विश्व आदिवासी दिवस 2019|| DUNGARPUR Raj.|| तुफानी माहोल भारी बारिस मिट्टी मे नाचते हुए आदिवासी भाई !

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  • เผยแพร่เมื่อ 10 ก.พ. 2025
  • Vishwa aadiwasi diwas Dungarpur sports ground
    9 agust 2019
    Mla sahab Rajkumar ji roat ,ramprasad ji dindore ,
    Kanti bhai roat
    Menka ji damor
    Dinesh ji khanan
    Rajesh ji koted
    Bhawar lal ji parmar
    Samaj ke yuva bhai jinhone is एतिहासिक programm ko bahut hi shandar banaya n bahut hi tarif ke kabil programm tha ....jai johar jai bheel pradesh ..... har saal isi tarah celebtate kiya jaye n isse bhi accha banane ki kosis karenge ....thanks to all dear brother n sister n elders .....विश्व आदिवासी दिवस न केवल मानव समाज के एक हिस्से की सभ्यता एवं संस्कृति की विशिष्टता का द्योतक है, बल्कि उसे संरक्षित करने और सम्मान देने के आग्रह का भी सूचक है. आदिवासी समुदायों की भाषा, जीवन-शैली, पर्यावरण से निकटता और कलाओं को संरक्षित और संवर्धित करने के प्रण के साथ आज यह भी संकल्प लिया जाए कि अपनी आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने में उनके साथ कदम-से-कदम मिला कर चला जाए. इन पहलुओं को रेखांकित करते हुए आज की यह विशेष प्रस्तुति... आदिवासी अस्तित्व का सवाल दयामनी बरला सामाजिक कार्यकर्ता, झारखंड आज जब हम धूमधाम से विश्व आदिवासी दिवस मना रहे हैं, तब हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि हम आदिवासी-मूलवासी लोगों की दशा और दिशा की ईमानदारी से समीक्षा करें. हम यह देखें कि जो संवैधानिक अधिकार भारतीय संविधान ने हमें दिया है, इसे अपने समाज-राज्य और देश-हित में उपयोग कर पा रहे हैं या नहीं. चाहे जल-जंगल-जमीन पर परंपरागत अधिकार हो, पांचवीं अनुसूची में वर्णित प्रावधान हो, ग्रामसभा का अधिकार हो, सीएनटी, एसपीटी एक्ट के प्रावधान हों, वन अधिकार कानून हो या फिर स्थानीय नीति के प्रावधान हों, हम देखें कि धर्मांतरण बिल के प्रावधान व जमीन अधिग्रहण बिल 2017 के प्रावधानों ने हमारा कितना हित किया है? विश्व आदिवासी दिवस मनाने के लिए जब हम रंगमंच में विभिन्न लोकगीत, संगीत और नृत्य से लोगों के दिलों में अपनी पहचान और इतिहास को उभारने की कोशिश कर रहे हैं, तब इस गीत को भी नहीं भूलना चाहिए, जो अंग्रेजों के खिलाफ 9 जनवरी, 1900 को डोम्बारी पहाड़ पर बिरसा मुंडा के लोगों के संघर्ष को मुंडा लोकगीत में याद करते हैं- ‘डोम्बारी बुरू चेतन रे ओकोय दुमंग रूतना को सुसुन तना, डोम्बारी बुरू लतर रे कोकोय बिंगुल सड़ीतना को संगिलकदा/ डोम्बरी बुरू चतेतन रे बिरसा मुंडा दुमंग रूतना को सुसुन तना, डोम्बरी बुरू लतर रे सयोब बिंगुल सड़ीतना को संगिलाकदा.’ (डोम्बारी पहाड़ पर कौन मंदर बजा रहा है, लोग नाच रहे है, डोम्बारी पहाड़ के नीचे कौन बिगुल फूंक रहा है जो नाच रहे हैं, डोम्बारी पहाड़ पर बिरसा मुंडा मांदर बजा रहा है- लोग नाच रहे हैं. डोम्बारी पहाड़ के नीचे अंग्रेज कप्तान बिगुल फूंक रहा है- लोग पहाड़ की चोटी की ओर ताक रहे हैं). समाज के अंदर हो रही घटनाओं पर हमें चिंतन करने की जरूरत है. चाहे अंधविश्वास के कारण हो रही हत्याएं, या उग्रवादी-माओवादी हिंसा के नाम हर साल सैकड़ों लोगों की हत्याएं, अपहरण, बलात्कार, मानव तस्करी जैसे अमानवीय घटनाएं हों. इनसे आदिवासी-मूलवासी समाज को ही नुकसान हो रहा है. परिणामस्वरूप समाज की समरसता, एकता विखंडित होने से जल-जंगल-जमीन लूटनेवालों की शक्ति बढ़ती जा रही है. आदिवासी-मूलवासी किसान, दलित-मेहनतकश समाज की सामाजिक, आर्थिक, संस्कृतिक और राजनीतिक संगठित शक्ति कमजोर होती जा रही है. आज जनविरोधी नीतियों की आलोचना करने पर देशद्रोह के मुकदमे का सामना करना होगा. पथलगड़ी के नाम पर सैकड़ों मुंडा आदिवासियों पर देशद्रोह का मुकदमा किया गया है. हजारों बेकसूर आदिवासी युवक जेल में हैं. जल-जंगल-जमीन की लूट तेजी से बढ़ रही है, जिससे हमारी पहचान- सरना व ससनदीरी पर भी हमला बढ़ रहा है. आज विश्व आदिवासी दिवस के इस अवसर पर झारखंड राज्य में शहादत देनेवाले हुलउलगुलान के क्रांति नायकों-सिदो-कान्हू, फूलो-झानो, सिंदराय-बिंदराय, तेलेंगा खड़िया, तिलका मांझी, गया मुंडा, डोंका मुंडा, वीर बुधु भगत, जतरा टाना भगत जैसे नायकों के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए संकल्प लेने की जरूरत है. तभी आज के वैश्विक पूंजीवादी व्यवस्था से उत्पन्न चुनौतियों का सामना आदिवासी-मूलवासी, दलित, किसान समाज कर पायेगा. झारखंड में जल संकट गहराता जा रहा है, प्रदूषण पर्यावरण को निगलता जा रहा है. आज सिर्फ दो ही रास्ते हैं- या तो चुनौतियों से समझौता कर लें, या घायल शेर की तरह अपने को बचायें. यही रास्ता आदिवासी-शहीदों का इतिहास है. जब तक जल-जंगल-जमीन, नदी-पहाड़, झील-झरना बचा रहेगा, तब तक आदिवासी समाज की भाषा-संस्कृति, सरना-ससनदीरी, अस्तित्व और पहचान बची रहेगी. आदिवासियों के लिए शिक्षा जरूरी बीनालक्ष्मी नेपराम सहसंस्थापक, डोरस्टेप स्कूल, मुंबई भौगोलिक और ऐतिहासिक रूप से देखा जाये, तो पूर्वोत्तर के राज्यों में विकास अभी अपने मानक तक नहीं पहुंचा है. पूर्वाेत्तर में सबसे ज्यादा जरूरत इस वक्त शिक्षा को लेकर काम करने की है. आदिवासियाें में शिक्षा का बहुत अभाव है और शैक्षणिक संस्थाओं की कमी है. जब तक आदिवासी समुदायों में शिक्षा नहीं बढ़ेगी, पूर्वोत्तर में शिक्षण संस्थाओं का विकास नहीं होगा, तब तक उनका विकास संभव नहीं है. वे लड़के-लड़कियां जिनके पास थोड़े पैसे हैं, वे दिल्ली, मुंबई या बाकी शहरों में जाकर उच्च शिक्षा हासिल तो कर लेते हैं, लेकिन आदिवासी समुदाय की ज्यादातर आबादी उच्च शिक्षा से वंचित है. शिक्षा की कमी की वजह से ही पूर्वोत्तर अपने संसाधनों के दोहन को पूंजीपतियों के हाथ से बचा नहीं पाता है. हालांकि, कानून से संसाधनों की लूट रोकी जा सकती है, लेकिन उनका पालन नहीं हो पाता. शक्तियां मुट्ठी भर लोगों के हाथ में है और अभाव से पूरा पूर्वोत्तर ग्रस्त है. इसलिए जरूरी है कि वहां शिक्षा का प्रसार हो और शैक्षणिक संस्थाओं का विस्तार हो, ताकि लोग अपने कानूनी अधिकार को समझ सकें. P. PARMAR #ABCD_apna_studio youtube channel 9.8.19

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