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Live : सबसे शक्तिशाली श्री हनुमान चालीसा | जय हनुमान ज्ञान गुण सागर | Hanuman Chalisa |

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  • เผยแพร่เมื่อ 13 ก.ค. 2024
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    जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ||
    जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ||
    जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ||
    जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ||
    ॥दोहा॥
    श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
    बरनउँ रघुवर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
    बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
    बल बुधि विद्या देहु मोहिं हरहु कलेस विकार ॥
    ॥चौपाई॥
    जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
    जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
    राम दूत अतुलित बल धामा ।
    अंजनी-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
    महावीर विक्रम बजरंगी ।
    कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥
    कंचन वरन विराज सुवेसा ।
    कानन कुण्डल कुंचित केसा ॥४॥
    हाथ वज्र औ ध्वजा विराजे ।
    काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥
    शंकर सुवन केसरीनन्दन ।
    तेज प्रताप महा जग बंधन ॥६॥
    विद्यावान गुनी अति चातुर ।
    राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
    प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
    राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
    सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
    विकत रूप धरि लंक जरावा ॥९॥
    भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
    रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥
    लाय संजीवन लखन जियाये ।
    श्रीरघुवीर हरषि उर लाये ॥११॥
    रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
    तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥
    सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।
    अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥
    सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
    नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
    यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
    कवि कोविद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
    तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
    राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥
    तुम्हारो मन्त्र विभीषण माना ।
    लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
    जुग सहस्र जोजन पर भानु ।
    लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
    प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
    जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
    दुर्गम काज जगत के जेते ।
    सुगम अनुग्रह तुम्हारे तेते ॥२०॥
    राम दुआरे तुम रखवारे ।
    होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
    सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
    तुम रक्षक काहू को डर ना ॥२२॥
    आपन तेज सम्हारो आपै ।
    तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥
    भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
    महावीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
    नासै रोग हरै सब पीड़ा ।
    जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥
    संकट तें हनुमान छुड़ावै ।
    मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥२६॥
    सब पर राम तपस्वी राजा ।
    तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
    और मनोरथ जो कोई लावै ।
    सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
    चारों जुग परताप तुम्हारा ।
    है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
    साधु सन्त के तुम रखवारे ।
    असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥
    अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
    अस वर दीन जानकी माता ॥३१॥
    राम रसायन तुम्हारे पासा ।
    सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
    तुम्हारे भजन राम को पावै ।
    जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
    अन्त काल रघुवर पुर जाई ।
    जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
    और देवता चित्त न धरई ।
    हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥३५॥
    संकट कटै मिटै सब पीड़ा ।
    जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
    जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
    कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥
    जो शत बार पाठ कर कोई ।
    छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥
    जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
    होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
    तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
    कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥
    ॥दोहा॥
    पवनतनय संकट हरन
    मंगल मूरति रूप ।
    राम लखन सीता सहित
    हृदय बसहु सुर भूप ॥

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