Aapka har lafj bajiv hai bahut hi shandar bayan karte hain mai aapke liye dua karta hun tamam duniya ke muslim pariwar aapki baton ko sunegi aur amal karegi to maja jindgi ka badal jayega
agar ye baat har insan ko samajh me aa jaye to her insan achha ho jaye wah re quran teri azmaton pe mai qurban.bahut achha bayaan bahut khoob.samjhane ka tariqa la jawab iman taza ho gaya.
"Maulanaji " Desh ka har dindar aap jaisa samzdar ho to duniya se badtamiji aur dahashatgardi mit jayengi . Maulana Gulzar Husaini Islaam ka Kohinur hira hai. Dhule. Maharastra.
ईश्वर आपको लंबे समय तक जिंदा रखे यही मेरी इच्छा हे. Apane जो कुरान की 26आएतो के बारे सही अर्थ बताया यह संदेस samste मोल्वियो मुल्लाओ ओर इस्लाम के उन विद्वानों को जो कुरान के बारे मे उल्टी बाते बताते हे उन्हे apeko सीख देना चाहिए
सही बात सर आप हमेशा ऐसे ही सही बात और सही अर्थ की व्याख्या किया करे भगवान आपको सलामत रखे ।आप जैसे लोगो की इस दुनिया को जरूरत है ।जो धर्म की सही व्याख्या करे जैसे आप । आपको मेरा शत शत नमन
हे ईश्वर तुझे हमने दिल से पुकारा, रखना सदा हम पे अपना सहारा, न हिंदू, न सिख हो, ईसाई मुस्लमा, इंसानियत हो धर्म में ये सभी का, गूंजे चमन में ये प्यार का नारा, रखना सदा हम पे अपना सहारा, जहां में कभी ना हो कोई बुराई, सदा चमके तन मन में सबके भलाई, बना दो जहां को स्वर्ग सा प्यारा, रखना सदा हम पे अपना सहारा, नादान है सारे हमें ज्ञान दे दो, मिलके रहें ऐसा वरदान दे दो, खुशियों से महके ये जीवन हमारा, रखना सदा हम पे अपना सहारा, हे ईश्वर तुझे हमने दिल से पुकारा, Wrt तिलक राज योगी
अल्लाह बरकतो ताला आपको लंबी उमर और सेहत्याबी अता फरमाएं और मेरी गुज़ारिश है जिन आयतों का हवाला आपने दिया है( आयत 190 और 91) इसके तहत सन 2002 गोधरा में रेलगाड़ी जलाने वाले तो सबसे बड़े गुनहगार हैं उनकी इस गैर इंसानियत भरे गुनाह पर किसी तकरीर में बोलिए । और ये मेरी आपसे तहेदिल से गुजारिश है
Kapoor sahab aap us time ghodhra me the keya. Ghodhra or gujrat danga me kiska fayeda huyi. Aaj wohi desh sabhal raha hai. Na marne wale ka pata or marne wale ka pata.
'एक्स मुस्लिम चैनल समीर' में बहस के जवाब में मेंने लिखा है:- जो अल्लाह और मुहम्मद रसूल पर इमान नहीं लाते, और अल्लाह और उनके रसूल ने जिन वस्तुओं को हराम करार दिया है, नहीं उनको हराम ही मानते हैं, और आखिरत पर भी इमान नहीं लाते ऐसे लोगों के खिलाफ युद्ध/जिहाद और जजिया की बात बिल्कुल सही है। क्योंकि युद्ध जिहाद और जजिया जिन लोगों के खिलाफ करने की बात कही गई है वे लोग कौन थे उनका कुछ विवरण मैं नीचे आपको लिख रहा हूं, उसको आप जरूर पढ़ें, जिससे साबित हो जाएगा कि ऐसे लोगों के खिलाफ युद्ध जिहाद और जजिया की बात बिल्कुल सही कही गई है:- इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने के पहले मक्का में बहुत सारी कुप्रथाओं के बारे में जो मुहम्मद साहब को और इस्लाम को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, वे सारी कुप्रथाओं मुहम्मद साहब और इस्लाम के आने से पहले की हे:- इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले अरब में जो होता था उसके बारे में पढ़िये? इन सब प्रथाओं को मुहम्मद साहब ने समाप्त किया। और औरतों को एक सम्मानजनक जिन्दगी और ओहदा दिया। क्रपया इन प्रथाओं के बारे में पढ़िये:- इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले के अरब में यौन संबंधों की एक प्रथा जो अल-इस्तिब्दा कहलाती थी, इसमें एक मर्द अपनी पत्नी को किसी ऊंचे ओहदेवाले या वीर के पास यौन संबंध बनाने के लिए भेजता था. अरब के लोग उस समय शायर और योद्धा को बहुत सम्मान देते थे. अल-इस्तिब्दा में मर्द अपनी औरत को ज़्यादातर इन्ही लोगों के पास भेजता था. ताकि उनके घर में भी कोई कवि या योद्धा पैदा हो सके. वो औरत तब तक उन लोगों के पास रहती थी, जब तक वो गर्भवती न हो जाए. गर्भवती होने पर वो अपने पति के पास वापस चली आती थी. एक संबंध होता था अल-मुदामादा, जिसमें एक औरत अपने असली पति के अलावा एक या दो और पति चुनती थी. ये सूखे और लड़ाई की स्थिति के लिए होता था ताकि एक मर्द के न रहने पर दूसरे से काम चलाया जा सके. इस संबंध को बहुत अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था. मगर फिर भी ये संबंध पुराने अरब की संस्कृति का एक हिस्सा था. अल-मुकादाना गुप्त संबंधों को कहा जाता था. जिसका ज़िक्र कुरान (Quran 4:25) में भी आया है. गुप्त प्रेम संबंध हर समाज की तरह अरब की सभ्यता का भी हिस्सा थे. उस वक़्त इन्हें पाप की श्रेणी में नहीं रखा जाता था. इस बात की सत्यता पुराने अरब की इस कहावत से होती है कि "जो किसी को दिखाई न दे, वो गुनाह नहीं है मगर जो दिख जाए वो पाप है." इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने के पहले अरब में यौन संबंधों और अभिव्यक्ति की आज़ादी लगभग उसी तरह से थी, जैसे आज विकसित देशों में है. यौन संबंधों के लिए एक से अधिक व्यक्तियों से संबंध की छूट थी. मगर लोग शादीशुदा ज़िंदगी भी उसी तरह जीते थे, जैसे आज जीते हैं. इस्लाम के पहले अरब में वेश्यावृत्ति की आज़ादी थी. इस तरह के यौन संबंधों को किसी पाप की श्रेणी में नहीं रखा जाता था. मक्का में इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले एक और प्रथा निम्न प्रकार से थी:- वेश्याएं, जिन्हें अल-बगाया कहा जाता था, अपने टेंट में रहती थीं. जब वो संभोग के लिए तैयार होती थीं, तो अपने टेंट के बाहर एक झंडा लगा देती थीं. जिसे देखकर मर्द उनके पास जाते थे. जब तक झंडा न दिखे, तब तक कोई भी आदमी उनके समीप नहीं जाता था. इसी तरह से शादी शुदा औरतों को भी छूट थी कि वो अपने मर्द के साथ रहना चाहती है या नहीं. कोई शादीशुदा औरत अगर अपने मर्द से तलाक़ लेना चाहती थी तो अपने टेंट का रास्ता बदल देती थी. यानि वो टेंट का मुह उलटी दिशा में खोल देती थी. जिस से उसका मर्द समझ जाता था कि अब उसकी औरत उसमे उत्सुक नहीं है. ये एक तरह का तलाक़ था, जो औरतें अपने मर्दों को देती थीं. खुले यौन संबंधों के कई उदाहरण इस्लाम के पहले के अरब में मिलते हैं. इन यौन संबंधों को कई नामों से जाना जाता था. नामकरण मिलने का मतलब ही यही है कि इस तरह के यौन संबंध प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे. समाज में स्वीकार्य थे. उदाहरण के लिए एक यौन संबंध था अर-रहत, जिसमे दस आदमी एक औरत से मिलते थे और यौन संबंध स्थापित करते थे. जब वो औरत गर्भवती हो जाती थी, तो वो उन दसों मर्दों के पास जाती थी. और फिर उनमें से किसी एक मर्द को बच्चे का पिता चुनती थी. फिर उसी मर्द को उस बच्चे के लालन पालन का भार उठाना होता था. वो औरत जिस किसी मर्द को भी चुने, उसे स्वीकार ही करना होता था. वो मर्द अपनी ज़िम्मेदारी से भागता नहीं था. उपरोक्त सब प्रथाओं को मुहम्मद साहब ने समाप्त किया। और औरतों को एक सम्मानजनक जिन्दगी और ओहदा दिया।
सुभान अल्लाह। बहुत खूब। ईश्वर आपको लम्बी उम्र दराज करे।इन्होने कुरान शरीफ पढने की इच्छा जगा दी। बोली एक अमोल है जो कोई बोलन जानी। हिये तराजू तोलके तब मुख बाहर आनी
Mashallah achhi bat btaye aap ayese deen ke aalimo ki jarurat hai Ye matter nhi krta hai ki ham shiya hai ya Sunni BSS hm muslman hai ek Nabi ke manne wale hai ek kalma padhne wale hai achha lga sun ke.
