|हाथ से मिट गई चंद लकीरें|

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  • เผยแพร่เมื่อ 5 ก.พ. 2025
  • हाथ से मिट गई चन्द लकीरे..
    एक मोहबत ओर कुछ तकदीरें..
    दिल करें ना अब काम कोई..
    हाथों पर खिंचे बस लकीरे..
    लौट तो आया तेरी महफ़िल से मगर दिल में मलाल था..
    दिल में तेरी सूरत तेरी आँखों का ख़याल था..
    तुम उलझें रहे गैरो से गुफ्तगू मैं..
    ओर मेरी जेब मे एक गिला रूमाल था..
    चाहा तो बहुत के अब तुम्हे भूल जाएं..
    पर इन कम्बख़त खुवाबो पर किसका इख्तियार था..
    तेरी आँखों सा फ़िर मुझे वो आईना ना मिला..
    ज़िन्दगी से रहा बस अब एक ये ही गिला..
    मिले तो चाहने वाले बहुत..
    पर फिर कोई शख्स मुझे तुझसा ना मिला..
    मुझसे बेहतर तू 'फ़राज़'मेरा हाल बयां करती थीं..
    तेरे बाद फिर कोई मुझे समझने वाला न मिला..
    ज़िन्दगी के रास्ते में तुझसे बहुत दूर निकल आया हूं..
    खोजा बहुत पर तुझ तक पहुँचे फिर वो रास्ता न मिला..
    दफ़न करदो मुझे के मैं कहा अब जिंदा हूं.
    मैं तो मर गया हूं कब का मै कहा अब जिंदा हूं
    अब तो ऐसे जीने पर मैं रोज होता शर्मिदा हूं..
    रोज उलझते इन रिश्तों से अब ऊब गया हूं..
    बस आँख खुली हैं मैं अन्दर से अब कहा जिंदा हूं ..
    ओरो के मन की करने की अब आदत लग गई हैं..
    खुवाईसे सब मर गई हैं कहने को बस अब मैं जिंदा हूं..
    अंतरमन ख़ोज रहा था'फ़राज़' जो बरसों से..
    वो सब पाकर खुश नहीं हूं सोचो फिर क्या मैं अब भी जिंदा हूं..

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