आप द्वारा दी गई जानकारी अनुसरणीय व अनुकरणीय है. आर्थिक स्थिति में सुधार हेतु बकरी व्यवसाय को अपनाया जाना चाहिए और आप से संपर्क में रहते हुए बकरियों का रखरखाव व दूध तथा अन्य सभी उत्पादों का समुचित उपयोग होना व्यक्ति और देश के हित में है
बहुत लाभकारी जानकारी, खासकर मेरे जैसे जिज्ञासु के लिए। कृपया बताएं कि को लोग उत्तराखंड में बकरियां पाल रहे हैं वो कोन सी ब्रीड है? क्या बकरियां जंगल में चुगाने के लिए ले जाना सही अभ्यास है?
🙏विकल्प की आवश्यकता 😊 अस्तित्व सहअस्तित्व स्वरूपी है. सहअस्तित्व सत्ता में संपृक्त प्रकृति है. ऐसे प्रकृति चार अवस्था व चार पदों में है. इसमें विकास-क्रम, विकास, जाग्रति-क्रम, जाग्रति - ये शाश्वत प्रक्रियाएं हैं. सत्ता अपरिणामी है. जीवन विकास पूर्वक अपरिणामी हुआ है. मनुष्य आदिकाल से अमरत्व को खोजता रहा है. शास्त्र में लिखा है - "अमरा निर्जरा देवास्त्रिदशा विबुधा सुरा:" (अमरकोष, प्रथम काण्ड, १.१.१३) जो जरा (वृद्ध) नहीं होता है, उसको उन्होंने देवता कहा. मध्यस्थ दर्शन से अमरत्व का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट हो गया। जीवन अमर वस्तु है। जीवन में जरा-दोष नहीं है. परिणाम दोष नहीं है, इसलिए जरा-दोष नहीं है. जीवन मात्रात्मक परिवर्तन से मुक्त है. जब तक मात्रात्मक परिवर्तन है तब तक जरा-दोष है. रासायनिक-भौतिक वस्तुओं में मात्रात्मक परिवर्तन है, जरा दोष है, इसलिए रचना-विरचना उनमे होता ही रहता है. जीवन में कोई रचना-विरचना होता ही नहीं है. जीवन में होता है - चेतना. चेतना में गुणात्मक विकास होता है. चेतना का स्वरूप बताया - जीव चेतना, मानव चेतना, देव चेतना, और दिव्य चेतना. मानव जीवचेतना पूर्वक अव्यवस्था में फंसता है, क्लेश को मोलता है, गलती-अपराध को करता है. मानव की स्थिति जीव चेतना की है - इसकी गवाही में सभी राजतंत्र यह स्वीकारे हैं कि मानव गलती-अपराध कर सकता है. मानव की स्थिति जीव चेतना की है - इसकी गवाही में सभी (ईश्वरवादी) धर्मगद्दी मानव को पापी, अज्ञानी और स्वार्थी कहा है. इसी ईश्वरवाद में कहा है - "मुंडे मुंडे मतिभिन्ना: कुंडे कुंडे नवं पयः" (वायु पुराण). (मतलब हर आदमी का अलग अलग मत होगा ही) इसी क्रम में कहा - "सुनो सबकी, करो मन की". इसी क्रम में कहा - "खाली हाथ आये, खाली हाथ जायेंगे". यह सब झूठ का पुलिंदा है, भ्रम है. भ्रम को आप झूठ मानोगे या नहीं? "खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे" - ये शरीर की बात कर रहे हैं. जीवन ज्ञान नहीं है, इसका प्रमाण दे दिया या नहीं? जीवन ज्ञान ईश्वरवादी परम्परा में नहीं था - इस बात का यह प्रमाण है. शिष्ट परिवारों में, वेद मूर्ति परिवारों में यह नारा चला है - "खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे". इससे पता चलता है कि उनको जीवन ज्ञान नहीं था. ईश्वरवाद रहस्यमय होने के कारण प्रमाण तक पहुँच नहीं पाया. अस्तित्व के कुछ भाग को विज्ञानियों ने सच माना, कुछ भाग को ईश्वरवादियों ने सच माना. दोनों अधूरे होने के कारण प्रमाणित नहीं हो पाए, संकटग्रस्त हुए. इसीलिये "विकल्प" की ज़रुरत आ गयी. - श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, अमरकंटक) 💐🌿🌷🌱🌻🍃🌺🌴🌹
🙏विकल्प की आवश्यकता 😊 अस्तित्व सहअस्तित्व स्वरूपी है. सहअस्तित्व सत्ता में संपृक्त प्रकृति है. ऐसे प्रकृति चार अवस्था व चार पदों में है. इसमें विकास-क्रम, विकास, जाग्रति-क्रम, जाग्रति - ये शाश्वत प्रक्रियाएं हैं. सत्ता अपरिणामी है. जीवन विकास पूर्वक अपरिणामी हुआ है. मनुष्य आदिकाल से अमरत्व को खोजता रहा है. शास्त्र में लिखा है - "अमरा निर्जरा देवास्त्रिदशा विबुधा सुरा:" (अमरकोष, प्रथम काण्ड, १.१.१३) जो जरा (वृद्ध) नहीं होता है, उसको उन्होंने देवता कहा. मध्यस्थ दर्शन से अमरत्व का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट हो गया। जीवन अमर वस्तु है। जीवन में जरा-दोष नहीं है. परिणाम दोष नहीं है, इसलिए जरा-दोष नहीं है. जीवन मात्रात्मक परिवर्तन से मुक्त है. जब तक मात्रात्मक परिवर्तन है तब तक जरा-दोष है. रासायनिक-भौतिक वस्तुओं में मात्रात्मक परिवर्तन है, जरा दोष है, इसलिए रचना-विरचना उनमे होता ही रहता है. जीवन में कोई रचना-विरचना होता ही नहीं है. जीवन में होता है - चेतना. चेतना में गुणात्मक विकास होता है. चेतना का स्वरूप बताया - जीव चेतना, मानव चेतना, देव चेतना, और दिव्य चेतना. मानव जीवचेतना पूर्वक अव्यवस्था में फंसता है, क्लेश को मोलता है, गलती-अपराध को करता है. मानव की स्थिति जीव चेतना की है - इसकी गवाही में सभी राजतंत्र यह स्वीकारे हैं कि मानव गलती-अपराध कर सकता है. मानव की स्थिति जीव चेतना की है - इसकी गवाही में सभी (ईश्वरवादी) धर्मगद्दी मानव को पापी, अज्ञानी और स्वार्थी कहा है. इसी ईश्वरवाद