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देवी दुर्गा का जन्म कैसे हुआ ? Navratri 2023 | Maa Durga ka janam | Srishti Rachana | Sant Rampal Ji

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  • เผยแพร่เมื่อ 12 ส.ค. 2024
  • इस नवरात्रि 2023 जानिए देवी दुर्गा का जन्म कैसे हुआ ? सृष्टि रचना में दुर्गा जी का जन्म कैसे हुआ बताया गया है ..सुनिए संत रामपाल जी महाराज जी के अनमोल सत्संग ......
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ความคิดเห็น • 135

  • @sureshpandit4161
    @sureshpandit4161 ปีที่แล้ว +9

    Sat saheb ji sat🙏 saheb😊🙏🙏🙏🙏🙏 sat saheb🙏

  • @PremKumar-kd9vq
    @PremKumar-kd9vq ปีที่แล้ว +14

    Satguru dev ki jay

  • @VinodVinod-vi1sx
    @VinodVinod-vi1sx ปีที่แล้ว +14

    Sat guru sant Rampal Mahraj ki ki jai ho👏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏💓💓💓💓🌻🌷🌼🏵🏵🏵🌹🌹🌹🥀🥀🥀💐💐🌸💮💮💮🏵🏵🌹🌹🥀🥀🐚

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 ปีที่แล้ว

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @darrentsolanki1880
    @darrentsolanki1880 ปีที่แล้ว +7

    Sat SahebJi🙏🙏🌹🌹🌺🌺🌺
    very very great ,informative Tatva gyaan by jagat Guru Sant Rampal ji Maharaj
    Sat SahebJi 🙏🙏🌹🌹🌺🌺🌺

  • @dharmendravishwakarma4248
    @dharmendravishwakarma4248 ปีที่แล้ว +10

    Sat Saheb Ji

  • @purusottamnayak2676
    @purusottamnayak2676 ปีที่แล้ว +9

    Anmol Gyan 👌

  • @guru_bhagwan_
    @guru_bhagwan_ ปีที่แล้ว +10

    Sat saheb Sat guru rampal ji maharaj ki jay

  • @chandravatidevi2535
    @chandravatidevi2535 ปีที่แล้ว +7

    Bahut achha satsang h

  • @nandughritlahre7741
    @nandughritlahre7741 ปีที่แล้ว +6

    Sat Saheb ji

  • @ashokghodke6709
    @ashokghodke6709 ปีที่แล้ว +4

    Satguru Rampal Ji Maharaj

  • @jatadhari2136
    @jatadhari2136 ปีที่แล้ว +6

    Way of worship

  • @AbhishekKumar-um2mn
    @AbhishekKumar-um2mn ปีที่แล้ว +6

    Sat saheb ji 🙏

  • @Ratiram.55
    @Ratiram.55 ปีที่แล้ว +6

    सत साहेब

  • @swashnachand5379
    @swashnachand5379 ปีที่แล้ว +4

    very nice and powerful satsang
    bandi chor sat guru Rampal ji maharaj ki jai jo
    sat saheb

  • @Manoj-vi8hb
    @Manoj-vi8hb 9 หลายเดือนก่อน +1

    Bandi Chhod Rampal Ji Maharaj ki Jay Ho

  • @sobitgour3851
    @sobitgour3851 ปีที่แล้ว +4

    Sat Sahib ji 🙇

  • @truespiritual533
    @truespiritual533 8 หลายเดือนก่อน +1

    सभी भाइयों और बहनों को दास का सत साहेब

  • @patelrinkupatel7956
    @patelrinkupatel7956 ปีที่แล้ว +8

    Supreme God is Kabir

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 ปีที่แล้ว

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @ChandrakishorKumar-bb7qz
    @ChandrakishorKumar-bb7qz 9 หลายเดือนก่อน +2

