महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है शिव पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी और विष्णु जी का युद्ध हुआ था

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  • เผยแพร่เมื่อ 9 ก.ย. 2024
  • शिव पुराण के अनुसार
    ब्रह्मा और विष्णु जी का युद्ध हुआ था और
    भोलेनाथ स्तंभ के रूप में प्रकट हुए ब्रह्मा और विष्णु जी भोलेनाथ जी का पूजन और अभिषेक किया तब से यह स्थापना दिवस के उत्सव पर महाशिवरात्रि मनाया जाता है
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    ब्रह्मा-विष्णु युद्ध - पूर्व काल में श्रीविष्णु अपनी पानी श्री लक्ष्मी जी के साथ शेष शाच्या या शान कर रहे थे। जब एक बार ब्रह्माजी वहां पहुंचे और विष्णुजी को पुत्र कहकर पुकारने लगे-पुआ। में तुम्हार तुम्हारे सामने खड़ा हूं। यह सुनकर विष्णु जी को क्रोध आ गया। फिर भी शांत राहाते हुए वे बोले पुत्र तुम्हारा कल्याण हो। कहां अपने पिता के पास कैसे आना हुआ? यह सुनकर ब्रह्माजी कहने लगे मैं सुख पक्षक हूं। म जगत का पिता हूं। सारा जगत मुझमें निवास करता है। मेरी चाभि कमल से प्रकार होकर मुझपे ऐसी बातें कर रहा है। इस प्रकार दोनों में विवाद होने लगा। जब ये दोनों अपने को प्रभु कहते-कहते एक-दूसरे का वध करने को तैयार हो गए। हंस और गरुड़ पर बैठे दोनों परस्या युद्ध करने लगे। ब्रह्माजी के बाल में विष्णुजी के अनेकों असत्रों का प्रहार करके उन्हें व्याकुल कर दिया। इससे कृषित हो बह्माजी ने भी पलटकर भयानक प्रहार किए। उनके पारस्परिक आघातों में देवताओं में हलचल मच गई। वे घबराए और डिलधारी भगवान शिव के पास याए और उन्हें सारी व्यथा सुनाई। भगवान शिव अपनी सभा में उमा देवी सहित सिंहासन पर विराजमान थे और मंद-मंद मुस्करा रहे थे।
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    शिव निर्णय
    महादेव जी बोले- पुत्रों में जानता हूं कि तुम बड़ा और विष्णु के परस्पर युद्ध से बहुत दुखी हो। तुम डरो मत, मैं अपने गणों के साथ तुम्हारे साथ चलता हूं। तब भगवान शिव अपने नंदी पर आसड़ ही, देवताओं सहित युद्धस्थल की ओर चल दिए। वहां छिपकर वे ब्रह्मा-विष्णु के युद्ध को देखने लगे। उन्हें जब यह ज्ञात हुआ कि वे दोनों एक-दूसरे को मारने की इच्छा से माहेश्वर और पाशुपात अस्वों का प्रयोग करने जा रहे हैं तो वे युद्ध को शांत करने के लिए महाअग्नि के तुल्य एक स्तंभ रूप में ब्रह्मा और विष्णु के मध्य खड़े हो गए। महाअग्नि के प्रकट होते ही दोनों के
    अस्व स्वर्थ ही शांत हो गए। अम्बों को शांत होते देखकर ब्रह्मा और विष्णु दोनों कहने लगे कि इस अग्नि स्वरूप स्तंभ के बारे में हमें जानकारी करनी चाहिए। दोनों ने उसकी परीक्षा लेने का निर्णय लिया। भगवान विष्णु ने शुकर रूप धारण किया और उसको देखने के लिए नीचे धरती में चल दिए। ब्रह्माजी हंस का रूप धारण करके ऊपर की ओर चल दिए। पाताल में बहुत नीचे जाने पर भी विष्णुजी को स्तंभ का अंत नहीं मिला। अतः वे वापस चले आए। ब्रह्माजी ने आकाश में जाकर केतकी का फूल देखा। वे उस फूल को लेकर विष्णुजी के पास गए। विषणु ने उनके चरण पकड़ लिए। ब्रह्माजी के छल को देखकर भगवान शिव प्रकट हुए। विष्णुजी की महानता से शिव प्रसन्न होकर बोले- हे विष्णुजी। आप सत्य बोलते हैं। अतः में आपको अपनी समानता का अधिकार देता हूं।
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    नंदिकेश्वर बोले- महादेव जी ब्रह्माजी के छल पर अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने अपने प्रिनेत्र (तीसरी आंख से भैरव को प्रकट किया और उन्हें आज्ञा दी कि वह तलवार से ब्रह्माजी को दंड दें। आज्ञा पाते ही भैरव ने ब्रह्माजी के बाल पकड़ लिए और उनका पांचां सिर काट दिया। ब्रह्माजी डर के मारे कांपने लगे। उन्होंने भैरव के चरण पकड़ लिए तथा क्षमा मांगने लगे। इसे देखकर श्रीविष्णु ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि आपकी कृपा से ही ब्रह्माजी को पांचवां सिर मिला था। अतः आप इन्हें क्षमा कर दें। तब शिवजी की आज्ञा पाकर ब्रह्मा को भैरव ने छोड़ दिया। शिवजी ने कहा तुमने प्रतिष्ठा और ईश्वरत्व को दिखाने के लिए छल किया है। इसलिए में तुम्हें शाप देता हूं कि तुम सत्कार, स्थान व उत्सव से विहीन रहोगे। ब्रह्माजी को अपनी गलती का पछतावा हो चुका था। उन्होंने भगवान शिव के चरण पकड़कर क्षमा मांगी और निवेदन किया कि वे उनका पांचवां सिर पुनः प्रदान करें। महादेव जी ने कहा-जगत की स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए पापी को दंड अवश्य देना चाहिए, ताकि लोक मर्यादा बनी रहे। में तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम गणों के आचार्य कहलाओगे और तुम्हारे बिना यज्ञ पूर्ण न होंगे।
    फिर उन्होंने केतकी के पुष्प से कहा- अरे दुष्ट केतकी पुष्य! अब तुम मेरी पूजा के अयोग्य रहोगे। तब केतकी पुष्प बहुत दुखी हुआ और उनके चरणों में गिरकर माफी मांगने लगा। तब महादेव जी ने कहा- मेरा वचन तो झूठा नहीं हो सकता। इसलिए तू मेरे भक्तों के योग्य होगा। इस प्रकार तेरा जन्म सफल हो जाएगा।

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