में कहा है - "मुंडे मुंडे मतिभिन्ना: कुंडे कुंडे नवं पयः" (वायु पुराण). (मतलब हर आदमी का अलग अलग मत होगा ही) इसी क्रम में कहा - "सुनो सबकी, करो मन की". इसी क्रम में कहा - "खाली हाथ आये, खाली हाथ जायेंगे". यह सब झूठ का पुलिंदा है, भ्रम है. भ्रम को आप झूठ मानोगे या नहीं? "खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे" - ये शरीर की बात कर रहे हैं. जीवन ज्ञान नहीं है, इसका प्रमाण दे दिया या नहीं? जीवन ज्ञान ईश्वरवादी परम्परा में नहीं था - इस बात का यह प्रमाण है. शिष्ट परिवारों में, वेद मूर्ति परिवारों में यह नारा चला है - "खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे". इससे पता चलता है कि उनको जीवन ज्ञान नहीं था. ईश्वरवाद रहस्यमय होने के कारण प्रमाण तक पहुँच नहीं पाया. अस्तित्व के कुछ भाग को विज्ञानियों ने सच माना, कुछ भाग को ईश्वरवादियों ने सच माना. दोनों अधूरे होने के कारण प्रमाणित नहीं हो पाए, संकटग्रस्त हुए. इसीलिये "विकल्प" की ज़रुरत आ गयी. - श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, अमरकंटक) 💐🌿🌷🌱🌻🍃🌺🌴🌹
Thanks, Bahut hi achchhi janakari dene ke liye. Mujhe hindi medium me bakari palan se sambandhit kitabe chahiye thi. Isako main kaise prapt kar sakata hoon.
सबसे पहले सर मनोज कुमार को मेरा नमस्कार अनिल उत्तर प्रदेश में इटावा जिला से क्योंकि मैं बहुत ही जल्द आपके पास आना चाहता हूं क्योंकि मैं बकरी फार्म खोलने की पूरी तैयारी है फार्म मैंने बना लिया आपकी वीडियो देख जाके
🙏विकल्प की आवश्यकता 😊 अस्तित्व सहअस्तित्व स्वरूपी है. सहअस्तित्व सत्ता में संपृक्त प्रकृति है. ऐसे प्रकृति चार अवस्था व चार पदों में है. इसमें विकास-क्रम, विकास, जाग्रति-क्रम, जाग्रति - ये शाश्वत प्रक्रियाएं हैं. सत्ता अपरिणामी है. जीवन विकास पूर्वक अपरिणामी हुआ है. मनुष्य आदिकाल से अमरत्व को खोजता रहा है. शास्त्र में लिखा है - "अमरा निर्जरा देवास्त्रिदशा विबुधा सुरा:" (अमरकोष, प्रथम काण्ड, १.१.१३) जो जरा (वृद्ध) नहीं होता है, उसको उन्होंने देवता कहा. मध्यस्थ दर्शन से अमरत्व का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट हो गया। जीवन अमर वस्तु है। जीवन में जरा-दोष नहीं है. परिणाम दोष नहीं है, इसलिए जरा-दोष नहीं है. जीवन मात्रात्मक परिवर्तन से मुक्त है. जब तक मात्रात्मक परिवर्तन है तब तक जरा-दोष है. रासायनिक-भौतिक वस्तुओं में मात्रात्मक परिवर्तन है, जरा दोष है, इसलिए रचना-विरचना उनमे होता ही रहता है. जीवन में कोई रचना-विरचना होता ही नहीं है. जीवन में होता है - चेतना. चेतना में गुणात्मक विकास होता है. चेतना का स्वरूप बताया - जीव चेतना, मानव चेतना, देव चेतना, और दिव्य चेतना. मानव जीवचेतना पूर्वक अव्यवस्था में फंसता है, क्लेश को मोलता है, गलती-अपराध को करता है. मानव की स्थिति जीव चेतना की है - इसकी गवाही में सभी राजतंत्र यह स्वीकारे हैं कि मानव गलती-अपराध कर सकता है. मानव की स्थिति जीव चेतना की है - इसकी गवाही में सभी (ईश्वरवादी) धर्मगद्दी मानव को पापी, अज्ञानी और स्वार्थी कहा है. इसी ईश्वरवाद में कहा है - "मुंडे मुंडे मतिभिन्ना: कुंडे कुंडे नवं पयः" (वायु पुराण). (मतलब हर आदमी का अलग अलग मत होगा ही) इसी क्रम में कहा - "सुनो सबकी, करो मन की". इसी क्रम में कहा - "खाली हाथ आये, खाली हाथ जायेंगे". यह सब झूठ का पुलिंदा है, भ्रम है. भ्रम को आप झूठ मानोगे या नहीं? "खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे" - ये शरीर की बात कर रहे हैं. जीवन ज्ञान नहीं है, इसका प्रमाण दे दिया या नहीं? जीवन ज्ञान ईश्वरवादी परम्परा में नहीं था - इस बात का यह प्रमाण है. शिष्ट परिवारों में, वेद मूर्ति परिवारों में यह नारा चला है - "खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे". इससे पता चलता है कि उनको जीवन ज्ञान नहीं था. ईश्वरवाद रहस्यमय होने के कारण प्रमाण तक पहुँच नहीं पाया. अस्तित्व के कुछ भाग को विज्ञानियों ने सच माना, कुछ भाग को ईश्वरवादियों ने सच माना. दोनों अधूरे होने के कारण प्रमाणित नहीं हो पाए, संकटग्रस्त हुए. इसीलिये "विकल्प" की ज़रुरत आ गयी. - श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, अमरकंटक) 💐🌿🌷🌱🌻🍃🌺🌴🌹
Useful information , we are Goat Farming in State- Uttarakhand, District-Bageshwar, Village- Sunargaon(Kanda)willing Lab to land program for Advanced Goatery .
sir mene bhi goat farm shuru kiya hai mene desi nasl se shuru kiya hai kripya bataye ki kaise unka vajan badhaye aur unko khane me kya de aur nasl sudhar k liye kaun sa breed ka bakra chayan kre abhi me bakriyo ko khane k taur pr 6 ghante charata hu jungle me.
