I understand coz I am in tf jouney ND now 6 yr latter my love like my guru mahadev...it is start from my dm ND he reached me in hight compassion ND love Thnks you
1............ आपने बिल्कुल सही बताया है हमें कि ध्यान से जब जुड़ते है गहरे, तब प्रेम खिलने लगता है। इसी तरह हम जब किसी भी व्यक्ति के साथ भी गहरे होते हैं, तो वहां भी प्रेम खिलने लगता है। गीता में लिखा है कि ईश्वर दिव्य देह अर्थात दिव्य रूप है क्युकी वो परम आत्मा है। इसका मतलब उन्हें भी जब किसी मनुष्य को प्रेम करना या देना होता है, तो वो किसी शरीर को ही माध्यम बनाकर उनसे प्रेम करते है, उन्हें प्रेम देते हैं। इसीलिए गीता में बताया गया कि सभी जीव के शरीरों में, मैं उनकी आत्मा के साथ ही, परमात्मा रूप में स्थित हूं। क्योंकि उन्हें मालूम हैं जीव तुरंत अपने व्यष्टि आत्म रूप में नहीं आ सकते, इसीलिए आत्मा तो भावनाओं के माध्यम से ईश्वर से जुड़कर प्रेम व्यक्त करता है। मगर ईश्वर तो किसी भी शरीर को ही माध्यम बनाकर, उनको वो प्रेम देते हैं, जो उन्हें चाहिए होता है ईश्वर से। और हम अर्थात आत्मा के पास तो शरीर है, और उसके होते हुए भी, हम आत्मा किसी को अपना वो प्रेम शारीरिक तल पर दे ही नहीं पाते हैं कभी कभी तो, जो हमारी भावना रूप में अंदर बसा होता है। अगर ईश्वर किसी जरूरतमंद आत्मा की मदद सिर्फ भावनाओं के स्तर पर ही करे तो कैसा होगा उस दिन से। वो भी तो किसी शरीर को माध्यम बनाते है, उस आत्मा की मदद के लिए, क्योंकि ईश्वर को पता है वो आत्मा इस वक्त शरीर में है। इसीलिए वो किसी के भी शरीर को माध्यम बनाकर, भौतिक जगत में हमारी सहायता कर जाते हैं। तो फिर सिर्फ प्रेम ही क्यों, भावनाओं के द्वारा प्रकट करने पर जोर देते हैं हम, क्या एक आत्मा को हक नहीं, कि भावनाओं में बसा उसका शुद्ध प्रेम, शरीर के तल पर भी प्रकट हो सके। यदि गहरे ध्यान से कोई गीता पढ़े तो गीता में भी समझाया गया है कि यदि कोई आत्मा शुद्ध भाव में स्थित होकर संभोग करता है तो, उन दो ऊर्जाओं का मिलन भी ईश्वर को स्वीकार्य है तभी तो वहां कुछ अच्छा घटित होता है, गीत की लाइन है__ पेज नंबर 532 पर कि "अच्छी संतान उत्पन्न करने के निमित्त, मैथुन जीवन स्वयं साक्षात् कृष्ण हैं। मैथुन जीवन गर्हित नहीं है, यदि इसका प्रयोग कृष्णभक्ति में रहकर किया जाए"! जो सतोगुण अर्थात दैवी गुण का रूप बताया गया है। मगर जो पूर्ण संस्यासी है, गृहस्थ नहीं, उसके लिए तो स्त्री या पुरुष को कामुक दृष्टि से देखना भी गर्रहीत बताया गया है इसी पेज के आगे में ही। इसलिए lovers card की prediction में भी divine angels उनकी sexual intimacy को भी bless करता है। और वो ही सेक्सुअल intimacy को angels devil card में bless क्यों नहीं करते। और बिना भाव के सिर्फ इंद्रिय तृप्ति के लिए, यह दो "आत्माओं के बीच का प्रेम" नहीं रह जाता फिर वह वासना का रूप ले लेता है। तभी तो इसे devil card में devil bless karta है, क्युकी वहां आत्मिक प्रेम के बिना संभोग घट रहा है। जब 5d level पर ही 2 आत्माओं का प्रेम एक दूसरे से घटित हो रहा हो, तो 3d level पर गलत कैसे हो सकता है। हम अपना body, mind, soul तीनो एलाइन करते हैं, हर काम में। यहां तक कि खुद को बैलेंस करने के लिए भी तीनों के एलाइनमेंट की बात आती है। तो फिर प्रेम में भी तो तीनों की एलाइनमेंट जरूरी होती है। 🙂🙏⭐🦋
