Satya hi kabir hai.kabir hi ram hai ram hi shiv hai aur shiv hi jeev hai ... isliye sabka Malik ek hai..mai aatma hoon. Ishwar ansh jeev awinashi ..........
आत्मा और शरीर के बारे मैं कभी ख्याल ही नहीं आया कि यह दोनों भी है आपने इस ओर ध्यान देकर हमको सजग कर दिया आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सौ बातों की एक बात जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो ॐ ब्रह्म सत्यम सर्वदा ध्यान कबीर ध्यान कबीर वाणी सतगुरु साहिब बंदगी
उक्त सखी का अर्थ है यदि मैं कहूं की सत्ता केवल एक की है अर्थात सत्ता केवल जड़ की है तो चेतन हमारी अंतरात्मा है और इसे नकारा नहीं जा सकता यह स्व अनुभूत और स्वसंवेद्द है और यदि सत्ता केवल चेतन की है तो दृश्यमान् जगत प्रत्यक्ष है यह भी सबके अनुभव में आता है। जड़ से चेतन नहीं बन सकता और चेतन से जड़ नहीं बन सकता दोनों के गुणधर्म सर्वथा पृथक हैं। जगत में जगत अर्थात जड़ात्मक सृष्टि स्वयं सिद्ध है और चेतन में जगत प्रपंच का लेस मात्रा भी स्थान नहीं है समाधि की अवस्था में इसका अनुभव होता है अर्थात् जगत में जगत सच है किंतु चेतन में जगत सच नहीं है इसलिए साहेब विचार करके कहते हैं "है जैसा रहे तैसा कहें कबीर विचार।"
@@Darshan_Saheb कृपा के लिए धन्यवाद साहेब जी। उत्तर से यह स्पष्ट नहीं है कि चेतन से अलग जड़ के स्वयं सिद्ध होने का क्या अर्थ होगा? समाधि में केवल चैतन्य का अस्तित्व है जड़ का अस्तित्व नहीं है इसलिए यह बोध तो स्पष्ट है कि चैतन्य जड़ से अलग है लेकिन जड़ का अस्तित्व चैतन्य से अलग संदिग्ध है। जगत में दृष्टि (आँख) का अस्तित्व रंगों के बिना भी संभव है लेकिन रंगों का अस्तित्व आँख से अलग असंभव लगता है। आँख चैतन्य है और रंग जड़ पदार्थ है। कृपा करके आँख के बिना विभिन्न रंगों की स्वयं सिद्धता स्पष्ट करें।
@@dr.r.n.singhkushwanshi9014 इतना तो स्पष्ट है कि चेतन का अस्तित्व जड़ से सर्वथा पृथक एवं स्वतंत्र है। जड़ के अस्तित्व को जानने के लिए पांच विषय हैं जिनका बोध ज्ञान इंद्रियों द्वारा होता है। समाधि अवस्था में इंद्रियों के शांत होने के साथ साथ मन भी निर्विचार स्थिति में होता है तो वहां जड़ जगत के बोध का अभाव होता है न कि जड़ जगत अस्तित्व हीन हो जाता है, समाधि अवस्था से जागृत में लौटने पर वही जड़ जगत वही शरीर एवं विश्व प्रपंच प्रत्यक्ष होता है। इंद्रियों से प्रत्यक्ष का बोध होता है और मन की जो अवधारणाएं हैं उसे परोक्ष कहा जाता है तथा समाधि का जो अनुभव है वह अपरोक्ष है अथवा स्वयं प्रत्यक्ष है। इस प्रकार से दृष्टा और दृश्य के भेद को सहज समझा जा सकता है।
गुरु जी रमन महर्षि के मैं कौन हू के प्रक्रिया में वो बोलते है की सबसे पहले मैं कौन हू से प्रश्न शुरू होता है फिर उसके बाद जो उत्तर हैं की मैं शरीर हू या हिंदू हू फिर वो कहते है उसको नकार दो कि मैं ये नहीं हू और आप कह रहे है मैं को नकारने वाले भी आप है
बहुत बहुत धन्यवाद साहेब जी बहुत सुंदर सत्संग साहेब बंदगी
अत्त दीप भव स्वयं दीप हो...
