समाजशास्त्र का परिचय || अध्याय 4 || समाजशास्त्र का मनोविज्ञान से संबंध || Sociology -1st Semester
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- เผยแพร่เมื่อ 10 ก.พ. 2025
- इस वीडियो में हम समाजशास्त्र स्नातक (1st semester) के विषय "समाजशास्त्र का परिचय" के अध्याय 4 - "समाजशास्त्र का मनोविज्ञान से संबंध" पे चर्चा करेंगे।
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• समाजशास्त्र (स्नातक)
समाजशास्त्र यानी sociology और मनोविज्ञान यानी psychology का आपस में गहरा संबंध है। समाजशास्त्र मानव समाज, उसके संगठन, परंपराएँ, सामाजिक संस्थाएँ और लोगों के आपसी संबंधों का अध्ययन करता है, जबकि मनोविज्ञान व्यक्ति के व्यवहार, विचार, भावनाओं और मानसिक प्रक्रियाओं पर केंद्रित होता है। लेकिन इन दोनों विषयों के अध्ययन में कई समानताएँ हैं, क्योंकि व्यक्ति समाज में ही रहता है और उसका मानसिक विकास भी सामाजिक प्रभावों से प्रभावित होता है। समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के इस मेल से एक नई शाखा विकसित हुई, जिसे सामाजिक मनोविज्ञान यानी social psychology कहा जाता है।
सामाजिक मनोविज्ञान यह अध्ययन करता है कि समाज में रहने वाले व्यक्ति के विचार, भावनाएँ और व्यवहार दूसरों की उपस्थिति में कैसे बदलते हैं। इस विषय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखें तो सन् 19 सौ की शुरुआत में विलियम मैकडूगल और एडवर्ड ए. रॉस ने इसे एक स्वतंत्र वैज्ञानिक क्षेत्र के रूप में स्थापित किया। इसके बाद विभिन्न समाजशास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में गहन अध्ययन किया और कई सिद्धांत प्रस्तुत किए।
समाजशास्त्री ओगस्त कॉम्ते ने समाजशास्त्र की नींव रखी और बताया कि समाज को वैज्ञानिक तरीके से समझा जा सकता है। उन्होंने समाज को स्थिर समाज और परिवर्तनशील समाज के रूप में वर्गीकृत किया। दूसरी ओर, मनोविज्ञान को स्वतंत्र शैक्षणिक विषय के रूप में सन् 18 सौ 79 में विल्हेम वुंट ने स्थापित किया। मनोविज्ञान शुरू में केवल चेतना यानी consciousness के अध्ययन तक सीमित था, लेकिन बाद में यह मानव व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं तक विस्तृत हो गया।
समाजशास्त्र और मनोविज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण मेल समाजीकरण यानी socialization की प्रक्रिया में देखा जा सकता है। समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिससे व्यक्ति अपने समाज की भाषा, रीति-रिवाज, मूल्य और व्यवहार सीखता है। यह केवल बचपन तक सीमित नहीं रहता, बल्कि जीवनभर चलता रहता है। समाजशास्त्री मैक्स वेबर ने इस प्रक्रिया को समझाने के लिए "वर्श्टेहन" यानी verstehen नामक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जो किसी सामाजिक प्रक्रिया को गहराई से समझने पर बल देता है।
सामाजिक मनोविज्ञान के तीन प्रमुख दृष्टिकोण हैं- प्रतीकात्मक अंतःक्रिया यानी symbolic interactionism, सामाजिक संरचना और व्यक्तित्व यानी social structure and personality, और समूह प्रक्रियाएँ यानी group processes। प्रतीकात्मक अंतःक्रिया सिद्धांत जॉर्ज हरबर्ट मीड द्वारा विकसित किया गया और यह बताता है कि समाज और व्यक्ति के बीच संबंध प्रतीकों और उनके अर्थों पर आधारित होता है। सामाजिक संरचना और व्यक्तित्व का सिद्धांत बताता है कि व्यक्ति का व्यवहार उसकी सामाजिक स्थिति और संरचना से प्रभावित होता है। समूह प्रक्रियाओं का अध्ययन यह समझने में मदद करता है कि व्यक्ति का व्यवहार समूह में शामिल होने पर कैसे बदलता है।
मध्य स्तर के सिद्धांत यानी middle-range theories भी सामाजिक मनोविज्ञान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रसिद्ध समाजशास्त्री रॉबर्ट के. मर्टन ने यह बताया कि समाज में सभी तत्व सामंजस्य में नहीं होते, बल्कि कुछ तत्व टकराव यानी conflict को जन्म दे सकते हैं।
सामाजिक मनोविज्ञान के चार मुख्य उद्देश्य हैं- अवलोकन और वर्णन यानी observation and description, कारण और प्रभाव संबंध यानी cause and effect relationship, नए सिद्धांतों का प्रतिपादन यानी proposing new theories, और व्यावहारिक अनुप्रयोग यानी application।
सामाजिक मनोविज्ञान व्यक्ति और समाज के बीच के द्विपक्षीय संबंध यानी reciprocal relationship को उजागर करता है। व्यक्ति न केवल समाज से प्रभावित होता है, बल्कि समाज भी व्यक्ति के विचारों और कार्यों से प्रभावित होता है। आज के समय में बहुसांस्कृतिक दृष्टिकोण यानी multicultural perspective का महत्व बढ़ गया है, क्योंकि विभिन्न संस्कृतियों के लोग एक-दूसरे के साथ अधिक संपर्क में आ रहे हैं।
अंत में, समाजशास्त्र और मनोविज्ञान का यह संबंध केवल शैक्षणिक अध्ययन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उपयोग समाज को अधिक न्यायसंगत और समावेशी बनाने के लिए किया जा सकता है।