श्री कृष्ण भाग 89 - द्वारिका के ब्राह्मण ने किया श्री कृष्ण का अपमान । रामानंद सागर कृत

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  • เผยแพร่เมื่อ 11 ก.ย. 2024
  • Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 89 - Dwarika Ke Brahmin Ne Kiya Shri Krishna Ka Apamaan.
    श्रीकृष्ण शकुनि की चाल को काटने के लिये हस्तिनापुर जाते हैं और बलराम से वापस द्वारिका चलने को कहते हैं। बलराम उन्हें आश्वस्त करते हैं कि दुर्योधन की गदायुद्ध की शिक्षा समाप्त होते ही मैं वापस द्वारिका आ जाऊँगा। श्रीकृष्ण कहते हैं कि बलदाऊ भैया, आप कितने भोले हैं। औरों की बातों में आकर अपनों को छोड़कर पराये लोगों में निवास कर रहे हैं। बलराम श्रीकृष्ण के संकेतों को नहीं समझते और वह हस्तिनापुर में ही रुके रहते हैं। द्वारिका में देवी रुक्मिणी श्रीकृष्ण से कहती हैं कि आपने कहा था कि सुभद्रा और अर्जुन का विवाह होगा किन्तु मुझे उसके कोई लक्षण दिखायी नहीं देते। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह सम्बन्ध जरूर होगा क्योंकि भविष्य में कौरवों और पाण्डवों की लड़ाई में समस्त कुरुवंश का खात्मा हो जायेगा और केवल एक फूल बचेगा और यह फूल सुभद्रा के गर्भ से पैदा होने वाला है। इसके बाद श्रीकृष्ण योगमाया के माध्यम से सुभद्रा और अर्जुन को निकट लाने हेतु माया रचने का आदेश देते हैं। इसके बाद मायाजनित एक राक्षण वन में आखेट के लिये गयीं सुभद्रा का हरण कर लेता है। सुभद्रा की पुकार सुनकर अर्जुन राक्षस के चंगुल से सुभद्रा को मुक्त कराते हैं। राक्षस जान बचाकर भागने से पहले सुभद्रा के रथ में आग लगा देता है। अर्जुन सुभद्रा को कंधे पर उठाकर सुरक्षित बाहर निकालते हैं। इस घटना से दोनों के बीच प्रेम स्पर्श करता है। अर्जुन और सुभद्रा को एक साथ रथ पर आता देखकर रुक्मिणी श्रीकृष्ण को चिढ़ाने के इरादे से कहती हैं कि आपकी बहन ने तो अपने भैया से पूछे बिना अर्जुन का प्रणय निवेदन स्वीकार कर लिया। श्रीकृष्ण भी कहाँ चूकने वाले थे सो उन्होंने भी रुक्मिणी से बोल दिया कि जब तुम मेरे रथ पर बैठकर कुण्डिनपुर से आयी थीं तो क्या तुमने अपने भैया से पूछा था। रुक्मिणी निरुत्तर होकर हँसती हैं। वन में घटी घटना के बाद से सुभद्रा अपने महल में खोयी खोयी सी रहने लगती हैं। तभी रूक्मिणी वहाँ आती हैं और अपनी ननद को छेड़ने के अन्दाज से कहती हैं कि अब तुम विवाह योग्य हो गयी हो। कई राज्यों के राजा महाराजा ने तुमसे विवाह करने की इच्छा से पत्र भेजे हैं। तुम्हारे भैया उन पत्रों का अध्ययन कर रहे हैं। जैसे ही बलराम भैया द्वारिका वापस आयेंगे, तुम्हारा विवाह कर दिया जायेगा। इसके बाद रुक्मिणी सुभद्रा की चुटकी लेते हुए कहती हैं कि चाहो तो तुम स्वयं बता दो कि तुम किस राज्य की महारानी बनना चाहोगी। भाभी रुक्मिणी की बात सुनकर सुभद्रा झुंझला कर कहती हैं कि न तो मुझे विवाह करना है और न ही किसी देश की महारानी बनना है। अब रुक्मिणी सुभद्रा की दुखती रग पर हाथ रखती हैं और कहती हैं कि इसमें क्रोधित होने वाली क्या बात है। मैं द्वारिकाधीश को बता देती हूँ कि सुभद्रा को विवाह