chapter - 9. प्रगीत और समाज in hindi class 12 Bihar board intermediate exam MCQ

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  • เผยแพร่เมื่อ 10 ต.ค. 2024
  • chapter - 9. प्रगीत और समाज in hindi class 12 Bihar board intermediate exam MCQ .
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    आप आलोचक से सहमत हैं ? अपने विचार दें।
    उत्तर: आधुनिक प्रगीत काव्य का उदय बीसवी सदी मे रोमैंटिक उत्थान के साथ हुआ, जिसका संबंध भारत के राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष से है। भक्ति काव्य से अलग इस रोमैंटिक प्रगीतात्मकता के मूल मे एक नया व्यक्तिवाद है, जहाँ 'समाज' के बहिष्कार के द्वारा ही व्यक्ति अपनी सामाजीकता प्रमाणित करता है। इन रोमैंटिक प्रगीतो मे भक्तिकाव्य जैसी भावना तो नही है किंतु आत्मीयता और एंद्रियता जरूर है। मैथिलीशरण गुप्त जो कि राष्ट्रीयता संबंधी विचारो तथा भावो को काव्य का रूप देते थे। उनका काव्य भी प्रबंध काव्य था। उस समय उन्हे 'सामाजिक' माना गया। लेकिन विद्वान जनो को यह एहसास हो गया कि इन रोमैंटिक प्रगीतो मे भी सामाजिकता है।
    प्रश्न 7: "कविता जो कुछ कह रही है उसे सिर्फ वही समझ सकता है जो इसके एकाकीपन में मानवता की आवाज सुन सकता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट करें। साथ ही, किसी उपयुक्त उदाहरण से अपने उत्तर की पुष्टि करें।
    उत्तर: प्रस्तुत अंश नामवर सिंह रचित निबंध 'प्रगीत और समाज' से उद्धृत है। ऐसा प्रतीत होता है कि कवि को एकाकीपन में पीड़ित मानवता की आवाज एकान्त में सुनायी पड़ रही है। थियोडोर एडोर्नो ने कहा है कि व्यक्ति अकेला है, यह ठीक है परन्तु उसका आत्मसंघर्ष अकेला नहीं है। उसका आत्मसंघर्ष समाज में प्रतिफलित होता है। यही कारण है कि बच्चन जैसे कवि सरल सपाट निराशा को अलग करते हुए एक गहरी सामाजिक सच्चाई को व्यक्त करते हैं।
    प्रश्न 8: मुक्तिबोध की कविताओं पर पुनर्विचार की आवश्यकता क्यों है, आलोचक के इस विषय में क्या निष्कर्ष हैं ?
    उत्तर: मुक्तिबोध ने सिर्फ लंबी कविताएँ ही नही लिखी। उन्होंने अनेक छोटी कविताएँ भी लिखी है, और छोटी होने के बावजूद लंबी कविताओ से किसी कदर कम सार्थक नही है। वे कविताएँ अपने रचना-विन्यास मे प्रगीतधर्मी है। कुछ विचार से तो नाटकीय रूप के बावजूद मुक्तिबोध की काव्यभूमि मुख्यत: प्रगीतभूमि है। मुक्तिबोध का समूचा काव्य मूलत: आत्मपरक है इसलिए उनकी कविताओ पर पूर्णविचार की आवश्यकता है। लेकिन यह भी है कि यह कविता आत्मपरक होते हुए भी प्रत्येक कविता को गति और ऊर्जा प्रदान करती है।
    प्रश्न 9: त्रिलोचन और नागार्जुन के प्रगीतों की विशेषताएँ क्या हैं ? पाठ के आधार पर स्पष्ट करें। नामवर सिंह ने त्रिलोचन के सॉनेट 'वही त्रिलोचन है वह' और नागार्जुन की कविता 'तन गई रीढ़' का उल्लेख किया है, ये दोनों रचनाएँ 'पाठ के आस-पास' खंड में दी गई हैं, उन्हें भी पढ़ते हुए अपने विचार दें।
    उत्तर: त्रिलोचन के प्रगीतो मे जीवन, जगत और प्रकृति के जितने रंग-बिरंगे चित्र मिलते है, वे दूसरे जगह दुर्लभ है। वही नागार्जुन की बहिर्मुखी आक्रामक काव्य प्रतिभा के बीच आत्मपरक प्रगीतात्मक अभिव्यक्ति के क्षण कम ही आते है लेकिन जब आते है तो उनकी विकट तीव्रता प्रगीतो के परिचित संसार को एक झटके से छिन्न-भिन्न कर देती है।
    प्रश्न 10: 'मितकथन में अतिकथन से अधिक शक्ति होती है', केदारनाथ सिंह की उद्धृत कविता से इस कथन की पुष्टि करें। दिगंत (भाग 1) में प्रस्तुत 'हिमालय' कविता के प्रसंग में भी इस कथन पर विचार करें।
    उत्तर: मितकथन का अर्थ होता है - 'कम शब्दो मे अधिक कहना' जो कि केदारनाथ सिंह की कविता में देखने को मिलता है। उन्होने बड़ा ही सीमित शब्दो मे एक विस्तृत भाव को व्यक्त किया गया है।
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