Nd Gratitudes sir jii.....its like ...we r not paying for ds selflessly service of urs ...nd i dont need to take paid class ...i m learming by urs videos only ...its so so so thankful ...❤
यदि आपके जीवन में विश्व व्याप्त अणु ही प्रेम की परिभाषा हो रहा है तो विष्णुप्रिया हो जाना कोई घटना नहीं अपितु स्वभाव हो जाता है । ~ Smile Sharma "विष्णुप्रिया" Dhanyawad Guruji 🙏🏻
As always beautifully defined, if only everyone could understand this simple definition of love, this world will be heaven that everyone's looking for. Thankyou, Love & Light!🌸
❤ amazing ...I m doing work on myself.... Sir I m lerning osho Zen cards....I ma tarot reader....how will I use ds deck in reading ..bciz everyone in on physical level ..taking readings....I want to inspire them to b on spiritual level ...sooo i m bit confuse ..whr i 'll use ds deck in reading ..pls guide me ❤
Sir thank you..can u plz giude this meaning..i had asked a question that what should i do to be in harmony with my twinflame and cards came-dream, fighting, compromise cards..plz interpret🙏🙏
The cards you've drawn in response to your question about how to be in harmony with your twin flame - "Dream", "Fighting", and "Compromise" - appear to tell a story about the potential course of action you should consider. Here's an interpretation based on these cards: 1. **Dream**: This card suggests that it's essential to maintain a clear vision or dream of what you want your relationship with your twin flame to look like. Visualizing this ideal situation can help manifest it into reality. However, ensure that your dream aligns with reality to prevent disappointment. 2. **Fighting**: This card might indicate that there's some conflict or disagreement between you and your twin flame. It's important to address these issues head-on rather than avoiding them. Remember, constructive conflict can lead to growth and deeper understanding. 3. **Compromise**: The presence of this card signifies the importance of compromise in your relationship. It suggests that finding middle ground and making mutual adjustments can help you achieve harmony with your twin flame. Understanding, patience, and open communication are key to successful compromise. The Lovers card, which you mentioned initially, symbolizes union, harmony, and mutual attraction but can also represent the necessity of making a decision. In the context of your question, it may be reminding you to make choices that align with your highest self and are beneficial for the relationship's growth. As with any tarot reading, these interpretations should serve as guidance rather than fixed answers. Ultimately, the decisions lie with you. Always follow your intuition and what feels right for you in your situation.
