आजु धन्य मैं धन्य अति जद्यपि सब बिधि हीन। निज जन जानि राम मोहि संत समागम दीन।। पूज्य श्री अखंडानंद सरस्वती जी महाराज के चरणों मे कोटि कोटि नमन। पूज्य श्री आशारामजी बापू के चरणों में कोटि कोटि नमन । रविवार 17 जुलाई 2022
Maharaj shree ko koti koti koti pranaam very very good clarity of knowledge kitna punya se ye sunana milta hai dhanyawad mr suhkla for giving swamijis pravachn thanks a lot aisa sunanana mila jo kahee nahi hai
ब्रह्मज्ञान उसको कहते हैं जो सारी गांठों को तोड़ दे। सारा दुःख चित् जड़ ग्रन्थि की वजह से है। चेतन जीव ने जड़ सांसारिक वस्तुओं के साथ गांठ बांध ली है। सारा दुःख उस गांठ का है। ब्रह्मज्ञान यानि अपरिच्छिन्न का ज्ञान। ब्रह्मज्ञान वह तलवार है जो अविद्या ग्रन्थि को, हृदय ग्रन्थि को, काम-क्रोध-लोभ-मोह ग्रन्थि को, ग्रन्थिमात्र का भेदन कर देता है। जब ग्रन्थि की वजह से हमारे हृदय में सुख नहीं मिलता है तब बाहर जाते हैं। वह रमण कहलाता है। रमण ही भ्रम है। अन्य का अच्छे बुरे का ज्ञान राग द्वेष का जनक होता है। और अपने स्वरूप का ज्ञान राग द्वेष का जनक नहीं होता है। अन्य को जानने से वह नहीं मिलती है, कोशिश करनी पड़ती है। अपने आपको जानने से वह मिला हुआ ही है, कोशिश नहीं करनी पड़ती। अन्य विषयक ज्ञान होने के बाद भी प्राप्ति और परिहार के लिए प्रयत्न की अपेक्षा रखता है। स्वविषयक ज्ञान अपेक्षा नहीं रखता है। अज्ञान से किसी वस्तु की अप्राप्ति नहीं होती, और ज्ञान से किसी वस्तु की प्राप्ति नहीं होती। जो वस्तु जैसी है उसे वैसा बताना ज्ञान है। जैसी है वैसी न समझना अध्यास है। मैं ब्रह्म नहीं हूँ यह अज्ञान जब मिट जाएगा तो ब्रह्म मिल जाएगा। ब्रह्म अप्राप्तव्य नहीं है, नित्य प्राप्त ही है। नित्य प्राप्त में ही अप्राप्त का भ्रम है। ज्ञान से ब्रह्म की प्राप्ति नहीं, प्राप्ति सी होती है। ज्ञान से निवृत्त की ही निवृत्ति होती है। न आत्मज्ञान का साधन कर्म है न आत्मज्ञान का फल कर्म है। संसार के सविशेष ज्ञान का साधन और फल कर्म है। आत्मज्ञान का फल है निःसाधनता, मुक्ति, साध्य साधन दोनों से विनिर्मुक्ति। साध्य साधन दोनों का बाध है ज्ञान का फल। क्योंकि दोनों अविद्यामूलक हैं। कर्म निर्माण है, प्रमाण नहीं है। कर्म से निर्माण होता है प्रकाश नहीं होता। कर्म से 5 प्रकार की वस्तु मिलती है। - उत्पाद्य/पैदा करना (घड़ा बनाना) - आप्य (घड़ा उधार ला सकते हैं, खुदको मन्त्र न आए तो गुरु से सीख ले) - विकार कर सकते हैं - संस्कार कर सकते हो(स्वच्छ/पवित्र करना) - विनाश कर सकते हैं कर्म से ये 5 बात बनती है। इनमें मुक्ति नहीं है। - मुक्ति बनती नहीं है, नित्य प्राप्त है। - मुक्ति उधार नहीं होती। - मुक्ति में विकार नहीं होता। - मुक्ति का संस्कार नहीं होता। - मुक्ति नष्ट नहीं होती। इन 5 में से मुक्ति कोई होए तो जड़ होगी। दृश्य वस्तु जड़ है। आत्मा में, मुक्ति में कर्म की गति नहीं है। सौंदर्य का दर्शन करना हो तो बढ़िया आँख चाहिए. उसमें विक्षेप न हो. विक्षेप हो तो उपचार, उपनेत्र से निवृत्ति हो. वैसे ही जो सर्वसौंदर्य का दर्शन है, आत्मज्ञान है, ब्रह्मज्ञान है उसके लिए एक बढ़िया अंतःकरण चाहिए. अंतःकरण में विक्षेप न हो. उसकी निवृत्ति योग, उपासना, शम, दम, उपरति, श्रद्धा, श्रवण, मनन, निदिध्यासन से होती है. ब्रह्मज्ञान