शानदार बिरहा मुकाबला स्वर बेचैन और विश्व नाथ यादव

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  • เผยแพร่เมื่อ 11 ก.ย. 2024

ความคิดเห็น • 5

  • @jitendrakumarrajbhar3980
    @jitendrakumarrajbhar3980 ปีที่แล้ว

    Very very nice birha song bechan ram rajbhar ji ko koti koti naman karta hoo kas aaj bechan ji hote..

  • @udaibhanchaubey2114
    @udaibhanchaubey2114 2 ปีที่แล้ว

    🙏🙏

  • @ravinishad7675
    @ravinishad7675 2 ปีที่แล้ว

    ओए ने

  • @s.k.chaubey8981
    @s.k.chaubey8981 2 ปีที่แล้ว

    रानी रत्न ज्योति की सनातन धर्म प्रेम. पति ने कबूल कर लिया इस्लाम धर्म तो छोड़ दिया था पति का साथ ।
    उर्फ रानी की सराय का इतिहास
    ..... Raju Hemkar जी के विषेश अाग्रह पर यह खोज।जय भाऊ बाबा
    आजमगढ़ इतिहास के झरोखे में कस्बा रानी की सराय अपनी पहचान बनाये हुये हॆ। रानी रत्नज्योति कुंवर कि याद दिलाते इस कस्बे के साथ उनकी गरिमा के अनरुप सलूक नहीं किया गया ।आजमगढ का एतिहासिकता को एक नया आयाम मिलगया।
    इतिहास. के पन्ने पर नजर दौडायें तो लगभग १६वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध फतेहपुर के समीप के राजपूत चन्दसेन सिंह के दो पुत्र. सागर सिहं व अभिमान सिहं उर्फ अभिमन्यु सिहं हुए।अभिमन्यु मुगल सेना में सिपाही हो गये उनकि योग्यता,शौर्य,कर्मनिष्टा,विरता कि आवाज दिल्ली कि सल्तनत मुगल सम्राट जहाँगिर के दरबार तक पंहुंची। १५९४में युसुफ खां जौनपुर का सूबेदार नियुक्त हुआ तब यह इलाका जौनपुर सुबे में ही आता था। उस समय जौनपुर में कई विद्रोह हुए उस विद्रोह पर काबू पाने के लिये अभिमन्यु सिहं को लगाया गया ।अभिमन्यु कि कार्य कुशलता से सम्राट बहुत खुश हुआ।(याद रहे मुगल के विरुद्ध हिन्दू राजपूतों का विद्रोह था)
    अभिमन्यु सम्राट से प्रभावित हो कर इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया ।अब वह दौलत इब्राहीम खॅाॅ के नाम से पहचाने जाने लगा।
    इस्लाम धर्म कबुलने के बाद कार्य कुशलता वीरता और सबसे बडी बात जहाँ तक हमें लगता अपने धर्म. को छोड़ने (((प्रेम, डर, लालच, राज्य कि महत्वाकांक्षा जो भि हो)एमेरा अपना विचार सन्तोष कु़़ चौबे का हैं हो सकता है इतिहासकारों कि सहमति न बने।)))फिर भि....
    से जौनपुर के पूर्वी भाग के २२परगना पुरस्कार में देते हुये उन्हें जागीर बनाया और १५०० घुडसवार सेना व ९२.५०००₹ देकर मेंहनगर भेज दिया ।बाद में मेंहनगर को अपनी राजधानि स्वतन्त्र जागीर स्थापित किया।
    दौलतखाँ जहाँगीर के शासन काल में एक सम्मानित सिपहसालार. था।उसको अपनी कोइ औलाद नहीं थी
    इस लिये अपने भतीजे हरिवंश सिहं को गोद लिया था।