2............. हम आत्मा, अपने आत्मिक प्रेम को शारीरिक न होने पर क्या इसीलिए जोर नहीं देते कि, कहीं न कहीं हम आज भी अंदर से शारीरिक प्रेम को लेकर गलत समझते हैं, या भयभीत होते हैं, जो हम आत्मा के कहीं गहरे जड़ में, नकारात्मक भाव रूप में स्थित है आज भी, इसीलिए हम आत्मा, संभोग को उसके भयावह अनुभव के कारण खराब समझते हैं। आपने बहुत अच्छे से ये बात हम सब तक पहुंचाई कि संभोग को कीचड़ के माध्यम से व्यक्त करना जरूरी था, ताकि लोग समझ सके की जो पहले से ही कमल है उसे किस प्रकार से हम ही कीचड़ बनाते हैं। इसलिए ही गीता के अनुसार भी संभोग, कीचड़ तभी बनता है, जब बिना आत्मिक प्रेम के सिर्फ इंद्रिय तृप्ति के लिए ही इसे किया जाए। क्योंकि तब संभोग, वासना बन जाती है, और वासना में सिर्फ दो शरीरों का साथ होता है, दो आत्माओं का नहीं। शरीर कही मन अर्थात् भाव कहीं तो हम पाप करते हैं प्रेम नहीं। जब दोनो इकट्ठे हो संभोग भी कमल बन जाता है कीचड़ नहीं। क्यों हम आत्मा, खुद को ही धोखा दे रहे होते है, क्या हम इस वास्तविक प्रेम को भी करने से बचना नहीं चाहते,? बचना भी चाहते है तो क्यों आखिर?? या फिर हम इस प्रेम को अभी तक समझ ही नहीं पाए हैं??? दो आत्माओं का, सिर्फ शारीरिक प्रेम अर्थात् वासना तो वहां गलत हो जाती है न, जब ये भावनात्मक तल पर न घटे, और आत्मा, बस बिना भाव के ही बाहरी तल पर ही पदार्थ का मोह करता जाए बस। भावनात्मक प्रेम अर्थात भाव से हुई भक्ति पर बल अध्यात्म में इसीलिए दिया गया है, ताकि मनुष्य अपने भावनात्मक प्रेम को सम्मिलित करते हुए शारीरिकतल पर भी इसे पूर्ण कर सके। ओर उस शारीरिक तल पर घटने वाली वासना को, आत्मिक प्रेम के सम्मेलन द्वारा नया रूप दे दे। ओर जब कुछ नया निर्मित होता है तो वो वासना फिर वासना नहीं रह जाती। सिर्फ अलग से भावनात्मक प्रेम हो किसी से और शारीरिक नही, या सिर्फ अकेले शारीरिक प्रेम ही हो किसी से और भावनात्मक नहीं, तो भी दोनों में से क्या पूर्ण है कोई??? यदि इसी प्रकार, अगर हम सिर्फ जीवन में अकेले सोच विचार ही करे और उन्हें कर्म में न बदले, या सिर्फ अकेले कर्म कर्म ही करे, बिना कुछ सोचे समझे तो भी क्या ये अपने अपने में पूर्ण घटित होंगे, या नहीं? तब वो हम ही होते हैं न जो अपनी सोच विचार या योजनाओं को, शारीरिक तल पर घटित करने के लिए कर्म के रूप में, कार्य क्षेत्र में बाहर ले आते हैं, तब हमें भय या कुछ गलत क्यों नहीं लगता? सिर्फ इस एक अंदर के प्रेम के विषय को ही बाहर से करने से क्यों हम, अलग हो जाते हैं??? इसका अर्थ हम आज भी वासना को, आत्मिक प्रेम द्वारा नया रूप देने का सामर्थ्य नहीं रखते हैं। प्रेम तो अपने आप में ही पूर्ण हो जाता है न जब दो आत्मा एक ही भाव पर आकर मिलती है। तो फिर हम उस समय में शरीर के तल पर घटित होने वाले प्रेम से क्यों भागते हैं? आखिर क्या है ऐसा हम में जिससे हम बचते है? यदि हम वासना से बचते है, तो भी वो सिर्फ दो शरीरों का ही मिलन होता है। यदि आत्मा में एक दूसरे के प्रति प्रेम नहीं तो इन्द्रियों का मिलन, वासना बन जाती है वहां पर। लेकिन दो आत्माओं के मिलन के साथ हुआ शारीरिक मिलन, इंद्रियों के मिलन को वासना कैसे बनने दे सकती है??? नहीं बनने देती है। आपने बिल्कुल सही बताया है हमें कि ध्यान से जब जुड़ते है गहरे, तब प्रेम खिलने लगता है। इसी तरह हम जब किसी भी व्यक्ति के साथ भी गहरे होते हैं, तो वहां भी प्रेम खिलने लगता है। प्रेम को खिलने के लिए सिर्फ खुद के साथ आंख बंद करके ईश्वर के साथ होने की जरूरत नहीं, क्योंकि गीता में श्री कृष्ण स्वयं कहते है , मैं सभी जीवों में हूं। इसका मतलब प्रेम किसी के साथ भी खिल सकता है, यदि हम उस व्यक्ति के साथ गहराई से जुड़ते हैं तो। जिस प्रकार ध्यान घटित करने के लिए सिर्फ खुद की सांस के साथ एकाग्र हो ये ज़रूरी नही, उसी