सब अविनाशी है, जिनके पास भी आत्मा है, काल भी बिना आत्मा के नही है, कोई भी भगवान आपका जो भी जिसे आप मानते हो सब के पास आत्मा है, अगर आप यह कहो कि जिसने सबको बनाया वह बिना आत्मा का है, वह खुद सभी आत्माओं का भंडार है, क्या सब भगवान है, बिल्कुल जिस जिस या जो आत्मा को लेकर किसी भी शरीर में है वह सब भगवान ही है,अब सवाल खड़ा होगा सब आत्मा है तो फिर आत्मा आत्मा की उपासना क्यों करें, जो चेतन को जान गया, मतलब आत्मा को तो वह खुद सर्वशक्तिमान हो गया, चेतन होकर चेतन को जानने की आवश्यकता क्या है, चेतन होकर भ्रमवश जड़ता को पकड़ बैठै है, जड़ता यह भ्रम क्या है ओर किसने बनाया, काल या ब्रह्म ने, काल कर्म, मन ब्रह्म, ओर माया इच्छा, क्या यह तीनों अलग है, काम से अलग हैं, नाम से अलग हैं, लेकिन मूल से सब एक ही है, अब सवाल यह खड़ा होता है जब सब मूल से एक ही है तो फिर अच्छा बुरा, सत्य असत्य, हार जीत, पाप पुण्य सब एक ही हो गये, बिल्कुल एक ही है, तो फिर हम फंसते क्यों है, या फिर धर्म ओर अधर्म की बात क्यों करते हैं, इसलिए करते हैं कि हम खुद भेदभाव करते हैं, आम का पेड़ ओर नीम का पेड़ या कोई ओर, फल अलग-अलग गुण धर्म अलग अलग लेकिन मूल एक ही है, हम अच्छा बुरा पाप पुण्य जो भी करते हैं या मानते हैं हम कर रहे हैं, दोनों का फल अलग-अलग निर्धारित है, फिर सवाल आता है अच्छा बुरा से परे क्या है, फिर वही है मतलब सबका मूल, अब सवाल आता है सबका जो मूल है उसने इतने सारे अलग-अलग कैसे बना दिया, कोई कुछ कर रहा है कोई कुछ, मतलब मूल को तो पता है सब कुछ उन सबको बनाने से पहले कि कोन क्या करेगा, अगर मूल जो सर्वशक्तिमान है उसकी आज्ञा के बिना बाकी ओर काम कर रहे हैं तो फिर उसके सर्वशक्तिमान होने पर सवाल खड़ा हो जायेगा जो वह औरों को नियन्त्रण नहीं कर पा रहा, आखिर सत्य क्या है, सब गोल गोल क्यों घूम रहे हैं, इसलिए घूम रहे हैं कि वह एक सर्वशक्तिमान के सिवा कोई कुछ कर ही नहीं रहा, फंसाने का काम हो या निकालने का काम, उसके लिए यह सब खेल है, वह सर्वशक्तिमान होने के कारण कोई भी उसे दोष नहीं दे सकता, अगर आप उसके हर चक्रव्यूह से निकलकर उस तक पहुंच गये तो आप उसमें ही समा जाओगे जहां जो आपका मूल है, काल का जाल वह खुद ही है, बनाने वाला वही है, उस सबको बनाने वाले की आज्ञा के बिना कोई कुछ करता ही नहीं है, कर ही नहीं सकता, कहानियां या उदाहरण चाहे आपको किसी भी तरह समझाने के लिए उपयोग में लायें जाए, कोई भी अध्यात्म की शिक्षा देने वाला यह नहीं कहता कि वह काल भी वही है जो मोक्ष देने का अधिकार रखता है, वजह सब भ्रमित हो जायेंगे, लेकिन यह अटल सत्य है काल वही है या उसी का एक अंश रूप, जिसे आप सर्वशक्तिमान या मोक्ष दाता कहते हो, काल अपनी तरफ से कुछ कर ही नहीं सकता वरना उसकी अलग सत्ता हो जायेगी, अगर आप यह कहते हो काल की भी अपनी अलग सत्ता है तो फिर उस एक सर्वशक्तिमान होने वाले पर सवाल खड़े हो जायेंगे, काल फंसाता क्यों है, आप काल को फंसाने वाला समझते क्यों हो, काल की अगर अपनी अलग