गोरिल देवता जागर || goril dewta jagar , गोलू देवता जागर ||

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  • เผยแพร่เมื่อ 16 ก.ย. 2024
  • गोरिल देवता जागर || goril dewta jagar , गोलू देवता जागर || गोलू देवता मन्दिर , पहाड़ी जागर , phadri
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    कॉन्टेंट-
    गोलू देवता भारत के उत्तराखंड राज्य के देवता हैं और उनके देवता हैं। चितई गोलू देवता मंदिर देवता को समर्पित सबसे प्रसिद्ध मंदिर है और बिनसर वन्यजीव अभयारण्य के मुख्य द्वार से लगभग 4 किमी और अल्मोड़ा से लगभग 10 किमी दूर है। दूसरा प्रसिद्ध मंदिर भोवाली के पास, सैनिक स्कूल, घोड़ाखाल के बगल में स्थित है।
    डाना गोलू में, गोलू देवता का मूल और सबसे प्राचीन मंदिर है। गोलू देवता को भगवान शिव का अंश माना जाता है। उनके भाई को कलवा भैरव के रूप जाना जाता है। कुमाऊ के कई गांवों में गोलू देवता को प्रमुख देवता (इष्ट/ कुल देवता) के रूप में भी प्रार्थना की जाती है।
    वेल देवताः कुर्मान्चल में व्यापक धार्मिक भावनाओं और उपासना पद्धतियों में ग्राम देवता या कुल देवता का विशिष्ट स्थान है। इनकी उपासना के मूल में प्रेत पूजा सामन्ती व्यवस्था के प्रति तीव्र आक्रम अव के प्रति स से प्रतिक्रियात्मक भावना व्याप्त है। इनमें सत्यनाथ भोलानाथ, गगनाथ, खेल, सेम, ऐडी, भैरों, फलदिए, चौमू हर भूमिया नन्दादेवी, गरदेवी देवी राणी झालीमाली आदि प्रमुख है। पौराणिक देवी-देवताओं की अपेक्षा, यहां के लोकजीवन को यहां के स्थानीय देवी-देवताओं ने अधिक प्रभावित किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि ये सभी क्षेत्र देवी-देवता यहां की आदिम जातियों की देन है, जिन्होंने इन चरित्रों के माध्यम से अपना आक्रोश व्यक्त किया है।
    कूर्माचल में इस सैगल (गोरिल) आदि की गाधाएं लोक जीवन में खूब प्रचलित है। विश्वास किया जाता है कि चम्पावत के राजा नन्द जिनको राज्यकाल कुमाऊँ का इतिहास के लेखक श्री बढीद पाण्डे जी ने 1374 से 1419 बताया है, के समय चम्पावत के समीप गोरिल गौड़ और जागेश्वर के समीप र को केन्द्र बनाकर इन्होंने राजनैतिक गतिविधियों का संचालन किया। इनसे सम्बन्धित कोई लिखित इतिहास तो उपलब्ध नहीं है, किन्तु लोकगाथाओं से इनका पूरा हो जाता है।
    गोरिल को न्याय का देवता कहा गया है। नदी में बहाए मैं जाने के कारण इसका नाम गोरिया यो गोरिल्ल भी कहा गया है। गुलेल का निशानेबाज होने के कारण इसे कहते हैं। इसका महता कुमाऊँ में ही नहीं, गौरेया नाम से उ.प्र. के पूर्वी जिलों में भी है। शिवासन टिहरी के राजा सुदर्शन शाह ने अपनी रियासत में गोरिल्स की पूजा पर प्रतिबन्ध लगा रखा था। अब तो गढ़वाल क्षेत्र में मौल देवता की पूजा होती है। यह भी विश्वास किया जाता है कि यह बलपूर्वक अपनी पूजा सेता है। कुमाऊँ में गौरित देवता के मन्दिर चौड़, गर उदेपुर, मनारी, घोड़ाखाल मानिल कुमौड़ गागर रानीबाग पिई आदि स्थानों में हैं। जागर के अनुसार के देवता की कथा इस प्रकार है- लेखक