साहेब बंदगी।
Jay ho gurudev bahut sundar Saheb jee ka prabachan sunkar hum dhany ho gaye hai
Saprem saheb bandagi saheb ji 🙏🙏🙏❤️
साहेब बंदगी
साहेब बन्दंगी साहेब बन्दंगी साहेब बन्दंगी देवराज गुजर टोक राजस्थान
सतगुरु साहेब जय हो
Saheb bandagi 🙏
साहिब बंदगी साहेब बांट दिया हमको जड़ और चेतन दोनों एक हीं है
है गुरु हम धन्य हुए आपका parvachan सुनकर साहब bandigi
Satya hi kabir hai.kabir hi ram hai ram hi shiv hai aur shiv hi jeev hai ... isliye sabka Malik ek hai..mai aatma hoon.
Ishwar ansh jeev awinashi ..........
Jai Ho guruji 🌹🌹🌹🌹
Koti koti pranam guruji 🙏🙏🙏🙏
सादर साहेब बंदगी साहेब जी 😊😊🙏🙏
Saheb bandgi sarkar ke🙏🙏🙏
साहेब बन्दगी साहेब
अपने को जगाने वाला प्रवचन। saheb bandagi Saheb
Maargdarshan ke liye dhanyawaad poojniya guru ji
🌷🌷🌷🙏🙏🙏🌷🌷🌷
Saheb bandagi
ll साहेब बंदगी ll
जय हो गुरु देव जी की सादर प्रणाम बहुत सुंदर विचार साहेब बंदगी साहेब
Saheb bandgi saheb ji
बहुत सुंदर प्रवचन साहिब बंदगी साहिब बंदगी साहिब बंदगी
सत साहेब सत साहेब गुरु जी प्रणाम
Saheb bandagi virajan kumar
Ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
निःसंदेह सदगुरु साहेब !!आपने परमज्ञान को प्राप्त किया है।"नमन सतगुरु अभिलाख साहेब।
MERE SATGURU KI KRIPA SE AISE SATSANG SUNANE KO MIL RAHA HAI
Apki aur apke isht Satguru Kabeer saheb Ji Maharaj ki Jai ho 🙏🏻🙏🏻🌷🥀🌹
Jay Jeev
Sadguru saheb ke jai
Bhaut sunder 🙏🙏🙏 hai
पूज्य गुरुदेव जी को सादर नमन एवं साहेब बन्दगी💐🙏
बहुत सुंदर प्रवचन ।
Accha laga thanks
आप बहुत ही महान है
Cbi
आत्मा और शरीर के बारे मैं कभी ख्याल ही नहीं आया कि यह दोनों भी है आपने इस ओर ध्यान देकर हमको सजग कर दिया आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सौ बातों की एक बात जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो ॐ ब्रह्म सत्यम सर्वदा ध्यान कबीर ध्यान कबीर वाणी सतगुरु साहिब बंदगी
O
परम् पूज्य गुरुदेव जी के चरणों में कोटि कोटि नमन बन्दीगी जयसतनाम सद्गुरु दया
आप के द्वारा दिये गये प्रवचन मे दिल की गहराईयों को छू लेने वाला प्रवचन है।
अति सुन्दर
साहेब बंदगी साहेब
बहुत बहुत धन्यवाद साहेब 💐💐🌴💐💐🌼🌺👌💐🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌾🌲🌱🌴🌿🌾
Shaheb bandgi
⁷ 2:36
Saheb bandgi saheb bandgi saheb bandgi saheb ji
Goodmornig
Goro Kay bechar ko apnanay ka hay sahab bandge sahab g
Dhanya Prabhu main bada bhag sale Hain Jo aisi Vachan sunane ko
38🎉😮😢
🎉 ❤
ખુબખુબસાહેબકાઉપકાર
एक कहूँ तो है नहीं, दूजा कहूँ तो गार।
है जैसा वैसा रहे, रहे कबीर विचार ।।
अगर जगत दृश्य रूप मे सत्य है तो ऊपर कही गई साखी का क्या अर्थ है?
