संत कवि लक्ष्मी सखी जी कहते हैं: "आतना जे पढ़लिस ते अंगरेजीआ फरसिया त काहे ना कइलिस ते आतम दरसिया।" बाबा का यह छोटा परंतु अत्यंत गंभीर पद हमें कबीर दास के पद की याद दिलाता है जिसमें वह कहते हैं : " आतम ज्ञान बिना सब सूना ,क्या मथुरा क्या काशी पानी बीच मीन प्यासी मोहें सुनी सुनी आवत हांसी।" अन्य संतों की तरह संत कवि लक्ष्मी सखी जी के जीवन कथा को जानना बड़ा कठिन है ।उनके द्वारा विरचित एक पद में उनके जीवन का एक संक्षिप्त वर्णन मिलता है जो बहुत ही सारगर्भित है ।एक तरफ इसमें उनके जीवन का वर्णन है तो दूसरी तरफ यह एक अध्यात्म की प्रथम सीढ़ी है, जिसके आधार पर हम अपने मन को शांत कर सकते हैं और उस परमपिता परमात्मा की अनुभूति कर सकते हैं। वह पद इस प्रकार हैं: "सुनु सखी सुनहु कहब कछु अउर सारन जिला तकथ अमनऊर कायथ बंश में जनमेऊ बउर राम लखन फल फरी गईले दोउर जनम भूमि कबौ पुजलऊं गउर मिलि गयिले सतगुरु माथे चढल मउर जिएते मरि गयिलों त लऊकल ठऊर संत समाज में चली गैलों धऊर सतगुरू दिहलन गेयान के लउर झटपट मरलो में माछर सऊर पाकल ब्रह्म अगिन कर भऊर खइलो में साध संत मिलि जऊर मौजे टेरूवां में अइलो धऊर मिलि जुलि भगत बनावल ठऊर लछमी सखी के सुंदर पियवा आरे तुम लागी मेरो दऊर" (Listen ,O Sakhi, listen. I would like to tell you something more. In a Kayasth family at the village Amnaur in the district of Saran I was born as a moron(feeble minded). In the very beginning of my childhood, the plant of Ram and Lakshman culminated into a ripe and mature fruit in both inner and outer being . My parents were very devoted to the worship of Lord Shiva and Parvati ,so with the result of this worship and devotion I got Satguru( the real guide and teacher to lead one to truth) and consequently ,I was crowned with spiritual achievement . In the company of my Guru ji I was able to see the anchor of my goal by burning the five senses of my body.In other words I was alive in the eyes of the general people but I felt myself physically dead and spiritually alive.This led me to go to the company of several other saints and ascetics .My reverened Satguru gave me the Lathi of knowledge; so without any delay ,at first ,I killed the Saura or charanga fish , that is,my mind.After that this fish was toasted in the holy fire( the deep and sustaining fire) of Brahma or God. When the fish was fully toasted,I ate it it in the company of saints and ascetics. After getting the eternal knowledge, I came running to the village Teruwan where my devotees made a hermitage there. I feel from the very core of my heart that my husband , the God, is the most handsome husband. I beseech him to make a permanent place in both my inner and outer being) प्रस्तुत पद को गहराई से अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि संत कवि लक्ष्मी सखी जी का वास्तविक जन्म स्थान सारण जिला अंतर्गत अमनौर ग्राम में था ।उनके माता पिता जी सनातन धर्म को मानने वाले थे जो गौरी और गणेश की पूजा करते थे और शायद उन्हीं के पुण्य से लक्ष्मी सखी जी को सतगुरु का दर्शन हो गया। भोजपुरी में एक कहावत है कि "बाढ़े पुत पिता के धरमे, खेती उपजेअपने करमे।"इस पद में कवि अपने आप को ,"बउर "कहते हैं जो भोजपुरी का एक शब्द है इसका मतलब होता है कम दिमाग वाला व्यक्ति जिसे हम अंग्रेजी में Slow witted या feeble minded कह सकते हैं। राजा भर्तृहरि ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "नीतिशतकम् "में यह लिखा है किअध्यात्मिक ज्ञान या तो बहुत पढ़े-लिखे या विशेषज्ञ लोगों को हो सकता है या जो एकदम कम पढ़े लिखे लोग हैं, उनको हो सकता है । इन दोनों के बीच वाले वैसे लोग जो थोड़ा ज्ञान पाकर इतराने लगते है उनको तो ब्रह्मा जी भी नहीं समझा सकते हैं। अग्यः सुखमराध्य: सुखतरम आराध्येते विशेषज्ञः ज्ञानमवधु: विदिग्धम ब्रह्मापि नरं न रणज्यति।
