#द्वैध

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  • เผยแพร่เมื่อ 18 ก.ย. 2024
  • अंग्रेजों की भू-राजस्व नीतियों ने भारतीय कृषि व्यवस्था और ग्रामीण जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। अंग्रेजों ने भारत में विभिन्न भू-राजस्व प्रणालियों को लागू किया, जिनका उद्देश्य अधिकतम राजस्व वसूलना और ब्रिटिश साम्राज्य के हितों को साधना था। मुख्यतः तीन प्रमुख भू-राजस्व नीतियाँ थीं:
    1. जमींदारी प्रथा (Permanent Settlement):
    इसे 1793 में लॉर्ड कॉर्नवालिस द्वारा बंगाल, बिहार, उड़ीसा और वाराणसी क्षेत्रों में लागू किया गया।
    इस प्रणाली के तहत, जमींदारों को भूमि का मालिक बना दिया गया और उनसे तयशुदा कर लिया जाने लगा।
    जमींदारों को किसानों से कर वसूलने की जिम्मेदारी दी गई। उन्हें यह कर हर साल सरकार को जमा करना था, चाहे किसानों की फसल अच्छी हो या बुरी।
    इसका नकारात्मक प्रभाव यह हुआ कि जमींदारों ने किसानों का शोषण किया और किसानों की स्थिति दयनीय हो गई।
    2. रैयतवाड़ी प्रणाली (Ryotwari System):
    इसे मद्रास, बॉम्बे और अन्य दक्षिणी तथा पश्चिमी क्षेत्रों में लागू किया गया। इस नीति को थॉमस मुनरो और अलेक्ज़ेंडर रीड ने 1820 में स्थापित किया।
    इस प्रणाली के तहत, किसानों (रैयत) को सीधे सरकार से जोड़ा गया, और उन्हें भूमि का मालिक माना गया।
    किसानों को सीधे सरकार को कर देना होता था, लेकिन यह कर भूमि की उपज के हिसाब से तय किया जाता था।
    किसानों पर कर का बोझ अधिक था, और वे अक्सर कर्ज में डूब जाते थे।
    3. महलवाड़ी प्रणाली (Mahalwari System):
    इसे उत्तरी भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य भारत और पश्चिमी क्षेत्रों में 1833 में लागू किया गया।
    इस प्रणाली में भूमि कर का आकलन पूरे गांव या महल के आधार पर किया जाता था। यह कर ग्रामीणों या समुदाय द्वारा साझा रूप से दिया जाता था।
    महलवारियों (ग्राम प्रमुखों) को भूमि की देखरेख और कर वसूलने की जिम्मेदारी दी गई।
    इन नीतियों के प्रभाव:
    कृषक वर्ग का शोषण: अंग्रेजों की भू-राजस्व नीतियों के कारण किसानों पर कर का भारी बोझ पड़ा। खराब फसल होने पर भी उन्हें कर देना पड़ता था, जिससे किसान कर्ज में डूबते गए।
    जमींदारों की शक्ति में वृद्धि: जमींदारी प्रणाली ने जमींदारों को अत्यधिक शक्तिशाली बना दिया। उन्होंने किसानों का शोषण किया और उनकी आर्थिक स्थिति को बदतर कर दिया।
    कृषि उत्पादन में गिरावट: भारी कर और शोषण के चलते किसानों के पास कृषि सुधार और निवेश के लिए संसाधन नहीं बचे, जिससे कृषि उत्पादन में गिरावट आई।
    गरीबी और भूखमरी: इन नीतियों ने ग्रामीण इलाकों में गरीबी और भूखमरी को बढ़ावा दिया, जो बाद में भारत के विभिन्न हिस्सों में अकाल का कारण बनी।
    अंग्रेजों की भू-राजस्व नीतियों ने भारत की कृषि और सामाजिक संरचना को गहरा नुकसान पहुँचाया, जिसके प्रभाव स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तक भी देखे गए।
    द्वैध शासन (Dual Government)
    द्वैध शासन की व्यवस्था भारत में अंग्रेजों द्वारा 1765 में बंगाल, बिहार और उड़ीसा में लागू की गई। इस प्रणाली की शुरुआत रॉबर्ट क्लाइव द्वारा की गई थी, जो प्लासी के युद्ध (1757) और बक्सर के युद्ध (1764) में अंग्रेजों की जीत के बाद बंगाल के प्रशासन का प्रमुख बने।