सत्ता है तो आप यह नहीं कह सकते कि प्रलय ओर महाप्रलय होती है, काल अपनी ही सत्ता का प्रलय क्यों करेगा अगर उसे औरों को फंसाने में आनंद आता है, सवाल खड़ा हो जायेगा, ओर यह भी अटल सत्य है कि अगर आप काल से ऊपर किसी को भी मानते हो तो काल से मिले बिना आप उसे नहीं मिल सकते, ओर जिस दिन भी आप इस मुकाम पर पहुंचे तो आपको काल का रुप वही दिखेगा जो आपके सतगुरु का है, अगर वह समर्थ हों या खुद मोक्ष को प्राप्त कर चूके हों या फिर उस एक सर्वशक्तिमान के साथ एक हो गये हों, काल का वह रूप आपसे कहेगा, में ही अंतिम सत्य हूं या फिर जो मांगना चाहो मांग सकते हो, यहां तक पहुंचना भी कोई आसान नहीं है, ओर अगर पहुंच गये तो फिर भी भ्रमित हो सकते हो, लेकिन अगर आपने मोक्ष की ही रट लगाई ओर कुछ नही मांगा, तो फिर आपको आगे का रास्ता मिल जायेगा, लेकिन काल को उस सर्वशक्तिमान से अलग समझना व्यवहार में आप कह सकते हो लेकिन मूल रुप में कभी भी नहीं, कोई भी अध्यात्म का गुरु यह सिद्ध नहीं कर सकता कि काल को उस सर्वशक्तिमान ने नहीं बनाया.
Are sahab yaha Ram ji Kaal yani mrityu ki baat kar rahe hai. Aap ko bahut din se sun raha hu, kabhi to kafi gahra gyan dete hai kabhi bachkani baate karte hai, aap ka gyan virodhabhasi prateet hota hai .
Or tum logo ko galat samjakar aartiya karvate ho or kabirki jaykara lagavate ho. Parmatma to sarv samrath he useke jayakaraki jaroort nahi hoti. Tum bhi kalka hi Gyan de rahe ho.
@@SudhirYadav-c3s वंश के अधीन नहीं मगर अपने वचनों के अधीन तो हैं ही। जब उन्होंने कहा है कि 12 वें वंशज को ज्ञान देंगे, वही भेद खोलेगा तो उन्होंने झूठ कहा क्या ?
सब अविनाशी है, जिनके पास भी आत्मा है, काल भी बिना आत्मा के नही है, कोई भी भगवान आपका जो भी जिसे आप मानते हो सब के पास आत्मा है, अगर आप यह कहो कि जिसने सबको बनाया वह बिना आत्मा का है, वह खुद सभी आत्माओं का भंडार है, क्या सब भगवान है, बिल्कुल जिस जिस या जो आत्मा को लेकर किसी भी शरीर में है वह सब भगवान ही है,अब सवाल खड़ा होगा सब आत्मा है तो फिर आत्मा आत्मा की उपासना क्यों करें, जो चेतन को जान गया, मतलब आत्मा को तो वह खुद सर्वशक्तिमान हो गया, चेतन होकर चेतन को जानने की आवश्यकता क्या है, चेतन होकर भ्रमवश जड़ता को पकड़ बैठै है, जड़ता यह भ्रम क्या है ओर किसने बनाया, काल या ब्रह्म ने, काल कर्म, मन ब्रह्म, ओर माया इच्छा, क्या यह तीनों अलग है, काम से अलग हैं, नाम से अलग हैं, लेकिन मूल से सब एक ही है, अब सवाल यह खड़ा होता है जब सब मूल से एक ही है तो फिर अच्छा बुरा, सत्य असत्य, हार जीत, पाप पुण्य सब एक ही हो गये, बिल्कुल एक ही है, तो फिर हम फंसते क्यों है, या फिर धर्म ओर अधर्म की बात क्यों करते हैं, इसलिए करते हैं कि हम खुद भेदभाव करते हैं, आम का पेड़ ओर नीम का पेड़ या कोई ओर, फल अलग-अलग गुण धर्म अलग अलग लेकिन मूल एक ही है, हम अच्छा बुरा पाप पुण्य जो भी करते हैं या मानते हैं हम कर रहे