Baba Harbhajan Singh: सेना का वो जवान जिसके सामने चीनी सैनिक भी झुकाते हैं सिर

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  • เผยแพร่เมื่อ 11 พ.ค. 2024
  • भारतीय सेना में एक ऐसे जवान हैं जिन्होंने मृत्यु के बाद भी अपनी नौकरी नहीं छोड़ी है. वह मृत्यु के बाद भी पूरी ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभाते हैं. इतना ही नहीं उन्हें बाकी सभी सैनिकों की तरह सैलरी दी जाती है, दो महीने की छुट्टी मिलती है, समय-समय पर उन्हें प्रमोशन भी दिया जाता है और बाकी तमाम सुविधाएं भी दी जाती है. हम बात कर रहे हैं सिपाही हरभजन सिंह की. इन्हें आज बाबा हरभजन सिंह के नाम से जाना जाता है. बाकयदा इनका मंदिर भी है जहां भक्तों की भारी भीड़ जुटती है.
    एक सैनिक से बाबा बने हरभजन सिंह का पूरा नाम हरभजन सिंह ब्रसाई था. वह एक बहादुर भारतीय सेना के सिपाही थे. उनका जन्म 30 अगस्त 1946 को पाकिस्तान के गुजरांवाला जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था. 20 साल की उम्र में हरभजन सिंह 9 फरवरी 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में सिपाही के रूप में भर्ती हुए थे. महज दो साल बाद 4 अक्टूबर 1968 को एक हादसे में उनका देहांत हो गया.
    घटना के वक्त उनकी ड्यूटी 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में थी. उस दिन हरभजन सिंह घोड़ों के एक काफिले को तुकु ला से डोंगचुई ला ले जा रहे थे. तभी अचानक नाथुला पास के समीप उनका पैर फिसल गया और नजदीकी नाले में गिर गए. नाले में पानी का बहाव हरभजन सिंह के शरीर को घटना स्थल से दो किमी दूर तक ले गया.
    कैसे मशहूर हुए हरभजन सिंह
    हरभजन सिंह की मृत्यु के बाद कुछ ऐसे अजीबोगरीब घटनाक्रम हुए जिसकी वजह से वह धीरे-धीरे मशहूर होने लगे. कहा जाता है कि हरभजन सिंह मृत्यु के बाद अपने एक साथ के सपने में आए और अपने गुम शरीर के बारे में बताया. आश्चर्य की बात है कि भारतीय सेना को तीन दिन की खोजबीन के बाद उसी जगह पर उनका शव मिला. यही नहीं ये भी कहा जाता है कि हरभजन सिंह ने अपने साथी के सपने में आकर अपना समाधि स्थल बनाने का भी अनुरोध किया. इसके बाद यूनिट ने जेलेप दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच 14 हजार फीट की ऊंचाई पर उनकी समाधि का निर्माण कर दिया.
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