पतंजलि योगसूत्र (अष्टांग योग) भाग - 2 नियम

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  • เผยแพร่เมื่อ 26 ธ.ค. 2024
  • पतंजलि योगसूत्र में अष्टांग योग का वर्णन योग के आठ अंगों के माध्यम से किया गया है। यह योग का वैज्ञानिक और व्यवस्थित मार्ग है, जो आत्मसाक्षात्कार और मोक्ष की ओर ले जाता है। अष्टांग योग निम्नलिखित आठ अंगों में विभाजित है:
    1. यम (नियंत्रण)
    • यह सामाजिक आचरण के नियम हैं, जो व्यक्ति के बाहरी जीवन को अनुशासित करते हैं।
    • इसके पांच प्रकार हैं:
    • अहिंसा: हिंसा से बचना
    • सत्य: सत्य का पालन करना
    • अस्तेय: चोरी न करना
    • ब्रह्मचर्य: इंद्रिय संयम
    • अपरिग्रह: आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना
    2. नियम (आत्म-अनुशासन)
    • यह आंतरिक अनुशासन और स्वच्छता के नियम हैं।
    • इसके पांच प्रकार हैं:
    • शौच: शरीर और मन की शुद्धता
    • संतोष: संतुष्ट रहना
    • तप: आत्म-नियंत्रण और दृढ़ता
    • स्वाध्याय: स्वाध्याय और आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन
    • ईश्वरप्रणिधान: ईश्वर में समर्पण
    3. आसन (शारीरिक स्थिति)
    • शारीरिक स्वास्थ्य और स्थिरता के लिए विभिन्न योगासन।
    • इसका उद्देश्य शरीर को स्वस्थ और ध्यान के लिए स्थिर बनाना है।
    4. प्राणायाम (श्वास नियंत्रण)
    • श्वास पर नियंत्रण करके प्राण (जीवन ऊर्जा) को संतुलित करना।
    • इसमें श्वास के तीन भाग हैं:
    • पूरक: श्वास लेना
    • कुंभक: श्वास रोकना
    • रेचक: श्वास छोड़ना
    5. प्रत्याहार (इंद्रियों का नियंत्रण)
    • इंद्रियों को बाहरी विषयों से हटाकर मन पर केंद्रित करना।
    6. धारणा (एकाग्रता)
    • मन को एक बिंदु या वस्तु पर केंद्रित करना।
    • इसका उद्देश्य ध्यान के लिए मानसिक स्थिरता प्राप्त करना है।
    7. ध्यान (मेडिटेशन)
    • निरंतर एकाग्रता द्वारा ध्यान की अवस्था में प्रवेश करना।
    • ध्यान में मन पूरी तरह शांत और स्थिर हो जाता है।
    8. समाधि (अध्यात्मिक चेतना)
    • आत्मा और परमात्मा का मिलन।
    • यह योग का अंतिम लक्ष्य है, जिसमें व्यक्ति आनंद, शांति और आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त करता है।
    अष्टांग योग पतंजलि के योगसूत्र का मुख्य आधार है। यह न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक प्रगति के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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