आयतों की व्याख्याएं बार बार समुदायों को समझाने की जरूरत है।मेरी समझ में यह भी आया कि गैर मुस्लिम, मुस्लिमों के अंदर ही हैं,जो सच्चे मुसलमान होने का फ़र्ज़ अदा नहीं करता। परन्तु व्यवहार में यह समझ पैदा करने की जरूरत है।इस तरह के मुस्लिम धर्मगुरुओं को आगे बढ़कर आयतों के बारे चल रही गलतफहमियां दूर करने का प्रयास करना चाहिए जिससे विधरमियों के बीच बढ़ रही दूरियां कम हो सके।
'Dharma'/ 'Fitra'/ 'Basic nature' is the innate /intrinsic nature of a thing or object. for eg the dharma of snake is to bite, the fire is to heat, the ice to cool.We are all humans so our 'dharm' is 'humanity'. 'Religion' is a system to attain and develop this innate/intrinsic nature to higher level and we should follow the best available system(religion, given by true God) (out of numerous ones) for guaranteed success. The religion/ country one is accidentally born into is not necessarily be the right one. 'Water' in sanskrit or arabic or Turkish is the same. The God of all- is the same and one only. As Our Creator is one thatswhy we are all alike and have similar needs & desires. Can you ask so called Gods to not make muslims? Or, instead give you 2 heads and 4 hands so that you can be identified differently from what the 'God of humans' has made them? We are alike because our Creator is same. As our creator is One and the same so is His message also 'one and same' for all from the beginning of human civilization on the earth that is - 1. 'Not to worship false Gods' and 2. 'To do good Deeds/ Karma'. That is why the message of Islam is same from 'sanatan times'( ancient days). The people of Vedic times who worshipped 'One Unseen God' were actually muslims of those times speaking sanskrit language. And hence 'Islam'( Submission of your will to the wishes of true God) is from ancient times and it just got revived once again( as per the yada yada hi ...principle of God) by the last messenger Muhammad SAW. Any superiority complex, ego (of being born into some superior community) behind not following the latest commandments(Qur'an) of same true benevolent God(Creator of all) who has been guiding humans from sanatan(ancient) times is a MAJOR sin of ingratitude & Unfaithfulness. Hope it helps.
Aapne inke takrir pe dhyan nahi diya.....,chine i dia me ghush raha hai aur india defence kar raha hai...inko pakistan ki dashhatgardi nahi dikhti...unka naam nahi liya isne.....samjhiye baat ko
@@mannukumar8305 Pakistan Afghanistan Syria hume sab jagah ki dehshatgardi dikhti hai or hum sab jagah ke bare me bolte hain. Pakistan me bhi sbse ziyda Shia ko marte hn Aatankwadi tumhe nhi, to tum Q mahan bante ho?
1)Apply HALALA.. Means enjoyment for man . Halala centres are in Pakistan ,the man get RS 700 to 1000/- for halala job..Good yar: male Prostitude..as per Kuran. 2) Killings of other religions if not accept Muslim religion. 3) so many odd things
'एक्स मुस्लिम चैनल समीर' में बहस के जवाब में मेंने लिखा है:- जो अल्लाह और मुहम्मद रसूल पर इमान नहीं लाते, और अल्लाह और उनके रसूल ने जिन वस्तुओं को हराम करार दिया है, नहीं उनको हराम ही मानते हैं, और आखिरत पर भी इमान नहीं लाते ऐसे लोगों के खिलाफ युद्ध/जिहाद और जजिया की बात बिल्कुल सही है। क्योंकि युद्ध जिहाद और जजिया जिन लोगों के खिलाफ करने की बात कही गई है वे लोग कौन थे उनका कुछ विवरण मैं नीचे आपको लिख रहा हूं, उसको आप जरूर पढ़ें, जिससे साबित हो जाएगा कि ऐसे लोगों के खिलाफ युद्ध जिहाद और जजिया की बात बिल्कुल सही कही गई है:- इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने के पहले मक्का में बहुत सारी कुप्रथाओं के बारे में जो मुहम्मद साहब को और इस्लाम को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, वे सारी कुप्रथाओं मुहम्मद साहब और इस्लाम के आने से पहले की हे:- इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले अरब में जो होता था उसके बारे में पढ़िये? इन सब प्रथाओं को मुहम्मद साहब ने समाप्त किया। और औरतों को एक सम्मानजनक जिन्दगी और ओहदा दिया। क्रपया इन प्रथाओं के बारे में पढ़िये:- इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले के अरब में यौन संबंधों की एक प्रथा जो अल-इस्तिब्दा कहलाती थी, इसमें एक मर्द अपनी पत्नी को किसी ऊंचे ओहदेवाले या वीर के पास यौन संबंध बनाने के लिए भेजता था. अरब के लोग उस समय शायर और योद्धा को बहुत सम्मान देते थे. अल-इस्तिब्दा में मर्द अपनी औरत को ज़्यादातर इन्ही लोगों के पास भेजता था. ताकि उनके घर में भी कोई कवि या योद्धा पैदा हो सके. वो औरत तब तक उन लोगों के पास रहती थी, जब तक वो गर्भवती न हो जाए. गर्भवती होने पर वो अपने पति के पास वापस चली आती थी. एक संबंध होता था अल-मुदामादा, जिसमें एक औरत अपने असली पति के अलावा एक या दो और पति चुनती थी. ये सूखे और लड़ाई की स्थिति के लिए होता था ताकि एक मर्द के न रहने पर दूसरे से काम चलाया जा सके. इस संबंध को बहुत अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था. मगर फिर भी ये संबंध पुराने अरब की संस्कृति का एक हिस्सा था. अल-मुकादाना गुप्त संबंधों को कहा जाता था. जिसका ज़िक्र कुरान (Quran 4:25) में भी आया है. गुप्त प्रेम संबंध हर समाज की तरह अरब की सभ्यता का भी हिस्सा थे. उस वक़्त इन्हें पाप की श्रेणी में नहीं रखा जाता था. इस बात की सत्यता पुराने अरब की इस कहावत से होती है कि "जो किसी को दिखाई न दे, वो गुनाह नहीं है मगर जो दिख जाए वो पाप है." इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने के पहले अरब में यौन संबंधों और अभिव्यक्ति की आज़ादी लगभग उसी तरह से थी, जैसे आज विकसित देशों में है. यौन संबंधों के लिए एक से अधिक व्यक्तियों से संबंध की छूट थी. मगर लोग शादीशुदा ज़िंदगी भी उसी तरह जीते थे, जैसे आज जीते हैं. इस्लाम के पहले अरब में वेश्यावृत्ति की आज़ादी थी. इस तरह के यौन संबंधों को किसी पाप की श्रेणी में नहीं रखा जाता था. मक्का में इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले एक और प्रथा निम्न प्रकार से थी:- वेश्याएं, जिन्हें अल-बगाया कहा जाता था, अपने टेंट में रहती थीं. जब वो संभोग के लिए तैयार होती थीं, तो अपने टेंट के बाहर एक झंडा लगा देती थीं. जिसे देखकर मर्द उनके पास जाते थे. जब तक झंडा न दिखे, तब तक कोई भी आदमी उनके समीप नहीं जाता था. इसी तरह से शादी शुदा औरतों को भी छूट थी कि वो अपने मर्द के साथ रहना चाहती है या नहीं. कोई शादीशुदा औरत अगर अपने मर्द से तलाक़ लेना चाहती थी तो अपने टेंट का रास्ता बदल देती थी. यानि वो टेंट का मुह उलटी दिशा में खोल देती थी. जिस से उसका मर्द समझ जाता था कि अब उसकी औरत उसमे उत्सुक नहीं है. ये एक तरह का तलाक़ था, जो औरतें अपने मर्दों को देती थीं. खुले यौन संबंधों के कई उदाहरण इस्लाम के पहले के अरब में मिलते हैं. इन यौन संबंधों को कई नामों से जाना जाता था. नामकरण मिलने का मतलब ही यही है कि इस तरह के यौन संबंध प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे. समाज में स्वीकार्य थे. उदाहरण के लिए एक यौन संबंध था अर-रहत, जिसमे दस आदमी एक औरत से मिलते थे और यौन संबंध स्थापित करते थे. जब वो औरत गर्भवती हो जाती थी, तो वो उन दसों मर्दों के पास जाती थी. और फिर उनमें से किसी एक मर्द को बच्चे का पिता चुनती थी. फिर उसी मर्द को उस बच्चे के लालन पालन का भार उठाना होता था. वो औरत जिस किसी मर्द को भी चुने, उसे स्वीकार ही करना होता था. वो मर्द अपनी ज़िम्मेदारी से भागता नहीं था. उपरोक्त सब प्रथाओं को मुहम्मद साहब ने समाप्त किया। और औरतों को एक सम्मानजनक जिन्दगी और ओहदा दिया।
@@shyammohan9895 Acha. To Aap logo k yha bhi haram Aur halal mana jata h. ALLAH Aur Hazrat Mohammad a.s. sari duniya k liye h. Na ki ye ki videshi h. Aur IMAM HUSSAIN A.S NE to Hindustan aane ki tamanna bhi Zahir ki thi.
