अष्टावक्र गीता सार | बंधन और मोक्ष | Ashtavakra geeta
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- เผยแพร่เมื่อ 26 เม.ย. 2024
- अष्टावक्र गीता सार | बंधन और मुक्ति | Ashtavakra geeta
इस ग्रंथ का प्रारम्भ राजा जनक द्वारा किये गए तीन प्रश्नों से होता है। (१) ज्ञान कैसे प्राप्त होता है? (२) मुक्ति कैसे होगी? और (३) वैराग्य कैसे प्राप्त होगा? ये तीन शाश्वत प्रश्न हैं जो हर काल में आत्मानुसंधानियों द्वारा पूछे जाते रहे हैं। ऋषि अष्टावक्र ने इन्हीं तीन प्रश्नों का संधान राजा जनक के साथ संवाद के रूप में किया है जो अष्टावक्र गीता के रूप में प्रचलित है। ये सूत्र आत्मज्ञान के सबसे सीधे और सरल वक्तव्य हैं। इनमें एक ही पथ प्रदर्शित किया गया है जो है ज्ञान का मार्ग। ये सूत्र ज्ञानोपलब्धि के, ज्ञानी के अनुभव के सूत्र हैं। स्वयं को केवल जानना है-ज्ञानदर्शी होना, बस। कोई आडम्बर नहीं, आयोजन नहीं, यातना नहीं, यत्न नहीं, बस हो जाना वही जो हो। इसलिए इन सूत्रों की केवल एक ही व्याख्या हो सकती है, मत मतान्तर का कोई झमेला नहीं है; पाण्डित्य और पोंगापंथी की कोई गुंजाइश नहीं है।
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मुक्ती तो भगवान बुध्द को मिलीथी , भगवान बुध्दही ईस भवचक्रसे मुक्त हुवेथे ,
दिव्य अनमोल वचन हृदय से आभार
धन्यवाद🙏
Vahh kya gyan hai.❤❤❤❤
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इमानदारी नहीं सत्यनिष्ठा या चरित्रनिष्ठा
सत्यनिष्ठा से ईमानदारी फिर चरित्रनिष्टा🙏
Sabme main hi hu Aisa bhan hota to ,yaha mandbudhi ,dheer budhi ki baat kaha se aai
सब में मैं ही हूं, में आत्मा सब में शामिल है वही जो जन्म मृत्यु से परे है। इसमें कहा है ब्रम्हा से लेकर अंतिम घास के तिनके तक मैं ही हूं ।
रमण महर्षी ने कहा है आत्मा सीसे की तरह साफ है
कोई भी विचारो कर्मो से अलग है
तब अगर आत्मा के परिपेक्ष्य में आप ने कहा है उससे मंद बुद्धि ,तीक्ष्ण बुद्धि कोई फर्क नही पड़ता
,, इसमें सूक्तियों को प्रकरण के बीच से उठाया गया है तब हो सकता है उलट- पुलट हो गया हो. धन्यवाद
🙏