🙏विकल्प की आवश्यकता 😊 अस्तित्व सहअस्तित्व स्वरूपी है. सहअस्तित्व सत्ता में संपृक्त प्रकृति है. ऐसे प्रकृति चार अवस्था व चार पदों में है. इसमें विकास-क्रम, विकास, जाग्रति-क्रम, जाग्रति - ये शाश्वत प्रक्रियाएं हैं. सत्ता अपरिणामी है. जीवन विकास पूर्वक अपरिणामी हुआ है. मनुष्य आदिकाल से अमरत्व को खोजता रहा है. शास्त्र में लिखा है - "अमरा निर्जरा देवास्त्रिदशा विबुधा सुरा:" (अमरकोष, प्रथम काण्ड, १.१.१३) जो जरा (वृद्ध) नहीं होता है, उसको उन्होंने देवता कहा. मध्यस्थ दर्शन से अमरत्व का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट हो गया। जीवन अमर वस्तु है। जीवन में जरा-दोष नहीं है. परिणाम दोष नहीं है, इसलिए जरा-दोष नहीं है. जीवन मात्रात्मक परिवर्तन से मुक्त है. जब तक मात्रात्मक परिवर्तन है तब तक जरा-दोष है. रासायनिक-भौतिक वस्तुओं में मात्रात्मक परिवर्तन है, जरा दोष है, इसलिए रचना-विरचना उनमे होता ही रहता है. जीवन में कोई रचना-विरचना होता ही नहीं है. जीवन में होता है - चेतना. चेतना में गुणात्मक विकास होता है. चेतना का स्वरूप बताया - जीव चेतना, मानव चेतना, देव चेतना, और दिव्य चेतना. मानव जीवचेतना पूर्वक अव्यवस्था में फंसता है, क्लेश को मोलता है, गलती-अपराध को करता है. मानव की स्थिति जीव चेतना की है - इसकी गवाही में सभी राजतंत्र यह स्वीकारे हैं कि मानव गलती-अपराध कर सकता है. मानव की स्थिति जीव चेतना की है - इसकी गवाही में सभी (ईश्वरवादी) धर्मगद्दी मानव को पापी, अज्ञानी और स्वार्थी कहा है. इसी ईश्वरवाद में कहा है - "मुंडे मुंडे मतिभिन्ना: कुंडे कुंडे नवं पयः" (वायु पुराण). (मतलब हर आदमी का अलग अलग मत होगा ही) इसी क्रम में कहा - "सुनो सबकी, करो मन की". इसी क्रम में कहा - "खाली हाथ आये, खाली हाथ जायेंगे". यह सब झूठ का पुलिंदा है, भ्रम है. भ्रम को आप झूठ मानोगे या नहीं? "खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे" - ये शरीर की बात कर रहे हैं. जीवन ज्ञान नहीं है, इसका प्रमाण दे दिया या नहीं? जीवन ज्ञान ईश्वरवादी परम्परा में नहीं था - इस बात का यह प्रमाण है. शिष्ट परिवारों में, वेद मूर्ति परिवारों में यह नारा चला है - "खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे". इससे पता चलता है कि उनको जीवन ज्ञान नहीं था. ईश्वरवाद रहस्यमय होने के कारण प्रमाण तक पहुँच नहीं पाया. अस्तित्व के कुछ भाग को विज्ञानियों ने सच माना, कुछ भाग को ईश्वरवादियों ने सच माना. दोनों अधूरे होने के कारण प्रमाणित नहीं हो पाए, संकटग्रस्त हुए. इसीलिये "विकल्प" की ज़रुरत आ गयी. - श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, अमरकंटक) 💐🌿🌷🌱🌻🍃🌺🌴🌹
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बहुत बढ़िया सर मोटिवेट करने के लिए
Wonderful,amazing,interesting and very useful video for farmar
बहुत ही अच्छी जानकारी प्राप्त हैं
Acchi jankare k liy bahut bahut shukriya
बहुत प्यारी जानकारी देयें हैं सर बहुत प्यारी विडियो है भाई आप की
बहुत ही बढ़िया जानकारी है डाक्टर साहब आप का बहुत सुकरिया
Thanks for nice information about goat forming
Bahut. Achhi jankAri
बहुत ही अच्छी जानकारी दी
Jai shri Ram salut aapko sir bhagwan aapko hamesha sukhi rakhe bahut bdiya jankari di aap ne hme
Jay
Bahut sundar bat kahi umesh jo
बहुत लाभकारी जानकारी, खासकर मेरे जैसे जिज्ञासु के लिए। कृपया बताएं कि को लोग उत्तराखंड में बकरियां पाल रहे हैं वो कोन सी ब्रीड है? क्या बकरियां जंगल में चुगाने के लिए ले जाना सही अभ्यास है?
Great news
I m zaki,everyday show your programec see watchfully.your progrme fantastic & encrse my knowldge....thanks dd kisan
Thank you Dr. Vijay for your message about goat farm
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Good information by sir and anchor, thanks sir
Thank you sir 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹❤️🙏
Namaskar sir ji Sab se ziyada successful koun si zaath ki bakri success hain jis se ziyada kamai ho
Bhaut Bhaut dhanybadh ji
Thanks dr sir
Jai jawan jai kisan
very good business
Mashaallaah
*Good information about Kheti badi*
Right
Thanks sir
Good
BARBARI COMMUNITY is no. 1
🙏विकल्प की आवश्यकता 😊
अस्तित्व सहअस्तित्व स्वरूपी है.
सहअस्तित्व सत्ता में संपृक्त प्रकृति है.
ऐसे प्रकृति चार अवस्था व चार पदों में है.
इसमें विकास-क्रम, विकास, जाग्रति-क्रम, जाग्रति -
ये शाश्वत प्रक्रियाएं हैं.
सत्ता अपरिणामी है.
जीवन विकास पूर्वक अपरिणामी हुआ है.
मनुष्य आदिकाल से अमरत्व को खोजता रहा है.
शास्त्र में लिखा है - "अमरा निर्जरा देवास्त्रिदशा विबुधा सुरा:"
(अमरकोष, प्रथम काण्ड, १.१.१३)
जो जरा (वृद्ध) नहीं होता है,
उसको उन्होंने देवता कहा.