इस्लाम का मतलब झुकना ही होता है हाथ में हथियार कभी नहीं लेना है इस्लाम का मतलब अमन ए पैगाम है इस्लाम है खतरे में कहना नाफरमान है खुद की देने की होती है बलि और कुर्बानी जब अपने कर्मों से पहुंचे दूजे को हानि
'Dharma'/ 'Fitra'/ 'Basic nature' is the innate /intrinsic nature of a thing or object. for eg the dharma of snake is to bite, the fire is to heat, the ice to cool.We are all humans so our 'dharm' is 'humanity'. 'Religion' is a system to attain and develop this innate/intrinsic nature to higher level and we should follow the best available system(religion, given by true God) (out of numerous ones) for guaranteed success. The religion/ country one is accidentally born into is not necessarily be the right one. 'Water' in sanskrit or arabic or Turkish is the same. The God of all- is the same and one only. As Our Creator is one thatswhy we are all alike and have similar needs & desires. Can you ask so called Gods to not make muslims? Or, instead give you 2 heads and 4 hands so that you can be identified differently from what the 'God of humans' has made them? We are alike because our Creator is same. As our creator is One and the same so is His message also 'one and same' for all from the beginning of human civilization on the earth that is - 1. 'Not to worship false Gods' and 2. 'To do good Deeds/ Karma'. That is why the message of Islam is same from 'sanatan times'( ancient days). The people of Vedic times who worshipped 'One Unseen God' were actually muslims of those times speaking sanskrit language. And hence 'Islam'( Submission of your will to the wishes of true God) is from ancient times and it just got revived once again( as per the yada yada hi ...principle of God) by the last messenger Muhammad SAW. Any superiority complex, ego (of being born into some superior community) behind not following the latest commandments(Qur'an) of same true benevolent God(Creator of all) who has been guiding humans from sanatan(ancient) times is a MAJOR sin of ingratitude & Unfaithfulness. Hope it helps.
)Apply HALALA.. Means enjoyment for man . Halala centres are in Pakistan ,the man get RS 700 to 1000/- for halala job..Good yar: male Prostitude..as per Kuran. 2) Killings of other religions if not accept Muslim religion. 3) so many odd things
मौलाना आप दानिशवर हैं मुझे बताएं खुदा का इस्लाम गाय के बारे में क्या कहता है जहां तकमेरी मालूमात है कुरान में कहीं नही लिखा है गाय खाओ मेने तो यह भी सुना है दुनिया की सबसे बड़ी गोशाला अरब में है 500 कर्मचारी काम करते हैं वहां गाय को मारा नही जाता पाला जाता है
किया बात है किया कहने आप के , आपकी इंसानियत के , मेरा एक निवेदन है , आप इस्लाम की सच्ची बातें ,(अगर कुछ इंसानियत के लिए है तो ) मुस्लिमो की उग्रवादी सोच, के बारे यूरोप , अमेरिका , जैसे देशों में आएं और दुनिया को बताये
'Dharma'/ 'Fitra'/ 'Basic nature' is the innate /intrinsic nature of a thing or object. for eg the dharma of snake is to bite, the fire is to heat, the ice to cool.We are all humans so our 'dharm' is 'humanity'. 'Religion' is a system to attain and develop this innate/intrinsic nature to higher level and we should follow the best available system(religion, given by true God) (out of numerous ones) for guaranteed success. The religion/ country one is accidentally born into is not necessarily be the right one. 'Water' in sanskrit or arabic or Turkish is the same. The God of all- is the same and one only. As Our Creator is one thatswhy we are all alike and have similar needs & desires. Can you ask so called Gods to not make muslims? Or, instead give you 2 heads and 4 hands so that you can be identified differently from what the 'God of humans' has made them? We are alike because our Creator is same. As our creator is One and the same so is His message also 'one and same' for all from the beginning of human civilization on the earth that is - 1. 'Not to worship false Gods' and 2. 'To do good Deeds/ Karma'. That is why the message of Islam is same from 'sanatan times'( ancient days). The people of Vedic times who worshipped 'One Unseen God' were actually muslims of those times speaking sanskrit language. And hence 'Islam'( Submission of your will to the wishes of true God) is from ancient times and it just got revived once again( as per the yada yada hi ...principle of God) by the last messenger Muhammad SAW. Any superiority complex, ego (of being born into some superior community) behind not following the latest commandments(Qur'an) of same true benevolent God(Creator of all) who has been guiding humans from sanatan(ancient) times is a MAJOR sin of ingratitude & Unfaithfulness. Hope it helps.