    मुख्य विशेषताएं:
    दीवानी और निज़ामत: इस व्यवस्था के तहत, अंग्रेजों को इन क्षेत्रों की दीवानी (राजस्व और न्यायिक अधिकार) का अधिकार प्राप्त हुआ, जबकि स्थानीय नवाबों के पास निज़ामत (कानून और व्यवस्था बनाए रखने का अधिकार) का अधिकार था।
    अंग्रेजों का वास्तविक नियंत्रण: हालांकि नवाबों के पास अधिकार थे, लेकिन वास्तविक नियंत्रण अंग्रेजों के पास था। दीवानी के माध्यम से अंग्रेज राजस्व वसूलते थे और नवाब केवल नाम मात्र के शासक थे।
    नवाबों का सीमित अधिकार: नवाबों को अंग्रेजों से वेतन प्राप्त होता था, जिससे वे ब्रिटिश शासन के अधीन हो गए थे। यह प्रणाली भारतीय नवाबों को शक्तिहीन बना रही थी, और उन्हें केवल ब्रिटिश शासन की नीतियों का पालन करना पड़ता था।
    लाभ अंग्रेजों का: इस प्रणाली से अंग्रेजों को राजस्व का पूरा लाभ प्राप्त हुआ, जबकि कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी नवाबों की थी। इससे नवाबों को केवल औपचारिकता निभानी पड़ती थी, लेकिन शासन की पूरी शक्ति अंग्रेजों के पास थी।
    द्वैध शासन के परिणाम:
    प्रशासन की कमजोर स्थिति: चूंकि प्रशासन का विभाजन हो गया था, और नवाब शक्तिहीन थे, इससे प्रशासनिक अराजकता और भ्रष्टाचार की स्थिति पैदा हुई।
    अंग्रेजों के प्रभाव का विस्तार: अंग्रेजों ने दीवानी के माध्यम से कर वसूलना और प्रशासनिक ढांचा मजबूत किया, जिससे उनका राजनीतिक प्रभाव बढ़ा।
    जनता का शोषण: इस व्यवस्था से किसानों और जनता पर करों का बोझ बढ़ गया, और इसका सीधा लाभ अंग्रेजों को हुआ।
    इजारेदारी व्यवस्था (Monopoly System)
    इजारेदारी व्यवस्था का संबंध अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों से था, जिसके तहत अंग्रेजों ने व्यापार और उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों पर एकाधिकार (Monopoly) स्थापित किया।
    मुख्य विशेषताएं:
    व्यापार पर नियंत्रण: अंग्रेजों ने भारत के विभिन्न उत्पादों जैसे चाय, नील, कपास, अफीम आदि के व्यापार पर इजारा कर लिया। इसका मतलब यह था कि इन वस्तुओं का उत्पादन और व्यापार केवल अंग्रेजों के द्वारा या उनकी अनुमति से ही किया जा सकता था।
    किसानों का शोषण: विशेषकर नील की खेती में, अंग्रेजों ने किसानों से अनुबंध करवाया और उन्हें मजबूर किया कि वे नील की खेती करें। इससे किसानों का आर्थिक शोषण हुआ, क्योंकि नील की खेती से उनकी आय नहीं बढ़ती थी और उन्हें अंग्रेजों द्वारा निर्धारित अत्यंत कम कीमत पर नील बेचना पड़ता था।
    अफीम और चाय का व्यापार: अंग्रेजों ने अफीम और चाय के व्यापार पर भी अपना एकाधिकार स्थापित किया। अफीम का व्यापार विशेष रूप से चीन के साथ किया जाता था, जिससे अंग्रेजों को भारी मुनाफा हुआ।
    मुनाफाखोरी: अंग्रेजों ने भारतीय उत्पादों को सस्ते में खरीदा और उन्हें यूरोप में ऊंची कीमतों पर बेचा। इसने भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर किया और ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाया

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