नहीं करना है। वैसे वो तो गाण्डीवधारी अर्जुन के बारे में सोच रहे थे। भाभी की चुहल के उपरान्त सुभद्रा को अपने हृदय की बात खोलनी पड़ती है कि वह अर्जुन से प्रेम करती हैं और उनसे ही विवाह करना चाहती है। रुक्मिणी कहती हैं कि मैं अर्जुन से कहूँगी कि वह तुम्हें कल रेवतक पर्वत पर होने वाले उत्सव में लेकर जाये। सुभद्रा प्रफुल्लित होकर भाभी रुक्मिणी के गले लगती हैं। हस्तिनापुर में बलराम शकुनि के साथ चौसर खेलते खेलते द्वारिका की स्मृतियों में खो जाते हैं। वह शकुनि और दुर्योधन को बताते हैं कि इन्हीं दिनों रेवतक पर्वत पर उत्सव होता है जिसमें द्वारिका के सभी लोग सम्मिलित होते हैं। यह उत्सव द्वारिका में एक नयी चेतना का संचार करता है। इस उत्सव के दौरान मैं यहाँ हस्तिनापुर में हूँ इसलिये मेरा मन अशान्त है। किन्तु मैं दुर्योधन की शिक्षा छोड़कर नहीं जाऊँगा। रेवतक पर्वत के उत्सव में अर्जुन और सुभद्रा डाण्डिया खेलते हुए प्रेमगीत गाते हैं। उत्सव में अर्जुन सुभद्रा के समक्ष प्रणय निवेदन करते हैं। सुभद्रा उनसे इस बारे में भैया भाभी से बात करने को कहती है। वह कहती हैं कि इस समय भैया कुलप्रथा के अनुसार यादवों के लिये कल्याण यज्ञ कर रहे हैं। यज्ञ तीन दिन चलेगा तो आप भी यज्ञशाला में बैठ जाइये। आपको वेदमंत्र सुनने का लाभ भी मिल जायेगा। यज्ञशाला में जब श्रीकृष्ण यज्ञ में तल्लीन होते हैं। तभी एक ब्राह्मण वहाँ रक्षा की गुहार लगाता हुआ आता है। वह श्रीकृष्ण से कहता है कि मैं अपने पुत्रों की अकाल मृत्यु की पीड़ा लेकर आया हूँ। यमराज ने मेरे तीन पुत्रों को धरती का स्पर्श करते ही निगल लिया। अब तो मुझे ऐसा लगता है कि इस द्वारिकापुरी में कोई क्षत्रिय नहीं बचा है तो एक ब्राह्मण की रक्षा कर सके। आपकी द्वारिकापुरी में माता पिता के जीवित रहते उसके पुत्रों के प्राण हरण का पाप किया गया है और आप इस यज्ञ में आहुति देकर धर्म पालन का नाटक कर रहे हैं। श्रीकृष्ण इसे मिथ्यारोप कहते हैं। तब ब्राह्मण कहता है कि मेरी पत्नी इस समय चौथी सन्तान को जन्म देने वाली है। आप मेरे साथ चलिये अन्यथा ऐसा न हो कि यमदूत मेरे बच्चे के प्राण पुनः हर ले जायें और मैं देखता रह जाऊँ। श्रीकृष्ण अपने न जाने की विवशता व्यक्त करते हुए कहते हैं कि मैं इस समय यज्ञ की दीक्षा ले चुका हूँ और यज्ञ अग्नि में आहुतियां भी अर्पित कर चुका हूँ। तब वो ब्राह्मण कटु वचन कहता है कि आप यदुवंशी क्षत्रिय होने का ढोंग करते हैं। वास्तव में आप क्षत्रिय हैं ही नहीं। आपके इसी ढोंग का फल हमारी जैसी प्रजा भुगत रही है।
    Produced - Ramanand Sagar / Subhash Sagar / Pren Sagar
    निर्माता - रामानन्द सागर / सुभाष सागर / प्रेम सागर
    Directed - Ramanand Sagar / Aanand Sagar / Moti Sagar
    निर्देशक - रामानन्द सागर / आनंद सागर / मोती सागर
    Chief Asst. Director - Yogee Yogindar
    मुख्य सहायक निर्देशक - योगी योगिंदर
    Asst. Directors - Rajendra Shukla / Sridhar Jetty / Jyoti Sagar
    In association with Divo - our TH-cam Partner
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