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१. मूल बात- मनुष्य का, बहुरंगी दुख। २. दो मजबूरियांं:- 1. अस्तित्व- में क्या करु दुनिया ऐसी है। 2. अस्मिता- में क्या करु, में ऐसा हूं। ३. दर्शन- मुझे दुख से मुक्ति हेतु, जानना है। ४. विवशता, दुख को अमर कर देती है। चेतना, आनंद धर्मा होती है। ५. अध्यात्म मजबूरी, विवशता बर्दाश्त नहीं करता। ६. भीतर, जानना ही, करना है। ७. Knowing is real and independent. ८. हमारी सारी समझ, आयातित है। 🙏🏻🪔
आचार्य प्रशांत से समझें गीता,
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आचार्य जी प्रणाम🙏
कोटि कोटि नमन आचार्य जी🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻❤❤❤❤
झूठी आजादी ही बंधन है. बोध ही मुक्ति है. जितना हम अपने बंधनों को करीब से और गहराई से जानेंगे, उतना ज्यादा मुक्त होते जायेंगे. आचार्य प्रशांत
अध्यात्म में विवशता जैसा कोई शब्द नहीं है।
जो खेल को समझ गया वो खेल से आजाद हो गया। ****आचार्य प्रशांत जी****#
The knowing is real....the knowing is independent...****Acharya Prashant ji****
❤❤❤
जीवन आनंद का नाम है। A sisyphus that enjoys himself...****Acharya Prashant ji****
बंधनों की पूरी अभिस्वीकृति ही आजादी के प्रति प्रेम है। ****आचार्य प्रशांत जी****
झूठी आजादी ही बंधन हैं। ****आचार्य प्रशांत जी****
🎉🎉🎉🎉
जिसको गौर से देखो वो बदल जाता है - क्योकी वो जैसा दिख रहा है वो वैसा है हि नहि ।
सिर्फ एक ही चीज जानी जाती है " मैं बंधन में हूं" ****आचार्य प्रशांत जी****
🙏🙏धन्यवाद 🙏🙏
Pranam acharya ji 🙏🙏🇳🇱
बोध ही मुक्ति है
Love you so much sir ❤❤❤❤
Thanks sir
🕉️🙏
Absolutely right Acharya ji 🙏🏻
बंधनों का होना ही मुक्ति की पुकार बनता है ❤❤
🎉
सब कुछ जगत से बना है इससे मुक्त होना है।
Naman sir
हम मान्यताओं पर चलते हैं
Yah samajh me aaya ki Satya Satya hi hai, sirf prakriti me hi badlava ki sambhavna rahti he
विवशता दुख को जीवित करती है।
Naman Acharya ji💐🙏
हमारा दर्शन मानवीय मूल्यों पर आधारित है👏👏
अहंकार का कबाड़ हैं हम
Sahi hai
Pranaam achary ji❤❤❤
नमन
सत्य को बदला नहीं जा सकता लेकिन सत्य को जाना भी नहीं जा सकता सिर्फ झूठ को ही जाना जा सकता है यही आत्मा अवलोकन है 🙏🙏🙏❤️❤️❤️
🙏🙏🙏🙏🙏🌺🌺
जानना 👏👏
🙏
Sir 🙏🙏🙏🙏
बाेध हि मुक्ति है।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
हम भी उसी में है।
❤❤❤ जय गुरु
Thank you Acharya ji🙏🙏🙏🙏
हम क्या होगा इस चिंता में ज्यादा रहते हैं।
कबीर साहब
धन्यवाद! 🙏🏻🪔
Omnamasshivay
❤❤❤❤❤❤🌄🌄🌄🌄🙏🙏🙏🙏👌👌👌
Aabhar
Sb badla ja sakta h ❤🙏🙏
Namaskar guru ji
प्रणाम आचार्य जी
आप कुछ दिन आराम करिए 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Bodh hi mukti h
१. मूल बात- मनुष्य का, बहुरंगी दुख।
२. दो मजबूरियांं:-
1. अस्तित्व- में क्या करु दुनिया ऐसी है।
2. अस्मिता- में क्या करु, में ऐसा हूं।
३. दर्शन- मुझे दुख से मुक्ति हेतु, जानना है।
४. विवशता, दुख को अमर कर देती है। चेतना, आनंद धर्मा होती है।
५. अध्यात्म मजबूरी, विवशता बर्दाश्त नहीं करता।
६. भीतर, जानना ही, करना है।
७. Knowing is real and independent.
८. हमारी सारी समझ, आयातित है। 🙏🏻🪔
है तो बुलबुला😂😂
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Love you Acharya ji🙏🙏🙏❤❤❤
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