मध्यस्थ दर्शन से अमरत्व का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट हो गया।
जीवन अमर वस्तु है।
जीवन में जरा-दोष नहीं है.
परिणाम दोष नहीं है,
इसलिए जरा-दोष नहीं है.
जीवन मात्रात्मक परिवर्तन से मुक्त है.
जब तक मात्रात्मक परिवर्तन है
तब तक जरा-दोष है.
रासायनिक-भौतिक वस्तुओं में मात्रात्मक परिवर्तन है, जरा दोष है,
इसलिए रचना-विरचना उनमे होता ही रहता है.
जीवन में कोई रचना-विरचना होता ही नहीं है.
जीवन में होता है - चेतना.
चेतना में गुणात्मक विकास होता है.
चेतना का स्वरूप बताया -
जीव चेतना, मानव चेतना, देव चेतना, और दिव्य चेतना.
मानव जीवचेतना पूर्वक अव्यवस्था में फंसता है,
क्लेश को मोलता है,
गलती-अपराध को करता है.
मानव की स्थिति जीव चेतना की है -
इसकी गवाही में सभी राजतंत्र यह स्वीकारे हैं
कि मानव गलती-अपराध कर सकता है.
मानव की स्थिति जीव चेतना की है -
इसकी गवाही में सभी (ईश्वरवादी) धर्मगद्दी मानव को
पापी, अज्ञानी और स्वार्थी कहा है.
इसी ईश्वरवाद में कहा है -
"मुंडे मुंडे मतिभिन्ना: कुंडे कुंडे नवं पयः" (वायु पुराण).
(मतलब हर आदमी का अलग अलग मत होगा ही) इसी क्रम में कहा -
"सुनो सबकी, करो मन की".
इसी क्रम में कहा - "खाली हाथ आये, खाली हाथ जायेंगे".
यह सब झूठ का पुलिंदा है, भ्रम है.
भ्रम को आप झूठ मानोगे या नहीं?
"खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे" -
ये शरीर की बात कर रहे हैं.
जीवन ज्ञान नहीं है,
इसका प्रमाण दे दिया या नहीं?
जीवन ज्ञान ईश्वरवादी परम्परा में नहीं था -
इस बात का यह प्रमाण है.
शिष्ट परिवारों में, वेद मूर्ति परिवारों में यह नारा चला है -
"खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे".
इससे पता चलता है कि उनको जीवन ज्ञान नहीं था.
ईश्वरवाद रहस्यमय होने के कारण प्रमाण तक पहुँच नहीं पाया.
अस्तित्व के कुछ भाग को विज्ञानियों ने सच माना,
कुछ भाग को ईश्वरवादियों ने सच माना.
दोनों अधूरे होने के कारण प्रमाणित नहीं हो पाए, संकटग्रस्त हुए.
इसीलिये "विकल्प" की ज़रुरत आ गयी.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, अमरकंटक)
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Tanks Dr manoj for you informesan God Blees you 💐✌️😎
👍
Good initiative
बहुत खूब
Nice
very nice
hello sir i am Abdul Haque Mansoori 2020 me Mathura CIRG me training kab start hogi bataein.
Bhai muje Leni h training
Very good farm nice
Sir mine bakri plan karna chahtha hu tu kon sa berid Lena chaye plz help
Good 🌷
बकरी पालन करने के तरीके और दवा देने के तरीके
sir mai chhattisgarh se hun jashpur jila se kis nasal ki bakri palna chahiye or yaha koi prashikshan kendra hai kya
जय किसान
Trening kaise prapt Kare kya Karena panaga
सर मैं ललितपुर उत्तर प्रदेश से बिलोंग करता हूं सर जिला ललितपुर के आसपास कोई बकरी पालन प्रशिक्षण केंद्र है क्या
Dist satna m.p me kon kon se nasal ke bakere leya jaya
बहुत लाभकारी है ।
shahnawaj alam
Jaise humne barbari Leni ho Kitna rate hai ,,,
Sir mujhe bakree paln ki tirenig lena he ye mathura me kis jageh pr he
Very good
Anusandhan save female Bakrid for Bakrid Samay kahan se prapt Honge
ਭਾਈ ਸਾਹਿਬ, ਮੈਂ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕੀਤੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦੀ ਕਦਰ ਕਰਦਾ ਹਾਂ, ਇਹ ਬੱਕਰੀ ਪਾਲਣ ਦੇ ਸਮੁੱਚੇ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨੂੰ ਕਵਰ ਕਰਦਾ ਹੈ।
Kindly tell me shed area for 20 goat and cost of shed
Main up se hu kushinagar se hame desi nasal ko palna hai jaankaari de
God
👌👌👌
🙏विकल्प की आवश्यकता 😊
अस्तित्व सहअस्तित्व स्वरूपी है.
सहअस्तित्व सत्ता में संपृक्त प्रकृति है.
ऐसे प्रकृति चार अवस्था व चार पदों में है.
इसमें विकास-क्रम, विकास, जाग्रति-क्रम, जाग्रति -
ये शाश्वत प्रक्रियाएं हैं.
सत्ता अपरिणामी है.
जीवन विकास पूर्वक अपरिणामी हुआ है.
मनुष्य आदिकाल से अमरत्व को खोजता रहा है.
शास्त्र में लिखा है - "अमरा निर्जरा देवास्त्रिदशा विबुधा सुरा:"
(अमरकोष, प्रथम काण्ड, १.१.१३)
जो जरा (वृद्ध) नहीं होता है,
उसको उन्होंने देवता कहा.
मध्यस्थ दर्शन से अमरत्व का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट हो गया।
जीवन अमर वस्तु है।
जीवन में जरा-दोष नहीं है.
परिणाम दोष नहीं है,
इसलिए जरा-दोष नहीं है.
जीवन मात्रात्मक परिवर्तन से मुक्त है.
जब तक मात्रात्मक परिवर्तन है
तब तक जरा-दोष है.
रासायनिक-भौतिक वस्तुओं में मात्रात्मक परिवर्तन है, जरा दोष है,
इसलिए रचना-विरचना उनमे होता ही रहता है.
जीवन में कोई रचना-विरचना होता ही नहीं है.
जीवन में होता है - चेतना.
चेतना में गुणात्मक विकास होता है.
