Class 8.34। कर्म बन्ध विज्ञान - जीव अपना घात और परघात किस कर्म के उदय से करते हैं सूत्र 11
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- เผยแพร่เมื่อ 14 ต.ค. 2024
- Class 8.34 summary
सूत्र ग्यारह में हम नामकर्म की प्रकृतियों को जान रहे हैं
जिनके माध्यम से शरीर की रचना और उसकी उपलब्धियाँ मिलती हैं
अगुरुलघु नामकर्म के उदय से शरीर न तो गुरु और न लघु होता है
अर्थात् न तो बहुत भारी होता है
जिसे वह स्वयं ही न उठा सके
और न ही बहुत हल्का होता है
जो रुई के फोए की तरह बिना हवा के भी उड़ता रहे
इस कर्म के उपकार के कारण हम मन चाहे तरीके से कहीं पर भी बैठ जाते हैं, उठ जाते हैं
अपने शरीर को न हम बहुत भारी
और न बहुत हल्का महसूस करते हैं
शरीर के अन्दर balance बना रहता है
यह सिद्धों के अन्दर प्रकट अगुरुलघु गुण से अलग है
उपघात नामकर्म के उदय में जीव के शरीर में, पेट, गले आदि में कुछ ऐसी रचनाएँ हो जाती हैं
जिसके कारण से वह स्वयं बाधित और पीड़ित होता है
और उसके कारण आत्मघात तक कर सकता है
या अकाल मृत्यु को प्राप्त हो सकता है
या कोई भी परिस्थिति जिसके माध्यम से जीव अपनी ही हिंसा कर ले
ऊपर से कूद पड़े,
अग्नि में खुद जल जाए आदि
तो वह उपघात नामकर्म के फल से होता है
उपघात नामकर्म के तीव्र उदय में
अपने ही शरीर के अवयव घातक बन जाते हैं
जैसे अपने ही नाखून, दांत आदि
झाड़ियों में अपने सींग उलझ जाने से बारहसिंगा तो प्राण ही गवाँ देता है
किसी का शरीर भारी होने से,
उनके अन्दर जोड़ों का दर्द आदि बहुत सारे रोग पैदा हो जाते हैं
क्योंकि बढ़े हुए वजन के कारण joints पर weight पड़ता है
और घुटनों के अन्दर का liquid भी सूख जाता है
उपघात नामकर्म के विपरीत परघात नामकर्म के उदय में जीव के शरीर के अवयव किसी अन्य के घात में कारण बनते हैं
उपघात को अशुभ और परघात को शुभ प्रकृति कहा जाता है
यह आश्चर्य की बात है
यानि शरीर के किसी अवयव से दूसरे का घात हो जाये तो
वह अशुभ नहीं है
लेकिन अगर खुद का ही घात हो जाए तो
वह अशुभ है
शेर की दाढ़, उसके तीक्ष्ण दाँत, नाखून; सर्प का विष; बिच्छू का डंक आदि अवयव
दूसरों का घात करते हैं
उन्हें पीड़ा पहुँचाते हैं
हर जीव के अन्दर परघात नाम कर्म के उदय से एक शक्ति रहती है
जिसके वह दूसरे किसी न किसी जीव के लिए बाधा, घात का कारण बनता है
उपघात और परघात सभी जीवों में रहते हैं
और ये साथ में भी उदय होते हैं
जैसे आत्मघाती आतंकवादी खुद भी मरते हैं
और कई लोगों को मारते हैं
चूँकि वह परघात करने के लिए उपघात भी करते हैं
इसलिए यह मुख्य रूप से परघात ही है
हमने जाना कि हमें जो सूर्य का प्रकाश मिलता है
वह एकेन्द्रिय जीवों के आतप नामकर्म के उदय से प्राप्त होता है
पृथ्वीकायिक सूर्य के विमान की outer surface पर आतप नामकर्म का उदय लिए
पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय जीव उत्पन्न होते हैं
उनके शरीर ही मिलकर प्रकाशमान होते हैं
और उनके शरीर के इस गुणधर्म से ही आतप हमारे पास आता है
आतप का मतलब होता है
‘आ’ अर्थात् चारों ओर से
‘तप’ अर्थात् तपना
जो चारों ओर से तपे इस तरीके का प्रकाश और ताप
ये जीव आतप नामकर्म के उदय से
सूर्य के विमानों के अतिरिक्त,
सूर्यकान्त आदि कुछ मणियों में भी
सूर्य की तरह ही आभा और प्रकाश पैदा करते हैं
उद्योत का मतलब होता है चम-चम करने वाले, जगमगाने वाला प्रकाश
उद्योत नामकर्म के उदय से कुछ जीवों के शरीरों में
विशेष रूप से जुगनू आदि तिर्यंचों में
एक विशेष light देखी जाती है
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नमोस्तु गुरुदेव 🙏🙏🙏
Namostu maharaj shree bhagwan
🙏🏿🙏🏿🙏🏿 namostu bhagwan
Namostu gurudev
Namostu gurudev 🙏🙏🙏
अर्हं योग प्रणेता पूज्य गुरूवर श्री प्रणम्यसागरजी महाराज की जय जय जय 🙏💖🙏💖🙏💖
🙏🙏🙏🙏🙏
Namostu gurudev 😊
गुरुदेव के चरणों में शत शत नमन 🙏🙏🙏गुरुदेव के इस तत्वार्थसूत्र को पढ़कर हम गुरुदेव का उपकार नहीं चुका सकते 🙏🙏🙏अतः भैया जी आप इस तत्वार्थ सूत्र की सभी क्लास को एक लिंक से जल्दी जोड़ा करो ताकि हम नोट्स बना सके 🙏🙏🙏
Nomostu gurudev.
Answer 3 ..Atapp naam karm
Namostu gurudev
Namostu gurudev
Namostu gurudev
Namostu gurudev