उक्त सखी का अर्थ है यदि मैं कहूं की सत्ता केवल एक की है अर्थात सत्ता केवल जड़ की है तो चेतन हमारी अंतरात्मा है और इसे नकारा नहीं जा सकता यह स्व अनुभूत और स्वसंवेद्द है और यदि सत्ता केवल चेतन की है तो दृश्यमान् जगत प्रत्यक्ष है यह भी सबके अनुभव में आता है। जड़ से चेतन नहीं बन सकता और चेतन से जड़ नहीं बन सकता दोनों के गुणधर्म सर्वथा पृथक हैं। जगत में जगत अर्थात जड़ात्मक सृष्टि स्वयं सिद्ध है और चेतन में जगत प्रपंच का लेस मात्रा भी स्थान नहीं है समाधि की अवस्था में इसका अनुभव होता है अर्थात् जगत में जगत सच है किंतु चेतन में जगत सच नहीं है इसलिए साहेब विचार करके कहते हैं "है जैसा रहे तैसा कहें कबीर विचार।"
@@Darshan_Saheb कृपा के लिए धन्यवाद साहेब जी।
उत्तर से यह स्पष्ट नहीं है कि चेतन से अलग जड़ के स्वयं सिद्ध होने का क्या अर्थ होगा?
समाधि में केवल चैतन्य का अस्तित्व है जड़ का अस्तित्व नहीं है इसलिए यह बोध तो स्पष्ट है कि चैतन्य जड़ से अलग है लेकिन जड़ का अस्तित्व चैतन्य से अलग संदिग्ध है।
जगत में दृष्टि (आँख) का अस्तित्व रंगों के बिना भी संभव है लेकिन रंगों का अस्तित्व आँख से अलग असंभव लगता है।
आँख चैतन्य है और रंग जड़ पदार्थ है।
कृपा करके आँख के बिना विभिन्न रंगों की स्वयं सिद्धता स्पष्ट करें।
@@dr.r.n.singhkushwanshi9014
इतना तो स्पष्ट है कि चेतन का अस्तित्व जड़ से सर्वथा पृथक एवं स्वतंत्र है। जड़ के अस्तित्व को जानने के लिए पांच विषय हैं जिनका बोध ज्ञान इंद्रियों द्वारा होता है।
समाधि अवस्था में इंद्रियों के शांत होने के साथ साथ मन भी निर्विचार स्थिति में होता है तो वहां जड़ जगत के बोध का अभाव होता है न कि जड़ जगत अस्तित्व हीन हो जाता है, समाधि अवस्था से जागृत में लौटने पर वही जड़ जगत वही शरीर एवं विश्व प्रपंच प्रत्यक्ष होता है।
इंद्रियों से प्रत्यक्ष का बोध होता है और मन की जो अवधारणाएं हैं उसे परोक्ष कहा जाता है तथा समाधि का जो अनुभव है वह अपरोक्ष है अथवा स्वयं प्रत्यक्ष है। इस प्रकार से दृष्टा और दृश्य के भेद को सहज समझा जा सकता है।
गुरु जी रमन महर्षि के मैं कौन हू के प्रक्रिया में वो बोलते है की सबसे पहले मैं कौन हू से प्रश्न शुरू होता है फिर उसके बाद जो उत्तर हैं की मैं शरीर हू या हिंदू हू फिर वो कहते है उसको नकार दो कि मैं ये नहीं हू और आप कह रहे है मैं को नकारने वाले भी आप है
Sant na hote sansar mai jal marta sansar jai ho abhilash saheb ji ki satguru shiromani Kabir saheb ji ki jai ho
Saheb bandagi
साहेब बंदगी 🌹🌹🌹🙏🙏
Saheb bandagi virajan kumar