चेतना का स्वरूप बताया -
जीव चेतना, मानव चेतना, देव चेतना, और दिव्य चेतना.
मानव जीवचेतना पूर्वक अव्यवस्था में फंसता है,
क्लेश को मोलता है,
गलती-अपराध को करता है.
मानव की स्थिति जीव चेतना की है -
इसकी गवाही में सभी राजतंत्र यह स्वीकारे हैं
कि मानव गलती-अपराध कर सकता है.
मानव की स्थिति जीव चेतना की है -
इसकी गवाही में सभी (ईश्वरवादी) धर्मगद्दी मानव को
पापी, अज्ञानी और स्वार्थी कहा है.
इसी ईश्वरवाद में कहा है -
"मुंडे मुंडे मतिभिन्ना: कुंडे कुंडे नवं पयः" (वायु पुराण).
(मतलब हर आदमी का अलग अलग मत होगा ही) इसी क्रम में कहा -
"सुनो सबकी, करो मन की".
इसी क्रम में कहा - "खाली हाथ आये, खाली हाथ जायेंगे".
यह सब झूठ का पुलिंदा है, भ्रम है.
भ्रम को आप झूठ मानोगे या नहीं?
"खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे" -
ये शरीर की बात कर रहे हैं.
जीवन ज्ञान नहीं है,
इसका प्रमाण दे दिया या नहीं?
जीवन ज्ञान ईश्वरवादी परम्परा में नहीं था -
इस बात का यह प्रमाण है.
शिष्ट परिवारों में, वेद मूर्ति परिवारों में यह नारा चला है -
"खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे".
इससे पता चलता है कि उनको जीवन ज्ञान नहीं था.
ईश्वरवाद रहस्यमय होने के कारण प्रमाण तक पहुँच नहीं पाया.
अस्तित्व के कुछ भाग को विज्ञानियों ने सच माना,
कुछ भाग को ईश्वरवादियों ने सच माना.
दोनों अधूरे होने के कारण प्रमाणित नहीं हो पाए, संकटग्रस्त हुए.
इसीलिये "विकल्प" की ज़रुरत आ गयी.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, अमरकंटक)
💐🌿🌷🌱🌻🍃🌺🌴🌹
Good knowledge
Hi very good ji
Ap ten Bach chey Wali babari bakri ketny ki deytey hain sar
Thanks,
Bahut hi achchhi janakari dene ke liye.
Mujhe hindi medium me bakari palan se sambandhit kitabe chahiye thi. Isako main kaise prapt kar sakata hoon.
सबसे पहले सर मनोज कुमार को मेरा नमस्कार अनिल उत्तर प्रदेश में इटावा जिला से क्योंकि मैं बहुत ही जल्द आपके पास आना चाहता हूं क्योंकि मैं बकरी फार्म खोलने की पूरी तैयारी है फार्म मैंने बना लिया आपकी वीडियो देख जाके
Hii
Femel barbari 1 saal ki ky kimat hai itava me
Thanks for info
🙏विकल्प की आवश्यकता 😊
अस्तित्व सहअस्तित्व स्वरूपी है.
सहअस्तित्व सत्ता में संपृक्त प्रकृति है.
ऐसे प्रकृति चार अवस्था व चार पदों में है.
इसमें विकास-क्रम, विकास, जाग्रति-क्रम, जाग्रति -
ये शाश्वत प्रक्रियाएं हैं.
सत्ता अपरिणामी है.
जीवन विकास पूर्वक अपरिणामी हुआ है.
मनुष्य आदिकाल से अमरत्व को खोजता रहा है.
शास्त्र में लिखा है - "अमरा निर्जरा देवास्त्रिदशा विबुधा सुरा:"
(अमरकोष, प्रथम काण्ड, १.१.१३)
जो जरा (वृद्ध) नहीं होता है,
उसको उन्होंने देवता कहा.
मध्यस्थ दर्शन से अमरत्व का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट हो गया।
जीवन अमर वस्तु है।
जीवन में जरा-दोष नहीं है.
परिणाम दोष नहीं है,
इसलिए जरा-दोष नहीं है.
जीवन मात्रात्मक परिवर्तन से मुक्त है.
जब तक मात्रात्मक परिवर्तन है
तब तक जरा-दोष है.
रासायनिक-भौतिक वस्तुओं में मात्रात्मक परिवर्तन है, जरा दोष है,
इसलिए रचना-विरचना उनमे होता ही रहता है.
जीवन में कोई रचना-विरचना होता ही नहीं है.
जीवन में होता है - चेतना.
चेतना में गुणात्मक विकास होता है.
चेतना का स्वरूप बताया -
जीव चेतना, मानव चेतना, देव चेतना, और दिव्य चेतना.
मानव जीवचेतना पूर्वक अव्यवस्था में फंसता है,
क्लेश को मोलता है,
गलती-अपराध को करता है.
मानव की स्थिति जीव चेतना की है -
इसकी गवाही में सभी राजतंत्र यह स्वीकारे हैं
कि मानव गलती-अपराध कर सकता है.
मानव की स्थिति जीव चेतना की है -
इसकी गवाही में सभी (ईश्वरवादी) धर्मगद्दी मानव को
पापी, अज्ञानी और स्वार्थी कहा है.
इसी ईश्वरवाद में कहा है -
"मुंडे मुंडे मतिभिन्ना: कुंडे कुंडे नवं पयः" (वायु पुराण).
(मतलब हर आदमी का अलग अलग मत होगा ही) इसी क्रम में कहा -
"सुनो सबकी, करो मन की".
इसी क्रम में कहा - "खाली हाथ आये, खाली हाथ जायेंगे".
यह सब झूठ का पुलिंदा है, भ्रम है.
भ्रम को आप झूठ मानोगे या नहीं?
"खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे" -
ये शरीर की बात कर रहे हैं.
जीवन ज्ञान नहीं है,
इसका प्रमाण दे दिया या नहीं?
जीवन ज्ञान ईश्वरवादी परम्परा में नहीं था -
इस बात का यह प्रमाण है.
शिष्ट परिवारों में, वेद मूर्ति परिवारों में यह नारा चला है -
"खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे".
इससे पता चलता है कि उनको जीवन ज्ञान नहीं था.
ईश्वरवाद रहस्यमय होने के कारण प्रमाण तक पहुँच नहीं पाया.