हैं, दोनों का फल अलग-अलग निर्धारित है, फिर सवाल आता है अच्छा बुरा से परे क्या है, फिर वही है मतलब सबका मूल, अब सवाल आता है सबका जो मूल है उसने इतने सारे अलग-अलग कैसे बना दिया, कोई कुछ कर रहा है कोई कुछ, मतलब मूल को तो पता है सब कुछ उन सबको बनाने से पहले कि कोन क्या करेगा, अगर मूल जो सर्वशक्तिमान है उसकी आज्ञा के बिना बाकी ओर काम कर रहे हैं तो फिर उसके सर्वशक्तिमान होने पर सवाल खड़ा हो जायेगा जो वह औरों को नियन्त्रण नहीं कर पा रहा, आखिर सत्य क्या है, सब गोल गोल क्यों घूम रहे हैं, इसलिए घूम रहे हैं कि वह एक सर्वशक्तिमान के सिवा कोई कुछ कर ही नहीं रहा, फंसाने का काम हो या निकालने का काम, उसके लिए यह सब खेल है, वह सर्वशक्तिमान होने के कारण कोई भी उसे दोष नहीं दे सकता, अगर आप उसके हर चक्रव्यूह से निकलकर उस तक पहुंच गये तो आप उसमें ही समा जाओगे जहां जो आपका मूल है, काल का जाल वह खुद ही है, बनाने वाला वही है, उस सबको बनाने वाले की आज्ञा के बिना कोई कुछ करता ही नहीं है, कर ही नहीं सकता, कहानियां या उदाहरण चाहे आपको किसी भी तरह समझाने के लिए उपयोग में लायें जाए, कोई भी अध्यात्म की शिक्षा देने वाला यह नहीं कहता कि वह काल भी वही है जो मोक्ष देने का अधिकार रखता है, वजह सब भ्रमित हो जायेंगे, लेकिन यह अटल सत्य है काल वही है या उसी का एक अंश रूप, जिसे आप सर्वशक्तिमान या मोक्ष दाता कहते हो, काल अपनी तरफ से कुछ कर ही नहीं सकता वरना उसकी अलग सत्ता हो जायेगी, अगर आप यह कहते हो काल की भी अपनी अलग सत्ता है तो फिर उस एक सर्वशक्तिमान होने वाले पर सवाल खड़े हो जायेंगे, काल फंसाता क्यों है, आप काल को फंसाने वाला समझते क्यों हो, काल की अगर अपनी अलग सत्ता है तो आप यह नहीं कह सकते कि प्रलय ओर महाप्रलय होती है, काल अपनी ही सत्ता का प्रलय क्यों करेगा अगर उसे औरों को फंसाने में आनंद आता है, सवाल खड़ा हो जायेगा, ओर यह भी अटल सत्य है कि अगर आप काल से ऊपर किसी को भी मानते हो तो काल से मिले बिना आप उसे नहीं मिल सकते, ओर जिस दिन भी आप इस मुकाम पर पहुंचे तो आपको काल का रुप वही दिखेगा जो आपके सतगुरु का है, अगर वह समर्थ हों या खुद मोक्ष को प्राप्त कर चूके हों या फिर उस एक सर्वशक्तिमान के साथ एक हो गये हों, काल का वह रूप आपसे कहेगा, में ही अंतिम सत्य हूं या फिर जो मांगना चाहो मांग सकते हो, यहां तक पहुंचना भी कोई आसान नहीं है, ओर अगर पहुंच गये तो फिर भी भ्रमित हो सकते हो, लेकिन अगर आपने मोक्ष की ही रट लगाई ओर कुछ नही मांगा, तो फिर आपको आगे का रास्ता मिल जायेगा, लेकिन काल को उस सर्वशक्तिमान से अलग समझना व्यवहार में आप कह सकते हो लेकिन मूल रुप में कभी भी नहीं, कोई भी अध्यात्म का गुरु यह सिद्ध नहीं कर सकता कि काल को उस सर्वशक्तिमान ने नहीं बनाया.
जय सतनाम जी
साहेब बंदगी सतनाम जी
🙏🙏गुरु भाई जी 🙏🙏
जय हो परमात्मा सब्द गुरु देव जी की सदा सदा ही जय हो
🙏🌷🙏🌹🙏🌷🙏🌹❤❤
Saheb bandaging satnam
Ma Ashtangi pita niranjan, wo jam darun vanshan anjan....
