देखिये राजस्थान का प्रसिद्ध एवं जबरदस्त हेला-ख्याल दंगल 😱😱। 2022 (272वां)

แชร์
ฝัง
  • เผยแพร่เมื่อ 5 เม.ย. 2022
  • #राजस्थान_का_हेला-ख्याल_दंगल
    देखिये राजस्थान का प्रसिद्ध एवं जबरदस्त हेला-ख्याल दंगल 😱😱
    VIDEO HIGHLIGHTS
    राजस्थान का हेला ख्याल दंगल
    रजवाड़ा काल में यह हेला ख्याल संगीत दंगल तेल की मशालों के बीच होता था। इसके लिए तत्कालीन रजवाड़ों द्वारा तेल उपलब्ध कराया जाता था। मशालची तैनात रहते थे। मीठे तेल की जलती मशालों के बीच इस दंगल में लोक गायक अपनी काव्य रचना की बेहतरीन प्रस्तुति देते थे।
    लोकानुरंजन की पहचान बना लालसोट का हेला ख्याल संगीत दंगल
    3 वर्ष पहले
    देश के संगीत हेला ख्याल दंगलों में अपनी अनूठी गायन शैली तथा लोक गायकी की विविध विधाओं के अनूठे प्रदर्शन के कारण लालसोट का हेला ख्याल संगीत दंगल लोक गायकी का अनूठा संगम स्थल बना हुआ है।
    लोक गायकी में विशिष्टता के कारण 271 वर्षों से लगातार चला आ रहा यह दंगल राष्ट्रीय स्तर पर लालसोट की पहचान बन चुका है। गणगौर के पर्व की की मध्य रात्री को स्थानीय गायक मंडियों द्वारा भवानी पूजन कर दंगल की औपचारिक शुरूआत होगी । बूढ़ी गणगौर की सवारी निकलने के बाद रात दस बजे से दंगल 36 घंटे तक लगातार चलेगा। दंगल ख्याल गायकी के कारण देश भर में मशहूर है।
    271 वर्षों से गणगौर के पर्व पर आयोजित इस संगीत दंगल में हेला ख्याल गायकी ने अनेक करवटें बदलते हुए विविध प्रकार लोक विधाओं को जन्म दिया तथा सैकड़ों वर्षों से इस पड़ाव में आधुनिक सभ्यता व संस्कृति के बदलते आयामों के बावजूद अपने अस्तित्व को बचाए रखकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान कायम करते हुए ख्याति भी अर्जित की ।
    लालसोट | दंगल में लोक गायकी का प्रदर्शन करते हुए सैनी मंडल केे गायक कलाकार : (फाइल फोटो)
    सांस्कृतिक धरोहर
    यह संगीत दंगल सवाई माधोपुर,दौसा,जयपुर तथा टोंक व करौली जिले की सांस्कृतिक धरोहर ही नहीं अपितु हाड़ौती व ढूंढाड़ी संस्कृति के संगम के रूप में विख्यात है। पहली गणगौर की रात को भवानी पूजन के साथ प्रारंभ होने वाले तथा दूसरी गणगौर की रात से लगातार 36 घंटे तक चलने वाले इस हेला ख्याल दंगल को सुनने के लिए मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र,छत्तीसगढ़,गुजरात,आन्धप्रदेश कर्नाटक सहित देश के विभिन्न प्रांतों में बसे प्रवासी राजस्थानी समाज के लोग दंगल शुरू होने से पूर्व ही आने लग जाते हंै। रजवाड़ा काल में यह हेला ख्याल संगीत दंगल तेल की मशालों के बीच होता था। इसके लिए तत्कालीन रजवाड़ों द्वारा तेल उपलब्ध कराया जाता था। मशालची तैनात रहते थे। मीठे तेल की जलती मशालों के बीच इस दंगल में लोक गायक अपनी काव्य रचना की बेहतरीन प्रस्तुति देते थे। झरंडे के चौक पर दंगल में गायक दल अपनी बेबाक प्रस्तुति दे कर लोगों को मंत्र मुग्ध करते थे। ज्यों ज्यों समय बीता रजवाड़े समाप्त होते गए। उसके बाद दंगल आयोजन जनता के हाथों में आ गए।
