राजस्थान में स्तिथ, चमत्कारी रानी भटियाणी का माजिसा मंदिर जसोल दर्शन | 4K | दर्शन 🙏

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  • เผยแพร่เมื่อ 10 ต.ค. 2024
  • श्रेय:
    संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल
    लेखक - रमन द्विवेदी
    भक्तों नमस्कार! हमारे देश की गणना एक परंपरावादी देश के रूप में होती है, जहां न मान्यताओं की कमी है और न परम्पराओं की। यानि यहाँ अनगिनत मान्यताएं भी हैं और असंख्य परम्पराएं भी हैं। और इन सबका सिरमौर है वीरभूमि राजस्थान..जहां कई ऐसे मंदिर हैं जिनका इतिहास ही नहीं वर्तमान भी मान्यताओं और परम्पराओं की परिधि प्रतिष्ठित होकर इस वैज्ञानिक युग को चमत्कृत कर रहे हैं..ऐसा ही एक मंदिर है जसोल माँजी सा.
    मंदिर के बारे में:
    भक्तों भारत के पश्चिमी राजस्थान और पाकिस्तान सीमा के नजदीक विराजमान जसोल माँजी सा को वस्तुतः लोग रानी भटियाणी सा, स्वागिया मासा और भुआसा के नाम से जानते हैं। रानी भटियाणी सा अर्थात जसोल माँ जी सा राजस्थान के भाटी राजवंश की कुलदेवी हैं। युद्धविजय हो या राज्यसंवर्धन भाटियों ने सबकुछ कुलदेवी के चरणों में समर्पित कर दिया। उन्होने अपनी कुलदेवी के कई भव्य मंदिर बनवाये, पूजा अर्चना के पुख्ता प्रबंध किए और जन जन में देवी के प्रति आस्था की अलख जगाई।
    इतिहास:
    भक्तों, माजीसा जसोल अर्थात भटियाणी माँ का बचपन का नाम स्वरूप कंवर भटियाणी था। इनका जन्म विक्रम संवत 1725 में जैसलमेर जिले के गाँव जोगीदास में हुआ था। इनके पिता का नाम ठाकुर जोगराज सिंह भाटी था। स्वरूप कंवर का विवाह जसोल के रावल कल्याणमल से हुआ। यद्यपि कल्याणमल का विवाह देवड़ी से हो चुका था।
    सौतिया डाह:
    भक्तों स्त्रियों में सौतिया डाह जन्मजात होती है। बड़ी रानी देवड़ी तो स्वरूप कंवर से ईर्ष्या करती थी परन्तु राणी स्वरूप कंवर देवड़ी को अपनी बड़ी बहिन समझती थी। जसोल ठिकाने में रानी स्वरूप कंवर, राणी भटियाणी के नाम से जानी जाने लगी। विवाह के दो वर्ष पश्चात् भटियाणी के पुत्र हुआ जिसका नाम लालसिंह रखा गया। रावल के दो विवाहों के पश्चात् यह पहला पुत्र हुआ था इसलिए जसोल में खुशियाँ मनाई गयी। लेकिन राणी भटियाणी की आंखों का तारा, राणी देवड़ी की आँखों में खटकने लगा।
    देवड़ी को भटियाणी की सलाह:
    भक्तों राणी भटियाणी ने देवड़ी को विश्वास दिलाते हुए कहा कि “बाई सा! आप माँ भवानी की पूजा अर्चना करें, व्रत करें, उनपर पूरी आस्था रखें और जगदंबा के प्रति श्रद्धा- विश्वास बढ़ाएं | माँ भवानी अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करतीं..वो सच्चे हृदय से निकली प्रार्थना अवश्य सुनती हैं, आप की भी अवश्य सुनेगी और आपकी सूनी गोद ज़रूर भरेंगी।
    देवड़ी को पुत्र प्राप्ति:
    भक्तों रानी देवड़ी, राणी भटियाणी की सलाह मानकर अदिशक्ति माँ भवानी की श्रद्धा और भक्ति के साथ आराधना करने लगी। दैवयोग से उसकी आराधना रंग लायी और कुछ ही समय में देवड़ी को भी एक पुत्र हुआ। परन्तु बड़ा होने के नाते जसोल का उत्तराधिकारी लालसिंह ही बन सकता था। ये बात देवड़ी को गवारा नहीं थी। अतः देवड़ी ने लालसिंह की हत्या का अवसर तलाश करने लगी।
    कुँवर लालसिंह की हत्या:
    भक्तों श्रावण के काजली तीज के अवसर पर राणी भटियाणी अपने पुत्र कुंवर लालसिंह को अकेला सोता छोड़, सहेलियों के साथ बाग में झूला झूलने चली गईं। देवड़ी ने मौका देखकर कुंवर लालसिंह को दूध में जहर मिला कर पिला दिया। जिससे कुँवर लालसिंह की तत्काल मृत्यु हो गयी।
    राणी भटियाणी की हत्या:
    भक्तों वापस आने पर राणी भटियाणी अपने पुत्र लालसिंह को मृत पायी। वो विलाप करने लगी। पुत्रशोक रो रोकर वह अस्वस्थ हो गयी। अतः बड़ी राणी देवड़ी, अपने रास्ते से हटाने के लिए राणी भटियाणी को भी जहर दिलवा दिया। इससे विक्रम संवत 1775 माघ सुदी द्वितीया को उनकी मृत्यु हो गयी। इससे पूरे जसोल में शोक छा गया।
    भटियाणी माता प्राकट्य:
    भक्तों कहा जाता है कि एक दिन राणी भटियाणी के मायके जोगीदास से दो ढोली शंकर व ताजिया, रावल कल्याणमल के यहां मांगने आये। तो देवड़ी ने उन्हें अपमानित कर भटियाणी के चबूतरे के आगे जाकर मांगने को कहा। दु:खी होकर दोनों ढोली श्मशान घाट में बने अपनी बाईसा (रानी भटियानी) के चबूतरे के आगे जाकर रो रोकर विलाप गीत गाने लगे। तब प्रसन्न होकर राणी भटियाणी समाधि स्थल में माता भटियाणी के रूप में प्रकट होकर, उन दोनों को साक्षात दर्शन दिए। दोनों ढोलियों को बतौर इनाम सोने की पायल व कंगन दिए।
    भटियाणी माता का परचे प्रमाण:
    भक्तों कहा जाता है माता भटियाणी ढोलियों के हाथ 'परचे के प्रमाण स्वरूप दो पत्र दिये। पहला पत्र अपने माता पिता के नाम पर जिसमें लिखा था कि “मै हमेशा आपके साथ हूँ” और दूसरा पत्र रावल कल्याणमल के नाम जिसमें “उस दिन से बारहवें दिन रावल की मृत्यु होना लिखा था” पत्र देकर राणी भटियाणी तत्काल अदृश्य हो गईं।
    माता भटियाणी की बात सच:
    भक्तों रावल कल्याणमल के मृत्यु के बारे में माता भटियाणी की बात पूर्णरूपेण सत्य साबित हुई। ठीक बारहवें दिन रावल कल्याणमल का स्वर्गवास हो गया। यह बात आस पास के गांवों में फैल गयी। इसके बाद तो राणी भटियाणी ने जनहित में अनेक परचे दिए। जसोल के ठाकुरों ने राणी भटियाणी के चबूतरे पर एक मंदिर बनवा दिया और उनकी विधिवत पूजा करने लगे।
    जनश्रुति:
    भक्तों एक जनश्रुति के अनुसार - रानी भटियाणी की मृत्यु के चौथे दिन रावल कल्याणमल्ल गाँव वालों के साथ श्मशानघाट पहुंचे। तो वहां हराभरा खेजड़ी का पेड़ देखकर राजा रावल कल्याणमल्ल सहित सारे जसोलवासी दंग रह गए। इस चमत्कार को देखकर राव कल्याण सिंह ने नदी किनारे पर मंदिर निर्माण करवाया।
    भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव, तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन !
    Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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