प्रकार ये ध्यान भी किसी भी काम में एकाग्र होने से घटित हो सकता है। जैसा कि आपने बताया था कि किसी भी काम को ध्यान बनाया जा सकता है। मतलब जरूरी नहीं, प्रेम भी ध्यान के साथ ही घटित हो। ये प्रेम कहीं भी हम घटित कर सकते है, ये प्रेम भी किसी के साथ, कभी भी घटित हो सकता है। किसी आत्मा के साथ भी गहरे होने पर प्रेम खिल जाता है। तभी तो डिवाइन एंजेल्स को भी लवर्स कार्ड के सेक्सुअल पार्टनर को bless करता हुआ दिखाया गया है। आपकी शिक्षा से मुझे बहुत कुछ रहस्यमय सत्य समझ आ रहा है। था कुछ कचरा कहीं बाकी जो नज़रों से हट रहा है। ये इश्क अब हर तरीके से यहां घटने को लड़ रहा है। आप मेरे जीवन का एक अनमोल हिस्सा हैं, ईश्वर आपको सबके लिए अनमोल करें, और सभी आपके लिए अनमोल हो जाए। बस यही मेरी भगवान से प्रार्थना है। Thank you, for being pure love siddharth sir! ❤️🙏,🙂🦋
Video dekhne se pahle like or comment dono😇aapki video hai to ache hi hogi
Nice kurta😇
I understand coz I am in tf jouney ND now 6 yr latter my love like my guru mahadev...it is start from my dm ND he reached me in hight compassion ND love
Thnks you
❤️🙏🌸
1............
आपने बिल्कुल सही बताया है हमें कि ध्यान से जब जुड़ते है गहरे, तब प्रेम खिलने लगता है।
इसी तरह हम जब किसी भी व्यक्ति के साथ भी गहरे होते हैं, तो वहां भी प्रेम खिलने लगता है।
गीता में लिखा है कि ईश्वर दिव्य देह अर्थात दिव्य रूप है क्युकी वो परम आत्मा है।
इसका मतलब उन्हें भी जब किसी मनुष्य को प्रेम करना या देना होता है, तो वो किसी शरीर को ही माध्यम बनाकर उनसे प्रेम करते है, उन्हें प्रेम देते हैं।
इसीलिए गीता में बताया गया कि सभी जीव के शरीरों में, मैं उनकी आत्मा के साथ ही, परमात्मा रूप में स्थित हूं।
क्योंकि उन्हें मालूम हैं जीव तुरंत अपने व्यष्टि आत्म रूप में नहीं आ सकते, इसीलिए आत्मा तो भावनाओं के माध्यम से ईश्वर से जुड़कर प्रेम व्यक्त करता है।
मगर ईश्वर तो किसी भी शरीर को ही माध्यम बनाकर, उनको वो प्रेम देते हैं, जो उन्हें चाहिए होता है ईश्वर से।
और हम अर्थात आत्मा के पास तो शरीर है, और उसके होते हुए भी, हम आत्मा किसी को अपना वो प्रेम शारीरिक तल पर दे ही नहीं पाते हैं कभी कभी तो, जो हमारी भावना रूप में अंदर बसा होता है।
अगर ईश्वर किसी जरूरतमंद आत्मा की मदद सिर्फ भावनाओं के स्तर पर ही करे तो कैसा होगा उस दिन से। वो भी तो किसी शरीर को माध्यम बनाते है, उस आत्मा की मदद के लिए, क्योंकि ईश्वर को पता है वो आत्मा इस वक्त शरीर में है। इसीलिए वो किसी के भी शरीर को माध्यम बनाकर, भौतिक जगत में हमारी सहायता कर जाते हैं।
तो फिर सिर्फ प्रेम ही क्यों, भावनाओं के द्वारा प्रकट करने पर जोर देते हैं हम, क्या एक आत्मा को हक नहीं, कि भावनाओं में बसा उसका शुद्ध प्रेम, शरीर के तल पर भी प्रकट हो सके।
यदि गहरे ध्यान से कोई गीता पढ़े तो गीता में भी समझाया गया है कि यदि कोई आत्मा शुद्ध भाव में स्थित होकर संभोग करता है तो, उन दो ऊर्जाओं का मिलन भी ईश्वर को स्वीकार्य है तभी तो वहां कुछ अच्छा घटित होता है,
गीत की लाइन है__ पेज नंबर 532 पर कि "अच्छी संतान उत्पन्न करने के निमित्त, मैथुन जीवन स्वयं साक्षात् कृष्ण हैं। मैथुन जीवन गर्हित नहीं है, यदि इसका प्रयोग कृष्णभक्ति में रहकर किया जाए"! जो सतोगुण अर्थात दैवी गुण का रूप बताया गया है।
