साढौरा राम लीला भाग - 6 (2024) भरत मिलाप, ख/केवट प्रसंग ।

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  • เผยแพร่เมื่อ 10 ต.ค. 2024
  • *भरत मिलाप* (Bharat Milap) रामायण का एक अत्यंत मार्मिक और महत्वपूर्ण प्रसंग है, जो भगवान राम के वनवास काल के दौरान घटित होता है। इस प्रसंग में श्रीराम, भरत और उनके भाइयों के बीच के प्रेम, त्याग, और भाईचारे की अनूठी मिसाल प्रस्तुत की गई है।
    जब भगवान राम को 14 वर्षों के लिए वनवास दिया गया, तब उनके छोटे भाई भरत उस समय अपने ननिहाल में थे। जब वे अयोध्या लौटे और उन्हें यह पता चला कि उनकी माता कैकेयी के कारण राम को वनवास मिला है, तो भरत को अत्यंत दुख और पश्चाताप हुआ। वे राम के प्रति बेहद प्रेम और श्रद्धा रखते थे, और उन्होंने इस निर्णय को कभी स्वीकार नहीं किया। उन्होंने निश्चय किया कि वे श्रीराम को अयोध्या वापस लाएंगे और उनका राज्याभिषेक करेंगे।
    भरत के साथ माता सुमित्रा, कौशल्या, गुरु वशिष्ठ, अयोध्या के अनेक नागरिक और अन्य लोग श्रीराम को मनाने के लिए चित्रकूट पहुँचे। वहाँ भरत और राम का मिलन अत्यंत भावुक और आत्मीय था। भरत ने श्रीराम से विनती की कि वे अयोध्या लौटकर राजा बनें, लेकिन राम ने अपने धर्म और पिता के वचन को सर्वोपरि मानते हुए यह प्रस्ताव ठुकरा दिया।
    भरत, जो अपने भाई से बेहद प्रेम करते थे, ने श्रीराम से यह अनुरोध किया कि यदि वे अयोध्या नहीं लौट सकते तो कम से कम उनकी पादुकाएँ (खड़ाऊं) दे दें। राम ने अपनी पादुकाएँ भरत को दे दीं। भरत ने वह पादुकाएँ अपने सिर पर रखी और यह प्रण लिया कि वे राम की अनुपस्थिति में उन्हीं की पादुकाओं को सिंहासन पर रखकर राज्य का संचालन करेंगे। भरत ने राम की पादुकाओं को सिंहासन पर रखकर नंदीग्राम में कुटिया बनाकर तपस्वी की तरह जीवन बिताना शुरू कर दिया, और राम के लौटने तक राज्य की सारी ज़िम्मेदारी निभाई।
    भरत मिलाप का यह प्रसंग भाईयों के बीच के अटूट प्रेम, त्याग, और मर्यादा की अद्वितीय उदाहरण है। यह दिखाता है कि सच्चे प्रेम और समर्पण में आत्म-त्याग का कितना बड़ा महत्व होता है, और धर्म और कर्तव्य का पालन व्यक्ति की सच्ची महानता का प्रतीक है।
    *ख/केवट प्रसंग* रामायण का एक महत्वपूर्ण और भावनात्मक प्रसंग है, जो भगवान श्रीराम के वनवास के दौरान घटित होता है। इस प्रसंग में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण को गंगा नदी पार कराने के लिए एक केवट (नाविक) से संवाद होता है, जिसमें भक्ति, समर्पण और सेवा का अद्भुत वर्णन मिलता है।
    जब राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट जाने के लिए अयोध्या से निकलते हैं, तो उन्हें गंगा नदी पार करनी होती है। नदी पार करने के लिए वे एक केवट की नाव का सहारा लेना चाहते हैं। भगवान राम केवट से निवेदन करते हैं कि वह उन्हें अपनी नाव से नदी पार करवा दे। लेकिन केवट श्रीराम के चरण धोए बिना उन्हें नाव में चढ़ाने से मना कर देता है।
    केवट कहता है कि, "मैंने सुना है कि आपके चरण कमल में ऐसा दिव्य स्पर्श है कि पत्थर की शिला भी स्त्री (अहिल्या) बन जाती है। अगर मैंने आपके चरणों को बिना धोए अपनी नाव में चढ़ाया और यदि मेरी नाव भी कोई स्त्री बन गई, तो मेरी आजीविका कैसे चलेगी?" इस प्रकार, केवट अपनी विनम्रता और चतुराई से भगवान राम को रोक लेता है और उनके चरण धोने की प्रार्थना करता है।
    श्रीराम मुस्कुराते हुए केवट की बात मान लेते हैं। केवट प्रेमपूर्वक भगवान राम के चरण धोता है और फिर तीनों को नदी पार करवाता है। जब राम, सीता और लक्ष्मण गंगा के दूसरी ओर पहुंच जाते हैं, तो भगवान राम केवट से उसकी सेवा का मूल्य पूछते हैं। इस पर केवट बड़ी ही भावुकता से उत्तर देता है, "हे प्रभु, जब नाविक किसी को नदी पार कराता है, तो वह उसका मूल्य नहीं लेता। आप भी मेरे जैसे ही नाविक हैं, जब समय आएगा, तो मुझे भवसागर से पार करवा देना, बस यही मेरी सेवा का मूल्य होगा।"
    इस प्रसंग में केवट की भक्ति और समर्पण भाव का अद्वितीय चित्रण मिलता है। वह भगवान राम को केवल ईश्वर के रूप में नहीं, बल्कि अपने आत्मीय और प्रिय के रूप में देखता है। उसकी सेवा और प्रेम बिना किसी स्वार्थ या भय के होते हैं। इस प्रसंग के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि भगवान के प्रति सच्ची भक्ति और प्रेम से बढ़कर कुछ नहीं है, और जो व्यक्ति अपने हृदय में प्रेम और श्रद्धा रखता है, उसे भगवान का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता है।
    केवट का यह प्रसंग दर्शाता है कि सच्ची भक्ति में कोई भेदभाव नहीं होता, चाहे व्यक्ति किसी भी समाज या वर्ग से हो, भगवान सभी के प्रति समान प्रेम रखते हैं।

ความคิดเห็น • 2

  • @seema-hq3lm
    @seema-hq3lm 15 ชั่วโมงที่ผ่านมา

    Jai shree Ram

  • @kusumkalra6985
    @kusumkalra6985 4 วันที่ผ่านมา

    Jai shree ram