Sahib bandagi Satnam
Thanks pita ji apki bhut dya hai
Yes🙏🙏🙏
Yash
Yes
Sahib g
Ram ram
सब अविनाशी है, जिनके पास भी आत्मा है, काल भी बिना आत्मा के नही है, कोई भी भगवान आपका जो भी जिसे आप मानते हो सब के पास आत्मा है, अगर आप यह कहो कि जिसने सबको बनाया वह बिना आत्मा का है, वह खुद सभी आत्माओं का भंडार है, क्या सब भगवान है, बिल्कुल जिस जिस या जो आत्मा को लेकर किसी भी शरीर में है वह सब भगवान ही है,अब सवाल खड़ा होगा सब आत्मा है तो फिर आत्मा आत्मा की उपासना क्यों करें, जो चेतन को जान गया, मतलब आत्मा को तो वह खुद सर्वशक्तिमान हो गया, चेतन होकर चेतन को जानने की आवश्यकता क्या है, चेतन होकर भ्रमवश जड़ता को पकड़ बैठै है, जड़ता यह भ्रम क्या है ओर किसने बनाया, काल या ब्रह्म ने, काल कर्म, मन ब्रह्म, ओर माया इच्छा, क्या यह तीनों अलग है, काम से अलग हैं, नाम से अलग हैं, लेकिन मूल से सब एक ही है, अब सवाल यह खड़ा होता है जब सब मूल से एक ही है तो फिर अच्छा बुरा, सत्य असत्य, हार जीत, पाप पुण्य सब एक ही हो गये, बिल्कुल एक ही है, तो फिर हम फंसते क्यों है, या फिर धर्म ओर अधर्म की बात क्यों करते हैं, इसलिए करते हैं कि हम खुद भेदभाव करते हैं, आम का पेड़ ओर नीम का पेड़ या कोई ओर, फल अलग-अलग गुण धर्म अलग अलग लेकिन मूल एक ही है, हम अच्छा बुरा पाप पुण्य जो भी करते हैं या मानते हैं हम कर रहे हैं, दोनों का फल अलग-अलग निर्धारित है, फिर सवाल आता है अच्छा बुरा से परे क्या है, फिर वही है मतलब सबका मूल, अब सवाल आता है सबका जो मूल है उसने इतने सारे अलग-अलग कैसे बना दिया, कोई कुछ कर रहा है कोई कुछ, मतलब मूल को तो पता है सब कुछ उन सबको बनाने से पहले कि कोन क्या करेगा, अगर मूल जो सर्वशक्तिमान है उसकी आज्ञा के बिना बाकी ओर काम कर रहे हैं तो फिर उसके सर्वशक्तिमान होने पर सवाल खड़ा हो जायेगा जो वह औरों को नियन्त्रण नहीं कर पा रहा, आखिर सत्य क्या है, सब गोल गोल क्यों घूम रहे हैं, इसलिए घूम रहे हैं कि वह एक सर्वशक्तिमान के सिवा कोई कुछ कर ही नहीं रहा, फंसाने का काम हो या निकालने का काम, उसके लिए यह सब खेल है, वह सर्वशक्तिमान होने के कारण कोई भी उसे दोष नहीं दे सकता, अगर आप उसके हर चक्रव्यूह से निकलकर उस तक पहुंच गये तो आप उसमें ही समा जाओगे जहां जो आपका मूल है, काल का जाल वह खुद ही है, बनाने वाला वही है, उस सबको बनाने वाले की आज्ञा के बिना कोई कुछ करता ही नहीं है, कर ही नहीं सकता, कहानियां या उदाहरण चाहे आपको किसी भी तरह समझाने के लिए उपयोग में लायें जाए, कोई भी अध्यात्म की शिक्षा देने वाला यह नहीं कहता कि वह काल भी वही है जो मोक्ष देने का अधिकार रखता है, वजह सब भ्रमित हो जायेंगे, लेकिन यह अटल सत्य है काल वही है या उसी का एक अंश रूप, जिसे आप सर्वशक्तिमान या मोक्ष दाता कहते हो, काल अपनी तरफ से कुछ कर ही नहीं सकता वरना उसकी अलग सत्ता हो जायेगी, अगर आप यह कहते हो काल की भी अपनी अलग सत्ता है तो फिर उस एक सर्वशक्तिमान होने वाले पर सवाल खड़े हो जायेंगे, काल फंसाता क्यों है, आप काल को फंसाने वाला समझते क्यों हो, काल की अगर अपनी अलग सत्ता है तो आप यह नहीं कह सकते कि प्रलय ओर महाप्रलय होती है, काल अपनी ही सत्ता का प्रलय क्यों करेगा अगर उसे औरों को फंसाने में आनंद आता है, सवाल खड़ा हो जायेगा, ओर यह भी अटल सत्य है कि अगर आप काल से ऊपर किसी को भी मानते हो तो काल से मिले बिना आप उसे नहीं मिल सकते, ओर जिस दिन भी आप इस मुकाम पर पहुंचे तो आपको काल का रुप वही दिखेगा जो आपके सतगुरु का है, अगर वह समर्थ हों या खुद मोक्ष को प्राप्त कर चूके हों या फिर उस एक सर्वशक्तिमान के साथ एक हो गये हों, काल का वह रूप आपसे कहेगा, में ही अंतिम सत्य हूं या फिर जो मांगना चाहो मांग सकते हो, यहां तक पहुंचना भी कोई आसान नहीं है, ओर अगर पहुंच गये तो फिर भी भ्रमित हो सकते हो, लेकिन अगर आपने मोक्ष की ही रट लगाई ओर कुछ नही मांगा, तो फिर आपको आगे का रास्ता मिल जायेगा, लेकिन काल को उस सर्वशक्तिमान से अलग समझना व्यवहार में आप कह सकते हो लेकिन मूल रुप में कभी भी नहीं, कोई भी अध्यात्म का गुरु यह सिद्ध नहीं कर सकता कि काल को उस सर्वशक्तिमान ने नहीं बनाया.