मगर जो पूर्ण संस्यासी है, गृहस्थ नहीं, उसके लिए तो स्त्री या पुरुष को कामुक दृष्टि से देखना भी गर्रहीत बताया गया है इसी पेज के आगे में ही।
इसलिए lovers card की prediction में भी divine angels उनकी sexual intimacy को भी bless करता है।
और वो ही सेक्सुअल intimacy को angels devil card में bless क्यों नहीं करते।
और बिना भाव के सिर्फ इंद्रिय तृप्ति के लिए, यह दो "आत्माओं के बीच का प्रेम" नहीं रह जाता फिर वह वासना का रूप ले लेता है। तभी तो इसे devil card में devil bless karta है, क्युकी वहां आत्मिक प्रेम के बिना संभोग घट रहा है।
जब 5d level पर ही 2 आत्माओं का प्रेम एक दूसरे से घटित हो रहा हो, तो 3d level पर गलत कैसे हो सकता है।
हम अपना body, mind, soul तीनो एलाइन करते हैं, हर काम में। यहां तक कि खुद को बैलेंस करने के लिए भी तीनों के एलाइनमेंट की बात आती है। तो फिर प्रेम में भी तो तीनों की एलाइनमेंट जरूरी होती है।
🙂🙏⭐🦋
🌸🙏
Nd Gratitudes sir jii.....its like ...we r not paying for ds selflessly service of urs ...nd i dont need to take paid class ...i m learming by urs videos only ...its so so so thankful ...❤
🌸🙏
यदि आपके जीवन में विश्व व्याप्त अणु ही प्रेम की परिभाषा हो रहा है तो
विष्णुप्रिया हो जाना कोई घटना नहीं अपितु स्वभाव हो जाता है ।
~ Smile Sharma "विष्णुप्रिया"
Dhanyawad Guruji 🙏🏻
🌸🙂
Very beautifully explained 🙏😊
🌸🙏
THANK YOU 🌟🌼💟
BLESS YOU 💓🕉️🙏
🙏🌸❤️🙂
Fantastic reading
🙏🌸
Very beautifuly explained
🌸🙏
Aaj se mere liye love ki definition badal gyi thanku sir
True🙏🏼
🙏
As always beautifully defined, if only everyone could understand this simple definition of love, this world will be heaven that everyone's looking for. Thankyou, Love & Light!🌸
Absolutely
pranam 👏
apake gyan ko naman bahut hi badhiya 👌👌
Thank you so much sir for your guidance!! You have become my spiritual guide 🙏🏻🙏🏻
I am rising in love ❤️ wow
Wow 🙏 that's great
Very Beautiful Message of Love, Thank You 🙏🙏
Thanks for listening
Har Har mahadev 🙏❤️💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💖💖🌼🌼🌼🌼🌼🌼
❤️🙏🙂
❤ amazing ...I m doing work on myself....
Sir I m lerning osho Zen cards....I ma tarot reader....how will I use ds deck in reading ..bciz everyone in on physical level ..taking readings....I want to inspire them to b on spiritual level ...sooo i m bit confuse ..whr i 'll use ds deck in reading ..pls guide me ❤
🙏🌸❤️🙂
Hello
Sir thank you..can u plz giude this meaning..i had asked a question that what should i do to be in harmony with my twinflame and cards came-dream, fighting, compromise cards..plz interpret🙏🙏
The cards you've drawn in response to your question about how to be in harmony with your twin flame - "Dream", "Fighting", and "Compromise" - appear to tell a story about the potential course of action you should consider. Here's an interpretation based on these cards:
1. **Dream**: This card suggests that it's essential to maintain a clear vision or dream of what you want your relationship with your twin flame to look like. Visualizing this ideal situation can help manifest it into reality. However, ensure that your dream aligns with reality to prevent disappointment.