'एक्स मुस्लिम चैनल समीर' में बहस के जवाब में मेंने लिखा है:- जो अल्लाह और मुहम्मद रसूल पर इमान नहीं लाते, और अल्लाह और उनके रसूल ने जिन वस्तुओं को हराम करार दिया है, नहीं उनको हराम ही मानते हैं, और आखिरत पर भी इमान नहीं लाते ऐसे लोगों के खिलाफ युद्ध/जिहाद और जजिया की बात बिल्कुल सही है। क्योंकि युद्ध जिहाद और जजिया जिन लोगों के खिलाफ करने की बात कही गई है वे लोग कौन थे उनका कुछ विवरण मैं नीचे आपको लिख रहा हूं, उसको आप जरूर पढ़ें, जिससे साबित हो जाएगा कि ऐसे लोगों के खिलाफ युद्ध जिहाद और जजिया की बात बिल्कुल सही कही गई है:- इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने के पहले मक्का में बहुत सारी कुप्रथाओं के बारे में जो मुहम्मद साहब को और इस्लाम को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, वे सारी कुप्रथाओं मुहम्मद साहब और इस्लाम के आने से पहले की हे:- इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले अरब में जो होता था उसके बारे में पढ़िये? इन सब प्रथाओं को मुहम्मद साहब ने समाप्त किया। और औरतों को एक सम्मानजनक जिन्दगी और ओहदा दिया। क्रपया इन प्रथाओं के बारे में पढ़िये:- इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले के अरब में यौन संबंधों की एक प्रथा जो अल-इस्तिब्दा कहलाती थी, इसमें एक मर्द अपनी पत्नी को किसी ऊंचे ओहदेवाले या वीर के पास यौन संबंध बनाने के लिए भेजता था. अरब के लोग उस समय शायर और योद्धा को बहुत सम्मान देते थे. अल-इस्तिब्दा में मर्द अपनी औरत को ज़्यादातर इन्ही लोगों के पास भेजता था. ताकि उनके घर में भी कोई कवि या योद्धा पैदा हो सके. वो औरत तब तक उन लोगों के पास रहती थी, जब तक वो गर्भवती न हो जाए. गर्भवती होने पर वो अपने पति के पास वापस चली आती थी. एक संबंध होता था अल-मुदामादा, जिसमें एक औरत अपने असली पति के अलावा एक या दो और पति चुनती थी. ये सूखे और लड़ाई की स्थिति के लिए होता था ताकि एक मर्द के न रहने पर दूसरे से काम चलाया जा सके. इस संबंध को बहुत अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था. मगर फिर भी ये संबंध पुराने अरब की संस्कृति का एक हिस्सा था. अल-मुकादाना गुप्त संबंधों को कहा जाता था. जिसका ज़िक्र कुरान (Quran 4:25) में भी आया है. गुप्त प्रेम संबंध हर समाज की तरह अरब की सभ्यता का भी हिस्सा थे. उस वक़्त इन्हें पाप की श्रेणी में नहीं रखा जाता था. इस बात की सत्यता पुराने अरब की इस कहावत से होती है कि "जो किसी को दिखाई न दे, वो गुनाह नहीं है मगर जो दिख जाए वो पाप है." इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने के पहले अरब में यौन संबंधों और अभिव्यक्ति की आज़ादी लगभग उसी तरह से थी, जैसे आज विकसित देशों में है. यौन संबंधों के लिए एक से अधिक व्यक्तियों से संबंध की छूट थी. मगर लोग शादीशुदा ज़िंदगी भी उसी तरह जीते थे, जैसे आज जीते हैं. इस्लाम के पहले अरब में वेश्यावृत्ति की आज़ादी थी. इस तरह के यौन संबंधों को किसी पाप की श्रेणी में नहीं रखा जाता था. मक्का में इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले एक और प्रथा निम्न प्रकार से थी:- वेश्याएं, जिन्हें अल-बगाया कहा जाता था, अपने टेंट में रहती थीं. जब वो संभोग के लिए तैयार होती थीं, तो अपने टेंट के बाहर एक झंडा लगा देती थीं. जिसे देखकर मर्द उनके पास जाते थे. जब तक झंडा न दिखे, तब तक कोई भी आदमी उनके समीप नहीं जाता था. इसी तरह से शादी शुदा औरतों को भी छूट थी कि वो अपने मर्द के साथ रहना चाहती है या नहीं. कोई शादीशुदा औरत अगर अपने मर्द से तलाक़ लेना चाहती थी तो अपने टेंट का रास्ता बदल देती थी. यानि वो टेंट का मुह उलटी दिशा में खोल देती थी. जिस से उसका मर्द समझ जाता था कि अब उसकी औरत उसमे उत्सुक नहीं है. ये एक तरह का तलाक़ था, जो औरतें अपने मर्दों को देती थीं. खुले यौन संबंधों के कई उदाहरण इस्लाम के पहले के अरब में मिलते हैं. इन यौन संबंधों को कई नामों से जाना जाता था. नामकरण मिलने का मतलब ही यही है कि इस तरह के यौन संबंध प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे. समाज में स्वीकार्य थे. उदाहरण के लिए एक यौन संबंध था अर-रहत, जिसमे दस आदमी एक औरत से मिलते थे और यौन संबंध स्थापित करते थे. जब वो औरत गर्भवती हो जाती थी, तो वो उन दसों मर्दों के पास जाती थी. और फिर उनमें से किसी एक मर्द को बच्चे का पिता चुनती थी. फिर उसी मर्द को उस बच्चे के लालन पालन का भार उठाना होता था. वो औरत जिस किसी मर्द को भी चुने, उसे स्वीकार ही करना होता था. वो मर्द अपनी ज़िम्मेदारी से भागता नहीं था. उपरोक्त सब प्रथाओं को मुहम्मद साहब ने समाप्त किया। और औरतों को एक सम्मानजनक जिन्दगी और ओहदा दिया।
Pahli bara aayato ka bila shubha lajvaab...misaal dya aapne.... Bht hi behtreen.... Or aage ki baato me gunjaish hai... K badd qirdaaro se mna kya hai to... Lafz qaaifreen mushriqeen q istemaal kya gya hai.... Vha dosre jumle ho skte the... Khair fir bhi kaafi hdd tk...acha smjhaya hai apne....I will spport..u... 🤝🤝🤝🤝
Guru dev apke jese aaj tak koi molana saab nhi dekhe apke shri charno me mera namn he
Molana sab jitne apke show dekhe apse bad kar aaj tak koi nahi dekha apko meri taraf se salam charan sparsh
Aapka har lafj bajiv hai bahut hi shandar bayan karte hain mai aapke liye dua karta hun tamam duniya ke muslim pariwar aapki baton ko sunegi aur amal karegi to maja jindgi ka badal jayega
हिंदी में लिखो सोलंकी जी
आप जैसे लोगो की ही जरूरत है
आज के समय🙏🙏🙏🙏
आप जैसे मौलाना का इस देश को जरूरत है
माशाअललाह। अललाह हम सबको हेदायत और हेफाजत करो। हम मुसलमानो को एक और नेक करो हक परसत करो बातिल परसती से एव शिरक बिदात से बचने की तौफिक दे आमीन।
Very very good explanation
Every moulana must fallow this
Thank you
Bahut khoob shree Man. Natmastak hai aapke saamne.
agar ye baat har insan ko samajh me aa jaye to her insan achha ho jaye wah re quran teri azmaton pe mai qurban.bahut achha bayaan bahut khoob.samjhane ka tariqa la jawab iman taza ho gaya.
Aap jese sare maulana ho jay to kabhi koi hindu muslim nhi karega jai ho
Wah gjb
Very interesting video
"Maulanaji "
Desh ka har dindar aap jaisa samzdar ho to duniya se badtamiji aur dahashatgardi mit jayengi .
Maulana Gulzar Husaini Islaam ka
Kohinur hira hai.
Dhule. Maharastra.
Masha Allah bhut achchi tshreeh ki h Allah haq par chalne aur haq khne ki toofeeq ata farmay aameen
Pahli baar itne khubsurat vichar sune ❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
ईश्वर आपको लंबे समय तक जिंदा रखे यही मेरी इच्छा हे. Apane जो कुरान की 26आएतो के बारे सही अर्थ बताया यह संदेस samste मोल्वियो मुल्लाओ ओर इस्लाम के उन विद्वानों को जो कुरान के बारे मे उल्टी बाते बताते हे उन्हे apeko सीख देना चाहिए
सही बात सर आप हमेशा ऐसे ही सही बात और सही अर्थ की व्याख्या किया करे भगवान आपको सलामत रखे ।आप जैसे लोगो की इस दुनिया को जरूरत है ।जो धर्म की सही व्याख्या करे जैसे आप । आपको मेरा शत शत नमन
Bahut khoob molana mai ek sunni hun lekin aapne jis tarah se samjhaya Subhan allah
हे ईश्वर तुझे हमने दिल से पुकारा,
रखना सदा हम पे अपना सहारा,
न हिंदू, न सिख हो, ईसाई मुस्लमा,
इंसानियत हो धर्म में ये सभी का,
गूंजे चमन में ये प्यार का नारा,
रखना सदा हम पे अपना सहारा,
जहां में कभी ना हो कोई बुराई,
सदा चमके तन मन में सबके भलाई,
बना दो जहां को स्वर्ग सा प्यारा,
रखना सदा हम पे अपना सहारा,
नादान है सारे हमें ज्ञान दे दो,
मिलके रहें ऐसा वरदान दे दो,
खुशियों से महके ये जीवन हमारा,
रखना सदा हम पे अपना सहारा,
हे ईश्वर तुझे हमने दिल से पुकारा,
Wrt तिलक राज योगी
Sachcha Islam kbi kisi se ladhne nhi gya.
अल्लाह बरकतो ताला आपको लंबी उमर और सेहत्याबी अता फरमाएं और मेरी गुज़ारिश है जिन आयतों का हवाला आपने दिया है( आयत 190 और 91) इसके तहत सन 2002 गोधरा में रेलगाड़ी जलाने वाले तो सबसे बड़े गुनहगार हैं उनकी इस गैर इंसानियत भरे गुनाह पर किसी तकरीर में बोलिए । और ये मेरी आपसे तहेदिल से गुजारिश है
Ye sach hai jisne kirtt kiya hai wo musalman nahi ho sakta hai
Kapoor sahab aap us time ghodhra me the keya. Ghodhra or gujrat danga me kiska fayeda huyi. Aaj wohi desh sabhal raha hai. Na marne wale ka pata or marne wale ka pata.
