डिडनेश्वरी मंदिर मल्हार बिलासपुर छत्तीसगढ़|| DIDNESHWARI TEMPLE MALHAR BILASPUR CHHATTISGARH VIDEO
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- เผยแพร่เมื่อ 16 ต.ค. 2024
- DIDNESHWARI MANDIR MALHAR BILASPUR CHHATTISGARH
डिडनेश्वरी मंदिर मल्हार बिलासपुर छत्तीसगढ़
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ROAD रोड
BILASPUR बिलासपुर SE 32KM
BILHA बिल्हा 27KM
TALA GAON ताला गांव 35KM
मंदिर का निर्माण 10 वीं-11 वीं ई. में हुआ था। 52 शक्तिपीठों में 51 वां शक्तीपीठ मल्हार में हैं। ये मूर्ति कला का उत्तम नमूना है। शुद्व काले ग्रेनाइड से बना है। शुद्ध काले ग्रेनाइड से बनी प्रतिमा से अनोखी ध्वनी निकलती है।
चेत्र नवरात्रि के दिनों में लोग माता डिडनेश्वरी के रंग में रंग जाते है। गांव में भक्ति का माहौल रहता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मंदिर में भी विशेष पूजा-अर्चना व धार्मिक आयोजन होते हैं।
प्राकृतिक व पुरातत्व से भरपूर है यह क्षेत्र
मल्हार के आसपास पूरा क्षेत्र प्राकृतिक व पुरातत्व धरोहरों से भरपूर है। मल्हार के केवट मोहल्ले में जैन तीर्थकर सुपाŸवनाथ के संग नौ तीर्थकर मूर्ति स्थापित है। गांव वाले उसे नंदमहल कहते हैं। मंदिर, पत्थर, मूर्तियों के अलावा यहां पर पुरातत्व संपदाएं बिखरीं पड़ी हुईं हैं।
छत्तीसगढ़ के सिद्ध शक्तिपीठों की इस श्रृंखला में, अगला नाम धार्मिक आस्था का केंद्र, मां डिडनेश्वरी का आता है, जो बिलासपुर के निकट मल्हार में स्थित हैं। जहां पुरातत्व संपदा यत्र तत्र बिखरी हुई है । कहते है इस क्षेत्र के पत्थर - पत्थर में देवी देवता विराजमान हैं। टूटी-फूटी मूर्तियां, पत्थर और तांबे पर कुरेदे अजीब अक्षर, पकी मिट्टी के खिलौने-ठीकरे और सोने, चांदी, तांबे के सिक्के, ढेरों तरह के अवशेष और न जाने कितने पुराने देवालयों के खंडहर भी प्राप्त होते रहते हैं ।
प्राकृतिक एवम् पुरातात्विक महत्व के इस क्षेत्र में मां विराजमान है।
सोलह श्रृंगार युक्त, प्रभामंडल सहित यह दिव्य अलौकिक प्रतिमा, सुबह बालिका, दोपहर में युवती एवं रात्रि में महिला के रूप का आभास देती है। इस प्रतिमा से विशेष ध्वनि निकलती है
स्थानीय लोगों के अलावा, छत्तीसगढ़ एवं संपूर्ण देश से भी जनमानस इस प्रतिमा के दर्शन करने मल्हार पहुंचते हैं। कोई भी भक्त मां की चौखट से खाली हाथ नहीं जाता
10वी-11वी ईस्वी के इस मन्दिर कोशक्ति पीठ कहा जाता है।से प्राप्त अवशेषों से ज्ञात हुआ, मल्हार डिडनेश्वरी प्रतिमा के साथ ही अपनी सुक्ष्म एवम् भव्य शिल्प कला के लिए प्रसिद्ध है। इसके साथ ही शैव, शाक्त, जैन और बौद्ध शिल्प कला एवम् भगवान विष्णु की प्राचीन चतुर्भुजी प्रतिमा भी अत्यंत प्रसिद्ध है। मौर्य कालीन ब्राह्मी लिपि मे लेखानुसार, इस विष्णु मूर्ति की स्थापना ईसा पूर्व 200 है । साथ ही कार्तिकेय एवम् गणेशजी की प्रतिमा भी प्राप्त हुई है। जो 5वी एवम् 7वी शताब्दी की है। इसके अलावा भी इस क्षेत्र में पुरातात्विक महत्व की कई सामग्री एवं मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं
अंजली बद्ध पद्मासन में ध्यान में लीन, शांत, काले ग्रेनाइट की प्रतिमा, जिसके दोनों भुजाओं एवम् नीचे तीन -तीन देवियों के चित्रण के कारण इसे दुर्गाजी का, तो कई यशोधरा कहते हैं, जो कि गौतम बुद्ध की पत्नी हैं। दुर्गा या महामाया का रूप ही अधिकांशतः इस मूर्ति को कहां जाता है। जिसे कल्चुरी काल की कुलदेवी (डिडनेश्वरी,) कहा जाता है
डिडनेश्वरी देवी के परम भक्त राजा वेणु द्वारा मल्हार नगर को बसाया गया है, जब उन अत्यंत धार्मिक राजा वेणु की ख्याति देवलोक पहुंची, तब स्वर्ण वर्षा हुई। आज भी ज़मीन से स्वर्ण की प्राप्ति खुदाई में होती है । जिससे इस घटना की सत्यता साबित होती है । बेशकीमती और ठोस पत्थरों की गुरिया और मनकों की तो खान ही है। निषाद समाज द्वारा इस मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया गया, जो काल के गर्त में समा गया था
इस विशाल मंदिर का पता खुदाई के दौरान चला, जो भूमि में समय हुआ था । मूर्ति की पुनर्स्थापना की गई । 18अप्रैल 1981 को चोरों ने मूर्ति को चोर कर, मैनपुरी के खेतों में गाड़ दिया। जो प्रशासन द्वारा बरामद कर वापिस लाई गई। अंग्रेजों के शासन काल में भी मूर्ति को चुराने की नाकाम कोशिष की गई। चुराने वालों को शारीरिक पीड़ा होने लगी और वो मूर्ति को छोड़कर भाग गए ।
माँ डिडनेश्वरी देवी
2000 ईस्वी से अब तक मंदिर का पुनर्निर्माण जारी है । पूर्व में यहां मल्लापत्तन नमक विशाल और वैभवशाली नगर था, जो शायद डिडनेश्वरी मां के एक और नाम मल्लिका का प्रतीक है । कई साधकों ने इसके सिद्धपीठ होने की पुष्टि की है ।उनके अनुसार यहां रात्रि में पायल को मंद ध्वनि गुंजित होती है ।
रपोर्ट -रायपुर - दूरी 148 किलो मीटर
रेलमार्ग - निकटस्थ स्टेशन बिलासपुर - 32किलो मीटर
सड़क मार्ग - बिलासपुर से मस्तूरी होकर मल्हार की यात्रा