साँवरिया थारा काज समझ न आव ! राजस्थानी भजन! गायक गोपाल दास वैष्णव

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  • เผยแพร่เมื่อ 4 ม.ค. 2018
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    Singar gopal das vaishnav
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    Sanwar lal vaishnav
    हे स्वामी जी तेरा काज समज नाही आया .
    नारी के दो शान बणाया ,
    उण में दध बणे केसे ज कर बेठा वोई अमरपद पाया मुख मे दात बतीस कई ,
    जीबया स्वाद करे केसे स्वामी जी तेरा . . . .
    नेण निरखकर धागा ट्रकी कान स्बद सुनताकेसे धर अस्मानपवन ओर . पाणी . अगन बणाया तमकैसे ,
    गन्ध सगन्धि लेत नाकसे वास अजब आता केसे चांद सुरज दोदिप बणाया ,
    उनका गाट अलग केसे ,
    चांद सुरज पूर्व से उगता ,
    पिश्वम ने आता केसे ,
    तारा तुने अजब बणाया ,
    रेण दिवस होता केसे ,
    चोला चमडी हे तन उपरे पूर्जा तो अजब बणाया सात दिप ओर नो खाण्डामें सब ने तोअलगसजाया स्वामी जी
    तेरा . . . स्वामी जी तेरा . . .
    हा बिजली चमके उपर गाजे ,
    बादल मे जल रे केसे जल सा तुने गाट बणया ,
    रूम रम चेतन केसे जलपे क्या निम जीम की ,
    बादल अदर पदर केसे कुण बोलता गटके अन्दर , छुपालिया अन्दर केसे सात दिना का सातबार है ,
    महिना साल बणियाकेसे सासा तेरी अजब बणाई ,
    नामी में स्वास रहे केसे बावन अक्सर तुने बणाया ,
    गिनती भेद अलग केसे कूण आता हे कूण जाता ,
    ईण का भंद मिले केसे चीवदा लोग ओर चोवदा रतन येसब तुमने बणाया मरणजलम और दुखसुख का वोसभी फन्दकटाया स्वामी जी तोरा . . .
    स्वामी जी तोरा . . .
    हे लखाचोरासी जुण बणाई ,
    सबका जीव अलग केसे बिज मूल के डाल बणया ,
    पता फूल अलग केसे चार तुने खान बणाई ,
    उनका नाम अलग केसे कई जडेली जडी बुटिया ,
    खाता अमर मरे केसे नर नारी दो तीन बणाया ,
    उनका रण अलग केसे आन्त्रमनन्द भारती जी गावे ,
    तेरा जसण मिले केसे हाथपाव सब ऐक सरीका ,
    मख पैसूरत अलगकेसे येसब लिला तूने फेलाई तमफिर अलग रया केसे हाड मांस ओर दुध गरब मैं रोसब तो अपने बणया तेरा करतब हे वो भारी ,
    देख देखा गबराया स्वामी जी तोरा . . . स्वामी जी तेरा काज समज . . . . . . . . . . . . . . ? Sk 🎶 बड़ला ( आसिन्द )
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