अच्छे मौलानाओं को ,आगे आकर युवाओं को समझाना चाहिये।
नमाज को अपने बहुत सुन्दर समझाते है,खुदा आपको सलामत रखें।
Subhan ram subhan Alla
Aap ko alla shlamat rakhe
Aap ko lakho shlam Jay Shree ram
Aap husayni Hay aap ko lakho shlam Jay Shree ram
Aap shahi shmaghdar Hay
Dil se namshkar hi aap ko
Allah Movla Aapke Elmai mai bahut eizafa kare Rabe zidni Elmam Bare Elaha Bare Elaha Bare Elaha Rabiulaalmin.
Jazakallah kya bayan hai
Vah Molana ji hame garve hai aap jaise updeshak par
MashaAllah
JazakAllahukhiran
कितनी खूबसूरती से कितनी अच्छी व्याख्या की है कुरान की शायद यही मंतव्य रहा होगा ईश्वर का
आपको बहुत बहुत धन्यवाद🙏💕
बहुत खुब बहुत खूब
Subhan Allah Maulana aapko Sahi salamat rakhe Allah maula
Allah pak aapko bahut hi lambi umar ata farmaaye taaki ye saara mulk Allah ke dwara bataai gai siksha ko aapke mukhmandal se sun sakey
'एक्स मुस्लिम चैनल समीर' में बहस के जवाब में मेंने लिखा है:-
जो अल्लाह और मुहम्मद रसूल पर इमान नहीं लाते, और अल्लाह और उनके रसूल ने जिन वस्तुओं को हराम करार दिया है, नहीं उनको हराम ही मानते हैं, और आखिरत पर भी इमान नहीं लाते ऐसे लोगों के खिलाफ युद्ध/जिहाद और जजिया की बात बिल्कुल सही है। क्योंकि युद्ध जिहाद और जजिया जिन लोगों के खिलाफ करने की बात कही गई है वे लोग कौन थे उनका कुछ विवरण मैं नीचे आपको लिख रहा हूं, उसको आप जरूर पढ़ें, जिससे साबित हो जाएगा कि ऐसे लोगों के खिलाफ युद्ध जिहाद और जजिया की बात बिल्कुल सही कही गई है:-
इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने के पहले मक्का में बहुत सारी कुप्रथाओं के बारे में जो मुहम्मद साहब को और इस्लाम को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, वे सारी कुप्रथाओं मुहम्मद साहब और इस्लाम के आने से पहले की हे:-
इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले अरब में जो होता था उसके बारे में पढ़िये? इन सब प्रथाओं को मुहम्मद साहब ने समाप्त किया। और औरतों को एक सम्मानजनक जिन्दगी और ओहदा दिया। क्रपया इन प्रथाओं के बारे में पढ़िये:-
इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले के अरब में यौन संबंधों की एक प्रथा जो अल-इस्तिब्दा कहलाती थी, इसमें एक मर्द अपनी पत्नी को किसी ऊंचे ओहदेवाले या वीर के पास यौन संबंध बनाने के लिए भेजता था. अरब के लोग उस समय शायर और योद्धा को बहुत सम्मान देते थे. अल-इस्तिब्दा में मर्द अपनी औरत को ज़्यादातर इन्ही लोगों के पास भेजता था. ताकि उनके घर में भी कोई कवि या योद्धा पैदा हो सके. वो औरत तब तक उन लोगों के पास रहती थी, जब तक वो गर्भवती न हो जाए. गर्भवती होने पर वो अपने पति के पास वापस चली आती थी.
एक संबंध होता था अल-मुदामादा, जिसमें एक औरत अपने असली पति के अलावा एक या दो और पति चुनती थी. ये सूखे और लड़ाई की स्थिति के लिए होता था ताकि एक मर्द के न रहने पर दूसरे से काम चलाया जा सके. इस संबंध को बहुत अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था. मगर फिर भी ये संबंध पुराने अरब की संस्कृति का एक हिस्सा था. अल-मुकादाना गुप्त संबंधों को कहा जाता था. जिसका ज़िक्र कुरान (Quran 4:25) में भी आया है. गुप्त प्रेम संबंध हर समाज की तरह अरब की सभ्यता का भी हिस्सा थे. उस वक़्त इन्हें पाप की श्रेणी में नहीं रखा जाता था. इस बात की सत्यता पुराने अरब की इस कहावत से होती है कि "जो किसी को दिखाई न दे, वो गुनाह नहीं है मगर जो दिख जाए वो पाप है."
इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने के पहले अरब में यौन संबंधों और अभिव्यक्ति की आज़ादी लगभग उसी तरह से थी, जैसे आज विकसित देशों में है. यौन संबंधों के लिए एक से अधिक व्यक्तियों से संबंध की छूट थी. मगर लोग शादीशुदा ज़िंदगी भी उसी तरह जीते थे, जैसे आज जीते हैं. इस्लाम के पहले अरब में वेश्यावृत्ति की आज़ादी थी. इस तरह के यौन संबंधों को किसी पाप की श्रेणी में नहीं रखा जाता था.
मक्का में इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले एक और प्रथा निम्न प्रकार से थी:-
वेश्याएं, जिन्हें अल-बगाया कहा जाता था, अपने टेंट में रहती थीं. जब वो संभोग के लिए तैयार होती थीं, तो अपने टेंट के बाहर एक झंडा लगा देती थीं. जिसे देखकर मर्द उनके पास जाते थे. जब तक झंडा न दिखे, तब तक कोई भी आदमी उनके समीप नहीं जाता था. इसी तरह से शादी शुदा औरतों को भी छूट थी कि वो अपने मर्द के साथ रहना चाहती है या नहीं. कोई शादीशुदा औरत अगर अपने मर्द से तलाक़ लेना चाहती थी तो अपने टेंट का रास्ता बदल देती थी. यानि वो टेंट का मुह उलटी दिशा में खोल देती थी. जिस से उसका मर्द समझ जाता था कि अब उसकी औरत उसमे उत्सुक नहीं है. ये एक तरह का तलाक़ था, जो औरतें अपने मर्दों को देती थीं.
खुले यौन संबंधों के कई उदाहरण इस्लाम के पहले के अरब में मिलते हैं. इन यौन संबंधों को कई नामों से जाना जाता था. नामकरण मिलने का मतलब ही यही है कि इस तरह के यौन संबंध प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे. समाज में स्वीकार्य थे. उदाहरण के लिए एक यौन संबंध था अर-रहत, जिसमे दस आदमी एक औरत से मिलते थे और यौन संबंध स्थापित करते थे. जब वो औरत गर्भवती हो जाती थी, तो वो उन दसों मर्दों के पास जाती थी. और फिर उनमें से किसी एक मर्द को बच्चे का पिता चुनती थी. फिर उसी मर्द को उस बच्चे के लालन पालन का भार उठाना होता था. वो औरत जिस किसी मर्द को भी चुने, उसे स्वीकार ही करना होता था. वो मर्द अपनी ज़िम्मेदारी से भागता नहीं था.
उपरोक्त सब प्रथाओं को मुहम्मद साहब ने समाप्त किया। और औरतों को एक सम्मानजनक जिन्दगी और ओहदा दिया।
H-&&m
सुभान अल्लाह। बहुत खूब। ईश्वर आपको लम्बी उम्र दराज करे।इन्होने कुरान शरीफ पढने की इच्छा जगा दी।
बोली एक अमोल है जो कोई बोलन जानी।
हिये तराजू तोलके तब मुख बाहर आनी
good moulana sahab mojuda wqt me aap jaisy molana ko slaamt rakhey
Mashallah achhi bat btaye aap ayese deen ke aalimo ki jarurat hai
Ye matter nhi krta hai ki ham shiya hai ya Sunni BSS hm muslman hai ek Nabi ke manne wale hai ek kalma padhne wale hai achha lga sun ke.