    Sat saheb ji

  • @omprakashsharma1791
    @omprakashsharma1791 ปีที่แล้ว +2

    🙏🌺🙏Bandi chod sat guru Rampal ji bhagwan ki jai 🙏🌺🙏Sat Saheb 🙏🌺🙏

  • @naveenpharma8874
    @naveenpharma8874 ปีที่แล้ว +3

    Jay bandichor ke

  • @user-pt9lz9hv1t
    @user-pt9lz9hv1t 4 หลายเดือนก่อน

    जय सतगुरू देव जी की

  • @user-ex4kg9hh5w
    @user-ex4kg9hh5w 8 หลายเดือนก่อน

    Jay Ho Jagat Guru Sant Sahib

  • @jaipalsingh4648
    @jaipalsingh4648 ปีที่แล้ว +13

    🙏🙏🙏🙏sat guru dev ji ki jai ho 🙏

  • @deviramkhasa2046
    @deviramkhasa2046 ปีที่แล้ว +8

    जगत गुरु तत्व दर्शी संत रामपाल जी को कोटि कोटि दंडवत प्रणाम जी👋👋 जय बंदी छोड़ की सत साहेब जी🙏🙏

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 ปีที่แล้ว +1

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @heeralalkhatawlia2694
    @heeralalkhatawlia2694 ปีที่แล้ว +3

    मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले ना बारम्बार। ज्यों तरुवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर ना लगता डार।।

  • @user-bu2gq2qo4c
    @user-bu2gq2qo4c หลายเดือนก่อน

    Jaisatguru dev ki❤

  • @ashokdass8126
    @ashokdass8126 9 หลายเดือนก่อน

    बंदी छोड़ परमपिता परमेश्वर जी के संत रामपाल जी भगवान जी के चरणों में कॉल रिकॉर्डिंग प्रणाम परमेश्वर जी संत रामपाल जी महाराजदूर देखें एक बार

  • @shivamcreativeyt6650
    @shivamcreativeyt6650 ปีที่แล้ว +2

    Anmol satsang

  • @mathuraprasad5170
    @mathuraprasad5170 ปีที่แล้ว +11

    Bandi chhod sadguru rampal mahraj ji ki jai ho

  • @mathuraprasad5170
    @mathuraprasad5170 ปีที่แล้ว +10

    Aap sabhi bhai aur bahno ko sat saheb ji

  • @ratandass1733
    @ratandass1733 ปีที่แล้ว +2

    सत्य ज्ञान है

  • @surendraparihar2022
    @surendraparihar2022 ปีที่แล้ว +10

    True knowledge 💯

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 ปีที่แล้ว

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @creativess8567
    @creativess8567 ปีที่แล้ว +12

    केवल एक मात्र सत आध्यात्मिक ज्ञान 🙇🙇🙇🙇🙏🙏🙏🙏🤲🤲🤲🤲

  • @amitkorde2356
    @amitkorde2356 10 หลายเดือนก่อน +3

    🙏❤🙏

  • @mahisingh6166
    @mahisingh6166 ปีที่แล้ว +1

    Bandi chhod satguru Rampal Ji Bhagwan Ji ki Jay Ho

  • @DHARMVEERSINGH-mr4uq
    @DHARMVEERSINGH-mr4uq 7 หลายเดือนก่อน

    सत् साहेब जी

  • @rambahadurrambahadur8625
    @rambahadurrambahadur8625 ปีที่แล้ว +2

    Sat saheb sabko ji

  • @DharmendraPandit-n4z
    @DharmendraPandit-n4z 20 วันที่ผ่านมา

    Sat saheb ji ki jai

  • @poojaachagava
    @poojaachagava ปีที่แล้ว +8

    Sat Saheb ji 🌹🙏🏻

  • @sunitakujur7801
    @sunitakujur7801 ปีที่แล้ว +4

    इस का किसी भी शास्त्र में उल्लेख नहीं कि नशा करें।
    यह मानव समाज को बर्बाद कर रहा है।

  • @revantram6344
    @revantram6344 ปีที่แล้ว +1

    गरीब तीनों देवा कमल दल बसे बमहा विष्णु महेश पहले इनकी वदना फिर सुन सतगुरु उपदेश

  • @menkadas7268
    @menkadas7268 ปีที่แล้ว

    Jai Mata di 🙏 🙏

  • @rajuchauhan7603
    @rajuchauhan7603 9 หลายเดือนก่อน

    Sant guru ram pal mahraj tavt gnani Dand vand kotee kotee parnam sad guruji me appse diksh Leana chaha tacho

  • @shrikantsirecs3916
    @shrikantsirecs3916 ปีที่แล้ว +2

    That's true srishti rachana.

