जानिए रानी सती के सती होने के निर्णय से जुड़ी कथा तथा मंदिर के साथ जुड़ी रोचक कथाएँ | 4K | दर्शन 🙏
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- เผยแพร่เมื่อ 27 ส.ค. 2024
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संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल
लेखक - रमन द्विवेदी
भक्तों नमस्कार! प्रणाम! सादर नमन और अभिनन्दन...भक्तों अनगिनत मान्यताओं और असंख्य परम्पराओं वाला वीरभूमि, मरुभूमि,राजपूताना के नाम से विख्यात राजस्थान हमारे देश का मुकुटमणि है.जहां कई ऐसे मंदिर हैं जिनका इतिहास ही नहीं वर्तमान भी चमत्कारों से भरपूर है,हम अपने कार्यक्रम दर्शन के माध्यम से आपको राजस्थान के उन्ही प्रसिद्ध चमत्कारिक मंदिरों की यात्रा करवाने जा रहे हैं।इन्ही मंदिरों में शामिल है झुंझणू का राणी सती माता मंदिर.
मंदिर के बारे में: भक्तों झुंझणू शहर के मध्य में स्थित राणी सती का 400 साल पुराना मंदिर जिले का सबसे बड़ा धार्मिक एवं पर्यटन स्थल हैं। दूर से देखने पर विशाल क्षेत्र में बना यह मंदिर एक राजमहल की तरह प्रतीत होता है। सम्पूर्ण मंदिर का निर्माण संगमरमर के पत्थरों की कटाई करके बनाया गया हैं। जिसकी दीवारों पर सुंदर पेंटिंग तथा मंदिर प्रांगण में जल विद्युत् के फव्वारे बने हुए हैं। यहाँ प्रत्येक शनिवार तथा रविवार के दिन मंदिर में विशेष भीड़ देखने को मिलती हैं।
जन्म और बचपन: भक्तों रानी सती जी का जन्म,विक्रम संवत 1338 कार्तिक शुक्लपक्ष कीअष्टमी तिथि,मंगलवार अर्धरात्रि को,हरियाणा में हुआ। इनके पिता महम नगर ढोकवा निवासी घुरसमल जी गोयल थे। जन्म के समय इनका नाम नारायणी देवी रखा गया था। बचपन से ही इन्हें धार्मिक कथाएँ सुनने एवं सखियों के साथ खेलने का शौक था।शस्त्र,शास्त्र और घुडसवारी की शिक्षा इन्होने घर में हीप्राप्त की थी।ये उत्तम दर्जे की निशानेबाज़ थी, इनकी निशानेबाज़ीयोग्यता का कोई सानी नहीं था।
बचपन में चमत्कार: भक्तों कहा जाता हैं कि इनके महम नगर में एक डायन आया करती थी, जो स्त्री, पुरुष व बच्चों को अपना शिकार बनाती थी।जब उसे नारायणी देवी के बारे में पता चला तो वह उन पर हमला करने के लिए आई। मगर नारायणी देवी को देखकर उसकी हिम्मत नहीं हुई, जाते जाते वह नारायणी की एक सखी को अपने साथ ले जाने लगी।तब नारायणी ने डायन की तरफ देखा तो वह अंधी हो गई औरबेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी। वह देवी को पहचान चुकी थी। अतः उसने नारायणी की सहेली को छोड़दिया। और हाथ जोड़कर नारायणी से अपनी आँखों में रौशनी की भीख मांगते हुये भविष्य में बच्चों का भक्षण नकरने का वचन दिया। इस पर नारायणी बाई ने उसे माफ़ कर दिया और उसकी आँखों में रौशनी वापस आ गई।
