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garud Puran adhyay 2

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  • เผยแพร่เมื่อ 27 มิ.ย. 2024
  • मरणासन्न व्यक्ति के लिए कल्याणकारी कर्म ~ सब से पहले भूमि को गोबर से तोपना चाहिए । फिर जल की रेखा से मंडल बना कर , उस पर तिल और कुश घास बिछा कर मरणासन्न व्यक्ति को उस पर सुला देना चाहिए । उस के मूंह में पंचरत्न / स्वर्ण आदि डालने से सब पापों को जला कर मुक्त कर देता है । भूत , प्रेत आत्माएं और यम के दूत अपवित्र स्थान और ज़मीन के ऊपर रखी चारपाई से मृत शरीर में प्रवेश करते हैं। ~ उस के मूंह में गंगा जल डालना चाहिए , अथवा तुलसी का पत्ता रखना चाहिए। ~ कोई भी शोक न मनाता हुआ ,उस के पास प्रभु का नाम ले। ~ जब तक प्राण हैं , विष्णु का नाम ले। ~ यमराज का अपने दूतों को आदेश है कि मेरे पास उन आत्माओं को लाओ जो "हरी" का नाम नहीं लेते। "ॐ", " हरी" को जपने वाले मेरे पास नहीं आते । पापी मनुष जो नारायाण को नहीं मानते , उन के कितने ही पुन्य कर्म उन के पापों को नहीं मिटा सकते । ~ हे गरुड़ , जाने या अनजाने में मनुष , जो भी पाप करते हैं , उन पापों की शुद्धि के लिए उन्हें प्रायश्चित करना चाहिए / शाश्त्रों में दशविधि स्नान , च्न्द्राय्न्ना व्रत , गौ दान , आदि का लेख किया गया है । यदि मनुष उन में क्षमता के कारण सफल न हो रहा हो तो कम से कम चौथाइ प्राय्क्चित अवश्य करना चाहिए । तत्पश्चात 10 महादान ,गौ, भूमि ,तिल, स्वर्ण घी, वस्त्र , गुड ,रजत , लवण , इन का दान करना चाहिए । यह पाप की शुद्धि के लिए ,पवित्रता में एक से एक बढ़ कर हैं.। ~ यमदुआर पर पहुँचने के जो मार्ग बताये गए हैं , वह अत्यंत दुर्ग्न्धिक , मवाद ,रक्त्त आदि से परिव्याप्त हैं । अत: उस मार्ग में स्थित वैतरणी नदी को पार करने के लिए वैतरणी- गौ (जो गौ सर्वांग में काली हो और जिस के थन भी काले हों ) का दान करने चाहिए । यह सब उत्तम प्रकृति वाले ब्राह्मण को देना चाहिए । ~पद दान का महत्व :- छत्र, जूता, वस्त्र ,अंगूठी ,कमंडलू ,आसन, पात्र और भोजन पदार्थ , यह आठ प्राकर के पद दान हैं.। तिल पात्र, घृत पात्र, शय्या , तथा और जो अपने को ईष्ट हो, देना चाहिए। हे पक्षी राज , इस पृथ्वी पर जिस ने पाप का प्रायश्चित कर लिया है ,सब प्रकार के दान भी दे चूका है, वैतरणी गौ तथा अष्ट दान कर चूका है , जो तिल से पूर्ण पात्र , घी से भरा पात्र ,शय्या दान और विधिवत पद दान करता है, वह नर्क रुपी गर्भ में नहीं आता ,अर्थात उस का पुनर्जन्म नहीं होता । मनुष स्वय जो दान करता है , परलोक में वह सब उसे प्राप्त होता है । वहां उस के आगे रखा हुआ मिलता है । ~ छत्र दान करने से मार्ग में सुख प्रदान करने वाली छाया प्राप्त होती है । ~ पादुका दान से वह मनुष्य घोड़े पर सवार हो कर सुखपूर्वक मार्ग पार करता है। ~ जल से परिपूर्ण कमंडलू के दान से मनुष्य सुख पूर्वक परलोक गमन करता है । ~ वस्त्र - आभूषण दान करने से यम दूत प्राणी को कष्ट नहीं देते । ~ तिल( सफ़ेद , काले ,भूरे ) के दान से , मन ,वाणी ,और शरीर से किये हुए पाप