प्रमाण मूलक प्रवृत्ति है, श्रद्धा मूलक नहीं है। ब्रह्मज्ञान में कर्म साधन नहीं है, ब्रह्मज्ञान की इच्छा होने में कर्म साधन है. भाषा और युक्ति वेदांतार्थ का प्रकाशक नहीं है आवरक है। जैसे संगीत काव्यार्थ का प्रकाशक नहीं है आवरक है। श्रेष्ठ से श्रेष्ठ कविता संगीत के चक्कर में पड़कर बेकार हो जाती है। ब्रह्म परस्पर विरुद्ध धर्माश्रय भी है, परस्पर विरुद्ध धर्माधिष्ठान भी है, परस्पर विरुद्ध धर्मातीत भी है। जिसमें विषय नहीं है और विषयी नहीं है, वह अखण्ड ज्ञान ब्रह्मज्ञान है। जैसे घड़ी विषय है और अंतःकरण वाला जीव समय जानने का इच्छुक विषयी है, और समय ज्ञान है, ब्रह्मज्ञान ऐसा परिच्छिन्न ज्ञान नहीं है। उसमें घड़ी और विषयी नहीं है। अयमात्मा ब्रह्म प्रज्ञानं ब्रह्म तत् त्वमसि अहम् ब्रह्मास्मि ब्रह्म न परिच्छिन्न है न परिच्छिन्नों की समष्टि है। - पूज्य महाराजश्री स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती जी, इस वीडियो के अंश
If anybody gets depression, anxiety fickle mindedness and sarrow. Than spend some time in lonely place, and reflect on your mind's thoughts and repeat "OM" 108 times, you will find the solution and remedy soon gets peace of mind.
आजु धन्य मैं धन्य अति जद्यपि सब बिधि हीन।
निज जन जानि राम मोहि संत समागम दीन।।
पूज्य श्री अखंडानंद सरस्वती जी महाराज के चरणों मे कोटि कोटि नमन।
पूज्य श्री आशारामजी बापू के चरणों में कोटि कोटि नमन ।
रविवार 17 जुलाई 2022
Koti koti naman
Saadar pranaam pujaya maharaj shri
सादर साष्टांग प्रणाम ।।
jay gurudev 🤎💜💙🙏👌
નારાયણ નારાયણ નારાયણ
श्री राम जै राम जै जै राम अनन्त श्री विभूषित महाभाग भगवत पाद भासयकार शिवावतार शंकराचार्य भगवान् की जै ?
Maharaj shree ko koti koti koti pranaam very very good clarity of knowledge kitna punya se ye sunana milta hai dhanyawad mr suhkla for giving swamijis pravachn thanks a lot aisa sunanana mila jo kahee nahi hai
🌿 श्रीहरि 🚩 ॐ नमो नारायणाय 🙏
ब्रह्मज्ञानी संतो के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम
36:40 watched 100 times 😮 what a knowledge😮 krishan says 35:44
ब्रह्मज्ञान उसको कहते हैं जो सारी गांठों को तोड़ दे।
सारा दुःख चित् जड़ ग्रन्थि की वजह से है। चेतन जीव ने जड़ सांसारिक वस्तुओं के साथ गांठ बांध ली है। सारा दुःख उस गांठ का है।
ब्रह्मज्ञान यानि अपरिच्छिन्न का ज्ञान।
ब्रह्मज्ञान वह तलवार है जो अविद्या ग्रन्थि को, हृदय ग्रन्थि को, काम-क्रोध-लोभ-मोह ग्रन्थि को, ग्रन्थिमात्र का भेदन कर देता है।
जब ग्रन्थि की वजह से हमारे हृदय में सुख नहीं मिलता है तब बाहर जाते हैं। वह रमण कहलाता है। रमण ही भ्रम है।
अन्य का अच्छे बुरे का ज्ञान राग द्वेष का जनक होता है। और अपने स्वरूप का ज्ञान राग द्वेष का जनक नहीं होता है।
अन्य को जानने से वह नहीं मिलती है, कोशिश करनी पड़ती है। अपने आपको जानने से वह मिला हुआ ही है, कोशिश नहीं करनी पड़ती।
अन्य विषयक ज्ञान होने के बाद भी प्राप्ति और परिहार के लिए प्रयत्न की अपेक्षा रखता है।
स्वविषयक ज्ञान अपेक्षा नहीं रखता है।
अज्ञान से किसी वस्तु की अप्राप्ति नहीं होती, और ज्ञान से किसी वस्तु की प्राप्ति नहीं होती।
जो वस्तु जैसी है उसे वैसा बताना ज्ञान है। जैसी है वैसी न समझना अध्यास है।
