ईश्वर की कृपा या परीक्षा 🥹

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  • เผยแพร่เมื่อ 18 ต.ค. 2024
  • ईश्वर की कृपा या परीक्षा?"
    "ईश्वर की कृपा या परीक्षा?" - यह वाक्य संत प्रमानंद जी महाराज के आध्यात्मिक विचारों को प्रतिबिंबित करता है, जिसमें वह जीवन में आने वाली कठिनाइयों और समस्याओं को ईश्वर की एक महत्वपूर्ण योजना के रूप में देखते हैं। प्रमानंद जी महाराज के अनुसार, ईश्वर कभी भी हमें असहनीय कष्ट नहीं देता, बल्कि हर विपत्ति के माध्यम से हमारी आत्मा को शुद्ध और शक्तिशाली बनाने का प्रयास करता है।
    वह कहते हैं कि जब हम अपनी इच्छाओं, संपत्तियों या सुखों से वंचित होते हैं, तो यह ईश्वर की कृपा होती है, क्योंकि वह हमें बाहरी चीजों से हटाकर हमारे भीतर के दिव्य स्वरूप को देखने का अवसर प्रदान करता है। इस प्रकार की परीक्षाएं हमें जीवन के गहरे सत्य की ओर ले जाती हैं, जहां हम भौतिक वस्तुओं के मोह से मुक्त होकर, सच्चे आत्म-ज्ञान और ईश्वर के प्रेम को प्राप्त कर सकते हैं।
    प्रमानंद जी महाराज के अनुसार, हमें यह समझना चाहिए कि जो कुछ ईश्वर करता है, वह हमारे हित में होता है, चाहे वह तत्काल में कष्टप्रद क्यों न लगे। इस प्रकार, जीवन की कठिनाइयों को ईश्वर की कृपा मानते हुए उन्हें धैर्य, भक्ति और समर्पण के साथ स्वीकार करना चाहिए।

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