    पहले दंगल का आयोजन झरण्डे चौक पर हुआ करता था। कालान्तर में फैलती ख्याति व बढ़ते श्रोताओं की संख्या के कारण 1962 से यह दंगल लालसोट के जवाहर गंज सर्किल पर आयोजित होने लगा।
    गायक मंड़लों की बढ़ी तादाद
    पहले इस दंगल में तीन बास (खोहरापाड़ा, जोशीपाड़ा, तंबाकूपाडा)व चार बास (उपरलापाडा,लांबापाडा,गुर्जर घाटा,पुरोहितपाडा)की गायक मंडलियां भाग लेती थी मगर फैलती ख्याति व बढ़ते स्वरूप में कारण आज इनकी संख्या भी 20 के करीब हो गई है।
    गायन संख्या और वांद्य यंत्र
    20 गायक मंडलियां भाग लेती है। प्रत्येक गायक दल में 40 से 50 गायक कलाकार भाग लेते है। तथा गायकी में वाद्ययंत्र बाजा ढप,घेरे,मंजीरा,ढोलक,खरताल,पूंगी,ढोल,चंड चिमटा सहित अनेक पुरातन वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल होता है।
    सांस्कृतिक धरोहर
    यह संगीत दंगल सवाई माधोपुर,दौसा,जयपुर तथा टोंक व करौली जिले की सांस्कृतिक धरोहर ही नहीं अपितु हाड़ौती व ढूंढाड़ी संस्कृति के संगम के रूप में विख्यात है। पहली गणगौर की रात को भवानी पूजन के साथ प्रारंभ होने वाले तथा दूसरी गणगौर की रात से लगातार 36 घंटे तक चलने वाले इस हेला ख्याल दंगल को सुनने के लिए मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र,छत्तीसगढ़,गुजरात,आन्धप्रदेश कर्नाटक सहित देश के विभिन्न प्रांतों में बसे प्रवासी राजस्थानी समाज के लोग दंगल शुरू होने से पूर्व ही आने लग जाते हंै। रजवाड़ा काल में यह हेला ख्याल संगीत दंगल तेल की मशालों के बीच होता था। इसके लिए तत्कालीन रजवाड़ों द्वारा तेल उपलब्ध कराया जाता था। मशालची तैनात रहते थे। मीठे तेल की जलती मशालों के बीच इस दंगल में लोक गायक अपनी काव्य रचना की बेहतरीन प्रस्तुति देते थे। झरंडे के चौक पर दंगल में गायक दल अपनी बेबाक प्रस्तुति दे कर लोगों को मंत्र मुग्ध करते थे। ज्यों ज्यों समय बीता रजवाड़े समाप्त होते गए। उसके बाद दंगल आयोजन जनता के हाथों में आ गए।
    पहले दंगल का आयोजन झरण्डे चौक पर हुआ करता था। कालान्तर में फैलती ख्याति व बढ़ते श्रोताओं की संख्या के कारण 1962 से यह दंगल लालसोट के जवाहर गंज सर्किल पर आयोजित होने लगा।
    गायक मंड़लों की बढ़ी तादाद
    पहले इस दंगल में तीन बास (खोहरापाड़ा, जोशीपाड़ा, तंबाकूपाडा)व चार बास (उपरलापाडा,लांबापाडा,गुर्जर घाटा,पुरोहितपाडा)की गायक मंडलियां भाग लेती थी मगर फैलती ख्याति व बढ़ते स्वरूप में कारण आज इनकी संख्या भी 20 के करीब हो गई है।
    गायन संख्या और वांद्य यंत्र
    20 गायक मंडलियां भाग लेती है। प्रत्येक गायक दल में 40 से 50 गायक कलाकार भाग लेते है। तथा गायकी में वाद्ययंत्र बाजा ढप,घेरे,मंजीरा,ढोलक,खरताल,पूंगी,ढोल,चंड चिमटा सहित अनेक पुरातन वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल होता है।
    please like & Subscribe

ความคิดเห็น • 24