प्रदेश के भेड़ बकरियां पालकों अर्थात गडरियो या पुहालों के कठिन जीवन को दर्शाती यह रचना.... प्राचीन लोक कलाकारों की कल्पना शक्ति और यथार्थ को इस कदर सहजता के सुन्दर भाव से शब्दों में पिरोकर कर प्रदर्शित करती है कि सुनने वाला गुनगुनाने का लोभ नहीं छोड़ पाता। साहब यह रचना यद्यपि नारी मन की विरह वेदना और नायक नायिका के संभावित मिलन के उल्लास को ताने बाने का केन्द्र बिंदु मानकर गूंथी गई है। लेकिन इस प्राचीन विलुप्त हो रहे " चम्बयाली घुरेही लोक गीत " को संग्रहित कर के आधुनिक दौर में नई पीढ़ी को अपनी विरासत के सुनहरी पन्नों को पलट कर उन "विभूतियों" के लोक संगीत के क्षैत्र में किए गए सैंकड़ों वर्षों पूर्व के अतुलनीय योगदान को अपना नमन अर्पित करना भी हमारा उद्देश्य है। लगभग 15 वर्ष पूर्व चम्बयाली लोकगायिका मंजु चिश्ती व उनकी सहयोगी कलाकारों की इस यादगार कृति को हिमाचल प्रदेश के जिला मण्डी के पनारसा स्थित साउंड ऑफ माउंटेन स्टुडियो में फिल्म जगत के विख्यात संगीत निर्देशक एसडी कश्यप जी के आशीर्वाद में रिकार्ड किया गया है। "सुरा केरे मगडू जो छेड़.. लोहला रे लुहांसी आए हो । लोहांसी आए लोहांसी मेरी जान....रोहा केरी गल्लां लाणी हो। सुरा केरे मगडू जो छेड़...." इस चम्बयाली घुरेही लोकगीत में मौलिक लय, ताल भाव शैली और प्राचीनता का बोध करवाने के उद्देश्य से ताल में खंजरी रूबाना पर उत्तम चम्पा और ढोलक, नगाड़ा में मंजु मनोज ने जहां वातावरण को शुद्ध भाव से निर्मित करते हैं। वहीं हिमाचल के प्रसिद्ध शहनाई वादक सूरजमणि की शहनाई व बांसुरी की स्वर लहरियां हृदय को सकून की अनुभूति से भाव विभोर कर के सम्मोहित सी कर देती है। यहां आपको बताते चलें कि जिला चम्बा के जन जातीय क्षेत्र भरमौर में बसने वाले गद्दी समुदाय का इतिहास चम्बा जिला की उत्पति से भी अधिक प्राचीन है। गद्दी समुदाय के लोग न केवल वर्तमान में भी अपनी प्राचीन संस्कृतिक विरासत को सहेज कर रखने में कामयाब हुए हैं। अपितु सदियों पुराने अपने परंपरागत व्यवसाय को भी अपनाएं हुए हैं। खेती बाड़ी के अतिरिक्त इन लोगों का मुख्य जीवन यापन का साधन "धन पालना" यानी भेड़ बकरियों को पालना रहा है। जिसके लिए इन्हें अनेकों कष्ट भी सहने पड़ते हैं। सर्दियों से यह अपने "धन "को "जांधर"अर्थात चम्बा के साथ लगते अन्य जिलों या पंजाब का रुख करते हैं जबकि ग्रीष्म ऋतु में यह लाहौल स्पीति और किन्नौर इत्यादि के जोतों को पलायन करते हैं। इस आवागमन में इन्हें प्राकृतिक आपदाओं के अलावा अन्य कठिनाइयों से भी जूझना पड़ता है। हर वर्ष, इन भेड़ पालकों को प्राकृतिक आपदाओं के कारण न केवल अपने " धन " (भेड़ बकरियों) को ही खोना पड़ता है, अपितु अपनी जान को भी जोखिम में डालना