Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 31

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  • เผยแพร่เมื่อ 8 ก.พ. 2025
  • क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति।
    कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ॥31॥
    वे शीघ्र धार्मात्मा बन जाते हैं और चिरस्थायी शांति पाते हैं। हे कुन्ती पुत्र! निडर हो कर यह घोषणा कर दो कि मेरे भक्त का कभी पतन नहीं होता।

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