नारायणी देवी का विवाह: भक्तों राणी सती अर्थात नारायणी देवी का विवाह,विक्रम संवत1351 मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष अष्टमी मंगलवार को महमनगर में तनधन दास जी के साथ हुआ था।इनके पिताजी हिसार राज्य के दीवान थे। नारायणी के पिता ने बेटी को दहेज़ में अपार धन के साथ श्यामकर्ण घोड़ी भी दी, जो उन्हें बेहद प्रिय थी। तनधनदास जी विवाह के पश्चात श्यामकर्ण घोड़ी पर बैठकर ही ससुराल जाया करते थे। एक बार नवाब के बेटे ने उनको देखा तो उसके मन में श्यामकर्ण घोड़ी पाने की इच्छा जाग गई।उसने अपने पिता से अपनी इच्छा प्रकट की। तब नवाब ने दीवान से श्यामकर्ण घोड़ी शहजादे को सौंपने को कहा लेकिन दीवान घुरसमल जी ने श्यामकर्ण घोड़ी बेटी को दान देने के कारण शहज़ादे को दे पाने में अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुये इंकार कर दिया।
शहजादे से संघर्ष: भक्तों दीवान घुरसमल जी द्वारा नवाब के बेटे को श्यामकर्ण घोड़ी देने से इंकार करने के बाद, नवाब के बेटे ने घोड़ी छीनलेने की योजना बनाई। इसलिए घोड़ी लाने के लिए आधीरात को तनधन दास की हवेली पर गया। मगर तनधन जी के साथ हुए संघर्ष में शहजादा मारा गया। अब दीवान तनधन जीजी के लिए हिसार राज्य में रहना सम्भव नहीं था। अतः वे अपने परिवार सहित झुंझणू के लिए रवाना हो गए। शहजादे की मौत से बौखलाया हिसार के नवाब ने रास्ते में पहाड़ की तलहटी पर दीवान तनधनदास की धोखेसे हत्या करवा दी... और नारायणी देवी की पालकी को सैनिकों से घेरवा लिया। तब नारायणी देवी क्रुद्ध होकर हाथ में तलवार लिए पालकी से कूदकर श्यामकर्ण घोड़ी पर सवार हुईं और कुछ ही पल में हिसार की सेना का अंत कर दिया।
सती होने का निर्णय: अपने पति के हत्यारों को मारने के बाद नारायणी जी ने उसी पहाड़ की तलहटी में सती होने का निर्णय लेते हुये अपने साथी राणा जीको सूर्य अस्त होने से पूर्व चिता का प्रबंध करने का आदेश दिया। लेकिन राणाजीनारायणी जी से झुंझणू चलने का आग्रह करने लगे। मगर राणा जी के आग्रह को नकारकर नारायणी देवी अपने पति के शव के साथ चिता पर बैठ गईं। उसी क्षण चिता तीव्र ज्वाला के साथ जलउठी। आसपास के लोगों को जब नारायणी बाई के सती होने की खबर मिली तो सभी नारियल, चावल, घी इत्यादि लेकर सती स्थल पर आने लगे।
भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन ! 🙏
इस कार्यक्रम के प्रत्येक एपिसोड में हम भक्तों को भारत के प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिर, धाम या देवी-देवता के दर्शन तो करायेंगे ही, साथ ही उस मंदिर की महिमा उसके इतिहास और उसकी मान्यताओं से भी सन्मुख करायेंगे। तो देखना ना भूलें ज्ञान और भक्ति का अनोखा दिव्य दर्शन। 🙏
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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Jai dadi ki 🙏🚩🙏
Jai daadi ki 🙏🏻🙏🏻
Jhunjhunu wali Maiya ki Jai❤️
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Jai sati mata
Jai Mata Di 🙏🙏
Jai dadi ki 🙏
Pranam Mata
Jai maata Di
জয় মাটা দী
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जय श्री राणी सती दादी जी 🌺
Jai mata di🙏🙏
Jay maharani sati
Jai mata di 🙏🙏🙏❤️❤️❤️
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Jai Mata Di
Jay mata di 🙏🙏
जय हो
Jay shree Krishna 🙏
Jai Mata Di🙏❤️
Ab dhandhan sati dadiji ka ittihas bhi dikhaye
Rani sati Navami ke din janmi thi aur Navami ke din hi sati Hui thi.