    कुमाऊँ के स्कॉट में किसी समय राजा आसुराई का राज्य था। उनके पौत्र राजा झालूराई के सात विवाह होने पर भी कोई सन्तान न थी। ज्योतिषी के कहने पर आठ विवाह से सन्तानोत्पत्ति हुई और उसका विवाह हिमालय की तलहटी में स्थित किसी राज्य के राजा कालान की सुन्दर कन्या कालिका से हो गया। हुकाल जब निकट आया तो झालुराई को जरूरी काम से बाहर जाना पड़ा। जाते समय वह आदेश दे गया कि यदि रानी के पुत्र हो तो सामने [टी हुई घन्टी बजा देना अन्य सात रानियों से सौतिया दाह से षड्यंत्र रचा। प्रसव के समय रानी कालिका की आंखों पर पट्टी बांधकर नवजात शिशु के स्थान पर सिल का बट्टा रख दिया और ऐसा ही प्रचारित कर दिया। नवजात शिशु को मारने के लिए उन्होंने अनेक प्रयास किए, किन्तु यह विलक्षण बालक मरा नहीं तब उन्होंने शिशु को लोहे के सन्दूक में बंद कर गोरी नदी में बहा दिया। संयोग से मानाचीवर नाम के एक मछुवारे के हाथ लग गया वह शिशु उसी ने उसका लालन पालन किया। बालक अत्यन्त मेधावी था और हर समय गुलेल हाथ में रखता था। इतना ही नहीं उसे अपने जन्म से सम्बंधित सभी घटनाएं याद थीं। बड़ा होने पर बालक पिता की राजधानी पहुंचा और सारी आप होती राजा को बताई। राजा ने कोच में सभी सातों रानियों की आंखें निकलवा दी और बालका को राजा बना दिया।
    कालान्तर में यह अत्यन्त न्याय राजा सिद्ध हुआ। जिसको कहाँ न्याय नहीं मिलता था, वह गोरिल के पास आता था मृत्यु के बाद भी वेल राजा देवता के रूप में पूजा जाने लगा। लोक गाथाओं में गोरिल के दो
    रूप राजकुमार और देवता के पाए जाते हैं। इन्हें जीवनी और महात्म्य के रूप में भी विभक्त कर सकते है। प्रारम्भिक गाथाओं में गोरिया को पीली धुमाकोट से जोड़ा जाता है। लेकिन बाद की गाथाओं में चम्पावत
    से जोड़ा जाता है। चम्पावत नगर के समीप गोरिल चौड़ में चन्द राजा ज्ञानचन्द के शासनकाल में गोरिया ने अपना आश्रम स्थापित किया, जो बाद में कुमाऊँ का एक प्रसिद्ध धर्मस्थल बन गया। 'भनय नाम से भी यह प्रसिद्ध हुआ था नामक शैली में भय की जो गाथा प्रचलित है, उसमें गोरिया का नैनीताल में पोड़ाखाल जाने का वर्णन है। गोरिया पर नाथपंथ का पूरा प्रभाव था। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि गोरिया एक नाथपंथी जोगी पा
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ความคิดเห็น • 6

  • @mahendrakapil6298
    @mahendrakapil6298 ปีที่แล้ว +1

    Jai Golu Devta

  • @user-yk5od9vv5b
    @user-yk5od9vv5b ปีที่แล้ว +1

    जय हो गोलू देवता आप की जय हो

  • @devkiaashish6281
    @devkiaashish6281 ปีที่แล้ว +1

    Jai Goril Devta🙏🙏🙏🙏

  • @Raibar1
    @Raibar1 ปีที่แล้ว +2

    Very beautiful jagar jii....jay ho goril dewata ki jay ho 🙏🙏🙏🙏🙏

  • @Musafir-ashok
    @Musafir-ashok ปีที่แล้ว +2

    🙏🙏🙏🙏👍

  • @ranjeetbhai280
    @ranjeetbhai280 ปีที่แล้ว +2

    👍👍👌🥰