    ये भी अपने चाचा दौलत खाँ से प्रभावित थाऔर कुछ लालच मे इस्लाम धर्म ग्रहण करने के कारण १६२९मे हरिवंश को जागीर तो मिली ही राजा की पदवी भि मिल गई।मेंहनगर को अपनी राजधानी बनाया
    इनके दो बेटे थे गंभीर सिहं, धरणिधर सिहं हरिवंश सिहं ने तो इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया ।परन्तु उनकी धर्म परायणता रानी रत्नज्योति कुँवर उनसे अलग रहने लगी ।रानी रत्नज्योति ने सनातन धर्म नहीं छोडा ।स्वाभिमानि विराँगना होने के नाते पति से अलग रहते हुये
    हरिवंश कोट से मेंहनगर जाने वाले रास्ते से लगभग ७,८मिल दुर जो आज सेठवल गाँव हॆ रानी रत्नज्योति कुँवर को अति सुन्दर व प्रिय लगा ।रानी ने यहीं पर५२ एकड़ भूमि राजा से माँग लिया ।रानी अपने छोटे बेटे धरणिधर सिहं को लेकर रहने लगी १६२९‌ई.मे स्थानीय कस्बे मे पोखरा हनुमान मन्दिर कुआ व सराय तथा सराय के पीछे एक कूआ पानी पीने के लिये बनवायी जो आज भी मौजूद हॆ। यही स्थान अब रानी की सराय के नाम से जाना जाता हॆ।
    बाद के दिनों में रानी के बेटे धरणिधर सिहं भी मुस्लिम लडकी से शादी कर मुसलमान धर्म अपना लिया।इनके दो पुत्रो ने आजम खाँ और अजमत खाँ ने राज्य कि बाग डोर सम्भाली बार -बार विस् राजपूतों के विद्रोह को दबाने के लिये आजम खाँ ने १६६५ई.मे अाजमगढ शहर कि स्थापना की ।उनके भाई अजमत. खाँ ने अजमतढ बसाया ।
    आजादि के बाद १९५२मे नजूल भूमि यानि रानी की कोई वारिश नहीं होने के नाते शासन द्वारा यह भूमि जिला पंचायत आजमगढ को स्थानान्तरित कर दि गई।स्थानिय कस्बे कि सबसे बडी खासियत हॆ जिसे रानी रत्नज्योति ने अपने वसीयतनामे मे लिखी थी की स्थानीय कस्बे में कोई भी मस्जिद या ईमामबाडा नहीं होना चाहिए ।जिसका आज भी अछरतम पालन किया जाता हॆ।यह कस्बा जिला का पहला ऎसा कस्बा हॆ जहाँ मस्जिद नहीं हॆ।इसके बावजूद सब सम्प्रदाय के लोग काफी प्रेम व्यवहार से मिल जुल कर रहते हॆं।
    रानी द्वारा बनवाया गया रानी पोखरा तथा कुअाँ ध्यान नहीं दिये जाने के कारण जीर्ण शिर्ण होताhttpsजा रहा हॆ। गन्दगी भी इसकी सुन्दरता पर बट्टा लगाती हॆ।अगर इसके प्रति जिम्मेदार अधिकारी जागरूक हो जांय तो कस्बे कि ऎतिहासिकता कि अछुणता के साथ यह सुन्दर स्थल में परिवर्तित हो सकता हॆ।
    -----------हरिवंश सिहं ने २०साल तक राज्य किया
    हरिवंश सिहं ने हि हरिबाँध पोखरा,लखरांव पोखरा रानिसागर पोखरा,मडिलहां पोखरा बनवाया था।आज भी ए ऎतिहासिक धरोहरें मौजूद हॆं।राजा हरिवंश सिहं ने अपने चाचा दौलत खां के याद में३६ दरवाजा वाला मकबरा बनवाया था जो आज भी मेंहनगर में दौलतपुर के नाम से हॆ।

  • @rameshnishadrameshnishad476
    @rameshnishadrameshnishad476 2 ปีที่แล้ว

    जय श्री स्वर्गीय बेचन राम जी 🙏🙏🚩