  • @jatinderrakhra
    @jatinderrakhra ปีที่แล้ว +5

    satgur dev ki jai🙏🙇‍♂️🙏🙇‍♂️

  • @Suresh-je1rc
    @Suresh-je1rc 9 หลายเดือนก่อน

    Sat guru rampal Maraj ji kabir rup mai aai hai

  • @prakashgaikwad3313
    @prakashgaikwad3313 6 หลายเดือนก่อน

    ❤ Thanks Universe Thanks gaid

  • @Desigaming1170
    @Desigaming1170 ปีที่แล้ว +3

    Sat sahib

  • @manoharlalkumarkumar7913
    @manoharlalkumarkumar7913 ปีที่แล้ว +6

    Sat Saheb guru ji Maharaj ke charano me dandvat pranam gareeb das ko 🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  • @omkeshkumar3978
    @omkeshkumar3978 ปีที่แล้ว +3

    🥀🌹🥀🥀🙏🙏🙏

  • @pavitarsidhu3206
    @pavitarsidhu3206 25 วันที่ผ่านมา

    🙏🙏🙏🙏

  • @sunilkhasa8486
    @sunilkhasa8486 10 หลายเดือนก่อน

    Jai mata di 🙏

  • @shivamcreativeyt6650
    @shivamcreativeyt6650 ปีที่แล้ว +2

    Anmol vachan

  • @PappuKumar-u2u
    @PappuKumar-u2u 26 วันที่ผ่านมา

    Sat saheb

  • @devokedevkavirdev
    @devokedevkavirdev ปีที่แล้ว +6

    Kabir is Supreme power

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 ปีที่แล้ว

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @jogendrasingh978
    @jogendrasingh978 10 หลายเดือนก่อน

    Narayan hi saty hai

  • @pardeepdas7346
    @pardeepdas7346 9 หลายเดือนก่อน

    Bahut Achcha

  • @satsaheb5775
    @satsaheb5775 ปีที่แล้ว

    Sat saheb ji 🌹🌹🌹🙏🙏🙏⚘⚘⚘🙏🙏🙏🥀🥀🥀🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌺🌺🌺🙏🏼🙏🏼🙏🏼

  • @avirajmarkandey5802
    @avirajmarkandey5802 ปีที่แล้ว +2

    Satya gyan

  • @diwakarkumar2679
    @diwakarkumar2679 ปีที่แล้ว +3

    Kabir is supremo good

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 ปีที่แล้ว

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @manakkumawat8057
    @manakkumawat8057 ปีที่แล้ว

    Great knowledge pramatma S

  • @uditnarayan7437
    @uditnarayan7437 ปีที่แล้ว +8

    True spiritual knowledge

  • @aurovilprasad4024
    @aurovilprasad4024 4 หลายเดือนก่อน

    Devi Durga represents as cosmic energy

  • @meenapundir8516
    @meenapundir8516 ปีที่แล้ว +6

    Great spiritual knowledge

  • @mathuraprasad5170
    @mathuraprasad5170 ปีที่แล้ว +5

    🙏🙏🙏

  • @julumsingh6472
    @julumsingh6472 9 หลายเดือนก่อน

    ❤❤❤❤sat😂 saheb 😂je 🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂

  • @ambikaprasad1734
    @ambikaprasad1734 ปีที่แล้ว +5

    चुक गई तो चुक जान दे // कर सतगुरु से हेत , सतगुरु दीन दयाल है // फिर उपजा दे खेत🙏🙏↪️ बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी भगवान जी की जय हो

