और हां, ये कहना कि मैं तो सभी से प्रश्न पूछता हूं...…........ दरअसल असली कलाकारी तो इसी प्रश्न पूछने में ही है। किससे फुलटास प्रश्न पूछते हैं, किससे ओवरपिच या फिर नो बॉल और इसी तरह किससे शार्ट पिच बाउंसर या रिवर्स स्विंग जैसा प्रश्न और किससे गुड़ लेंथ बाल जैसा प्रश्न पूछा जाता है, पत्रकार की निष्पक्षता का स्तर वहीं प्रतिबिंबित हो जाती है कि इसका झुकाव किधर है। प्रधानमंत्री की सुरक्षा को भौकाल, दिखावा आदि कहना किस बात का परिचायक है.....? अंत में यही कहूंगा कि इस नेता के बाद कौन.....जैसी बात पर। किसी के बाद कोई जगह ख़ाली नहीं रहती कोई न कोई आ ही जाता है। राष्ट्रीय नेता भी कभी न कभी शुरुआत ही करता है और तब उसे कम लोग ही जानते होंगे, यदि वह सोने का चम्मच मुंह में लेकर न पैदा हुआ हो।
कोई भी पत्रकार हो, करोड़ों लोगों का अंतर्मन एक अकेला व्यक्ति या सर्वे टीम नहीं जान सकता। लह गया तो, देखा!.... मैंने पहले ही कहा था..... लेकिन गलत होने पर सन्नाटा खींच लेते हैं। अब हरियाणा में कांग्रेस जीत रही थी, लेकिन दो दिन में पलट गया...ये सब बातें, पत्रकारों या सर्वे टीम के आकलन की विफलता को जस्टिफाई करना या बहानेबाजी कही जाएगी। कौन जानता है कि बीजेपी पहले से ही जीत रही थी या एक सप्ताह से हार रही थी, कि कांग्रेस दस दिन तक जीत रही थी, फिर हारने लगी, फिर ये..... फिर ये.... फिर ये हो गया..लगता है कि ये विश्लेषक पहले ही चुनाव करा कर रिजल्ट जान गये थे। अरे भाई ये 20-20 ये 50-50 ओवरों कि क्रिकेट तो है नहीं कि 15 ओवर तक टीम जीत रही थी, फिर एक ही ओवर में तीन-चार विकेट गिर गया। वहां तो स्पष्ट रिकार्ड या स्कोर सामने होता है तब ये बात कही जाती है। लेकिन आम चुनाव में ऐसा कुछ नहीं होता। कोई पत्रकार या सर्वे टीम, एक्स रे मशीन या सीटी स्कैन नहीं होता है ये सिर्फ और सिर्फ कच्चा आकलन होता है। कोई कुछ भी कहे। भारतीय चुनाव में एक ही भविष्यवाणी बिल्कुल एब्सलूट होती है, वह यह है कि- कुछ भी नहीं कहा जा सकता।....बस लह गयी तो देखा..., वरना सन्नाटा। अब राजीव रंजन जी शरद पवार को इतना लोकप्रिय नेता बता रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि आजतक अपने दम पर अकेले अपनी पार्टी को जिता कर सरकार नहीं बना पाए है। कई बार कांग्रेस छोड़े , अलग पार्टी बनायी लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। चाणक्य और मराठा क्षत्रप तो कुछ पत्रकारों द्वारा कह दिया गया जिसका अनुसरण नकलची पत्रकार करते हैं। दरअसल थमलेन में जो टैग लाइन है वह बिल्कुल सटीक है कि राजीव रंजन माहौल बनाते हैं। और हां, परिवारवाद की परिभाषा राजीव रंजन जी भी तमाम पार्टियों की तरह नहीं जानते, यह निराश करने वाली बात है। वह भी अन्य पार्टियों की तरह अपने अनुकूल सुविधाजनक परिभाषा ही पकड़ें हैं। किसी पार्टी की कमी को हर पार्टी की कमी बताना, दरअसल दोषी को बचाने की चाल की कही जायेगी। वैसे बता दूं कि भारत की केवल दो पार्टियों में परिवारवाद नहीं है और दोनों एक दूसरे की धुर विरोधी हैं। संजय भाई को बहुत-बहुत बधाई। नयी शुरुआत के लिए। श्रमजीवी पत्रकार संगठन की बैठक की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
बेहतरीन साक्षात्कार
शानदार
उत्कृष्ट
Sach uncut hae
और हां, ये कहना कि मैं तो सभी से प्रश्न पूछता हूं...…........ दरअसल असली कलाकारी तो इसी प्रश्न पूछने में ही है। किससे फुलटास प्रश्न पूछते हैं, किससे ओवरपिच या फिर नो बॉल और इसी तरह किससे शार्ट पिच बाउंसर या रिवर्स स्विंग जैसा प्रश्न और किससे गुड़ लेंथ बाल जैसा प्रश्न पूछा जाता है, पत्रकार की निष्पक्षता का स्तर वहीं प्रतिबिंबित हो जाती है कि इसका झुकाव किधर है।
प्रधानमंत्री की सुरक्षा को भौकाल, दिखावा आदि कहना किस बात का परिचायक है.....?
