Daily Bible Reading | दैनिक ईश वचन | Today's Catholic Mass Gospel | Mk
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- เผยแพร่เมื่อ 7 พ.ย. 2024
- Dear Brothers and Sisters, We welcome you in this Channel, In this Channel we upload everyday Mass Gospel which is read in the Mass in Hindi. This Video help you before going for Mass
Word for the Day: Sunday 03/11/2024
The greatest commandment of God is to love one another and it to be seen in our action.
(Mk 12:28-34)
[28 One of the teachers of the law came and heard them debating. Noticing that Jesus had given them a good answer, he asked him, “Of all the commandments, which is the most important?”
29 “The most important one,” answered Jesus, “is this: ‘Hear, O Israel: The Lord our God, the Lord is one.[a] 30 Love the Lord your God with all your heart and with all your soul and with all your mind and with all your strength.’[b] 31 The second is this: ‘Love your neighbor as yourself.’[c] There is no commandment greater than these.”
32 “Well said, teacher,” the man replied. “You are right in saying that God is one and there is no other but him. 33 To love him with all your heart, with all your understanding and with all your strength, and to love your neighbor as yourself is more important than all burnt offerings and sacrifices.”
34 When Jesus saw that he had answered wisely, he said to him, “You are not far from the kingdom of God.” And from then on no one dared ask him any more questions]
ईश्वर की सबसे बड़ी आज्ञा है एक दूसरे को प्यार करो और ईश्वर के प्रति हमारा प्यार हमारे कार्यों में दिखना चाहिए l
(Mk 12:28-34)
[28 फिर एक यहूदी धर्मशास्त्री आया और उसने उन्हें वाद-विवाद करते सुना। यह देख कर कि यीशु ने उन्हें किस अच्छे ढंग से उत्तर दिया है, उसने यीशु से पूछा, “सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण आदेश कौन सा है?”
29 यीशु ने उत्तर दिया, “सबसे महत्त्वपूर्ण आदेश यह है: ‘हे इस्राएल, सुन! केवल हमारा परमेश्वर ही एकमात्र प्रभु है। 30 समूचे मन से, समूचे जीवन से, समूची बुद्धि से और अपनी सारी शक्ति से तुझे प्रभु अपने परमेश्वर से प्रेम करना चाहिये।’ 31 दूसरा आदेश यह है: ‘अपने पड़ोसी से वैसे ही प्रेम कर जैसे तू अपने आप से करता है।’ इन आदेशों से बड़ा और कोई आदेश नहीं है।”
32 इस पर यहूदी धर्मशास्त्री ने उससे कहा, “गुरु, तूने ठीक कहा। तेरा यह कहना ठीक है कि परमेश्वर एक है, उसके अलावा और दूसरा कोई नहीं है। 33 अपने समूचे मन से, सारी समझ-बूझ से, सारी शक्ति से परमेश्वर को प्रेम करना और अपने समान अपने पड़ोसी से प्यार रखना, सारी बलियों और समर्पित भेटों से जिनका विधान किया गया है, अधिक महत्त्वपूर्ण है।”
34 जब यीशु ने देखा कि उस व्यक्ति ने समझदारी के साथ उत्तर दिया है तो वह उससे बोला, “तू परमेश्वर के राज्य से दूर नहीं है।” इसके बाद किसी और ने उससे कोई और प्रश्न पूछने का साहस नहीं किया।]
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