Ram ram sahib g
Ram ram g
काल मुह मे हम तो नहीं जायेगे अब कीतने बार गये तो काल मुजसे दूरी कयु बना रहा है
Are sahab yaha Ram ji Kaal yani mrityu ki baat kar rahe hai. Aap ko bahut din se sun raha hu, kabhi to kafi gahra gyan dete hai kabhi bachkani baate karte hai, aap ka gyan virodhabhasi prateet hota hai .
Aap kaun sa gyan chahte hai
Sahiba gandagi satnam
Or tum logo ko galat samjakar aartiya karvate ho or kabirki jaykara lagavate ho.
Parmatma to sarv samrath he useke jayakaraki jaroort nahi hoti.
Tum bhi kalka hi Gyan de rahe ho.
जहां तक मुझे याद है, गरीबदास जी का 12 वां वंशज ही वास्तविक तत्त्वगुरु संत होगा जो मूल कबीर ज्ञान का भेद खोलेगा। क्या नितिन जी गरीबदास जी के वंशज हैं ?
Naam chinhe so vansh hamara
Na to buda kaal ki dhara
... kabir wani
Bhai ji Parmatma kisi bansh ke adhin nahi wah apne gyan prachar ke liye kisi ko chun sakta hai
@@SudhirYadav-c3s वंश के अधीन नहीं मगर अपने वचनों के अधीन तो हैं ही। जब उन्होंने कहा है कि 12 वें वंशज को ज्ञान देंगे, वही भेद खोलेगा तो उन्होंने झूठ कहा क्या ?
@@sarojkumaryadav4479 kaun se vachan me kaha hai Vani bataye
सब अविनाशी है, जिनके पास भी आत्मा है, काल भी बिना आत्मा के नही है, कोई भी भगवान आपका जो भी जिसे आप मानते हो सब के पास आत्मा है, अगर आप यह कहो कि जिसने सबको बनाया वह बिना आत्मा का है, वह खुद सभी आत्माओं का भंडार है, क्या सब भगवान है, बिल्कुल जिस जिस या जो आत्मा को लेकर किसी भी शरीर में है वह सब भगवान ही है,अब सवाल खड़ा होगा सब आत्मा है तो फिर आत्मा आत्मा की उपासना क्यों करें, जो चेतन को जान गया, मतलब आत्मा को तो वह खुद सर्वशक्तिमान हो गया, चेतन होकर चेतन को जानने की आवश्यकता क्या है, चेतन होकर भ्रमवश जड़ता को पकड़ बैठै है, जड़ता यह भ्रम क्या है ओर किसने बनाया, काल या ब्रह्म ने, काल कर्म, मन ब्रह्म, ओर माया इच्छा, क्या यह तीनों अलग है, काम से अलग हैं, नाम से अलग हैं, लेकिन मूल से सब एक ही है, अब सवाल यह खड़ा होता है जब सब मूल से एक ही है तो फिर अच्छा बुरा, सत्य असत्य, हार जीत, पाप पुण्य सब एक ही हो गये, बिल्कुल एक ही है, तो फिर हम फंसते क्यों है, या फिर धर्म ओर अधर्म की बात क्यों करते हैं, इसलिए करते हैं कि हम खुद भेदभाव करते हैं, आम का पेड़ ओर नीम का पेड़ या कोई ओर, फल अलग-अलग गुण धर्म अलग अलग लेकिन मूल एक ही है, हम अच्छा बुरा पाप पुण्य जो भी करते हैं या मानते हैं हम कर रहे हैं, दोनों का फल अलग-अलग निर्धारित है, फिर सवाल आता है अच्छा बुरा से परे क्या है, फिर वही है