  • @user-vr6zn7pf8p
    @user-vr6zn7pf8p 8 หลายเดือนก่อน

    ❤bandi chchod satguru rampal jee bhagwan jee ki jai ho sat saheb guru jee❤

  • @DineshKumar-ib3hv
    @DineshKumar-ib3hv ปีที่แล้ว +5

    pavitra shridevi bhagwat mahapuran jismein chauthe skand mein Diya hua hai prakaran ki Shri Durga ji khud Apne se Kisi Anya dusre parmatma ke Sharan mein jaane ke liye kahati aur kahate ki meri bhakti bhi mat karo aur iska Om mantra hai aur braham antriksh mein brahmalok mein rahata hai aur keval aur sabhi bhakti chhodkar keval usi ki bhakti karo aur tumhara Kalyan hoga aur ISI sabit hota hai ki Durga ji jo hai sherawali man purn parmatma Nahin hai arthat janm mein aati hai dhanyvad

  • @vikashkumarkumar7639
    @vikashkumarkumar7639 ปีที่แล้ว +2

    🙏🙏🙏🙏🙏🥀🥀🥀🥀🥀🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌷🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌺🌷🌷🌺🌺🥀🥀🥀🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  • @user-wd1el5bc1u
    @user-wd1el5bc1u 9 หลายเดือนก่อน

    🔮भारत में उत्पन्न वह पूर्ण संत गौर वर्ण के हैं, उनके न दाढ़ी है, ना मूछें हैं और उनके सर पर सफेद बाल हैं। - फ्लोरेंस
    अमेरिका की इस प्रसिद्ध भविष्यवक्ता की उपरोक्त भविष्यवाणी संत रामपाल जी महाराज पर बिल्कुल खरी उतरती है।

  • @uttamsing7016
    @uttamsing7016 9 หลายเดือนก่อน

    👏🙏🏻

  • @uttamsing7016
    @uttamsing7016 9 หลายเดือนก่อน

    👏👏

    • @SHYAMBIHARI-fn7bc
      @SHYAMBIHARI-fn7bc 9 หลายเดือนก่อน

      Satguru, rampal, ji, kokoti, ko to, dandvat, pranam, karti hu, 😂😂😂😂😂😂

  • @devokedevkavirdev
    @devokedevkavirdev ปีที่แล้ว +6

    Kabir is Supreme God

  • @heeralalkhatawlia2694
    @heeralalkhatawlia2694 ปีที่แล้ว +4

    राम नाम कड़वा लगे, मीठे लागे दाम। दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम।।

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 ปีที่แล้ว

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @bhagwatilalmeena9312
    @bhagwatilalmeena9312 ปีที่แล้ว +1

    मनुष्य जन्म में आकर पूर्ण गुरु के चरण नहीं लोगे तो हर एक आत्मा का यह दशा होगा जो इस गोडे पशु के हो रहा है

  • @abhishekkumar-ey4mg
    @abhishekkumar-ey4mg ปีที่แล้ว +1

    Abhishek kumar das

  • @dollysahu3751
    @dollysahu3751 ปีที่แล้ว +4

    Kabeer is supreme power of god

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 ปีที่แล้ว

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @Harekrishana633
    @Harekrishana633 ปีที่แล้ว +3

    आप में विद्वता है... लेकिन महोदय कबीरदास संत थे नकि कोई ब्रह्म। आप वेद और भागवत को कबीर जी से क्यों जोड़कर बतातें है?

  • @reshminagesh9919
    @reshminagesh9919 9 หลายเดือนก่อน

    Kabir is god

  • @SurendraSingh-je1lq
    @SurendraSingh-je1lq ปีที่แล้ว +5

    इस नवरात्रि पर जानिए कौन है वह पूर्ण परमेश्वर जो सभी कष्टों को दूर करके दुखों का अंत कर सकता है। उस पूर्ण परमेश्वर की जानकारी के लिये अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।