सारण के महान संत जगन्नाथ दास महाप्रभु और उनके गुरु रौनक दास महाप्रभु के संबंध में विशेष जानकारी के लिए निम्नलिखित यूट्यूब लिंक को क्लिक करें और देखें th-cam.com/video/VxNoWngD04g/w-d-xo.html
यहां संत कवि लक्ष्मी सखी जी ने मनुष्य की तुलना सुगना से किया है अर्थात आम आदमी जो अध्यात्म रहित है वह देखने में वैसा ही सुंदर लगता है जैसे कि तोता ;परंतु अंदर से वह खोखला होता है ।अतः संत कवि ने वैसे व्यक्तियों को सुगना से संबोधित करते हुए उन्हें आगाह किया है कि अभी भी समय है की तुम ईश्वर की शरण में चले जाओ नहीं तो तुम्हारा परिणाम वैसे ही होगा जैसे सूअर के साथ होता है, अर्थात जैसे सूअर को बड़े बेरहमी से बाँस से बना हुआ खोपचा द्वारा मारा जाता है ठीक वैसे ही मरने के बाद यमराज के दूत वैसे लोगों को सूअर की तरह मारते हैं।इसलिए आओ मेरे बच्चे, तुम सावधान हो जाओ और अभी से ईश्वर की आराधना करो ।इस पद में कवि ने एक बहुत ही सुंदर उपमा का प्रयोग किया है और वह है केवट और उसका नाव ।केवट नदी के किनारे नाव लेकर खड़ा है और जोर-जोर से पुकार रहा है की भाई आप दौड़ कर जल्दी से आइए नहीं तो मैं अपना नाव उस पार ले जा रहा हूं ।यहां नाव के सवारी करने वाले लोगों की तुलना कवि ने आम आदमी से की है नाव यहां एक आध्यात्मिक माध्यम है और नाव को खेने वाला केवट स्वयं भगवान हैं और उस पार अमरलोक है जहां मृत्यु के बाद हर किसी को जाना होता है ।इस पद में कवि ने एक दूसरे शब्द का इस्तेमाल किया है जो भोजपुरी का एक शब्द है जो धीरे-धीरे मृतप्राय होता जा रहा है और वह शब्द है "कउल" ।अर्थात जब बच्चा मां के गर्भ में रहता है तो वह अंधकार में रहता है और वह भगवान से प्रार्थना करता है कि भगवान मुझे शीघ्र अति शीघ्र इस अंधकार से बाहर कर दें और इसके लिए वह भगवान से एक समझौता करता है जिसको हम भोजपुरी में कउल कहते हैं ।परन्तु जन्म के बाद तुरंत वह बच्चा रोने लगता है और अपनी प्रतिज्ञा और समझौता भूल जाता है।
Jai baba Lakshmi sakhi 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Jai shree laxmi sakhi
Jai laxmi baba
Saheb..bandaging..Saheb..g
संत कवि लक्ष्मी सखी जी कहते हैं:
"आतना जे पढ़लिस ते अंगरेजीआ फरसिया
त काहे ना कइलिस ते आतम दरसिया।"
बाबा का यह छोटा परंतु अत्यंत गंभीर पद हमें कबीर दास के पद की याद दिलाता है जिसमें वह कहते हैं :
" आतम ज्ञान बिना सब सूना ,क्या मथुरा क्या काशी
पानी बीच मीन प्यासी
मोहें सुनी सुनी आवत हांसी।"
अन्य संतों की तरह संत कवि लक्ष्मी सखी जी के जीवन कथा को जानना बड़ा कठिन है ।उनके द्वारा विरचित एक पद में उनके जीवन का एक संक्षिप्त वर्णन मिलता है जो बहुत ही सारगर्भित है ।एक तरफ इसमें उनके जीवन का वर्णन है तो दूसरी तरफ यह एक अध्यात्म की प्रथम सीढ़ी है, जिसके आधार पर हम अपने मन को शांत कर सकते हैं और उस परमपिता परमात्मा की अनुभूति कर सकते हैं। वह पद इस प्रकार हैं:
"सुनु सखी सुनहु कहब कछु अउर
सारन जिला तकथ अमनऊर
कायथ बंश में जनमेऊ बउर
राम लखन फल फरी गईले दोउर
जनम भूमि कबौ पुजलऊं गउर
मिलि गयिले सतगुरु माथे चढल मउर
जिएते मरि गयिलों त लऊकल ठऊर
संत समाज में चली गैलों धऊर
सतगुरू दिहलन गेयान के लउर
झटपट मरलो में माछर सऊर
पाकल ब्रह्म अगिन कर भऊर
खइलो में साध संत मिलि जऊर
मौजे टेरूवां में अइलो धऊर
मिलि जुलि भगत बनावल ठऊर
लछमी सखी के सुंदर पियवा
आरे तुम लागी मेरो दऊर"
(Listen ,O Sakhi, listen. I would like to tell you something more. In a Kayasth family at the village Amnaur in the district of Saran I was born as a moron(feeble minded). In the very beginning of my childhood, the plant of Ram and Lakshman culminated into a ripe and mature fruit in both inner and outer being . My parents were very devoted to the worship of Lord Shiva and Parvati ,so with the result of this worship and devotion I got Satguru( the real guide and teacher to lead one to truth) and consequently ,I was crowned with spiritual achievement . In the company of my Guru ji I was able to see the anchor of my goal by burning the five senses of my body.In other words I was