जय हनुमान ज्ञान गुन सागर | हनुमान चालीसा | Jai Hanuman Gyan Gun Sagar | Hanuman Chalisa Dhun Bhakti

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  • เผยแพร่เมื่อ 6 ก.พ. 2025
  • जय हनुमान ज्ञान गुन सागर | हनुमान चालीसा | Jai Hanuman Gyan Gun Sagar | Hanuman Chalisa Dhun Bhakti
    श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
    बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
    बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार ।
    बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार ॥
    जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
    जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
    राम दूत अतुलित बल धामा ।
    अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥
    महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
    कुमति निवार सुमति के संगी ॥
    कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
    कानन कुंडल कुँचित केसा ॥
    हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे ।
    काँधे मूँज जनेऊ साजे ॥
    शंकर सुवन केसरी नंदन ।
    तेज प्रताप महा जगवंदन ॥
    विद्यावान गुनी अति चातुर ।
    राम काज करिबे को आतुर ॥
    प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
    राम लखन सीता मनबसिया ॥
    सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा ।
    विकट रूप धरि लंक जरावा ॥
    भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
    रामचंद्र के काज सवाँरे ॥
    लाय सजीवन लखन जियाए ।
    श्री रघुबीर हरषि उर लाए ॥
    रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
    तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई ॥
    सहस बदन तुम्हरो जस गावै ।
    अस कहि श्रीपति कंठ लगावै ॥
    सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
    नारद सारद सहित अहीसा ॥
    जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
    कवि कोविद कहि सके कहाँ ते ॥
    तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा ।
    राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥
    तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना ।
    लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥
    जुग सहस्त्र जोजन पर भानू ।
    लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥
    प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही ।
    जलधि लाँघि गए अचरज नाही ॥
    दुर्गम काज जगत के जेते ।
    सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
    राम दुआरे तुम रखवारे ।
    होत ना आज्ञा बिनु पैसारे ॥
    सब सुख लहैं तुम्हारी सरना ।
    तुम रक्षक काहु को डरना ॥
    आपन तेज सम्हारो आपै ।
    तीनों लोक हाँक तै कापै ॥
    भूत पिशाच निकट नहि आवै ।
    महावीर जब नाम सुनावै ॥
    नासै रोग हरे सब पीरा ।
    जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
    संकट तै हनुमान छुडावै ।
    मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥
    सब पर राम तपस्वी राजा ।
    तिनके काज सकल तुम साजा ॥
    और मनोरथ जो कोई लावै ।
    सोई अमित जीवन फल पावै ॥
    चारों जुग परताप तुम्हारा ।
    है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
    साधु संत के तुम रखवारे ।
    असुर निकंदन राम दुलारे ॥
    अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
    अस बर दीन जानकी माता ॥
    राम रसायन तुम्हरे पासा ।
    सदा रहो रघुपति के दासा ॥
    तुम्हरे भजन राम को पावै ।
    जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
    अंतकाल रघुवरपुर जाई ।
    जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥
    और देवता चित्त ना धरई ।
    हनुमत सेई सर्व सुख करई ॥
    संकट कटै मिटै सब पीरा ।
    जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥
    जै जै जै हनुमान गुसाईँ ।
    कृपा करहु गुरु देव की नाई ॥
    जो सत बार पाठ कर कोई ।
    छूटहि बंदि महा सुख होई ॥
    जो यह पढ़े हनुमान चालीसा ।
    होय सिद्ध साखी गौरीसा ॥
    तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
    कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥
    पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
    राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥

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