  • @Dungeon_motivation
    @Dungeon_motivation ปีที่แล้ว +1

    Book is naam koi bata sktaa haii ki ye kaha sey vyakhyaa rkhii huii a

  • @safaltaghimere7858
    @safaltaghimere7858 7 หลายเดือนก่อน

    Lasun peyag khanay wala kaisay sadu huwa

  • @Axu7798
    @Axu7798 ปีที่แล้ว +1

    Guru ji mortii puja❌❌❌galat

  • @MayaramKumar-yi9nn
    @MayaramKumar-yi9nn 2 หลายเดือนก่อน

    😂🎉😊😊

  • @user-dl5ek2ox4r
    @user-dl5ek2ox4r 3 หลายเดือนก่อน

    Yr tuc meri maa de pishe kio paye hoe a meri maa hi sab kush a

  • @preetikumari-rt7qo
    @preetikumari-rt7qo ปีที่แล้ว

    माता दुर्गा को प्रसन्न करने का वास्तविक मंत्र क्या है।।

    • @SubhankarShivay
      @SubhankarShivay หลายเดือนก่อน

      He Devi Om Om Om maha ommaha DURGA mahamaya trimaya maha Devi subhankar ARDHANGINI Devi adi SAKTI NOMO NAMAHA NOMOSTUTE 21 bar ye mantra ko 21 din pat Karo UCCHARAn k sath

  • @Darshyadav24
    @Darshyadav24 ปีที่แล้ว +1

    Yo murk h

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 ปีที่แล้ว

      Paka murkh hain ek number ka ye Wali baat nahi batayega. Logo ko 33:01 हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @SurajRaj-oy7mc
    @SurajRaj-oy7mc 6 หลายเดือนก่อน

    Nakul muh

  • @Darshyadav24
    @Darshyadav24 ปีที่แล้ว +1

    संत रामपाल 😛😛🤧👻💀👏👏

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 ปีที่แล้ว

      Pakhandi hain dekho toh sahi kaise logo ko murkh bana raha hain 😂jabki devi mata Durga ji utpati mahisasur ki badh ke liye bhram Vishnu mahesh aur saare devtawo ne apni sakti se utpan kiya lekin ye swamghoshit nalayak shant Jo ki dhogi hain sidh karne pe laga hain😅😅😅😅

  • @_aankush__
    @_aankush__ 11 หลายเดือนก่อน

    🤣🤣

  • @riteshanandgautam007
    @riteshanandgautam007 ปีที่แล้ว +2

    Kitna fenk rhe ho uncle ji.

  • @aurovilprasad4024
    @aurovilprasad4024 4 หลายเดือนก่อน

    Faltu story mat bolo

  • @MithleshSharma-rj5vh
    @MithleshSharma-rj5vh ปีที่แล้ว

    Hamare najar ye e ek dhongi hai kyoki maa durga jagatjanni ko na hi koi pap chhu sakta hai na na hi koi papi to durga ki balatkar jaise bate karnewala ye dhongi ye Jan le pahle Kabir koi parmatma nahi sant hai or wo sant kabir ki chhwai sanatan sanskriti me girate ja rahe hai

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 ปีที่แล้ว

      Dhongi kiya. Pakka dongi hai 😂😂😂

    • @user-dl5ek2ox4r
      @user-dl5ek2ox4r 3 หลายเดือนก่อน

      Sahi kaha meri maa hi sab kush hai

  • @MithleshSharma-rj5vh
    @MithleshSharma-rj5vh ปีที่แล้ว

    To aapka kahna hai ki kabir ek agriment banaye hai ki jo meri agriment manega wo satyalik or jo nahi Mane wo narklok ye kaisa agriment hai or jab kabir parmatma hai to unke samne Gita ka value to tum Gita ka sahara kyon le raha hai dhongi

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 ปีที่แล้ว

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @ramkeshyadav8184
    @ramkeshyadav8184 ปีที่แล้ว

    Sant rampal Tu Kabir beta hai jail making hai 12 park NY

    • @k.psingh4701
      @k.psingh4701 ปีที่แล้ว

      हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
      दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
      जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
      सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
      एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
      एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
      माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
      निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)
      शब्दार्थ
      एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।
      प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।
      व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

  • @sonamshrivas6563
    @sonamshrivas6563 8 หลายเดือนก่อน

    Acchi fenkata hai yah😂

  • @sonamshrivas6563
    @sonamshrivas6563 8 หลายเดือนก่อน

    Murkh Chand😂😂😂😢

  • @rajeshwarshah1050
    @rajeshwarshah1050 10 หลายเดือนก่อน

    Rampal ka Gyan bakwas hai