2. **Fighting**: This card might indicate that there's some conflict or disagreement between you and your twin flame. It's important to address these issues head-on rather than avoiding them. Remember, constructive conflict can lead to growth and deeper understanding.
3. **Compromise**: The presence of this card signifies the importance of compromise in your relationship. It suggests that finding middle ground and making mutual adjustments can help you achieve harmony with your twin flame. Understanding, patience, and open communication are key to successful compromise.
The Lovers card, which you mentioned initially, symbolizes union, harmony, and mutual attraction but can also represent the necessity of making a decision. In the context of your question, it may be reminding you to make choices that align with your highest self and are beneficial for the relationship's growth.
As with any tarot reading, these interpretations should serve as guidance rather than fixed answers. Ultimately, the decisions lie with you. Always follow your intuition and what feels right for you in your situation.
@@SiddharthaBuddah thank you vai much sir🙏🙏deep gratitude ❣️❣️❣️
2.............
हम आत्मा, अपने आत्मिक प्रेम को शारीरिक न होने पर क्या इसीलिए जोर नहीं देते कि, कहीं न कहीं हम आज भी अंदर से शारीरिक प्रेम को लेकर गलत समझते हैं, या भयभीत होते हैं, जो हम आत्मा के कहीं गहरे जड़ में, नकारात्मक भाव रूप में स्थित है आज भी, इसीलिए हम आत्मा, संभोग को उसके भयावह अनुभव के कारण खराब समझते हैं।
आपने बहुत अच्छे से ये बात हम सब तक पहुंचाई कि संभोग को कीचड़ के माध्यम से व्यक्त करना जरूरी था, ताकि लोग समझ सके की जो पहले से ही कमल है उसे किस प्रकार से हम ही कीचड़ बनाते हैं।
इसलिए ही गीता के अनुसार भी संभोग, कीचड़ तभी बनता है, जब बिना आत्मिक प्रेम के सिर्फ इंद्रिय तृप्ति के लिए ही इसे किया जाए। क्योंकि तब संभोग, वासना बन जाती है, और वासना में सिर्फ दो शरीरों का साथ होता है, दो आत्माओं का नहीं।
शरीर कही मन अर्थात् भाव कहीं तो हम पाप करते हैं प्रेम नहीं।
जब दोनो इकट्ठे हो संभोग भी कमल बन जाता है कीचड़ नहीं।
क्यों हम आत्मा, खुद को ही धोखा दे रहे होते है, क्या हम इस वास्तविक प्रेम को भी करने से बचना नहीं चाहते,? बचना भी चाहते है तो क्यों आखिर?? या फिर हम इस प्रेम को अभी तक समझ ही नहीं पाए हैं???
दो आत्माओं का, सिर्फ शारीरिक प्रेम अर्थात् वासना तो वहां गलत हो जाती है न, जब ये भावनात्मक तल पर न घटे, और आत्मा, बस बिना भाव के ही बाहरी तल पर ही पदार्थ का मोह करता जाए बस।
भावनात्मक प्रेम अर्थात भाव से हुई भक्ति पर बल अध्यात्म में इसीलिए दिया गया है, ताकि मनुष्य अपने भावनात्मक प्रेम को सम्मिलित करते हुए शारीरिकतल पर भी इसे पूर्ण कर सके।
ओर उस शारीरिक तल पर घटने वाली वासना को, आत्मिक प्रेम के सम्मेलन द्वारा नया रूप दे दे। ओर जब कुछ नया निर्मित होता है तो वो वासना फिर वासना नहीं रह जाती।
सिर्फ अलग से भावनात्मक प्रेम हो किसी से और शारीरिक नही, या सिर्फ अकेले शारीरिक प्रेम ही हो किसी से और भावनात्मक नहीं,
तो भी दोनों में से क्या पूर्ण है कोई???
यदि इसी प्रकार, अगर हम सिर्फ जीवन में अकेले सोच विचार ही करे और उन्हें कर्म में न बदले, या सिर्फ अकेले कर्म कर्म ही करे, बिना कुछ सोचे समझे
तो भी क्या ये अपने अपने में पूर्ण घटित होंगे, या नहीं?