अस्तित्व के कुछ भाग को विज्ञानियों ने सच माना,
कुछ भाग को ईश्वरवादियों ने सच माना.
दोनों अधूरे होने के कारण प्रमाणित नहीं हो पाए, संकटग्रस्त हुए.
इसीलिये "विकल्प" की ज़रुरत आ गयी.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, अमरकंटक)
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Khan par hai yai sanstha
🌹👍🌹👍🌹👍🌹👍
डाक्टर साहब मैं यूपी अम्बेडकर नगर अकबर पुर से हूं यहां बकरी का परसिछड कहां मिलेगा बकरी कहा मिलेगा बरबरी बकरी
Nice video Sir
Useful information , we are Goat Farming in State- Uttarakhand, District-Bageshwar, Village- Sunargaon(Kanda)willing Lab to land program for Advanced Goatery .
Sir mei bhi Uttarakhand pouri grahwal se hu bakri farm karna chahta hu please help me give me your contact number
Very nice farm
5 बकरी पालन के लिये कितनी जगह चाहिए?
Thanks dr
sir mene bhi goat farm shuru kiya hai mene desi nasl se shuru kiya hai kripya bataye ki kaise unka vajan badhaye aur unko khane me kya de aur nasl sudhar k liye kaun sa breed ka bakra chayan kre abhi me bakriyo ko khane k taur pr 6 ghante charata hu jungle me.
me ye batana bhul gaya me jabalpur m.p. se hu
Bhai apna number sand kare
Bihar mai kon sa brid ka goat ka sedan hai aap batayae...plz
🙏विकल्प की आवश्यकता 😊
अस्तित्व सहअस्तित्व स्वरूपी है.
सहअस्तित्व सत्ता में संपृक्त प्रकृति है.
ऐसे प्रकृति चार अवस्था व चार पदों में है.
इसमें विकास-क्रम, विकास, जाग्रति-क्रम, जाग्रति -
ये शाश्वत प्रक्रियाएं हैं.
सत्ता अपरिणामी है.
जीवन विकास पूर्वक अपरिणामी हुआ है.
मनुष्य आदिकाल से अमरत्व को खोजता रहा है.
शास्त्र में लिखा है - "अमरा निर्जरा देवास्त्रिदशा विबुधा सुरा:"
(अमरकोष, प्रथम काण्ड, १.१.१३)
जो जरा (वृद्ध) नहीं होता है,
उसको उन्होंने देवता कहा.
मध्यस्थ दर्शन से अमरत्व का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट हो गया।
जीवन अमर वस्तु है।
जीवन में जरा-दोष नहीं है.
परिणाम दोष नहीं है,
इसलिए जरा-दोष नहीं है.
जीवन मात्रात्मक परिवर्तन से मुक्त है.
जब तक मात्रात्मक परिवर्तन है
तब तक जरा-दोष है.
रासायनिक-भौतिक वस्तुओं में मात्रात्मक परिवर्तन है, जरा दोष है,
इसलिए रचना-विरचना उनमे होता ही रहता है.
जीवन में कोई रचना-विरचना होता ही नहीं है.
जीवन में होता है - चेतना.
चेतना में गुणात्मक विकास होता है.
चेतना का स्वरूप बताया -
जीव चेतना, मानव चेतना, देव चेतना, और दिव्य चेतना.
मानव जीवचेतना पूर्वक अव्यवस्था में फंसता है,
क्लेश को मोलता है,
गलती-अपराध को करता है.
मानव की स्थिति जीव चेतना की है -
इसकी गवाही में सभी राजतंत्र यह स्वीकारे हैं
कि मानव गलती-अपराध कर सकता है.
मानव की स्थिति जीव चेतना की है -
इसकी गवाही में सभी (ईश्वरवादी) धर्मगद्दी मानव को
पापी, अज्ञानी और स्वार्थी कहा है.
इसी ईश्वरवाद में कहा है -
"मुंडे मुंडे मतिभिन्ना: कुंडे कुंडे नवं पयः" (वायु पुराण).
(मतलब हर आदमी का अलग अलग मत होगा ही) इसी क्रम में कहा -
"सुनो सबकी, करो मन की".
इसी क्रम में कहा - "खाली हाथ आये, खाली हाथ जायेंगे".
यह सब झूठ का पुलिंदा है, भ्रम है.
भ्रम को आप झूठ मानोगे या नहीं?
"खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे" -
ये शरीर की बात कर रहे हैं.
जीवन ज्ञान नहीं है,
इसका प्रमाण दे दिया या नहीं?
जीवन ज्ञान ईश्वरवादी परम्परा में नहीं था -
इस बात का यह प्रमाण है.
शिष्ट परिवारों में, वेद मूर्ति परिवारों में यह नारा चला है -
"खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे".
इससे पता चलता है कि उनको जीवन ज्ञान नहीं था.
ईश्वरवाद रहस्यमय होने के कारण प्रमाण तक पहुँच नहीं पाया.
अस्तित्व के कुछ भाग को विज्ञानियों ने सच माना,
कुछ भाग को ईश्वरवादियों ने सच माना.
दोनों अधूरे होने के कारण प्रमाणित नहीं हो पाए, संकटग्रस्त हुए.
इसीलिये "विकल्प" की ज़रुरत आ गयी.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, अमरकंटक)
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Ye centre kaha kaise jana ho ga yaha...
ZaQ
Good night
Aap svi KO pranam Got Farms chlane me halp jrur kre This si massage to Dr Manoj kumar
Sir uttrakhand ke liye kon si bakri pali ja sakti hai
Please share detail address and coming training program date
Sir ji bakri palan kaise kare aur uske loan bank Se Kaise prapt Kare Rajasthan
Sar hum bhi bakri paln suru karna chahte hai magar tajurba hone ke karan nahi kar pa rahe hai to kya aap mujhe trenig de sakte h pliz btaye jarur
Sar bakri Gavin hai ya nahi kaise pata karen
Dr.Sahb Hamen Koyi Kitabka Nam Batayiye Ki Barbri goat ki puri gankari milske Bimari ayur khanpanki Me integar karoga Aapka Thank you
bakri palan ke liye kya kya labh de rhi h sarkar kisan ko iske bare me jankari dene ki kripa kre
Uttrakhand ke pahard Mai kon si bkari palni chaiy
Barbari
ham bhi bakri palan Karna chahte he
Sir muzaffarabadi sheep kya do bachai daiti hai 2or 3 birth mai pls reply sir
Nice video 😀😀😀😀😀😀
🙏विकल्प की आवश्यकता 😊
अस्तित्व सहअस्तित्व स्वरूपी है.