Sar Main Ek Hindu hun fir bhi aap bahut Sach bolate Hain aapko respect karta hun
आप को सलाम है आपके ऊपर मालिक का र हम hai aap apane karam se malik ko bhee jeet lenge. Aur jo malik ko jeet liya wo sari duniya ko jeet liya
Very very very. Beautiful. Molbi. Sahab
Bahut achi takrir lajawab
Aap Ishwar ke sacche bhakt Hain aur sacche Hindustan aur sacche Insan
Yhi sachha gyan our insaniyt hai esee kee zarurat hai
आयतों की व्याख्याएं बार बार समुदायों को समझाने की जरूरत है।मेरी समझ में यह भी आया कि गैर मुस्लिम, मुस्लिमों के अंदर ही हैं,जो सच्चे मुसलमान होने का फ़र्ज़ अदा नहीं करता। परन्तु व्यवहार में यह समझ पैदा करने की जरूरत है।इस तरह के मुस्लिम धर्मगुरुओं को आगे बढ़कर आयतों के बारे चल रही गलतफहमियां दूर करने का प्रयास करना चाहिए जिससे विधरमियों के बीच बढ़ रही दूरियां कम हो सके।
Aapke jaise log desh ke sachche sona hai
MashaAllaha , bahut khubsurat bayan
Bharat Guruo ka Desh Thha Gishke Kamee Se Samaj Bhtak Gaya Hai Gisey Aap jaise Viduan kee Zerurst ,Hai Aap Salamat Raheyn
बात आपकी सही है समझाने कि तरीका भी सही है सभी आलीमे दिन को मिलकर एकतलाफ खतम करदेना चाहिए
Husain Sahab dil khush kar diya aap sacche musalman
बहुत अच्छा बोलते है जनाब
Bahut sundar moulana sahab . Bahut hi achhe gyani hai . bhagwan apake jaisa purush ko salamat rakhe . Ki aap sabhi manushyo ko Gyan de sake.
'Dharma'/ 'Fitra'/ 'Basic nature' is the innate /intrinsic nature of a thing or object. for eg the dharma of snake is to bite, the fire is to heat, the ice to cool.We are all humans so our 'dharm' is 'humanity'.
'Religion' is a system to attain and develop this innate/intrinsic nature to higher level and we should follow the best available system(religion, given by true God) (out of numerous ones) for guaranteed success.
The religion/ country one is accidentally born into is not necessarily be the right one.
'Water' in sanskrit or arabic or Turkish is the same. The God of all- is the same and one only.
As Our Creator is one thatswhy we are all alike and have similar needs & desires.
Can you ask so called Gods to not make muslims? Or, instead give you 2 heads and 4 hands so that you can be identified differently from what the 'God of humans' has made them?
We are alike because our Creator is same.
As our creator is One and the same so is His message also 'one and same' for all from the beginning of human civilization on the earth that is -
1. 'Not to worship false Gods'
and
2. 'To do good Deeds/ Karma'.
That is why the message of Islam is same from 'sanatan times'( ancient days).
The people of Vedic times who worshipped 'One Unseen God' were actually muslims of those times speaking sanskrit language.
And hence 'Islam'( Submission of your will to the wishes of true God) is from ancient times and it just got revived once again( as per the yada yada hi ...principle of God) by the last messenger Muhammad SAW.
Any superiority complex, ego (of being born into some superior community) behind not following the latest commandments(Qur'an) of same true benevolent God(Creator of all) who has been guiding humans from sanatan(ancient) times is a MAJOR sin of ingratitude & Unfaithfulness.
Hope it helps.
Aapne inke takrir pe dhyan nahi diya.....,chine i dia me ghush raha hai aur india defence kar raha hai...inko pakistan ki dashhatgardi nahi dikhti...unka naam nahi liya isne.....samjhiye baat ko
@@mannukumar8305 Pakistan Afghanistan Syria hume sab jagah ki dehshatgardi dikhti hai or hum sab jagah ke bare me bolte hain. Pakistan me bhi sbse ziyda Shia ko marte hn Aatankwadi tumhe nhi, to tum Q mahan bante ho?
Bahut hi khubsurat takrir or la kebab v doll khus ho gya mawlana saheb
Molana bahut khub apka samjhana aur molana se behtar hi 👌
I salute your knowledge on Islam.
Bahut sunder prawachan,Salam sirji
This Maulana speaks truth and sense ....salutes 🫡🫡
Hussain a.s Zaindabad Salaam Yaa Hussain a.s Labbaik Yaa Hussain a.s 😭😭😭😭😭❤️❤️❤️❤️❤️🙏
Ram Ram bhaiya. App ko bhagwan ki kripa bani rahe.
Love the way you share your thoughts ❤❤
आप बहूत अच्छाईसे समझआकर बताते हो
Kya baat hai bahoot khoob Qibla ne bahut ache tarah se samjhaya hai...Maula Salamat Rakhe Ameen
1)Apply HALALA..
Means enjoyment for man .
Halala centres are in Pakistan ,the man get RS 700 to 1000/- for halala job..Good yar: male Prostitude..as per Kuran.
2) Killings of other religions if not accept Muslim religion.
3) so many odd things
'एक्स मुस्लिम चैनल समीर' में बहस के जवाब में मेंने लिखा है:-
जो अल्लाह और मुहम्मद रसूल पर इमान नहीं लाते, और अल्लाह और उनके रसूल ने जिन वस्तुओं को हराम करार दिया है, नहीं उनको हराम ही मानते हैं, और आखिरत पर भी इमान नहीं लाते ऐसे लोगों के खिलाफ युद्ध/जिहाद और जजिया की बात बिल्कुल सही है। क्योंकि युद्ध जिहाद और जजिया जिन लोगों के खिलाफ करने की बात कही गई है वे लोग कौन थे उनका कुछ विवरण मैं नीचे आपको लिख रहा हूं, उसको आप जरूर पढ़ें, जिससे साबित हो जाएगा कि ऐसे लोगों के खिलाफ युद्ध जिहाद और जजिया की बात बिल्कुल सही कही गई है:-
इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने के पहले मक्का में बहुत सारी कुप्रथाओं के बारे में जो मुहम्मद साहब को और इस्लाम को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, वे सारी कुप्रथाओं मुहम्मद साहब और इस्लाम के आने से पहले की हे:-
इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले अरब में जो होता था उसके बारे में पढ़िये? इन सब प्रथाओं को मुहम्मद साहब ने समाप्त किया। और औरतों को एक सम्मानजनक जिन्दगी और ओहदा दिया। क्रपया इन प्रथाओं के बारे में पढ़िये:-
इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले के अरब में यौन संबंधों की एक प्रथा जो अल-इस्तिब्दा कहलाती थी, इसमें एक मर्द अपनी पत्नी को किसी ऊंचे ओहदेवाले या वीर के पास यौन संबंध बनाने के लिए भेजता था. अरब के लोग उस समय शायर और योद्धा को बहुत सम्मान देते थे. अल-इस्तिब्दा में मर्द अपनी औरत को ज़्यादातर इन्ही लोगों के पास भेजता था. ताकि उनके घर में भी कोई कवि या योद्धा पैदा हो सके. वो औरत तब तक उन लोगों के पास रहती थी, जब तक वो गर्भवती न हो जाए. गर्भवती होने पर वो अपने पति के पास वापस चली आती थी.
एक संबंध होता था अल-मुदामादा, जिसमें एक औरत अपने असली पति के अलावा एक या दो और पति चुनती थी. ये सूखे और लड़ाई की स्थिति के लिए होता था ताकि एक मर्द के न रहने पर दूसरे से काम चलाया जा सके. इस संबंध को बहुत अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था. मगर फिर भी ये संबंध पुराने अरब की संस्कृति का एक हिस्सा था. अल-मुकादाना गुप्त संबंधों को कहा जाता था. जिसका ज़िक्र कुरान (Quran 4:25) में भी आया है. गुप्त प्रेम संबंध हर समाज की तरह अरब की सभ्यता का भी हिस्सा थे. उस वक़्त इन्हें पाप की श्रेणी में नहीं रखा जाता था. इस बात की सत्यता पुराने अरब की इस कहावत से होती है कि "जो किसी को दिखाई न दे, वो गुनाह नहीं है मगर जो दिख जाए वो पाप है."
इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने के पहले अरब में यौन संबंधों और अभिव्यक्ति की आज़ादी लगभग उसी तरह से थी, जैसे आज विकसित देशों में है. यौन संबंधों के लिए एक से अधिक व्यक्तियों से संबंध की छूट थी. मगर लोग शादीशुदा ज़िंदगी भी उसी तरह जीते थे, जैसे आज जीते हैं. इस्लाम के पहले अरब में वेश्यावृत्ति की आज़ादी थी. इस तरह के यौन संबंधों को किसी पाप की श्रेणी में नहीं रखा जाता था.
