elements of the Indian Constitution | federal and unitary elements| संविधान के संघात्मक एवं एकात्मक
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- เผยแพร่เมื่อ 12 ม.ค. 2025
- Indian Federation is Union of States decause it is indestructible." Discuss this statement and explain the nature of the Indian ConstitutionThe Constitution of India is neither Federal nor purely unitary but it is a unique combination of both." Discuss the statement?
भारतीय संविधान न तो संघात्मक है और न ही पूर्ण रूप से एकात्मक, लेकिन यह दोनों का अद्भुत मिश्रण है।" इस अभिकथन की विवेचना कीजिये भारतीय संविधान के संघात्मक तत्व एवम एकात्मक तत्वों की विवेचना कीजिए?
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1. - भारतीय संविधान के संघात्मक तत्व एवम एकात्मक तत्वों की विवेचना कीजिए?
अथवाभारतीय संविधान न तो संघात्मक है और न ही पूर्ण रूप से एकात्मक, लेकिन यह दोनों का अद्भुत मिश्रण है।" इस अभिकथन की विवेचना कीजिये?
उत्तर- संघात्मक संविधान में शक्तियां केन्द्र एवं राज्यों में विभाजित रहती हैं। जबकि एकात्मक संविधान में सारी शक्तियाँ केन्द्रीय सरकार में निहित रहती हैं। संघात्मक संविधान में केन्द्र एवं राज्य सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं जबकि एकात्मक संविधान में प्रान्त केन्द्रीय सरकार में अधीन रहते हैं।
संघात्मक संविधान के मुख्यतया निम्नांकित तत्व माने जाते हैं-
(1) लिखित संविधान
(2) संविधान की सर्वोच्चता(3) संविधान की अपरिवर्तनशीलता
(4) शक्तियों का विभाजन(5) न्यायपालिका की स्वतन्त्रता
1-लिखित संविधानसंघात्मक संविधान का लिखित होना आवश्यक है क्योंकि संघात्मक संविधान में केन्द्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन रहता है तथा राज्य इकाइयाँ कतिपय शर्तों के अधीन संघ में सम्मिलित होती हैं। ऐसी स्थिति में केन्द्र एवं राज्यों में सौहार्द, समन्वय एवं शर्तों की अक्षुण्णता को बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि संविधान लिखित हो। भारत का संविधान लिखित संविधान है। इस दृष्टि से यह संघात्मक है।
(2) संविधान की सर्वोच्चतासंघीय शासन व्यवस्था में संविधान सर्वोच्च अर्थात सर्वोपरि होता है। संविधान से ऊपर कोई विधि अथवा सत्ता नहीं होती। शासत के सभी तीनों अंग-विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका संविधान से ही अपनी शक्तियाँ प्राप्त करते हैं। इनका सृजन भी संविधान की ही देन है।
(3) संविधान की अपरिवर्तनशीलता-संघात्मक संविधान का लिखित होना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु उसकाअपरिवर्तनशील होना भी अपेक्षित है। संविधान इतना लचीला नहीं होना चाहिये कि उसमें जब चाहे तब आसानी से संशोधन कर दिये जाएं। लेकिन साथ ही वह इतना कठोर भी नहीं होना चाहिए कि उसमें आवश्यकता पड़ने पर भी संशोधन नहीं किया जा सके। हमारा संविधान इन दोनों कसौटियों पर खरा उतरता है। यह न तो इंग्लैण्ड की भाँति अत्यन्त लचीला है और न ही अमेरिका की भाँति अत्यन्त कठोर। संशोधन की दृष्टि से हमने मध्यम मार्ग अपनाया है। देश, काल एवं परिस्थितियों के अनुसार इसमें संशोधन किया जा सकता है।
(4) शक्तियों का विभाजनसंघात्मक संविधान का एक प्रमुख लक्षम शक्तियों का विभाजन (Distribution of powers) है। इसमें केन्द्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन रहता है ताकि उनमें कभी टकराव की स्थिति उत्पन हों। भारत का संविधान भी केन्द्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन करता है। संविधान की सातवीं अनुसूची में शुक्रियों के विभाजन की दृष्टि से तीन सूचियाँ ज्ञताई गई हैं-
(क) संघ सूची;(ख) राज्य सूची; एवं
(ग) समवर्ती सूची।संघ सूची एवं राज्य सूची में उन विषयों को सम्मिलित किया गया है जिन पर विधि बनाने की शक्तियाँ क्रमशः संसद एवं राज्य विधानमण्डलों को है। समवर्ती सूची में उन विषयों का उल्लेख है जिन पर संसद एवं राज्य विधानमण्डल दोनों द्वारा विधियों का निर्माण किया जा सकता है।
(5) न्यायपालिका की स्वतंत्रतासंघात्मक संविधान का अन्तिम लक्षण है-न्यायपालिका की स्वतन्त्रता (Independence of judiciary)। केन्द्र एवं राज्यों में सौहार्द एवं समन्वय बनाये रखने तथा शक्तियों को लेकर उत्पन्न विवादों के निबटाने में न्यायपालिका का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। जब भी राज्य एवं केन्द्र के बीच कोई संवैधानिक विवाद उत्पन्न होता है तब न्यायपालिका ही संविधान के उपबन्धों का निर्वाचन (interpretation) कर विवादों का निपटारा करती है। इस संबंध में न्यायपालिका का प्राधिकार अन्तिम होता है। न्यायपालिका की स्वतन्त्रता को संविधान का आधारभूत ढाँचा माना गया है। इस दृष्टि से भी भारत का संविधान संघात्मक है।
एकात्मक संविधान के तत्व
1. एकल नागरिकता
2. राज्पाल की नियुक्ति
3. संसद की विधायी शक्तियां
4. आपात उद्घोषणा
5. नए राज्यों के सृजन की शक्तियां
6. अखिल भारतीय सेवाएं