Veer Hanuman Mandir । ये वीर हनुमान जी की मूर्ति बोल उठती अगर ये गलती ना होती

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  • เผยแพร่เมื่อ 17 ก.ย. 2024
  • सामोद वीर हनुमान जी का मंदिर पूरे भारत में काफी प्रसिद्ध है। यह मंदिर जयपुर से 43 किलोमीटर की दूरी पर चोमू तहसील के ग्राम नांगल भरडा में सामोद पर्वत पर स्थित है। इस मन्दिर में हनुमान जी की 6 फीट की प्रतिमा स्थापित है। यहां पर भगवान श्री राम का भी मन्दिर है। यहां पहुंचने के लिए करीब 1100 सौ सीढिय़ां चढ़ती पड़ती है। हनुमान जी के एक हाथ में गदा और दूसरे हाथ में पहाड़ है। यहां हर मंगलवार और शनिवार को हजारों श्रद्धालु वीर हनुमान के दर्शन करने आते हैं। यहां हनुमान जयंती, नवरात्री, दीपावली और नए साल पर श्रदालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। श्रद्धालु यहां मनोकामना पूर्ण होने पर सवामणी का भोग लगाते हैं।
    यहां पर कैसे पहुंचे :
    सामोद वीर हनुमान जी का मंदिर पहाड़ों के बीच में स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन चौमूं है। मंदिर चौमूं रेलवे स्टेशन से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है। इस जगह के लिए बसें नियमित रूप से उपलब्ध हैं।
    पौराणिक कथा :
    कहा जाता है कि लगभग 600 वर्ष पूर्व संत श्री नग्नदास जी अपने शिष्य श्री लालदास जी के साथ हिमालय से भ्रमण करते हुए सप्त पर्वत शिखरराज सामोद पर्वत पर आए और दुर्गम अंतिम पर्वत पर छोटी सी कुटियानुमा गुफा में तपस्या करने लगे। तपस्या करते हुए एक दिन श्री नग्नदास जी को आकाशवाणी हुई कि 'मैं शीघ्र ही वीर हनुमान के रूप में प्रकट होऊंगा' तथा उसी समय पहाड़ी की चट्टान पर श्री हनुमान जी की मूर्ति के दर्शन प्राप्त हुए, तब से श्री नग्नदास जी श्री हनुमान जी की आराधना करने लगे और जिस चट्टान पर श्री हनुमान जी के दर्शन प्राप्त हुए थे, उसे हनुमान जी का आकार देना प्रारम्भ कर दिया और वर्तमान में स्थित श्री हनुमान जी की 6 फीट ऊंची प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवा कर सेवा पूजा आरंभ कर दी। उस समय यह स्थान अत्यंत ही एकांत दुर्गम था और जंगली जानवर विचरते थे, आम आदमी का आनाजाना ना के बराबर था। संत श्री नग्नदास जी वीर हनुमान जी की पूजा अर्चना किया करते थे और मूर्ति को पर्दे में ही रखते थे।
    एक समय संत श्री नग्नदास जी को तीर्थ स्थान पर जाना था। उन्होंने अपने शिष्य श्री लालदास जी से कहा कि 'जब तक मैं न लौटूं तब तक पर्दा मत हटाना और पर्दे सहित ही पूजा अर्चना करना।' परन्तु एक दिन एक भक्त मन्दिर में आया और पर्दा हटा कर दर्शन करने की प्रार्थना की। परन्तु श्री लालदास जी ने पर्दे सहित ही दर्शन करने को कहा, किन्तु भक्त के बार-बार विनम्र प्रार्थना करने पर श्री लालदास जी ने पर्दा हटा कर श्री हनुमान जी के दर्शन करा दिए, उसी समय मूर्ति से भयंकर गर्जना हुई और वह भक्त मूर्छित होकर गिर पड़ा। इस गर्जना से आसपास की पहाडिय़ों पर गाय-बकरियां चराने वाले ग्वाले डर कर अपने अपने घरों को लौट गये। जब पूर्व संत श्री नग्नदास जी तीर्थ यात्रा से लौटे तो सब जान गए और अपने शिष्य श्री लालदास जी से कहा कि आपने अच्छा नहीं किया यदि आप पर्दा नहीं हटाते तो मूर्ति के मुखारबिन्द से वाणी की रसधारा बहती। और उसी का कारण है कि श्री वीर हनुमान जी पीठ का ही अधिक पूजन होने लगा। धीरे धीरे आसपास के गांवों में श्री वीर हनुमान जी की महिमा की चर्चा होने लगी और लोग पहाड़ी के दुर्गम रास्तों से चढ़ कर दर्शन करने आने लगे।
    धीरे धीरे संत श्री नग्नदास जी व श्री लालदास जी के सानिध्य में आस-पास के गांवो से आने वाले भक्तजनों ने श्रमदान आरंभ कर दिया और पहाड़ी के बराबर पत्थरों को चुन-चुन कर पगडंडीनुमा रास्ता तैयार कर लिया। धीरे धीरे वीर हनुमान जी की महिमा चारों दिशाओं में फैलने लगी और दूर दूर से भक्त दर्शन करने आने लगे।
    इसके बाद धीरे धीरे संत श्री नग्नदास जी ने एक छोटा सा मन्दिर तैयार किया जिसमें श्री वीर हनुमान जी की मूर्ति के ऊपर छाया के प्रबन्ध के साथ भक्तजनों के रुकने व भोजन प्रसादी तैयार करनें हेतु कमरे का निर्माण हुआ।
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