सहअस्तित्व सत्ता में संपृक्त प्रकृति है.
ऐसे प्रकृति चार अवस्था व चार पदों में है.
इसमें विकास-क्रम, विकास, जाग्रति-क्रम, जाग्रति -
ये शाश्वत प्रक्रियाएं हैं.
सत्ता अपरिणामी है.
जीवन विकास पूर्वक अपरिणामी हुआ है.
मनुष्य आदिकाल से अमरत्व को खोजता रहा है.
शास्त्र में लिखा है - "अमरा निर्जरा देवास्त्रिदशा विबुधा सुरा:"
(अमरकोष, प्रथम काण्ड, १.१.१३)
जो जरा (वृद्ध) नहीं होता है,
उसको उन्होंने देवता कहा.
मध्यस्थ दर्शन से अमरत्व का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट हो गया।
जीवन अमर वस्तु है।
जीवन में जरा-दोष नहीं है.
परिणाम दोष नहीं है,
इसलिए जरा-दोष नहीं है.
जीवन मात्रात्मक परिवर्तन से मुक्त है.
जब तक मात्रात्मक परिवर्तन है
तब तक जरा-दोष है.
रासायनिक-भौतिक वस्तुओं में मात्रात्मक परिवर्तन है, जरा दोष है,
इसलिए रचना-विरचना उनमे होता ही रहता है.
जीवन में कोई रचना-विरचना होता ही नहीं है.
जीवन में होता है - चेतना.
चेतना में गुणात्मक विकास होता है.
चेतना का स्वरूप बताया -
जीव चेतना, मानव चेतना, देव चेतना, और दिव्य चेतना.
मानव जीवचेतना पूर्वक अव्यवस्था में फंसता है,
क्लेश को मोलता है,
गलती-अपराध को करता है.
मानव की स्थिति जीव चेतना की है -
इसकी गवाही में सभी राजतंत्र यह स्वीकारे हैं
कि मानव गलती-अपराध कर सकता है.
मानव की स्थिति जीव चेतना की है -
इसकी गवाही में सभी (ईश्वरवादी) धर्मगद्दी मानव को
पापी, अज्ञानी और स्वार्थी कहा है.
इसी ईश्वरवाद में कहा है -
"मुंडे मुंडे मतिभिन्ना: कुंडे कुंडे नवं पयः" (वायु पुराण).
(मतलब हर आदमी का अलग अलग मत होगा ही) इसी क्रम में कहा -
"सुनो सबकी, करो मन की".
इसी क्रम में कहा - "खाली हाथ आये, खाली हाथ जायेंगे".
यह सब झूठ का पुलिंदा है, भ्रम है.
भ्रम को आप झूठ मानोगे या नहीं?
"खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे" -
ये शरीर की बात कर रहे हैं.
जीवन ज्ञान नहीं है,
इसका प्रमाण दे दिया या नहीं?
जीवन ज्ञान ईश्वरवादी परम्परा में नहीं था -
इस बात का यह प्रमाण है.
शिष्ट परिवारों में, वेद मूर्ति परिवारों में यह नारा चला है -
"खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे".
इससे पता चलता है कि उनको जीवन ज्ञान नहीं था.
ईश्वरवाद रहस्यमय होने के कारण प्रमाण तक पहुँच नहीं पाया.
अस्तित्व के कुछ भाग को विज्ञानियों ने सच माना,
कुछ भाग को ईश्वरवादियों ने सच माना.
दोनों अधूरे होने के कारण प्रमाणित नहीं हो पाए, संकटग्रस्त हुए.
इसीलिये "विकल्प" की ज़रुरत आ गयी.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, अमरकंटक)
💐🌿🌷🌱🌻🍃🌺🌴🌹
Sir goat farming ka Liya koi book ya notes Mel jaygey Kay ke kasa management kare or kis time par koni vaccine kare hay or farm kasa banay
🙏विकल्प की आवश्यकता 😊
अस्तित्व सहअस्तित्व स्वरूपी है.
सहअस्तित्व सत्ता में संपृक्त प्रकृति है.
ऐसे प्रकृति चार अवस्था व चार पदों में है.
इसमें विकास-क्रम, विकास, जाग्रति-क्रम, जाग्रति -
ये शाश्वत प्रक्रियाएं हैं.
सत्ता अपरिणामी है.
जीवन विकास पूर्वक अपरिणामी हुआ है.
मनुष्य आदिकाल से अमरत्व को खोजता रहा है.
शास्त्र में लिखा है - "अमरा निर्जरा देवास्त्रिदशा विबुधा सुरा:"
(अमरकोष, प्रथम काण्ड, १.१.१३)
जो जरा (वृद्ध) नहीं होता है,
उसको उन्होंने देवता कहा.
मध्यस्थ दर्शन से अमरत्व का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट हो गया।
जीवन अमर वस्तु है।
जीवन में जरा-दोष नहीं है.
परिणाम दोष नहीं है,
इसलिए जरा-दोष नहीं है.
जीवन मात्रात्मक परिवर्तन से मुक्त है.
जब तक मात्रात्मक परिवर्तन है
तब तक जरा-दोष है.
रासायनिक-भौतिक वस्तुओं में मात्रात्मक परिवर्तन है, जरा दोष है,
इसलिए रचना-विरचना उनमे होता ही रहता है.
जीवन में कोई रचना-विरचना होता ही नहीं है.
जीवन में होता है - चेतना.
चेतना में गुणात्मक विकास होता है.
चेतना का स्वरूप बताया -
जीव चेतना, मानव चेतना, देव चेतना, और दिव्य चेतना.
मानव जीवचेतना पूर्वक अव्यवस्था में फंसता है,
क्लेश को मोलता है,
गलती-अपराध को करता है.
मानव की स्थिति जीव चेतना की है -
इसकी गवाही में सभी राजतंत्र यह स्वीकारे हैं
कि मानव गलती-अपराध कर सकता है.
मानव की स्थिति जीव चेतना की है -
इसकी गवाही में सभी (ईश्वरवादी) धर्मगद्दी मानव को
पापी, अज्ञानी और स्वार्थी कहा है.