मतलब सबका मूल, अब सवाल आता है सबका जो मूल है उसने इतने सारे अलग-अलग कैसे बना दिया, कोई कुछ कर रहा है कोई कुछ, मतलब मूल को तो पता है सब कुछ उन सबको बनाने से पहले कि कोन क्या करेगा, अगर मूल जो सर्वशक्तिमान है उसकी आज्ञा के बिना बाकी ओर काम कर रहे हैं तो फिर उसके सर्वशक्तिमान होने पर सवाल खड़ा हो जायेगा जो वह औरों को नियन्त्रण नहीं कर पा रहा, आखिर सत्य क्या है, सब गोल गोल क्यों घूम रहे हैं, इसलिए घूम रहे हैं कि वह एक सर्वशक्तिमान के सिवा कोई कुछ कर ही नहीं रहा, फंसाने का काम हो या निकालने का काम, उसके लिए यह सब खेल है, वह सर्वशक्तिमान होने के कारण कोई भी उसे दोष नहीं दे सकता, अगर आप उसके हर चक्रव्यूह से निकलकर उस तक पहुंच गये तो आप उसमें ही समा जाओगे जहां जो आपका मूल है, काल का जाल वह खुद ही है, बनाने वाला वही है, उस सबको बनाने वाले की आज्ञा के बिना कोई कुछ करता ही नहीं है, कर ही नहीं सकता, कहानियां या उदाहरण चाहे आपको किसी भी तरह समझाने के लिए उपयोग में लायें जाए, कोई भी अध्यात्म की शिक्षा देने वाला यह नहीं कहता कि वह काल भी वही है जो मोक्ष देने का अधिकार रखता है, वजह सब भ्रमित हो जायेंगे, लेकिन यह अटल सत्य है काल वही है या उसी का एक अंश रूप, जिसे आप सर्वशक्तिमान या मोक्ष दाता कहते हो, काल अपनी तरफ से कुछ कर ही नहीं सकता वरना उसकी अलग सत्ता हो जायेगी, अगर आप यह कहते हो काल की भी अपनी अलग सत्ता है तो फिर उस एक सर्वशक्तिमान होने वाले पर सवाल खड़े हो जायेंगे, काल फंसाता क्यों है, आप काल को फंसाने वाला समझते क्यों हो, काल की अगर अपनी अलग सत्ता है तो आप यह नहीं कह सकते कि प्रलय ओर महाप्रलय होती है, काल अपनी ही सत्ता का प्रलय क्यों करेगा अगर उसे औरों को फंसाने में आनंद आता है, सवाल खड़ा हो जायेगा, ओर यह भी अटल सत्य है कि अगर आप काल से ऊपर किसी को भी मानते हो तो काल से मिले बिना आप उसे नहीं मिल सकते, ओर जिस दिन भी आप इस मुकाम पर पहुंचे तो आपको काल का रुप वही दिखेगा जो आपके सतगुरु का है, अगर वह समर्थ हों या खुद मोक्ष को प्राप्त कर चूके हों या फिर उस एक सर्वशक्तिमान के साथ एक हो गये हों, काल का वह रूप आपसे कहेगा, में ही अंतिम सत्य हूं या फिर जो मांगना चाहो मांग सकते हो, यहां तक पहुंचना भी कोई आसान नहीं है, ओर अगर पहुंच गये तो फिर भी भ्रमित हो सकते हो, लेकिन अगर आपने मोक्ष की ही रट लगाई ओर कुछ नही मांगा, तो फिर आपको आगे का रास्ता मिल जायेगा, लेकिन काल को उस सर्वशक्तिमान से अलग समझना व्यवहार में आप कह सकते हो लेकिन मूल रुप में कभी भी नहीं, कोई भी अध्यात्म का गुरु यह सिद्ध नहीं कर सकता कि काल को उस सर्वशक्तिमान ने नहीं बनाया.
Ram ram g