झारखण्ड आन्दोलन | संथाल एवं उराँव जनजाति | For-JPSC
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- เผยแพร่เมื่อ 11 ต.ค. 2024
- संथाल झारखण्ड की प्रमुख जनजाति है। झारखण्ड की जनजाति में सबसे अधिक संख्या संथालों की है।
प्रजातीय दृष्टि से संथाल को प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड श्रेणी में रखा गया है।
प्रजातीय और भाषिक दृष्टि से संथाल जनजाति आस्ट्रिक जनजाति के बहुत नजदीक है।
इनकी बहुलता के कारण ही राज्य का उत्तर-पूर्वी भाग संथाल परगना कहलाता है।
राजमहल पहाड़ियों में इनके निवास स्थल को दामिन-ए-कोह कहा जाता है।
झारखण्ड में संथालों का मुख्य निवास स्थल संथाल परगना है।
यह जनजाति ‘संथाल परगना’ के अतिरिक्त हजारीबाग, बोकारो, गिरिडीह, चतरा, रांची, सिंहभूम, धनबाद, लातेहार तथा पलामू में पर भी पायी जाती है।
संथालों में कुल 12 गोत्र पाये जाते हैं। ये हैं- हांसदा, मुर्मू, हेम्ब्रम, किस्कू, मरांडी, सोरेन, बास्के, टुडु, पौड़िया, बेसरा, चोंडे और बेदिया।
इनके के त्योहारों का प्रारंभ आषाढ़ महीना से होता है। इनके प्रमुख त्योहार बाहा/बा, ऐरोक, सरहुल, करम, बंधना, हरियाड, जापाड, सोहराई, सकरात, माघसिम और हरिहारसिम हैं।
संथालों का उत्सवप्रिय त्योहार सोहराई फसल कटने के समय मनाया जाता है।
संथालों के सबसे बड़े देवता को सिंगबोंगा या ठाकुर कहा जाता है।
संथाल समाज में ठाकुरजी को विश्व का विधाता माना जाता है।
संथालों का दूसरा प्रमुख देवता मरांग बुरू है।
संथालों के मुख्य ग्राम-देवता जाहेर-एरो है, जिसका निवास स्थान साल वृक्षों से घिरा ‘जाहेर थान’ होता है।
नायके संथाल गांव का धार्मिक प्रधान होता है।
संथाल गांव की पंचायतें मांझीथान में बैठती हैं।
मांझी संथाल गांव का प्रधान होता है।
बिटलहि संथाल समाज में सबसे कठोर सजा है। यह एक तरह का सामाजिक बहिष्कार है।
संथाल जनजाति संथाली बोली बोलती है, जिसका संबंध आस्ट्रो - एशियाई भाषा परिवार से है। संथाली बोली की लिपि ओलचिकी है।
92वें संविधान संशोधन (2003) के द्वारा संथाली भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया है।
संथाल परिवार का कर्ता-धर्ता व प्रधान पिता होता है।
इनके समाज चार ‘हडो’ (वर्ग/वर्ण)- किस्कू हड (राजा), मुर्मू हड (पुजारी), सोरेन हड (सिपाही) और मरुडी हड (कृषक) में विभक्त है।
सन्थालों में युवागृह को घोटलू कहा जाता है।
संथाल जनजाति एक अन्तर्विवाही जनजाति है, जिनके बीच समगोत्रीय विवाह वर्जित है।
प्रायः संथाल में एक विवाह की प्रथा है, किन्तु विशेष परिस्थिति में दूसरी पत्नी रखने की छूट है।
संथाल समाज में बाल-विवाह की प्रथा नहीं है।
संथालों में विवाह समारोह को बापला कहा जाता है।
संथालों में आठ प्रकार के विवाह प्रचलित हैं। ये हैं- किरिंग बापला, किरिंग जबाई, टुनकी दिपिल बापला, घर की जंवाई, निर्बोलोक, इतुत, सांगा और सेवा विवाह।
किरिंग बापला सर्वाधिक प्रचलित विवाह है। यह विवाह माता-पिता द्वारा ‘अगुवा’ (मध्यस्थ) के माध्यम से तय किया जाता है।
संथालों में वर-पक्ष की ओर से कन्या-पक्ष को दिया जाने वाला वधु-मूल्य पोन कहलाता है।
इस जनजाति में शव को जलाने और दफनाने दोनों प्रकार की प्रथाएं हैं।
संथालों का मुख्य पेशा कृषि है।
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