रावण अभी जिंदा है ! Aacharya Vimalsagarsuriji

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  • เผยแพร่เมื่อ 7 ต.ค. 2019
  • • लंका के रावण को राक्षस के रूप में सभी पहचानते हैं. लेकिन अपने मन के रावण का क्या ? उस राक्षस की पहचान कब होगी ?
    • दुष्टताओं पर अच्छाइयों की जीत के बीच यह डरावना अहसास सदा बना रहता है कि जीत अभी अधूरी है. रावण अभी जिंदा है !
    • दुष्टताओं के रोज नए-नए रूप धारण कर वह हमारे बीच मौजूद रहता है. आधुनिक रावणों की पहचान अक्सर अधूरी रह जाती है.
    • लंका के रावण से अगर आधुनिक रावणों की तुलना करें तो निश्चित रूप से आज के रावण बहुत ज्यादा खतरनाक हैं. लंका का रावण इतना बुरा नहीं था !
    • आज तो खूबसूरत चेहरों, महंगे परिधानों, बड़े-बड़े पदों, सत्ता के गलियारों, ऊंची इमारतों, पढ़े-लिखे लोगों और सभ्यता व सामाजिकता की दुहाओं के मुखुटे पहन कर हर गली-हर बाजार में रावण घूम रहे हैं ! वे आधुनिक सभ्य समाज के हिस्से बन गए हैं. उन्हें खोजना और परास्त करना आसान नहीं है.
    • ऐसा लगता है कि यह राम-रावण युद्ध सदाकाल जारी रहेगा.
    - आचार्य श्री विमलसागरसूरिजी महाराज
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    It is a generous campaign dedicated to Lord Mahavireer's principle in the name of Revolutionary, Versatile & Vigorous Preacher Aacharya Shree Vimalsagarsuriji.
    It is Purely Sacred, Perceptional & Intellectual effort to bring one’s attention on life values ​​in the form of Religious Integrity, Social Intimacy, National Pride, Human Values, Spiritual Supremacy,
    Non Violence, Good Faith, Vegetarianism, Indian Culture, Karma Theory & much more.
    It Emphasizes on Awakening the Youth, Prospering Women Welfare, Promoting Communal Harmony, Maintaining Cultural Pride & Enhancing Jain Ideology.
    क्रांतिकारी-ओजस्वी प्रवचनकार आचार्य श्री विमलसागरसूरिजी महाराज के प्रवचन और विविध आयोजन भगवान महावीरस्वामी के सिद्धांतों को समर्पित सर्व हितकारी अभियान हैं.
    यह जैनधर्म, अध्यात्म, समाज, संस्कृति, राष्ट्रीयता, अहिंसा, नैतिकता, सुसंस्कार, शाकाहार, सद्भावना, आहार विज्ञान, कर्मवाद और मानवता की सेवा का पावन पुरुषार्थ है.
    सकारात्मक सोच, युवा जागरण, कन्या उत्कर्ष, साम्प्रदायिक सद्भाव और सांस्कृतिक गौरव इसके सार्थक माईल स्टोन हैं.

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