जाता है, ताल का बदलाव और अजीब के लिए इसी तरह की संख्या में वृद्धि की जाती है। इसका उल्लेख गुरमत ज्ञान समूह, राग रतन , ताल अंक , संगीत शास्त्र में भी दर्शाया गया है।
Thank you
Rag marba me bandish gaiye to thora
जगत जननी जगदम्ब भवानी प्लीज सर
आप कृपया निवेदन है स्क्रीन पर नोटेशन अवश्य दिखाई करें धन्यवाद
bbahut badiya sir
❤
C.खूपy
Very nice
Sair स्केल A hormoniyam me fingar spid kese kre
इस पर गाने के लिए कोई भजन बताएँ।
Sir eski taan bhi upload kijiye please 🙏
Wah
Isme kaun sa sambad bhav h,?
Thanks sir
Jay ho
Sir English main lekha kren.pleas written by English.