मक्का में इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले एक और प्रथा निम्न प्रकार से थी:-
वेश्याएं, जिन्हें अल-बगाया कहा जाता था, अपने टेंट में रहती थीं. जब वो संभोग के लिए तैयार होती थीं, तो अपने टेंट के बाहर एक झंडा लगा देती थीं. जिसे देखकर मर्द उनके पास जाते थे. जब तक झंडा न दिखे, तब तक कोई भी आदमी उनके समीप नहीं जाता था. इसी तरह से शादी शुदा औरतों को भी छूट थी कि वो अपने मर्द के साथ रहना चाहती है या नहीं. कोई शादीशुदा औरत अगर अपने मर्द से तलाक़ लेना चाहती थी तो अपने टेंट का रास्ता बदल देती थी. यानि वो टेंट का मुह उलटी दिशा में खोल देती थी. जिस से उसका मर्द समझ जाता था कि अब उसकी औरत उसमे उत्सुक नहीं है. ये एक तरह का तलाक़ था, जो औरतें अपने मर्दों को देती थीं.
खुले यौन संबंधों के कई उदाहरण इस्लाम के पहले के अरब में मिलते हैं. इन यौन संबंधों को कई नामों से जाना जाता था. नामकरण मिलने का मतलब ही यही है कि इस तरह के यौन संबंध प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे. समाज में स्वीकार्य थे. उदाहरण के लिए एक यौन संबंध था अर-रहत, जिसमे दस आदमी एक औरत से मिलते थे और यौन संबंध स्थापित करते थे. जब वो औरत गर्भवती हो जाती थी, तो वो उन दसों मर्दों के पास जाती थी. और फिर उनमें से किसी एक मर्द को बच्चे का पिता चुनती थी. फिर उसी मर्द को उस बच्चे के लालन पालन का भार उठाना होता था. वो औरत जिस किसी मर्द को भी चुने, उसे स्वीकार ही करना होता था. वो मर्द अपनी ज़िम्मेदारी से भागता नहीं था.
उपरोक्त सब प्रथाओं को मुहम्मद साहब ने समाप्त किया। और औरतों को एक सम्मानजनक जिन्दगी और ओहदा दिया।
Great sir
आप हमेशा सलामत रहे आपके ऊपर ऊपर वाले का हाथ रहे,,,, ललित जोशी लखनऊ 🕋🕋🕋🕋🕋🕋
Allah aur mohammad arabi bideshi h esako manana haram h
@@shyammohan9895 Acha. To Aap logo k yha bhi haram Aur halal mana jata h. ALLAH Aur Hazrat Mohammad a.s. sari duniya k liye h. Na ki ye ki videshi h. Aur IMAM HUSSAIN A.S NE to Hindustan aane ki tamanna bhi Zahir ki thi.
Great
MashaAllah Allah slamat rkkhe.
Bahut khoob maulana
Guljar ji apko Dil se salaam
इस्लाम का मतलब झुकना ही होता है
हाथ में हथियार कभी नहीं लेना है
इस्लाम का मतलब अमन ए पैगाम है
इस्लाम है खतरे में कहना नाफरमान है
खुद की देने की होती है बलि और कुर्बानी
जब अपने कर्मों से पहुंचे दूजे को हानि
Sahi kaha hai aapne, islam aap jaiso
Ka kahon sunta hai.
Masah Allah mola salamat rakhen 👍♥️🤲🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
Moulana ji aapko hindu or muslim dono sunte hain , lekin aapke ek bhi speech galat nhi hai aapne bahut achche se samjhaya hai
'Dharma'/ 'Fitra'/ 'Basic nature' is the innate /intrinsic nature of a thing or object. for eg the dharma of snake is to bite, the fire is to heat, the ice to cool.We are all humans so our 'dharm' is 'humanity'.
'Religion' is a system to attain and develop this innate/intrinsic nature to higher level and we should follow the best available system(religion, given by true God) (out of numerous ones) for guaranteed success.
The religion/ country one is accidentally born into is not necessarily be the right one.
'Water' in sanskrit or arabic or Turkish is the same. The God of all- is the same and one only.
As Our Creator is one thatswhy we are all alike and have similar needs & desires.
Can you ask so called Gods to not make muslims? Or, instead give you 2 heads and 4 hands so that you can be identified differently from what the 'God of humans' has made them?
We are alike because our Creator is same.
As our creator is One and the same so is His message also 'one and same' for all from the beginning of human civilization on the earth that is -
1. 'Not to worship false Gods'
and
2. 'To do good Deeds/ Karma'.
That is why the message of Islam is same from 'sanatan times'( ancient days).
The people of Vedic times who worshipped 'One Unseen God' were actually muslims of those times speaking sanskrit language.
And hence 'Islam'( Submission of your will to the wishes of true God) is from ancient times and it just got revived once again( as per the yada yada hi ...principle of God) by the last messenger Muhammad SAW.
Any superiority complex, ego (of being born into some superior community) behind not following the latest commandments(Qur'an) of same true benevolent God(Creator of all) who has been guiding humans from sanatan(ancient) times is a MAJOR sin of ingratitude & Unfaithfulness.
Hope it helps.
Allah se dua hai shiaon me aap jaise aur aalim paida kare jo hamari kom ko sahi tafsil pesh kare moh Ayyub sunni
दुश्मनी को प्रेम से जीतो तलवार से नहीं ,लड़ना लड़ने वालों को दुश्मनी के सिवाय कुछ नहीं है।
Masha Allah Bohat Khub 👍❤️
Molana Gulzar Husain Sahab Kya samjane ka tarika hai subhanallah Allah aapako har bala se mahafuz take aamin
Well Done Haq Farmaya Aapne Maulana Sahab, Allah Pak Aapko Haq Par Kayam Rakhe Aameen
Slam Aap ko Allah Aap slamt rakhe Ameen ya rab 🤲
)Apply HALALA..
Means enjoyment for man .
Halala centres are in Pakistan ,the man get RS 700 to 1000/- for halala job..Good yar: male Prostitude..as per Kuran.
2) Killings of other religions if not accept Muslim religion.
3) so many odd things
My father loved this bayaan, and he shared this video to me and i also loved it ❣️✔️
شیطان مانتا مگر نہ نئ نہیں مانتا ہ
मौलाना आप दानिशवर हैं मुझे बताएं खुदा का इस्लाम गाय के बारे में क्या कहता है जहां तकमेरी मालूमात है कुरान में कहीं नही लिखा है गाय खाओ मेने तो यह भी सुना है दुनिया की सबसे बड़ी गोशाला अरब में है 500 कर्मचारी काम करते हैं वहां गाय को मारा नही जाता पाला जाता है
@@qayamatmydaan4874 by
Hazrat Husain allahissam zindabaad 💐💐💐💐💐
Islam zindabaad 💐💐💐💐💐
jazakallah Agha Khuda salamat rakhye apko 🙌🙌🙌🙌
Zindabad jnab bhot khoob slamat rahe aabad rahen
Massaha Allaha App bahut hi accha
Hain
Thanks for the valuable information and nice presentation.
Thanks saikh
Very nice speech
Allah pak aap ko salamat rakhe
Beshak Sahi Maulana 👍
किया बात है किया कहने आप के , आपकी इंसानियत के , मेरा एक निवेदन है , आप इस्लाम की सच्ची बातें ,(अगर कुछ इंसानियत के लिए है तो ) मुस्लिमो की उग्रवादी सोच, के बारे यूरोप , अमेरिका , जैसे देशों में आएं और दुनिया को बताये
यह मोलाना कुरान अलग बोल रहे हैं असली कुरान की बात यही जो जिहादी कर रहे हैं वेसे मोलाना की बाते अच्छी लगी काश हर मुसलमान की समझ में आ जाए
Very good Maulana sahab ❤️
Bahut khoob .aap ko Salam kubool ho....jawed
Dunia me shia maulana ki taqreer hi sachchi hoti he
Bahot achhe
Maashaallah
Bahut sundar shandar lazbav maulana saheb.parantu.aapke bat hakikat me vaisa follow nahi hota.
अल्लाह आपको हिफाजत से रखे धन्यवाद
very nice sir
Allah apko lambi umar de. Please circulate this in whole India. It will help improve relations between Muslims and other religions
Kia kehney molana sb. Allah taraqi de.
