मति कीर्ति गति भूति भलाई,, जो जेहि जहां जतन जेहि पाईं 🌹 सो सब जानेऊ सत्संग प्रभाव,, लोकऊ वेद ना आन उपाऊ 🚩 आदरणीय सम्माननीय भागवत अनुग्रह प्राप्त परम् पूज्य गुरुदेव भगवान के श्री चरणों में कोटि कोटि साष्टांग दंडवत प्रणाम करते हैं 🙏 सादर जय हो 🙏
हे सद्गुरु! यदि यह स्नान देवताओं का है, यदि यह स्नान देवस्नान प्राधान्य पर्व है तो इस पवित्रतम भव्य स्नान को निश्चित रूप से ."दिव्य स्नान " के नाम से उद्वोधित किया जाना चाहिए । हमारी संस्कृत भाषा अपने शब्दों में ही अपने गूढ़तम व तात्पर्यित सम्पूर्ण भावपरिवेश के सम्यक् व अभीष्ट अर्थ को प्रतिविम्वित करने का सामर्थ्य रखती है । तो आपके श्रीमुख से जो निगूढ़तम संदेश प्राप्त हुआ उससे तो "शाही स्नान " के स्थान पर "दिव्यस्नान " हो जाये तो सनातन व संस्कृत भाषा आह्लादित हो जायें और तब कोई जब यह पूछे कि "दिव्यस्नान " नाम क्यों ? तब यही कथानक कह कर दिव्यस्नान" की सार्थक वा साभिप्रेत सत्ता सिद्ध की जा सके । जय श्री राम
ओ मोरेस्वामी हो,निबाहे चलो;
संसार की सारी माया के अधिपति श्रीसीताराम जी ही हैं, उनके प्यारे दुलारे शरणागत सन्त ही सच्चे अधिकारी होते हैं।नमों सनातनाय!
Jai ho gurudev baghwan ji ki or Jai ho humarh snatan dhrem ki
जय सियाराम 🙏🏻
मति कीर्ति गति भूति भलाई,, जो जेहि जहां जतन जेहि पाईं 🌹 सो सब जानेऊ सत्संग प्रभाव,, लोकऊ वेद ना आन उपाऊ 🚩 आदरणीय सम्माननीय भागवत अनुग्रह प्राप्त परम् पूज्य गुरुदेव भगवान के श्री चरणों में कोटि कोटि साष्टांग दंडवत प्रणाम करते हैं 🙏 सादर जय हो 🙏
Jai shree Ram
Jay shree Ram 🙏🙏🙏🙏❤️❤️❤️
Jai Shri shita ram
Shree Ram Jay Ram Jay Jay Ram
जय श्री सीताराम सीताराम सीताराम कहिए ❤
जय जय श्री सीता राम जी🙏🙏🌹🌹
Shri Shri 1o8 Shri sadgurudev ji Maharaj ji ke Shri charno main koti koti pranam and vanden
Jai Ho parnam maharaj ji ko dandvat jeme sukh sampati venhe bulaye dharm sel pahe Jay subhay
❤
सी🌹🙏🙏🙏🙏🙏🌹🤲🤲🤲🤲🤲🌹🚩🚩🚩🚩🚩
Jai shree Ram Charan espars guru dev bhagwan
ଜୟ ଜଗନ୍ନାଥ |
Maharaj ji lavan ki haveli nhi mil raha, koi address janta to batayega
हे सद्गुरु! यदि यह स्नान देवताओं का है, यदि यह स्नान देवस्नान प्राधान्य पर्व है तो इस पवित्रतम भव्य स्नान को निश्चित रूप से ."दिव्य स्नान " के नाम से उद्वोधित किया जाना चाहिए ।
हमारी संस्कृत भाषा अपने शब्दों में ही अपने गूढ़तम व तात्पर्यित सम्पूर्ण भावपरिवेश के सम्यक् व अभीष्ट अर्थ को प्रतिविम्वित करने का सामर्थ्य रखती है । तो आपके श्रीमुख से जो निगूढ़तम संदेश प्राप्त हुआ उससे तो "शाही स्नान " के स्थान पर "दिव्यस्नान " हो जाये तो सनातन व संस्कृत भाषा आह्लादित हो जायें और तब कोई जब यह पूछे कि "दिव्यस्नान " नाम क्यों ?
तब
यही कथानक कह कर दिव्यस्नान" की सार्थक वा साभिप्रेत सत्ता सिद्ध की जा सके ।
जय श्री राम