पड़ता है। इन पुहालों अर्थात गडरियों जिन्हे लोहांसी कह कर सम्बोधित किया गया है के लाहौल स्पीति से वापिस आने व बाद के घटनाक्रम को इस लोकगीत में वर्णित किया गया है। हमें पूर्ण विश्वास है कि आप इस प्राचीन रचना का अवश्य लुत्फ उठाएंगे। HIM DARSHAN ERA CHANNEL और MB PRODUCTIONS, CITY CHANNEL CHAMBA की यह प्रस्तुति वीडियो के माध्यम से भी आप तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है।
सुरा केरे मगडू जो छेड़.. लोहला रे लुहांसी आए हो । लोहांसी आए लोहांसी मेरी जान....रोहा केरी गल्लां लाणी हो। सुरा केरे मगडू जो छेड़...." लगभग 15 वर्ष पूर्व मैंने व मेरी सहयोगियों ने इस प्राचीन लोक गीत को गाने की कोशिश की ...... इस गीत के लिए गुरू एस डी कश्यप जी ने बहुत मेहनत की है तब इसका वास्तव रूप निखर कर सामने आ पाया है। इस चम्बयाली घुरेही लोकगीत में मौलिक लय, ताल भाव शैली और प्राचीनता का बोध करवाने के उद्देश्य से ताल में खंजरी रूबाना, चम्पा उत्तम की जोड़ी ने तथा ढोलक, नगाड़ा में मंजु मनोज ने जहां वातावरण को शुद्ध भाव से निर्मित करते हैं। वहीं हिमाचल के प्रसिद्ध शहनाई वादक सूरजमणि की शहनाई व बांसुरी की स्वर लहरियां हृदय को सकून की अनुभूति से भाव विभोर कर के सम्मोहित सी कर देती है।
Bahut sari yaadein judi huyi hain es song k sath❤❤❤❤❤
बहुत अच्छा महसूस होता है
अपने बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं 😂
प्रदेश के भेड़ बकरियां पालकों अर्थात गडरियो या पुहालों के कठिन जीवन को दर्शाती यह रचना.... प्राचीन लोक कलाकारों की कल्पना शक्ति और यथार्थ को इस कदर सहजता के सुन्दर भाव से शब्दों में पिरोकर कर प्रदर्शित करती है कि सुनने वाला गुनगुनाने का लोभ नहीं छोड़ पाता।
साहब यह रचना यद्यपि नारी मन की विरह वेदना और नायक नायिका के संभावित मिलन के उल्लास को ताने बाने का केन्द्र बिंदु मानकर गूंथी गई है।
लेकिन इस प्राचीन विलुप्त हो रहे " चम्बयाली घुरेही लोक गीत " को संग्रहित कर के आधुनिक दौर में नई पीढ़ी को अपनी विरासत के सुनहरी पन्नों को पलट कर उन "विभूतियों" के लोक संगीत के क्षैत्र में किए गए सैंकड़ों वर्षों पूर्व के अतुलनीय योगदान को अपना नमन अर्पित करना भी हमारा उद्देश्य है।
लगभग 15 वर्ष पूर्व चम्बयाली लोकगायिका मंजु चिश्ती व उनकी सहयोगी कलाकारों की इस यादगार कृति को हिमाचल प्रदेश के जिला मण्डी के पनारसा स्थित साउंड ऑफ माउंटेन स्टुडियो में फिल्म जगत के विख्यात संगीत निर्देशक एसडी कश्यप जी के आशीर्वाद में रिकार्ड किया गया है।
"सुरा केरे मगडू जो छेड़.. लोहला रे लुहांसी आए हो ।
लोहांसी आए लोहांसी मेरी जान....रोहा केरी गल्लां लाणी हो।
सुरा केरे मगडू जो छेड़...."
