सचेतन, पंचतंत्र की कथा-35 : धर्मबुद्धि और पापबुद्धि की कथा-2

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  • เผยแพร่เมื่อ 22 ธ.ค. 2024
  • आज हम धर्मबुद्धि और पापबुद्धि की कहानी को आगे बढ़ाते हैं।"सचेतन" के विचार के सत्र में आपका स्वागत है!
    पहला भाग:
    किसी नगर में धर्मबुद्धि और पापबुद्धि नाम के दो मित्र रहते थे। एक दिन पापबुद्धि ने लालच में आकर धर्मबुद्धि को सुझाव दिया कि वे परदेश जाकर धन कमाएं। धर्मबुद्धि की ईमानदारी और मेहनत से दोनों ने परदेश में खूब धन कमाया। उन्होंने धन जंगल में गाड़ दिया। कुछ दिनों बाद पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि को बुलाया और गड्ढा खोदकर दिखाया कि धन गायब है। उसने धर्मबुद्धि पर चोरी का झूठा आरोप लगाया। धर्मबुद्धि शांतिपूर्वक बोला, "मैं धर्मबुद्धि हूं। मैं कभी चोरी नहीं कर सकता। धार्मिक व्यक्ति दूसरों की संपत्ति को मिट्टी समान और सभी प्राणियों को समान दृष्टि से देखता है।" दोनों के बीच विवाद बढ़ा, और वे न्याय मांगने के लिए राजदरबार गए।
    दूसरा भाग:
    दोनों इस विवाद को लेकर राजदरबार में पहुंचे अब आगे की कथा सुनेते हैं -
    जब अदालत के अधिकारी धर्म और सत्य की जांच के लिए तैयार हुए, पापबुद्धि ने चालाकी से कहा, "यह मुकदमा शमी वृक्ष देवता के समक्ष सुलझाया जाए। वे हमारे बीच न्याय करेंगे।" यह सुनकर अधिकारी मान गए और कहा, "सबेरे हम सभी वन में चलेंगे।" न्यायाधीशों ने इसे स्वीकार कर लिया।
    उसी रात, पापबुद्धि ने अपने पिता से मदद मांगी। उसने कहा, "तात! मैंने धर्मबुद्धि का धन चुरा लिया है। अगर आप मेरी मदद करेंगे, तो यह धन मेरे पास रहेगा। नहीं तो मैं इसे और अपनी जान दोनों को गंवा बैठूंगा।" उसके पिता ने कहा, "वत्स! मैं तुम्हारी सहायता करूंगा। बताओ मुझे क्या करना है।" पापबुद्धि ने कहा, "तात! जंगल के शमी वृक्ष के खोखले में जाकर छिप जाइए। जब सब लोग देवता के समक्ष न्याय मांगेंगे, तो आप अंदर से बोलिएगा कि 'धर्मबुद्धि चोर है।'" उसके पिता ने इस योजना को स्वीकार कर लिया।
    पिता ने कहा, "बेटा! जल्दी से बता, ताकि मैं तेरे कहे अनुसार तेरे धन को सुरक्षित कर सकूं।" पापबुद्धि ने कहा, "पिताजी! उस जंगल में एक बड़ा शमी का पेड़ है, जिसमें एक बड़ा खोखला है। आप तुरंत उसमें जाकर छिप जाइए। जब सुबह सबके सामने आपसे पूछा जाएगा कि सच क्या है, तो आप कहिएगा कि 'धर्मबुद्धि चोर है।'"
    इस योजना के अनुसार, पापबुद्धि ने अपने पिता को पेड़ के खोखले में छिपा दिया। अगले दिन पापबुद्धि, धर्मबुद्धि और अधिकारी शमी के पेड़ के पास पहुंचे। पापबुद्धि ने ऊंचे स्वर में कहा, "सूर्य, चंद्रमा, वायु, अग्नि, आकाश, पृथ्वी, जल, यम, दिन-रात और धर्म - ये सभी मनुष्य के आचरण को जानते हैं। हे शमी वृक्ष के देवता! कृपया बताइए कि हम दोनों में से चोर कौन है।"
    शमी वृक्ष के खोखले में छिपे पापबुद्धि के पिता ने कहा, "सुनो! धर्मबुद्धि ही चोर है।" यह सुनकर अधिकारी आश्चर्य में पड़ गए और धर्मबुद्धि को दंड देने की तैयारी करने लगे। लेकिन धर्मबुद्धि ने सूझ-बूझ से काम लिया। उसने शमी के वृक्ष के पास सूखी लकड़ियां इकट्ठी कीं और आग लगा दी। आग की लपटें फैलते ही पापबुद्धि का पिता अधजले शरीर और फूटी आंखों के साथ चिल्लाता हुआ बाहर निकला।
    जब उससे सच्चाई पूछी गई, तो उसने पापबुद्धि की पूरी योजना बता दी। अधिकारियों ने तुरंत पापबुद्धि को दोषी ठहराया और उसे शमी वृक्ष की शाखा पर फांसी दे दी। धर्मबुद्धि की समझदारी की सबने प्रशंसा की और कहा, "बुद्धिमान व्यक्ति को हमेशा योजना के साथ-साथ आने वाली समस्याओं का भी ध्यान रखना चाहिए।"
    अधिकारियों ने पापबुद्धि को दोषी ठहराया और उसे दंडस्वरूप फांसी दे दी। धर्मबुद्धि की सूझ-बूझ की सभी ने प्रशंसा की। इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि बुद्धिमान व्यक्ति को हमेशा योजना के साथ संभावित समस्याओं का भी ध्यान रखना चाहिए।
    अगले एपिसोड में हम सुनेंगे एक और प्रेरणादायक कहानी। तब तक "सचेतन" के साथ बने रहिए। धन्यवाद!

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