alive in the eyes of the general people but I felt myself physically dead and spiritually alive.This led me to go to the company of several other saints and ascetics .My reverened Satguru gave me the Lathi of knowledge; so without any delay ,at first ,I killed the Saura or charanga fish , that is,my mind.After that this fish was toasted in the holy fire( the deep and sustaining fire) of Brahma or God. When the fish was fully toasted,I ate it it in the company of saints and ascetics. After getting the eternal knowledge, I came running to the village Teruwan where my devotees made a hermitage there. I feel from the very core of my heart that my husband , the God, is the most handsome husband. I beseech him to make a permanent place in both my inner and outer being)
प्रस्तुत पद को गहराई से अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि संत कवि लक्ष्मी सखी जी का वास्तविक जन्म स्थान सारण जिला अंतर्गत अमनौर ग्राम में था ।उनके माता पिता जी सनातन धर्म को मानने वाले थे जो गौरी और गणेश की पूजा करते थे और शायद उन्हीं के पुण्य से लक्ष्मी सखी जी को सतगुरु का दर्शन हो गया। भोजपुरी में एक कहावत है कि "बाढ़े पुत पिता के धरमे, खेती उपजेअपने करमे।"इस पद में कवि अपने आप को ,"बउर "कहते हैं जो भोजपुरी का एक शब्द है इसका मतलब होता है कम दिमाग वाला व्यक्ति जिसे हम अंग्रेजी में Slow witted या feeble minded कह सकते हैं। राजा भर्तृहरि ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "नीतिशतकम् "में यह लिखा है किअध्यात्मिक ज्ञान या तो बहुत पढ़े-लिखे या विशेषज्ञ लोगों को हो सकता है या जो एकदम कम पढ़े लिखे लोग हैं, उनको हो सकता है । इन दोनों के बीच वाले वैसे लोग जो थोड़ा ज्ञान पाकर इतराने लगते है उनको तो ब्रह्मा जी भी नहीं समझा सकते हैं।
अग्यः सुखमराध्य: सुखतरम आराध्येते विशेषज्ञः
ज्ञानमवधु: विदिग्धम ब्रह्मापि नरं न रणज्यति।
Jail baba Lakshmi Sakhi. Very good efforts forupgrading our lost Bhojpuri culture
सारण के महान संत जगन्नाथ दास महाप्रभु और उनके गुरु रौनक दास महाप्रभु के संबंध में विशेष जानकारी के लिए निम्नलिखित यूट्यूब लिंक को क्लिक करें और देखें
th-cam.com/video/VxNoWngD04g/w-d-xo.html
Amaranth..sr...Apka..nambar.chahia
यहां संत कवि लक्ष्मी सखी जी ने मनुष्य की तुलना सुगना से किया है अर्थात आम आदमी जो अध्यात्म रहित है वह देखने में वैसा ही सुंदर लगता है जैसे कि तोता ;परंतु अंदर से वह खोखला होता है ।अतः संत कवि ने वैसे व्यक्तियों को सुगना से संबोधित करते हुए उन्हें आगाह किया है कि अभी भी समय है की तुम ईश्वर की शरण में चले जाओ नहीं तो तुम्हारा परिणाम वैसे ही होगा जैसे सूअर के साथ होता है, अर्थात जैसे सूअर को बड़े बेरहमी से बाँस से बना हुआ खोपचा द्वारा मारा जाता है ठीक वैसे ही मरने के बाद यमराज के दूत वैसे लोगों को सूअर की तरह मारते हैं।इसलिए आओ मेरे बच्चे, तुम सावधान हो जाओ और अभी से ईश्वर की आराधना करो ।इस पद में कवि ने एक बहुत ही सुंदर उपमा का प्रयोग किया है और वह है केवट और उसका नाव ।केवट नदी के किनारे नाव लेकर खड़ा है और जोर-जोर से पुकार रहा है की भाई आप दौड़ कर जल्दी से आइए नहीं तो मैं अपना नाव उस पार ले जा रहा हूं ।यहां नाव के सवारी करने वाले लोगों की तुलना कवि ने आम आदमी से की है नाव यहां एक आध्यात्मिक माध्यम है और नाव को खेने वाला केवट स्वयं भगवान हैं और उस पार अमरलोक है जहां मृत्यु के बाद हर किसी को जाना होता है ।इस पद में कवि ने एक दूसरे शब्द का इस्तेमाल किया है जो भोजपुरी का एक शब्द है जो धीरे-धीरे मृतप्राय होता जा रहा है और वह शब्द है "कउल" ।अर्थात जब बच्चा मां के गर्भ में रहता है तो वह अंधकार में रहता है और वह भगवान से प्रार्थना करता है कि भगवान मुझे शीघ्र अति शीघ्र इस अंधकार से बाहर कर दें और इसके लिए वह भगवान से एक समझौता करता है जिसको हम भोजपुरी में कउल कहते हैं ।परन्तु जन्म के बाद तुरंत वह बच्चा रोने लगता है और अपनी प्रतिज्ञा और समझौता भूल जाता है।