मैं ब्रह्म नहीं हूँ यह अज्ञान जब मिट जाएगा तो ब्रह्म मिल जाएगा।
ब्रह्म अप्राप्तव्य नहीं है, नित्य प्राप्त ही है। नित्य प्राप्त में ही अप्राप्त का भ्रम है। ज्ञान से ब्रह्म की प्राप्ति नहीं, प्राप्ति सी होती है। ज्ञान से निवृत्त की ही निवृत्ति होती है।
न आत्मज्ञान का साधन कर्म है न आत्मज्ञान का फल कर्म है।
संसार के सविशेष ज्ञान का साधन और फल कर्म है।
आत्मज्ञान का फल है निःसाधनता, मुक्ति, साध्य साधन दोनों से विनिर्मुक्ति। साध्य साधन दोनों का बाध है ज्ञान का फल। क्योंकि दोनों अविद्यामूलक हैं।
कर्म निर्माण है, प्रमाण नहीं है।
कर्म से निर्माण होता है प्रकाश नहीं होता।
कर्म से 5 प्रकार की वस्तु मिलती है।
- उत्पाद्य/पैदा करना (घड़ा बनाना)
- आप्य (घड़ा उधार ला सकते हैं, खुदको मन्त्र न आए तो गुरु से सीख ले)
- विकार कर सकते हैं
- संस्कार कर सकते हो(स्वच्छ/पवित्र करना)
- विनाश कर सकते हैं
कर्म से ये 5 बात बनती है। इनमें मुक्ति नहीं है।
- मुक्ति बनती नहीं है, नित्य प्राप्त है।
- मुक्ति उधार नहीं होती।
- मुक्ति में विकार नहीं होता।
- मुक्ति का संस्कार नहीं होता।
- मुक्ति नष्ट नहीं होती।
इन 5 में से मुक्ति कोई होए तो जड़ होगी। दृश्य वस्तु जड़ है।
आत्मा में, मुक्ति में कर्म की गति नहीं है।
सौंदर्य का दर्शन करना हो तो बढ़िया आँख चाहिए. उसमें विक्षेप न हो. विक्षेप हो तो उपचार, उपनेत्र से निवृत्ति हो.
वैसे ही जो सर्वसौंदर्य का दर्शन है, आत्मज्ञान है, ब्रह्मज्ञान है उसके लिए एक बढ़िया अंतःकरण चाहिए. अंतःकरण में विक्षेप न हो. उसकी निवृत्ति योग, उपासना, शम, दम, उपरति, श्रद्धा, श्रवण, मनन, निदिध्यासन से होती है.
ब्रह्मज्ञान प्रमाण मूलक प्रवृत्ति है, श्रद्धा मूलक नहीं है।
ब्रह्मज्ञान में कर्म साधन नहीं है, ब्रह्मज्ञान की इच्छा होने में कर्म साधन है.
भाषा और युक्ति वेदांतार्थ का प्रकाशक नहीं है आवरक है। जैसे संगीत काव्यार्थ का प्रकाशक नहीं है आवरक है। श्रेष्ठ से श्रेष्ठ कविता संगीत के चक्कर में पड़कर बेकार हो जाती है।
ब्रह्म परस्पर विरुद्ध धर्माश्रय भी है, परस्पर विरुद्ध धर्माधिष्ठान भी है, परस्पर विरुद्ध धर्मातीत भी है।
जिसमें विषय नहीं है और विषयी नहीं है, वह अखण्ड ज्ञान ब्रह्मज्ञान है।
जैसे घड़ी विषय है और अंतःकरण वाला जीव समय जानने का इच्छुक विषयी है, और समय ज्ञान है, ब्रह्मज्ञान ऐसा परिच्छिन्न ज्ञान नहीं है। उसमें घड़ी और विषयी नहीं है।
अयमात्मा ब्रह्म
प्रज्ञानं ब्रह्म
तत् त्वमसि
अहम् ब्रह्मास्मि
ब्रह्म न परिच्छिन्न है न परिच्छिन्नों की समष्टि है।
- पूज्य महाराजश्री स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती जी, इस वीडियो के अंश
🙏🙏🙏
Om
Pranam Harih Om ! Very deep understanding of VEDAANTA .
सादर समर्पण ।
Jai guru dev naman
Om Om Om
Aim of human life is not for external achievement, it is meant for Realising your true self as all pervading Atman.
To be good and to do good
If anybody gets depression, anxiety fickle mindedness and sarrow. Than spend some time in lonely place, and reflect on your mind's thoughts and repeat "OM" 108 times, you will find the solution and remedy soon gets peace of mind.
🙏
Self Revealing !!
ANAND
Jai guru dev naman