इसी ईश्वरवाद में कहा है -
"मुंडे मुंडे मतिभिन्ना: कुंडे कुंडे नवं पयः" (वायु पुराण).
(मतलब हर आदमी का अलग अलग मत होगा ही) इसी क्रम में कहा -
"सुनो सबकी, करो मन की".
इसी क्रम में कहा - "खाली हाथ आये, खाली हाथ जायेंगे".
यह सब झूठ का पुलिंदा है, भ्रम है.
भ्रम को आप झूठ मानोगे या नहीं?
"खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे" -
ये शरीर की बात कर रहे हैं.
जीवन ज्ञान नहीं है,
इसका प्रमाण दे दिया या नहीं?
जीवन ज्ञान ईश्वरवादी परम्परा में नहीं था -
इस बात का यह प्रमाण है.
शिष्ट परिवारों में, वेद मूर्ति परिवारों में यह नारा चला है -
"खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे".
इससे पता चलता है कि उनको जीवन ज्ञान नहीं था.
ईश्वरवाद रहस्यमय होने के कारण प्रमाण तक पहुँच नहीं पाया.
अस्तित्व के कुछ भाग को विज्ञानियों ने सच माना,
कुछ भाग को ईश्वरवादियों ने सच माना.
दोनों अधूरे होने के कारण प्रमाणित नहीं हो पाए, संकटग्रस्त हुए.
इसीलिये "विकल्प" की ज़रुरत आ गयी.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, अमरकंटक)
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Monirul shekh
babari bakri koo, afrikan boar goat say cross kra saktay h kya ???
2020 me tarenig kab suru ho raha hy
Thanks
Sat haridwar me is tarah bakri kese milegi
Nice video
FPO के विषय में भी कुछ नया जानकारी दी जाए
Mera jaga northeast (sikkim)me h mai barbari goats palna chata hun sikkim ka climate shoot karsakta h?
🙏विकल्प की आवश्यकता 😊
अस्तित्व सहअस्तित्व स्वरूपी है.
सहअस्तित्व सत्ता में संपृक्त प्रकृति है.
ऐसे प्रकृति चार अवस्था व चार पदों में है.
इसमें विकास-क्रम, विकास, जाग्रति-क्रम, जाग्रति -
ये शाश्वत प्रक्रियाएं हैं.
सत्ता अपरिणामी है.
जीवन विकास पूर्वक अपरिणामी हुआ है.
मनुष्य आदिकाल से अमरत्व को खोजता रहा है.
शास्त्र में लिखा है - "अमरा निर्जरा देवास्त्रिदशा विबुधा सुरा:"
(अमरकोष, प्रथम काण्ड, १.१.१३)
जो जरा (वृद्ध) नहीं होता है,
उसको उन्होंने देवता कहा.
मध्यस्थ दर्शन से अमरत्व का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट हो गया।
जीवन अमर वस्तु है।
जीवन में जरा-दोष नहीं है.
परिणाम दोष नहीं है,
इसलिए जरा-दोष नहीं है.
जीवन मात्रात्मक परिवर्तन से मुक्त है.
जब तक मात्रात्मक परिवर्तन है
तब तक जरा-दोष है.
रासायनिक-भौतिक वस्तुओं में मात्रात्मक परिवर्तन है, जरा दोष है,
इसलिए रचना-विरचना उनमे होता ही रहता है.
जीवन में कोई रचना-विरचना होता ही नहीं है.
जीवन में होता है - चेतना.
चेतना में गुणात्मक विकास होता है.
चेतना का स्वरूप बताया -
जीव चेतना, मानव चेतना, देव चेतना, और दिव्य चेतना.
मानव जीवचेतना पूर्वक अव्यवस्था में फंसता है,
क्लेश को मोलता है,
गलती-अपराध को करता है.
मानव की स्थिति जीव चेतना की है -
इसकी गवाही में सभी राजतंत्र यह स्वीकारे हैं
कि मानव गलती-अपराध कर सकता है.
मानव की स्थिति जीव चेतना की है -
इसकी गवाही में सभी (ईश्वरवादी) धर्मगद्दी मानव को
पापी, अज्ञानी और स्वार्थी कहा है.
इसी ईश्वरवाद में कहा है -
"मुंडे मुंडे मतिभिन्ना: कुंडे कुंडे नवं पयः" (वायु पुराण).
(मतलब हर आदमी का अलग अलग मत होगा ही) इसी क्रम में कहा -
"सुनो सबकी, करो मन की".
इसी क्रम में कहा - "खाली हाथ आये, खाली हाथ जायेंगे".
यह सब झूठ का पुलिंदा है, भ्रम है.
भ्रम को आप झूठ मानोगे या नहीं?
"खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे" -
ये शरीर की बात कर रहे हैं.
जीवन ज्ञान नहीं है,
इसका प्रमाण दे दिया या नहीं?
जीवन ज्ञान ईश्वरवादी परम्परा में नहीं था -
इस बात का यह प्रमाण है.
शिष्ट परिवारों में, वेद मूर्ति परिवारों में यह नारा चला है -
"खाली हाथ आये और खाली हाथ जायेंगे".
इससे पता चलता है कि उनको जीवन ज्ञान नहीं था.
ईश्वरवाद रहस्यमय होने के कारण प्रमाण तक पहुँच नहीं पाया.
अस्तित्व के कुछ भाग को विज्ञानियों ने सच माना,
कुछ भाग को ईश्वरवादियों ने सच माना.
दोनों अधूरे होने के कारण प्रमाणित नहीं हो पाए, संकटग्रस्त हुए.
इसीलिये "विकल्प" की ज़रुरत आ गयी.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००५, अमरकंटक)
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nice VIDEO
Pppppp
sir bihar ka madhubani me kon sa nasl develope hai
सर आप का क्या नंबर मिल सकता है
Bihar ke liye kon si nasl thik hai sir
Barbari , sirohi, black bangal
राजस्थान के गंगानगर जिले का हु मुझे बरबरी पालन की बकरी चाहिए काहा से ले
सर बकरी को मच्छड़ काटे तो कैसे बचाये
Pasupalan ma vaccine ka important bataya
sir may odisa se hun may black Bengal goat (female) se Boer goat ( male) cross karana sahe rahega ki new ?????
No