अंत में यही कहूंगा कि इस नेता के बाद कौन.....जैसी बात पर। किसी के बाद कोई जगह ख़ाली नहीं रहती कोई न कोई आ ही जाता है। राष्ट्रीय नेता भी कभी न कभी शुरुआत ही करता है और तब उसे कम लोग ही जानते होंगे, यदि वह सोने का चम्मच मुंह में लेकर न पैदा हुआ हो।
कोई भी पत्रकार हो, करोड़ों लोगों का अंतर्मन एक अकेला व्यक्ति या सर्वे टीम नहीं जान सकता। लह गया तो, देखा!.... मैंने पहले ही कहा था..... लेकिन गलत होने पर सन्नाटा खींच लेते हैं। अब हरियाणा में कांग्रेस जीत रही थी, लेकिन दो दिन में पलट गया...ये सब बातें, पत्रकारों या सर्वे टीम के आकलन की विफलता को जस्टिफाई करना या बहानेबाजी कही जाएगी। कौन जानता है कि बीजेपी पहले से ही जीत रही थी या एक सप्ताह से हार रही थी, कि कांग्रेस दस दिन तक जीत रही थी, फिर हारने लगी, फिर ये..... फिर ये.... फिर ये हो गया..लगता है कि ये विश्लेषक पहले ही चुनाव करा कर रिजल्ट जान गये थे।
अरे भाई ये 20-20 ये 50-50 ओवरों कि क्रिकेट तो है नहीं कि 15 ओवर तक टीम जीत रही थी, फिर एक ही ओवर में तीन-चार विकेट गिर गया। वहां तो स्पष्ट रिकार्ड या स्कोर सामने होता है तब ये बात कही जाती है। लेकिन आम चुनाव में ऐसा कुछ नहीं होता। कोई पत्रकार या सर्वे टीम, एक्स रे मशीन या सीटी स्कैन नहीं होता है ये सिर्फ और सिर्फ कच्चा आकलन होता है। कोई कुछ भी कहे।
भारतीय चुनाव में एक ही भविष्यवाणी बिल्कुल एब्सलूट होती है, वह यह है कि- कुछ भी नहीं कहा जा सकता।....बस
लह गयी तो देखा..., वरना सन्नाटा।
अब राजीव रंजन जी शरद पवार को इतना लोकप्रिय नेता बता रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि आजतक अपने दम पर अकेले अपनी पार्टी को जिता कर सरकार नहीं बना पाए है। कई बार कांग्रेस छोड़े , अलग पार्टी बनायी लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। चाणक्य और मराठा क्षत्रप तो कुछ पत्रकारों द्वारा कह दिया गया जिसका अनुसरण नकलची पत्रकार करते हैं।
दरअसल थमलेन में जो टैग लाइन है वह बिल्कुल सटीक है कि राजीव रंजन माहौल बनाते हैं।
और हां, परिवारवाद की परिभाषा राजीव रंजन जी भी तमाम पार्टियों की तरह नहीं जानते, यह निराश करने वाली बात है। वह भी अन्य पार्टियों की तरह अपने अनुकूल सुविधाजनक परिभाषा ही पकड़ें हैं। किसी पार्टी की कमी को हर पार्टी की कमी बताना, दरअसल दोषी को बचाने की चाल की कही जायेगी।
वैसे बता दूं कि भारत की केवल दो पार्टियों में परिवारवाद नहीं है और दोनों एक दूसरे की धुर विरोधी हैं।
संजय भाई को बहुत-बहुत बधाई। नयी शुरुआत के लिए। श्रमजीवी पत्रकार संगठन की बैठक की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
बहुत बहुत शुक्रिया प्रमोद भाई
🙏🙏