श्री शिव मानस पूजा स्तोत्र Shiv Manas Puja - with lyrics

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  • เผยแพร่เมื่อ 18 มิ.ย. 2020
  • #lordshiva#shivstotra#pushkarguru#shivmantra
    आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित शिव मानस पूजा शिव की एक अनूठी स्तुति है। इस स्तुति में मात्र कल्पना से शिव को सामग्री अर्पित की गई है और पुराण कहते हैं कि ‍साक्षात शिव ने इस पूजा को स्वीकार किया था।
    इस शिव मानस पूजा को आप अपनी सुविधानुसार कहीं भी और कभी भी कर सकते हैं। बस तन और मन की शुद्धता अनिवार्य है। मन से शिव-पार्वती के सुंदर स्वरूप की कल्पना कीजिए और समस्त सामग्री इन मंत्रों से अर्पित कीजिए, भगवान भोलेनाथ की यह पूजा चमत्कारिक रूप से ‍भाग्य चमकाती है।
    Shiva Manas Puja is a wonderful praise of Lord Bholenath. Worshiping Shiva by the Shiva Manas Puja Stotra in Sawan provides quick relief from spiritual and physical suffering.
    It is said that a Shiva devotee who provides water with this praise to Shiva on every day or Monday in the holy month of Sawan, all troubles are removed. There is a description of this stotra of Shiva also in the Puranas.
    The Shiva Manas Puja Stotra has 5 verses in total. It is believed that worshiping Shiva with this hymn fulfills every wish of the devotee. Shiva Manas Puja was composed by Shankaracharya himself to praise Shiva.
    शिव मानस पूजा (Shiv Manas Puja)
    रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं
    नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदाङ्कितं चन्दनम्।
    जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा
    दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम्॥१॥
    सौवर्णे नवरत्नखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसं भक्ष्यं
    पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम्।
    शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं ताम्बूलं
    मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥२॥
    छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलम्
    वीणाभेरिमृदङ्गकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा।
    साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत्समस्तं मया
    सङ्कल्पेन समर्पितं तवविभो पूजां गृहाण प्रभो॥३॥
    आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं
    पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः।
    सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वागिरो
    यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥४॥
    करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
    श्रवणनयनजं वा मानसंवापराधम्।
    विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व
    जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेवशम्भो॥५॥
    ॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचिता शिवमानसपूजा संपूर्ण॥

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