सतगुरु गरीबदास साहिब जी की अमृतमयी वाणी "अथ बिरह का अंग " पाठी: दारा बीटन

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  • เผยแพร่เมื่อ 4 พ.ย. 2024
  • 🌹।। सतगुरू गरीबदास जी की वाणी ।। 🌹
    आया है समझि देख, आदू अनंत भेष, भेष में अभेष है |
    है सो निनांम नाम, जाके नहीं गांम ठाम, नहीं रूप रेख है || १ ||
    नहीं सुत्र सार वार पार, देखो दिल कूँ बिचारि, आडा नहीं कोट है |
    मुकट निकट नैंन बैंन, बैठ्या है गलीचे ऐंन, ऐंनक की ओट है || २ ||
    ऐंनक अनूप रूप, तकिया तालिब सरूप, ताखी बीच नेश है |
    साहिब सरबंग जांनि, निर्गुण पद अजब तांन, सूर्यों की चोट है || ३ ||
    छाडे नहीं सूर खेत, कायर भागे अचेत, बंदे में खोट है |
    जाके नहीं भग लिंग नाद, दरश्या हम अकल आदि, जान्या हम जान्या जो दर दर दरवेश है || ४ ||
    शिखर शुन्य परम धुंन, लाया है तहां मन, निर्गुण झड़ नेश है |
    बंकी नगरी निदान, अमरापुर अगम धाम, दुर्लभ सा देश है || ५ ||
    चीपी फरुवा न जान, सेली मुद्रा न कान, मुंडित नहीं केश है |
    बैठे ऊठे न कोई, जाग्या सूता न सोई, सरबंगी पेस है || ६ ||
    निश्चल छाया न धूप, घट घट में राग रूप, साचा उपदेश हैं |
    शील बरत रहना है, भरमि नहीं बहना है, धरता क्या भेष है || ७ ||
    जाकूँ ब्रह्मा नारद जपंत, सुर नर मुनि जन तपंत, रटता शंकर और शेष है |
    जन कहता है गरीब दास, परम सुंन परम बास, मुक्ताहल पद पेस है || ८ || ३७ ||
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