Awesome, pranam🙏🙏🙏🙏🙏🙏
'Dharma'/ 'Fitra'/ 'Basic nature' is the innate /intrinsic nature of a thing or object. for eg the dharma of snake is to bite, the fire is to heat, the ice to cool.We are all humans so our 'dharm' is 'humanity'.
'Religion' is a system to attain and develop this innate/intrinsic nature to higher level and we should follow the best available system(religion, given by true God) (out of numerous ones) for guaranteed success.
The religion/ country one is accidentally born into is not necessarily be the right one.
'Water' in sanskrit or arabic or Turkish is the same. The God of all- is the same and one only.
As Our Creator is one thatswhy we are all alike and have similar needs & desires.
Can you ask so called Gods to not make muslims? Or, instead give you 2 heads and 4 hands so that you can be identified differently from what the 'God of humans' has made them?
We are alike because our Creator is same.
As our creator is One and the same so is His message also 'one and same' for all from the beginning of human civilization on the earth that is -
1. 'Not to worship false Gods'
and
2. 'To do good Deeds/ Karma'.
That is why the message of Islam is same from 'sanatan times'( ancient days).
The people of Vedic times who worshipped 'One Unseen God' were actually muslims of those times speaking sanskrit language.
And hence 'Islam'( Submission of your will to the wishes of true God) is from ancient times and it just got revived once again( as per the yada yada hi ...principle of God) by the last messenger Muhammad SAW.
Any superiority complex, ego (of being born into some superior community) behind not following the latest commandments(Qur'an) of same true benevolent God(Creator of all) who has been guiding humans from sanatan(ancient) times is a MAJOR sin of ingratitude & Unfaithfulness.
Hope it helps.
Aapne quran ko sahi tarike se define kiya, sabhi mazhab ke logo ko Aapki ye video dekhani chahiye, taki logo ki galat fahmi dur ho.
'एक्स मुस्लिम चैनल समीर' में बहस के जवाब में मेंने लिखा है:-
जो अल्लाह और मुहम्मद रसूल पर इमान नहीं लाते, और अल्लाह और उनके रसूल ने जिन वस्तुओं को हराम करार दिया है, नहीं उनको हराम ही मानते हैं, और आखिरत पर भी इमान नहीं लाते ऐसे लोगों के खिलाफ युद्ध/जिहाद और जजिया की बात बिल्कुल सही है। क्योंकि युद्ध जिहाद और जजिया जिन लोगों के खिलाफ करने की बात कही गई है वे लोग कौन थे उनका कुछ विवरण मैं नीचे आपको लिख रहा हूं, उसको आप जरूर पढ़ें, जिससे साबित हो जाएगा कि ऐसे लोगों के खिलाफ युद्ध जिहाद और जजिया की बात बिल्कुल सही कही गई है:-
इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने के पहले मक्का में बहुत सारी कुप्रथाओं के बारे में जो मुहम्मद साहब को और इस्लाम को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, वे सारी कुप्रथाओं मुहम्मद साहब और इस्लाम के आने से पहले की हे:-
इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले अरब में जो होता था उसके बारे में पढ़िये? इन सब प्रथाओं को मुहम्मद साहब ने समाप्त किया। और औरतों को एक सम्मानजनक जिन्दगी और ओहदा दिया। क्रपया इन प्रथाओं के बारे में पढ़िये:-
इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले के अरब में यौन संबंधों की एक प्रथा जो अल-इस्तिब्दा कहलाती थी, इसमें एक मर्द अपनी पत्नी को किसी ऊंचे ओहदेवाले या वीर के पास यौन संबंध बनाने के लिए भेजता था. अरब के लोग उस समय शायर और योद्धा को बहुत सम्मान देते थे. अल-इस्तिब्दा में मर्द अपनी औरत को ज़्यादातर इन्ही लोगों के पास भेजता था. ताकि उनके घर में भी कोई कवि या योद्धा पैदा हो सके. वो औरत तब तक उन लोगों के पास रहती थी, जब तक वो गर्भवती न हो जाए. गर्भवती होने पर वो अपने पति के पास वापस चली आती थी.
एक संबंध होता था अल-मुदामादा, जिसमें एक औरत अपने असली पति के अलावा एक या दो और पति चुनती थी. ये सूखे और लड़ाई की स्थिति के लिए होता था ताकि एक मर्द के न रहने पर दूसरे से काम चलाया जा सके. इस संबंध को बहुत अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था. मगर फिर भी ये संबंध पुराने अरब की संस्कृति का एक हिस्सा था. अल-मुकादाना गुप्त संबंधों को कहा जाता था. जिसका ज़िक्र कुरान (Quran 4:25) में भी आया है. गुप्त प्रेम संबंध हर समाज की तरह अरब की सभ्यता का भी हिस्सा थे. उस वक़्त इन्हें पाप की श्रेणी में नहीं रखा जाता था. इस बात की सत्यता पुराने अरब की इस कहावत से होती है कि "जो किसी को दिखाई न दे, वो गुनाह नहीं है मगर जो दिख जाए वो पाप है."
इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने के पहले अरब में यौन संबंधों और अभिव्यक्ति की आज़ादी लगभग उसी तरह से थी, जैसे आज विकसित देशों में है. यौन संबंधों के लिए एक से अधिक व्यक्तियों से संबंध की छूट थी. मगर लोग शादीशुदा ज़िंदगी भी उसी तरह जीते थे, जैसे आज जीते हैं. इस्लाम के पहले अरब में वेश्यावृत्ति की आज़ादी थी. इस तरह के यौन संबंधों को किसी पाप की श्रेणी में नहीं रखा जाता था.
मक्का में इस्लाम और मुहम्मद साहब के आने से पहले एक और प्रथा निम्न प्रकार से थी:-
वेश्याएं, जिन्हें अल-बगाया कहा जाता था, अपने टेंट में रहती थीं. जब वो संभोग के लिए तैयार होती थीं, तो अपने टेंट के बाहर एक झंडा लगा देती थीं. जिसे देखकर मर्द उनके पास जाते थे. जब तक झंडा न दिखे, तब तक कोई भी आदमी उनके समीप नहीं जाता था. इसी तरह से शादी शुदा औरतों को भी छूट थी कि वो अपने मर्द के साथ रहना चाहती है या नहीं. कोई शादीशुदा औरत अगर अपने मर्द से तलाक़ लेना चाहती थी तो अपने टेंट का रास्ता बदल देती थी. यानि वो टेंट का मुह उलटी दिशा में खोल देती थी. जिस से उसका मर्द समझ जाता था कि अब उसकी औरत उसमे उत्सुक नहीं है. ये एक तरह का तलाक़ था, जो औरतें अपने मर्दों को देती थीं.
खुले यौन संबंधों के कई उदाहरण इस्लाम के पहले के अरब में मिलते हैं. इन यौन संबंधों को कई नामों से जाना जाता था. नामकरण मिलने का मतलब ही यही है कि इस तरह के यौन संबंध प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे. समाज में स्वीकार्य थे. उदाहरण के लिए एक यौन संबंध था अर-रहत, जिसमे दस आदमी एक औरत से मिलते थे और यौन संबंध स्थापित करते थे. जब वो औरत गर्भवती हो जाती थी, तो वो उन दसों मर्दों के पास जाती थी. और फिर उनमें से किसी एक मर्द को बच्चे का पिता चुनती थी. फिर उसी मर्द को उस बच्चे के लालन पालन का भार उठाना होता था. वो औरत जिस किसी मर्द को भी चुने, उसे स्वीकार ही करना होता था. वो मर्द अपनी ज़िम्मेदारी से भागता नहीं था.
उपरोक्त सब प्रथाओं को मुहम्मद साहब ने समाप्त किया। और औरतों को एक सम्मानजनक जिन्दगी और ओहदा दिया।
Masallah..very Nice video I love you
Masa Allah Mola salamat rakhe
Subhanallah bahut acchi baat Kahi aapane
Aap hamesha salamat raho ....🙏
Pahli bara aayato ka bila shubha lajvaab...misaal dya aapne....
Bht hi behtreen....
Or aage ki baato me gunjaish hai...
K badd qirdaaro se mna kya hai to...
Lafz qaaifreen mushriqeen q istemaal kya gya hai....
Vha dosre jumle ho skte the...
Khair fir bhi kaafi hdd tk...acha smjhaya hai apne....I will spport..u...
🤝🤝🤝🤝
अच्छा लगा सुन के