नष्ट होते हैं । ~ सभी साधनों से युक्त शय्या दान से स्वर्ग लोक में 60000 वर्ष तक , इंद्र लोक के भोग भोगता है। ~ इस के अतिरिक्त ,गौ दान देते समय "नान्दानान्दानाम" के उच्चारण करने से वेत्रनी नदी में नहीं गिरता । ~ दुखद , और बिमारी के समय , तिल,लोहा,सोना,रूई का वस्त्र ,नमक,सात अनाज , भूमि का टुकड़ा, देने से पाप कर्मों की शुद्धि होती है। ~ लोहा दान करने से, यम की नगरी में नहीं जाता। लोहे का दान , हाथों को जमीन के साथ छूते हुए देना चाहिए। यम राज के हाथों में कई प्रकार के लोहे के अस्त्र होते हैं । यह दान उन अस्त्रों के प्रभाब को कम करता है| ~ सोने का दान, यम राज की सभा में उपस्थित , ब्रह्मा,और दुसरे ऋषि मुनिओं को प्रसन्न करता है जो की वरदान की संज्ञा रखता है। ~ रूई के वस्त्र से यमदूत , कष्ट नहीं देते । ~ सात अनाजों के दान से , यम दूआरों पर तैनात कर्मचारी आनन्दित होते हैं । ~ भूमि के टुकड़े पर,जिस पर फसल हो , देने से इंद्र लोक की प्राप्ति होती है । ~ पूरे होश में रहते हुए , एक गौ का दान , बीमार अवस्था में एक सो (100) और मरणासन्न के समय एक हजार गौ दान करने के बराबर है । ~ एक गौ केवल एक जन को ही दी जानी चाहिए । वह यदि इस गौ को बेचता है या किसी दुसरे के साथ इस का बटवारा करता है , तो उस का परिवार सात पीढयों तक पीडत रहता है। गौ दान करने की विधि ~ काली या भूरी गौ के सींगों पर सोने का पत्र , और पैरों में चांदी पहनाएं । ~ इस का दूध पीतल के बर्तन में निकालें । ~ गौ के ऊपर काले कपडे का दोशाळा डाले। ~ दूध वाले बर्तन को ढक कर, रूई के ऊपर रखें ।इस के पास यमराज की एक सोने की मूर्ती , एक लोहे का टुकड़ा , पीतल के बर्तन में घी, यह सब गौ के ऊपर रखें । ~ गन्ने की पौरिओं से , रेशम की डोर से बंधा एक फट्टा बना कर , धरती में एक गड्ढा बना कर, पानी से भरें और फट्टा को इस में रखें । ~ गौ की पूंछ पकड़ कर ,पैर फट्टा पर रख कर ,ब्राह्मिन को दान दक्षिणा , नमस्कार करके , मन्त्र का उच्चारण करते हुए भगवान् विष्णु से नम्र प्रार्थना करें की हे प्रभु , आप सब प्रानिओं के दाता , रक्षक और कल्याणकारी हैं। आपके चरणों में यह उपहार भेंट करता हुआ , वेतारनी नदी को नमस्कार करता हूँ। हे गौ माता, आप देवी शक्ति के रूप में, मेरे पापों का खंडन करें। फिर हाथ जोड़े हुए, यम राज को गौ की प्रतिमा में देखते हुए, इन सब के गिर्द एक चक्कर लगा कर ब्राह्मिन को दान में दें । गौ दान के लिए शुभ समय, स्थान : ~ सभी नहाने वाले पवित्र स्थल ~ ब्राह्मिनों के निवास स्थान ~ सूर्य , चन्द्र ग्रेहन ~ नये चाँद वाले दिन ~ थोड़ी सम्पत्ति , धन अपने हाथों से दान में दी हुई का प्रभाव सदा ही रहता है। धन, सम्पत्ति , पत्नी, परिवार, सब विनाश होने वाले हैं इस लिए पुण्य कर्मों को संचित करो। पुण्य - दान , छोटे-बड़े से मेरे को कोई फर्क नहीं पड़ता । ~ लालच के कारण जो पापी लोग , बीमारीओं में पुण्य - दान नहीं करते, वह सदा दुखी ही रहते हैं.। ~ पुत्र, पौत्र , भाई, बन्धु , मित्र , जो मरणासन्न व्यक्ति

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