इस चम्बयाली घुरेही लोकगीत में मौलिक लय, ताल भाव शैली और प्राचीनता का बोध करवाने के उद्देश्य से ताल में खंजरी रूबाना पर उत्तम चम्पा और ढोलक, नगाड़ा में मंजु मनोज ने जहां वातावरण को शुद्ध भाव से निर्मित करते हैं।
वहीं हिमाचल के प्रसिद्ध शहनाई वादक सूरजमणि की शहनाई व बांसुरी की स्वर लहरियां हृदय को सकून की अनुभूति से भाव विभोर कर के सम्मोहित सी कर देती है।
यहां आपको बताते चलें कि जिला चम्बा के जन जातीय क्षेत्र भरमौर में बसने वाले गद्दी समुदाय का इतिहास चम्बा जिला की उत्पति से भी अधिक प्राचीन है।
गद्दी समुदाय के लोग न केवल वर्तमान में भी अपनी प्राचीन संस्कृतिक विरासत को सहेज कर रखने में कामयाब हुए हैं। अपितु सदियों पुराने अपने परंपरागत व्यवसाय को भी अपनाएं हुए हैं।
खेती बाड़ी के अतिरिक्त इन लोगों का मुख्य जीवन यापन का साधन "धन पालना" यानी भेड़ बकरियों को पालना रहा है। जिसके लिए इन्हें अनेकों कष्ट भी सहने पड़ते हैं।
सर्दियों से यह अपने "धन "को "जांधर"अर्थात चम्बा के साथ लगते अन्य जिलों या पंजाब का रुख करते हैं जबकि ग्रीष्म ऋतु में यह लाहौल स्पीति और किन्नौर इत्यादि के जोतों को पलायन करते हैं।
इस आवागमन में इन्हें प्राकृतिक आपदाओं के अलावा अन्य कठिनाइयों से भी जूझना पड़ता है।
हर वर्ष, इन भेड़ पालकों को प्राकृतिक आपदाओं के कारण न केवल अपने " धन " (भेड़ बकरियों) को ही खोना पड़ता है, अपितु अपनी जान को भी जोखिम में डालना पड़ता है।
इन पुहालों अर्थात गडरियों जिन्हे लोहांसी कह कर सम्बोधित किया गया है के लाहौल स्पीति से वापिस आने व बाद के घटनाक्रम को इस लोकगीत में वर्णित किया गया है।
हमें पूर्ण विश्वास है कि आप इस प्राचीन रचना का अवश्य लुत्फ उठाएंगे।
HIM DARSHAN ERA CHANNEL और MB PRODUCTIONS, CITY CHANNEL CHAMBA की यह प्रस्तुति वीडियो के माध्यम से भी आप तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है।
Bahut hi sunder bahut hi madhur geet 👌👌👌👌❤❤❤❤👍👍👍👍👍
बहुत ही बढ़िया, दिल को सुकून देने वाला संगीत, सुपर 👍❤
Bhut bdiya song
सुरा केरे मगडू जो छेड़.. लोहला रे लुहांसी आए हो ।
लोहांसी आए लोहांसी मेरी जान....रोहा केरी गल्लां लाणी हो।
सुरा केरे मगडू जो छेड़...."
लगभग 15 वर्ष पूर्व मैंने व मेरी सहयोगियों ने इस प्राचीन लोक गीत को गाने की कोशिश की ......
इस गीत के लिए गुरू एस डी कश्यप जी ने बहुत मेहनत की है तब इसका वास्तव रूप निखर कर सामने आ पाया है।
इस चम्बयाली घुरेही लोकगीत में मौलिक लय, ताल भाव शैली और प्राचीनता का बोध करवाने के उद्देश्य से ताल में खंजरी रूबाना, चम्पा उत्तम की जोड़ी ने तथा ढोलक, नगाड़ा में मंजु मनोज ने जहां वातावरण को शुद्ध भाव से निर्मित करते हैं।
वहीं हिमाचल के प्रसिद्ध शहनाई वादक सूरजमणि की शहनाई व बांसुरी की स्वर लहरियां हृदय को सकून की अनुभूति से भाव विभोर कर के सम्मोहित सी कर देती है।
Please eskey bol likh de sare kuch bol sun k smjh nahi aate
Super se b upper mam ji
Bhut hi sundar
Superr
❤❤❤❤❤
❤❤❤🙏🙏🙏
बधिया!"
दिल से शुक्रिया सर
Please provide lyrics
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