Durga chalisa

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  • เผยแพร่เมื่อ 27 ก.ค. 2024
  • Durga chalisa path// hogi mata rani ki kirpa
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    सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
    शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
    श्री दुर्गा चालीसा
    नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।
    नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥
    निरंकार है ज्योति तुम्हारी ।
    तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥
    शशि ललाट मुख महाविशाला ।
    नेत्र लाल भृकुटी बिकराला ॥
    रूप मातु को अधिक सुहावे ।
    दरश करत जन अति सुख पावे ॥
    तुम संसार शक्ति लय कीना ।
    पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
    अन्नपूर्णा तुम जग पाला ।
    तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
    प्रलयकाल सब नाशनहारी ।
    तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥
    शिव योगी तुम्हरे गुन गावें ।
    ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥
    रूप सरस्वती का तुम धारा ।
    दे सुबुधि ऋषि-मुनिन उबारा ॥
    धर्‍यो रूप नरसिंह को अम्बा ।
    परगट भईं फाड़ कर खम्बा ॥
    रक्षा करि प्रहलाद बचायो ।
    हिरनाकुश को स्वर्ग पठायो ॥
    लक्ष्मी रूप धरो जग जानी ।
    श्री नारायण अंग समानी ॥
    क्षीरसिन्धु में करत बिलासा ।
    दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
    हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।
    महिमा अमित न जात बखानी ॥
    मातंगी धूमावति माता ।
    भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ॥
    श्री भैरव तारा जग-तारिणि ।
    छिन्न-भाल भव-दुःख निवारिणि ॥
    केहरि वाहन सोह भवानी ।
    लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
    कर में खप्पर-खड्‍ग बिराजै ।
    जाको देख काल डर भाजै ॥
    सोहै अस्त्र विविध त्रिशूला ।
    जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
    नगरकोट में तुम्हीं बिराजत ।
    तिहूँ लोक में डंका बाजत ॥
    शुम्भ निशुम्भ दैत्य तुम मारे ।
    रक्तबीज-संखन संहारे ॥
    महिषासुर दानव अभिमानी ।
    जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
    रूप कराल कालिका धारा ।
    सेन सहित तुम तेहि संहारा ॥
    परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब ।
    भई सहाय मातु तुम तब तब ॥
    अमर पुरी अरू बासव लोका ।
    तव महिमा सब रहें अशोका ॥
    ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।
    तुम्हें सदा पूजें नर-नारी ॥
    प्रेम भक्ति से जो यश गावै ।
    दुख-दारिद्र निकट नहिं आवै ॥
    ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।
    जन्म-मरण ता कौ छुटि जाई ॥
    योगी सुर-मुनि कहत पुकारी ।
    योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
    शंकर आचारज तप कीनो ।
    काम-क्रोध जीति तिन लीनो ॥
    निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।
    अति श्रद्धा नहिं सुमिरो तुमको ॥
    शक्ति रूप को मरम न पायो ।
    शक्ति गई तब मन पछितायो ॥
    शरणागत ह्‍वै कीर्ति बखानी ।
    जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
    भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।
    दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
    मोको मातु कष्ट अति घेरो ।
    तुम बिन कौन हरे दुख मेरो ॥
    आशा तृष्णा निपट सतावैं ।
    मोह-मदादिक सब बिनसावैं ॥
    शत्रु नाश कीजै महरानी ।
    सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥
    करहु कृपा हे मातु दयाला ।
    ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला ॥
    जब लग जिओं दया फल पावौं ।
    तुम्हरो यश मैं सदा सुनावौं ॥
    दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ।
    सब सुख भोग परमपद पावै ॥
    देवीदास शरण निज जानी ।
    करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥
    ॥इति श्रीदुर्गा चालीसा समाप्त ॥
    नव दुर्गा स्तोत्र • Nav Durga Strotra//#नव...

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