तब वो हम ही होते हैं न जो अपनी सोच विचार या योजनाओं को, शारीरिक तल पर घटित करने के लिए कर्म के रूप में, कार्य क्षेत्र में बाहर ले आते हैं, तब हमें भय या कुछ गलत क्यों नहीं लगता?
सिर्फ इस एक अंदर के प्रेम के विषय को ही बाहर से करने से क्यों हम, अलग हो जाते हैं??? इसका अर्थ हम आज भी वासना को, आत्मिक प्रेम द्वारा नया रूप देने का सामर्थ्य नहीं रखते हैं।
प्रेम तो अपने आप में ही पूर्ण हो जाता है न जब दो आत्मा एक ही भाव पर आकर मिलती है। तो फिर हम उस समय में शरीर के तल पर घटित होने वाले प्रेम से क्यों भागते हैं? आखिर क्या है ऐसा हम में जिससे हम बचते है?
यदि हम वासना से बचते है, तो भी वो सिर्फ दो शरीरों का ही मिलन होता है। यदि आत्मा में एक दूसरे के प्रति प्रेम नहीं तो इन्द्रियों का मिलन, वासना बन जाती है वहां पर।
लेकिन दो आत्माओं के मिलन के साथ हुआ शारीरिक मिलन, इंद्रियों के मिलन को वासना कैसे बनने दे सकती है???
नहीं बनने देती है।
आपने बिल्कुल सही बताया है हमें कि ध्यान से जब जुड़ते है गहरे, तब प्रेम खिलने लगता है। इसी तरह हम जब किसी भी व्यक्ति के साथ भी गहरे होते हैं, तो वहां भी प्रेम खिलने लगता है।
प्रेम को खिलने के लिए सिर्फ खुद के साथ आंख बंद करके ईश्वर के साथ होने की जरूरत नहीं, क्योंकि गीता में श्री कृष्ण स्वयं कहते है , मैं सभी जीवों में हूं।
इसका मतलब प्रेम किसी के साथ भी खिल सकता है, यदि हम उस व्यक्ति के साथ गहराई से जुड़ते हैं तो।
जिस प्रकार ध्यान घटित करने के लिए सिर्फ खुद की सांस के साथ एकाग्र हो ये ज़रूरी नही,
उसी प्रकार ये ध्यान भी किसी भी काम में एकाग्र होने से घटित हो सकता है। जैसा कि आपने बताया था कि किसी भी काम को ध्यान बनाया जा सकता है।
मतलब जरूरी नहीं, प्रेम भी ध्यान के साथ ही घटित हो। ये प्रेम कहीं भी हम घटित कर सकते है, ये प्रेम भी किसी के साथ, कभी भी घटित हो सकता है।
किसी आत्मा के साथ भी गहरे होने पर प्रेम खिल जाता है। तभी तो डिवाइन एंजेल्स को भी लवर्स कार्ड के सेक्सुअल पार्टनर को bless करता हुआ दिखाया गया है।
आपकी शिक्षा से मुझे बहुत कुछ रहस्यमय सत्य समझ आ रहा है।
था कुछ कचरा कहीं बाकी जो नज़रों से हट रहा है।
ये इश्क अब हर तरीके से यहां घटने को लड़ रहा है।
आप मेरे जीवन का एक अनमोल हिस्सा हैं, ईश्वर आपको सबके लिए अनमोल करें, और सभी आपके लिए अनमोल हो जाए। बस यही मेरी भगवान से प्रार्थना है।
Thank you, for being pure love siddharth sir!
❤️🙏,🙂🦋
🙂🌸
Sir gotam budh ko lekar mera ek sawal hai.jo M comment M nhi puch sakti.।। Kya aap apna mail address denge
artandtarot@gmail.com
❤️❤️❤️🙏
✨🙏
🙏🌸
I want prediction can u help me?
If you are looking for a session then mail me at buddha9868@gmail.com 🙂
Es love card ki reading deni ho to kaise de.
understanding the essence of this card will help you do the reading
Kisi k reading m the lovers aye to mtlb
Understand the essence of the Card and apply it
Beautiful 😻
🌸🙏❤️