Kishor nyay adhiniyam2015 MCQs|किशोर न्याय अधिनियम2015|Juvenile justice act2015MCQs|
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- เผยแพร่เมื่อ 28 ก.ย. 2024
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किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 के प्रावधान:
गैर-संज्ञेय अपराध:
बच्चों के खिलाफ अपराध जो किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के अध्याय "बच्चों के खिलाफ अन्य अपराध" में वर्णित हैं, जिस अपराध के लिये तीन से सात वर्ष की जेल की सज़ा हो, वह ''गैर-संज्ञेय'' होगा।
गोद लेना/एडॉप्शन:
संशोधन बच्चों के संरक्षण और गोद लेने के प्रावधान को संरक्षण प्रदान करता है। न्यायालय के समक्ष गोद लेने के कई मामले लंबित हैं तथा न्यायालय की कार्यवाही को तीव्र करने के लिये शक्ति ज़िला मजिस्ट्रेट को हस्तांतरित कर दी गई है।
संशोधन में प्रावधान है कि ऐसे गोद लेने के आदेश जारी करने का अधिकार ज़िला मजिस्ट्रेट के पास है।
किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015
संसद ने किशोर अपराध कानून और किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 को बदलने के लिये किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 को पारित किया था।
यह अधिनियम जघन्य अपराधों में संलिप्त 16-18 वर्ष की आयु के बीच के किशोरों (जुवेनाइल) के ऊपर बालिगों के समान मुकदमा चलाने की अनुमति देता है।
इस अधिनियम में गोद लेने के लिये माता-पिता की योग्यता और गोद लेने की पद्धति को शामिल किया गया है। अधिनियम ने हिंदू दत्तक ग्रहण व रखरखाव अधिनियम (1956) और वार्ड के संरक्षक अधिनियम (1890) को अधिक सार्वभौमिक रूप से सुलभ दत्तक कानून के साथ बदल दिया।
अधिनियम गोद लेने से संबंधित मामलों के लिये केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority-CARA) को वैधानिक निकाय बनाता है, यह भारतीय अनाथ बच्चों के पालन-पोषण, देखभाल एवं उन्हें गोद देने के लिये एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
बाल देखभाल संस्थान (CCI):
सभी बाल देखभाल संस्थान, चाहे वे राज्य सरकार अथवा स्वैच्छिक या गैर-सरकारी संगठनों द्वारा संचालित हों, अधिनियम के लागू होने की तारीख से 6 महीने के भीतर अधिनियम के तहत अनिवार्य रूप से पंजीकृत होने चाहिये।
किशोर न्याय संशोधन अधिनियम, 2021 से संबद्ध चुनौतियाँ: विशेष रूप से संशोधन में चुनौती किशोर न्याय अधिनियम की धारा 86 में से एक है, जिसके अनुसार विशेष कानून के तहत अपराधों को तीन से सात साल के बीच की सज़ा के साथ गैर-संज्ञेय के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया गया है।
जबकि शक्ति में असंतुलन के कारण पीड़ित स्वयं सीधे उनकी रिपोर्ट करने में असमर्थ हैं, ऐसे अधिकांश अपराध माता-पिता या बाल अधिकार निकायों और बाल कल्याण समितियों (CWC) द्वारा पुलिस को रिपोर्ट किये जाते हैं।
इन बच्चों के माता-पिता: वे ज़्यादातर दिहाड़ी मज़दूर हैं, या तो इस बात से अनजान हैं कि पुलिस को अपराधों की रिपोर्ट कैसे करें या फिर न करें।
वे कानूनी प्रक्रिया में शामिल नहीं होना चाहते क्योंकि इससे उन्हें काम से समय निकालने के लिये मज़बूर होना पड़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप मज़दूरी का नुकसान होगा।
बाल कल्याण समितियांँ (CWC): ज़्यादातर मामलों में CWC की पहली प्रवृत्ति पुलिस को मामले को आगे बढ़ाने के बजाय "बात करना और समझौता करना" है।
विशेष कानून के तहत कई अन्य गंभीर अपराधों के साथ इन अपराधों को गैर-संज्ञेय बनाना पुलिस को अपराध की रिपोर्ट करना और भी कठिन बना देगा।
संज्ञेय और गैर-संज्ञेय अपराध:
आपराधिक प्रक्रिया संहिता किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही के संचालन के लिये नियम निर्धारित करती है, जिसने किसी भी आपराधिक कानून के तहत अपराध किया है।
संज्ञेय अपराध:
संज्ञेय अपराध एक ऐसा अपराध है जिसमें पुलिस अधिकारी पहली अनुसूची के अनुसार या वर्तमान में लागू किसी अन्य कानून के तहत दोषी को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकता है और अदालत की अनुमति के बिना जाँच शुरू कर सकता है।
संज्ञेय अपराध आमतौर पर जघन्य या गंभीर प्रकृति के होते हैं जैसे कि हत्या, बलात्कार, अपहरण, चोरी, दहेज हत्या आदि।
प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) केवल संज्ञेय अपराधों के मामले में दर्ज की जाती है।
गैर-संज्ञेय अपराध:
एक गैर-संज्ञेय अपराध भारतीय दंड संहिता की पहली अनुसूची के तहत सूचीबद्ध अपराध होता है और प्रकृति में ज़मानती होता है।
गैर-संज्ञेय अपराध के मामले में पुलिस आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तार नहीं कर सकती है और साथ ही जाँच शुरू नहीं कर सकती है।
मजिस्ट्रेट के पास एक आपराधिक शिकायत दर्ज की जाती है, जो संबंधित पुलिस स्टेशन को जाँच शुरू करने का आदेश देता है।
जालसाजी, धोखाधड़ी, मानहानि, सार्वजनिक उपद्रव आदि अपराध गैर-संज्ञेयअपराधों की श्रेणी में आते हैं।
संज्ञेय और गैर-संज्ञेय दोनों अपराधों से जुड़े मामले:
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 155(4) के अनुसार, जब किसी मामले में दो या दो से अधिक अपराध होते हैं, जिनमें से कम-से-कम एक संज्ञेय प्रकृति का होता है, और दूसरा गैर-संज्ञेय प्रकृति का होता है।
फिर पूरे मामले को एक संज्ञेय मामले के रूप में निपटाया जाना चाहिये और जाँच अधिकारी के पास संज्ञेय मामले की जाँच के लिये सभी शक्तियां एवं अधिकार होंगे।
With section aur mam pdf dado
B
Thankyou mam
Bhut shaandar......english k bolbale m koi toh h jo hindi me qs bna rha ....👍👍🙌🙌🙏
Question 27 me 4 hoga ya 3 mam
Pdf
Nyc video
कृपया स्पष्ट करें की छोटे अपराध के लिए 3 वर्ष या3 माह की सजा है
3 year
3
A
Thank you mam❤
thanks mam aap specific rlief act &limitatation act pe vdo or bna dijiye §ion ke sath hi sare oqestion kra dijiye
मॅडम मुझे यह बतायी की need and care protection जो provisional है कौन चे section मै आता हैं..sectio n कहा से लेके खहा तक section है..
Madam ji jj act 2015 ke section se sambandhit video upload Karen please
Love you ma'am thanks a lot
Very nice class mam and sweet voice also
Very very nice class thanks mem
IPC and CRPC ka bhi ek mcqs series banaye
Very nice 👍
Thank you mam 🌸
THANK U MAM
52 no ka questions ka ans rong h
Really helpful 🎉
Nice
Very nice mam
Awesome 🎉🎉🎉
Nice mam
Thank u