Jhanda Mela 2023 : देहरादून झंडे जी मेला का इतिहास

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  • เผยแพร่เมื่อ 17 ก.ย. 2024
  • Jhanda Mela 2023 : देहरादून झंडे जी मेला का इतिहास
    देहरादून झंडे जी मेला का इतिहास History of Dehradun Jhande Ji Mela
    देहरादून में झंडे मेले की बहुत धूम होती है और इस मेले का इतिहास सालों पुराना है। देहरादून में हर साल झंडा मेला होली के 5 दिन बाद आयोजित किया जाता है। जो कि सिक्ख गुरू रामराय जी के जन्म दिवस से शुरू होकर 15 दिनों तक चलता है। इसी दिन 1676 में गुरूराम राय जी देहरादून आए थे।
    प्रेम, सद्भावना और आस्था का प्रतीक झंडा मेला होली के पांचवें दिन देहरादून स्थित श्री दरबार साहिब में झंडेजी के आरोहण के साथ शुरू होता है। इस दौरान देश-विदेश से संगतें मत्था टेकने पहुंचती हैं। इस मेले में पंजाब, हरियाणा और आसपास के कई इलाकों से संगतें आती हैं। जो कि गुरूराम राय जी के भक्त होते हैं। श्री गुरु राम राय ने वर्ष 1676 में दून में डेरा डाला था। उनका जन्म 1646 में पंजाब के होशियारपुर जिले के कीरतुपर में होली के पांचवें दिन हुआ था। इसलिए दरबार साहिब में हर साल होली के पांचवें दिन उनके जन्मदिवस पर झंडा मेला लगता है। गुरु राम राय ने ही लोक कल्याण के लिए विशाल ध्वज को यहां स्थापित किया था।
    देहरादून मं इस साल कृष्ण पंचमी यानी 22 मार्च को झंडे जी का आरोहण किया जाएगा। इस बार ध्वजदंड भी बदला जाएगा। आपको बता दें कि झंडा मेले में हर तीन साल में झंडेजी के ध्वजदंड को बदलने की परंपरा रही है। इससे पहले साल 2020 में ध्वजदंड बदला गया था। इस साल नया ध्वज दंड लगभग 85 फीट ऊंचा रहेगा। श्री दरबार साहिब में लाकर पूजा-अर्चना के बाद कृष्ण पंचमी यानी 22 मार्च को झंडे जी का आरोहण किया जाएगा। मेले में झंडेजी पर गिलाफ चढ़ाने की भी अनूठी परंपरा है। चैत्र पंचमी के दिन झंडे की पूजा-अर्चना के बाद पुराने झंडेजी को उतारा जाता है और ध्वजदंड में बंधे पुराने गिलाफ, दुपट्टे आदि हटाए जाते हैं। दरबार साहिब के सेवक दही, घी और गंगाजल से ध्वजदंड को स्नान कराते हैं। इसके बाद शुरू होती है झंडेजी को गिलाफ चढ़ाने की प्रक्रिया। झंडेजी पर पहले सादे (मारकीन के) और फिर सनील के गिलाफ चढ़ाए जाते हैं। सबसे ऊपर दर्शनी गिलाफ चढ़ाया जाता है और फिर पवित्र जल छिड़ककर श्रद्धालुओं की ओर से रंगीन रुमाल, दुपट्टे आदि बांधे जाते हैं।
    श्री गुरु राम राय ने देहरादून आकर इसे ही अपनी तपस्थली बना लिया था। गुरु राम राय महाराज सातवीं पातशाही (सिक्खों के सातवें गुरु) श्री गुरु हर राय के पुत्र थे। औरंगजेब गुरु राम राय के काफी करीबी माने जाते थे। औरंगजेब ने ही महाराज को हिंदू पीर की उपाधि दी थी। औरंगजेब महाराज से काफी प्रभावित था। छोटी सी उम्र में वैराग्य धारण करने के बाद वह संगतों के साथ भ्रमण पर चल दिए। वह भ्रमण के दौरान ही देहरादून आए थे। जब महाराज जी दून पहुंचे तो खुड़बुड़ा के पास उनके घोड़े का पैर जमीन में धंस गया और उन्होंने संगत को रुकने का आदेश दिया। अपने तीर कमान से महाराज जी ने चारों दिशाओं में तीर चलाए और जहां तक तीर गए उतनी जमीन पर अपनी संगत को ठहरने का हुक्म दिया। देहरादून पहुंचने पर औरंगजेब ने गढ़वाल के राजा फतेह शाह को उनका पूरा ख्याल रखने का आदेश भी दिया। उन्होंने यहां डेरा डाला इसलिए दून का नाम पहले डेरादून और फिर बाद में देहरादून पड़ गया। उसके बाद से आज तक उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के नाम से ही जानी जाती है। और तब से लेकर आजतक झंडे मेले की प्रथा भी निंरतर चली आ रही है। जिसमें लाखों की तादाद में श्रद्वालु मत्था टेकने के साथ गुरु के दबार के दर्शनों के लिए आते हैं।
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