DANTEWADA DISTRICT | दंतेवाड़ा | जिला दर्शन |

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  • เผยแพร่เมื่อ 16 ต.ค. 2024
  • ,जिला दर्शन दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा अपनी प्राचीनता के लिए जाना जाता है।
    दंतेवाड़ा बस्तर संभाग का प्राचीन भू भाग है जो अपनी प्राकृतिक सौंदर्य तथा संसाधनों के लिए पहचान जाता है ।
    दंतेवाड़ा का गठन 1998 में बस्तर जिले के विभाजन से हुआ।
    यहां कुल तहसील 5 एवं विकास खंड है।
    सीमावर्ती जिले की संख्या 3 है - बस्तर, सुकमा और बीजापुर
    यह किसी भी सीमावर्ती से जुड़ा हुआ नहीं है।
    यहां भू गार्भिक शैल धारवाड़ चट्टाने है जो #खनिज भूमि के नाम से जानी जाती है।
    यहां की दंतेश्वरी माता को कुलदेवी माना गया है।
    उनका प्राचीन मंदिर दंतेवाड़ा में शंखिनी- डंकिनी नदियों के संगम पर स्थित है जिसका निर्माण अन्नमदेव ने करवाया था।
    खनिज ससाधनों की प्रचुरता है जिसमें मुख्य रूप से लौह अयस्क और टिन है।
    #1968 में लौह अयस्क संयंत्र #किरंदुल में एनएमडीसी ने लगाया ।
    प्रमुख नदियों में #इंद्रावती नदी , शंखिनी एवं डंकिनी है।
    बारसूर अपनी प्राचीन धरोहरों तथा मंदिरों के लिए पहचाना जाता है जहां बत्तिसा मंदिर , गणेश मंदिर ,मामा भांचा और चन्द्रादित्य मंदिर विशेष है।
    वर्ष 2003 में दंतेवाड़ा का नाम - दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा कर दिया गया।
    प्राचीन धरोहरों और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर जिला दंतेवाड़ा के बारे में और विस्तार से जानकारी लेते है।
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